Read this article in Hindi to learn about the eight important tools of public policy. The tools are:- 1. विधायिका (Legislature) 2. कार्यपालिका (Executive) 3. प्रशासनिक विभाग और अभिकरण (Administrative Department and Agency) 4. न्यायपालिका (Judiciary) and a Few Others.

चूंकि लोकनीति सरकार की नीति है, अत: उसमें सरकार के अंग ही मुख्य रूप से भाग लेते हैं, जैसे विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका । लोकनीति पर का मुख्य रूप से निस्तारण संविधान से होता है, वस्तुत: संविधान लोकनीति का सर्वोच्च दस्तावेज है, जैसे- भारतीय संविधान में लोकनीति को समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक इत्यादि स्वरूप दे दिया गया ।

लोकनीतियों का निर्माण मुख्य रूप से विधायिका का दायित्व होता है । लेकिन वास्तविक रूप से इसे कार्यपालिका संपन्न करती है । मंत्रियों के द्वारा निर्मित प्रस्तावों को विधायिका अनुमति देती है और वे लोकनीति का स्वरूप ग्रहण कर लेती है । प्रशासन भी प्रदत्त व्यवस्थापन के तहत अनेक उपनीतियों को बनाता और लागू करता है ।

लोकनीति निर्माण के प्रमुख उपकरण इस प्रकार हैं:

Tool # 1. विधायिका (Legislature):

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लोकतांत्रिक देशों में नीति निर्माण की शक्ति विधायिका में अंतर्निहित होती है । वही नीतियों को अंतिम रूप से स्वीकृति प्रदान करती है । कार्यपालिका द्वारा प्रस्तुत नीतियों को वह संशोधित या अस्वीकृत भी कर सकती है ।

लेकिन वास्तविकता यह है कि विधायिका नीति संबंधी मसौदे पर हो-हल्ला तो कर सकती है लेकिन स्वयं कार्यपालिका को कोई नई नीति नही सुझाती । इस प्रकार विधायिका की नीति-निर्माण शक्ति का वास्तविक उपयोग कार्यपालिका ही करती है ।

Tool # 2. कार्यपालिका (Executive):

संसदीय शासन में वास्तविक कार्यपालिका मंत्रिपरिषद होती है जबकि अध्यक्षीय शासन में राष्ट्रपति । ये ही नीति निर्माण की वास्तविक पहल करते हैं । इनके द्वारा प्रस्तावित नीतियों को स्वीकृत, संशोधित या अस्वीकृत करने का अधिकार विधायिका में निहित होता है लेकिन अपने बहुमत या समर्थन के बल पर ये नीति को अनुमोदित करवा ही लेते हैं ।

Tool # 3. प्रशासनिक विभाग और अभिकरण (Administrative Department and Agency):

यह एक स्वीकार्य तथ्य है कि प्रशासन मात्र नीति का निर्माण ही नहीं करता अपितु उसके निर्माण में भी भाग लेता है ।

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एपलबी के शब्दों में- लोक प्रशासन नीति निर्माण भी है ।

प्रशासक गण नीतियों के निर्माण में 3 प्रकार से भाग लेते हैं:

(1) मंत्रियों को सलाह/तथ्य वे ही देते हैं ।

(2) शीर्ष पर निर्मित नीतियों/कानूनों को लागू करने के लिए अनेक उपनीतियों का निर्माण प्रशासक करते हैं ।

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(3) अधीनस्थ विधान के तहत नीतियों का निर्माण ।

एम.पी. शर्मा के अनुसार- भारत जैसे विकासशील देशों में नौकरशाही अथवा प्रशासनिक सेवाएं नीति-निर्माण प्रक्रिया में निश्चयवाचक और विश्वासोत्पादक भूमिका निभाती हैं । ऐसा विशेषतया उन अंतर्कालीन राज्यों में होता है जो आधुनिकता की अपेक्षा परंपरा के निकट होते हैं ।

उसका कारण यह होता है कि इन देशों में नीति-निर्माण करने वाले संस्थान, जैसे- मतदाता, विधानमंडल, हित-समूह, व्यवसायिक संगठन और प्रतिस्पर्द्धिक राजनीतिक दल कमजोर और खंडित होते हैं । इसके विपरीत नौकरशाही अपेक्षाकृत सुसंगठित, शक्तिशाली तथा एकीकृत होती है ।

Tool # 4. न्यायपालिका (Judiciary):

न्यायपालिका विशिष्ट नीति निर्मात्री संस्था है जो तब सक्रिय होती है जब उक्त सामान्य संस्थाएं निष्क्रिय हो जाती हैं या अति सक्रियता में सीमा के बाहर चले जाती हैं । अत: नीति निर्माण का क्षेत्र न्यायपालिका से सामान्यतया बाहर है ।

लेकिन न्यायिक पुनरावलोकन के तहत उसे सरकारी नीतियों, कानूनों के परीक्षण का अधिकार होता है और इसी अधिकार के तहत वह परीक्षण के माध्यम से नीति-निर्देश और नीति-नियंत्रण की तरफ उन्मुख हो जाती है ।

अमेरिका में संघीय न्यायालय ने सामान्य विधि और सामाजिक न्याय के नाम पर इतने कानूनों का विकास किया कि न्यायलय को तीसरे सदन तक की संज्ञा दी गयी । भारत में भी सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्षों में ऐसी ही भूमिका निभायी है जैसे आरक्षण की सीमा तय करना, नौकरशाहों-मंत्रियों के मुकदमों की मंजूरी प्रक्रिया को अवैधानिक घोषित करना इत्यादि ।

एम.पी. शर्मा के अनुसार- न्यायालय यह बता कर कि सरकार के कार्य की सीमा क्या है और यह निर्देशन देकर कि अपने कानूनी या संवैधानिक कर्त्तव्यों को निभाने के लिए इसे क्या करना चाहिए, अधिक सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं । भारत में भी न्यायालयों के कई निर्णयों ने सार्वजनिक नीति को प्रभावित किया है और ऐसा आर्थिक और सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में विशेष कर हुआ है ।

Tool # 5. राजनीतिक दल (Political Party):

राजनीतिक कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद) वस्तुत: किसी राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व करती है । यह दल चुनाव के दौरान अपना घोषणापत्र जारी करता है जिसमें उन नीतियों और योजनाओं का खुलासा होता है जो वह सत्ता में आने पर क्रियान्वित करने का वादा करता है । सरकार में आने पर उसके प्रतिनिधि उन नीतियों को लागू करते हैं ।

Tool # 6. दबाव समूह (Pressure Group):

आधुनिक समाजों की एक महत्वपूर्ण विशेषता विकसित और संगठित दबाव समूह है । व्यापारियों, किसानों, अल्पसंख्यकों, मजदूरों आदि से संबंधित संगठन सरकार और उसके प्रशासन पर दबाव डालते हैं कि अमुक नीति बनायी जाये, अमुक नीति बदली जाये और अमुक नीति नहीं लायी जाए ।

इन समूहों का एक औपचारिक ढांचा होता है और सदस्यगणों में कतिपय मुद्दों पर एक मतता होती है । यूरोपीय देशों में ये समूह अधिक शक्तिशाली हैं अत: नीति निर्माण में भी अधिक प्रभावी हैं, यद्यपि भारत जैसे विकासशील देशों में भी इसका महत्व बड़ रहा है । वैसे भारत में जातीय और धार्मिक गुटों का अत्यधिक प्रभाव है ।

Tool # 7. जनता (Public):

लोकतंत्र में जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है । विकसित देशों में तो बकायदा जनमत संग्रह के माध्यम से अनेक महत्वपूर्ण मामलों को निर्णीत किया जाता है । भारत जैसे विकासशील देशों में भी चुनाव आदि के समय राजनीतिक दल उनकी समस्याओं को और निराकरण का वादा करते हैं । उनमें से कुछ पूरी भी की जाती है । इस प्रकार जनता भी नीति निर्माण में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाती है ।

Tool # 8. नागरिक (Citizen):

एक नागरिक भी नीति निर्माण में दो तरह से भाग लेता है:

(1) किसी राजनीतिक दल को वोट देकर,

(2) सरकार की किसी नीति का समर्थन या विरोध करके ।

यद्यपि दोनों ही अवसर पर उसकी भूमिका का महत्व एक नागरिक के रूप में अत्यधिक ही होता है ।