यीशु मसीह पर निबंध | Essay on Jesus Christ in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. जन्म व चमत्कारिक जीवन ।

3. उपसंहार ।

1. प्रस्तावना:

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इस संसार में हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख, पारसी तथा ईसाई धर्म का विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । भारतीय समाज में ईसाई धर्म का तीसरा स्थान है और विश्व में तो इस धर्म के अनुयायी कोने-कोने में फैले हुए      हैं । इस धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह थे । यह धर्म अपने मानवतावादी आदर्शो के कारण विश्वविख्यात है ।

2. जन्म व चमत्कारिक जीवन:

ईसाई धर्म के प्रवर्तक महात्मा ईसा मसीह थे । ईसा का जन्म यहूदिया के वेथलेहेम में राजा हैरोद के समय हुआ था। उनकी माता, अर्थात् मरियम की मंगनी युसुफ से हुई थी, किन्तु उनके साथ रहने से पूर्व ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी थीं ।

उनके पति युसुफ चुपके से मरियम का परित्याग करने की सोच रहे थे; क्योंकि वे धर्मी थे, मरियम को त्यागपत्र देने हेतु कचहरी में बुलाकर बदनाम नहीं करना चाहते थे । वे मरियम की सन्तान के पिता बनने का साहस भी नहीं कर पा रहे थे ।

वे इस दुविधा में ही थे कि स्वप्न में प्रभु के दूत यह कहते हुए दिखाई दिये: “युसुफ दाऊद की सन्तान अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां लाने से नहीं डरे; क्योंकि उनके जो गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा है । वे पुत्र प्रसव करेगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगे; क्योंकि वे अपने लोगों को पापों से मुक्त करेगा ।”

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नवी के मुख से प्रभु ने कहा था देखो, एक कुंवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी और उसका नाम एम्मानुल रखा जायेगा, जिसका अर्थ है: ईश्वर हमारे साथ है । इस प्रकार युसुफ नींद से उठकर प्रभु के दूत की आज्ञानुसार अपनी पत्नी को अपने यहां ले आया ।

इस प्रकार ईसा का जन्म हुआ । इसके बाद ज्योतिषी येरूसोलेम आये । उन्होंने देखा आकाश में तारा उदित हुआ है, जो नवजात ईसा के जन्म का सूचक व प्रतीक था । वह तारा बेथलेहम की भूमि पर आगे-आगे चलता रहा और जहां बालक था, उस जगह के ऊपर पहुंचने पर ठहर गया ।

घर में प्रवेश कर उन लोगों ने बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, फिर उसको प्रणाम कर उन्होंने सोना, लोभान और गन्ध रस की भेंट चढ़ायी । स्वप्न में मिली चेतावनी के अनुसार वे राजा हेरौद के पास न जाकर अन्य रास्ते चले राये । यूद्ध की भूमि पर जन्म लेने वाले प्रजा इस्जायेल का चरवाहा बनेंगे ।

इसके बाद प्रभु के दूत युसुफ को स्वप्न में दिखाई दिये और बोले: ”बालक और उसकी माता को लेकर मिश्र देश भाग जाइये, नहीं तो राजा हेरोद उसे ढूंढवाकर मरवा डालेगा । युसुफ उसी रात बालक और उसकी माता को लेकर मिश्र देश चल दिये ।

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हैरोद को यह देखकर बहुत क्रोध आया कि ज्योतिषियों ने मुझे धोखा दिया । उसने अपने प्यादों को भेजकर ज्योतिषियों द्वारा ज्ञात तिथियों के समय के अनुसार बेथलेहम और आसपास के उन सभी बालकों को मरवा डाला, जो दो बरस या उससे कम थे ।

हैरोद की मृत्यु के बाद प्रभु के दूत मिश्र देश में युसुफ को स्वप्न में दिखाई दिये और बोले: उठिये बालक और उसकी माता को लेकर इजराइल देश चले जाइये । इसके बाद युसुफ इजराइल चला गया । फिर स्वप्न दर्शन के अनुसार गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में जा बसा । वहीं प्रभु ईसा तुरन्त जल से बाहर निकले ।

स्वर्ग का द्वार खुल गया । ईश्वरीय आत्मा के प्रतीक के पास आये और स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी-यह मेरा प्रिय है, मैं इन पर प्रसन्न हूं ।” उसके बाद शैतान ईसा को निरजन स्थान पर ले गये । जहां शैतान उनकी परीक्षा ले ले । ईसा 40 दिन 40 रात उपवास करते रहे ।

उन्हें भूख लगी, तो परीक्षकों ने कहा: ”यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो इन पत्थर को रोटियां बना दो ।” ईसा ने कहा: ”मनुष्य रोटी से नहीं जीता, वह तो ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द में जीता है ।” शैतानों ने उनकी तरह-तरह से परीक्षा लेनी चाही । जब वे पराजित हो गये, तो ईसा ने कहा: ”अपने प्रभु ईश्वर की आराधना और सेवा करो, यहां से हट जाओ ।” शैतान उन्हें छोड़ चल दिये ।

फिर स्वर्गदूतों ने उनकी परिचर्या की । इसके बाद ईसा योहन की गिरपतारी की खबर पाकर गलीलिया चले आये । यहां के सभागृहों में वे शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचारों का प्रचार करते रहे और लोगों की हर तरह की बीमारी और निर्बलता को दूर करते हुए गलीलिया घूमते रहते । उनका नाम सीरिया में फैल गया । उन्होंने मिर्गी, लकवा तथा अन्य कष्ट पीड़ित लोगों को चंगा किया ।

उनके उपदेशों और चमत्कारों से प्रेरित होकर उनके लाखों श्रद्धालु उनके साथ चलते थे । उनके प्रमुख चमत्कारों में कोढ़ी को स्वास्थ्य लाभ, पेत्रुस की सास को चंगा करना, रक्तस्त्राव पीड़िता को ठीक करना, रेगिस्तान में उनके राज्यों के पास मात्र पांच रोटियों को उसके रोटियों में बदलकर भूखे प्यासों की क्षुधा को शान्त करना है और सात टोकरे को रोटी से भर देना चमत्कारिक शक्ति के प्रमाण थे ।

ईसा की चमत्कारिक शक्ति एवं ईश्वरीय शक्ति से ईर्ष्याग्रस्स होकर कुछ ईर्ष्यालु धर्मी लोगों ने ईसा को छल से गिरफ्तार करने का षड्‌यन्त्र रचा । इस षड्‌यन्त्र में उनके 12 शिष्यों में से जूदस नाम के शिष्य ने 30 चांदी के सिक्कों के बदले उन्हें पकड़वाने का दुष्कर्म किया । अपनी मृत्यु से पूर्व ईसा 12 शब्दों के साथ भोजन करते हुए यह भविष्यवाणी भी कर गये थे कि तुममें से एक मुझे पकड़वा देगा ।

ईसा के विश्वासघाती जूदस ने पूछा था, कहीं वह मैं तो नहीं ? ईसा ने उत्तर दिया: “तुमने ठीक ही कहा है ।” परमप्रसाद में ईसा ने प्रार्थना पढ़ने के बाद रोटी को भोजन करते समय तोड़ा और शिष्यों को बांटते हुए कहा था-यह मेरा शरीर है । प्याले में जल लेकर कहा था । यह मेरा रक्त है । जो विधान का रक्त है ।

बहुतों के पाप क्षमा के लिए बहा जा रहा है । जैतून पहाड़ी पर जाते हुए उन्होंने शिष्यों को विचलित न होने हेतु कहा । ईसा की भविष्यवाणी के अनुसार जूदस एक बड़ी भीड़ लेकर लाठियों के साथ आ खड़ा हुआ, जिसे महायाजकों और जनता के नेताओं ने भेजा था ।

विश्वासघाती जूदस ने उन्हें संकेत दिया था: ”मैं जिसका चुम्बन करूंगा, उसे ही पकड़ना । विश्वासघाती जूदस ने गुरुवर प्रणाम ! कहकर ईसा का चुम्बन किया । ईसा को गिरपतार कर लिया गया । महायाजक और सारी महासभा ने ईसा को मरवाने हेतु झूठी गवाही ढूंढ़ी । निक्षेप निरपराध ईसा को फांसी देने का फैसला किया गया ।

उनके विरोधियों ने उनके कपड़े उतार लिये । उनके सिर पर कांटों का मुकुट रखा । दाहिने हाथ में सरकण्डा भरा दिया । सब उनका उपहास उड़ाते थे, थूकते थे, सरकण्डे छीनकर उनके सिर पर मारते हुए कहते थे: ”यहूदियों के राजा, प्रणाम । यदि तू ईश्वर का पुत्र है, तो क्रूस से उतर आ । दूसरों को बचाने वाले स्वयं को बचा ।”

ईसा ने ऊंचे स्वर में अपने ईश्वर को पुकारा था: “एली एली । लेमा सबाखतानी ।” हे ईश्वर, हे ईश्वर तूने मुझे क्यों त्याग दिया । ईसा ने जैसे ही प्राण त्यागे, वैसे ही मन्दिर के परदे ऊपर से नीचे दो भागों में फट गये । पृथ्वी कांप गयी, चट्टानें फट गयीं । कब्रें खुल गयीं और बहुत मृत सन्तों के शरीर पुन: जीवित हो गये । यह सब देखकर सब बोल उठे: “यह तो ईश्वर का पुत्र था ।”

इसके बाद जूदस ने पश्चाताप करते हुए महायाजकों और नेताओं को चांदी के 30 सिक्के लौटाते हुए कहा: ”मैंने निर्दोष के रक्त का सौदा कर पाप किया है ।” इसके बाद जूदस ने फांसी लगा ली । उस रक्त की कीमत से जो कुम्हार की जमीन खरीदी गयी, वह रक्त की जमीन कहलाती है ।

ईसा ने अपनी मृत्यु से पूर्व तीन दिन बाद पुनर्जीवित होने की भविष्यवाणी की थी । उनके विरोधियों ने  कब्र के ऊपर पत्थर रखवा दिये, ताकि ईसा के शिष्य उनके शव को चुराकर न ले जा सके । सप्ताह के प्रथम दिन पौ फटते ही प्रभु का एक दूत पत्थर लुढ़काकर उस पर बैठ गया । पहरेदार थर-थर कांपने लगे ।

उसने बताया कि वे जी उठे । आप लोग उनके दर्शन करने गलीलिया जाइये । मार्ग में उन्होंने स्त्रियों को दर्शन दिये । इसके बाद अपने शिष्यों को सन्देश देकर यह कहा कि तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र तथा पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो । मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, तुम उनका पालन करना । उन्हें सिखलाओ और याद रखो मैं संसार के अल तक तुम्हारे साथ हू ।

3. उपसंहार:

ईसाई धर्म वस्तुत: विभिन्न मतों के संघों के रूप में एक संगठित धर्म है । चर्च संगठन में धर्माधिकारियों के स्पष्ट पद सोपान हैं । ईसाई पादरियों व ननों ने वास्तव में समाज तथा मानव सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया है और कर रहे हैं ।

हालांकि समय-समय पर उन पर प्रलोभन देकर सेवा की आड़ में धर्म परिवर्तन के आरोप लगते रहे हैं, किन्तु मदर टेरेसा जैसे समाजसेवियों ने अपनी सेवा से तथाकथित विरोधियों को स्पष्ट जवाब दिया है । ईसाई धर्म अपनी विभिन्न विचारधारा के कारण दो सम्प्रदायों: 1. कैथलिक और 2. प्रोस्टैन्ट में बंट गया है । भारतीय सांस्कृतिक व राजनीतिक मुख्यधारा के साथ जुड़कर इस सम्प्रदाय ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया हैं । इस धर्म के अनुयायी हमारे देश में काफी मात्रा में हैं ।

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