Read this article in Hindi to learn about:- 1. सूत्र-स्टाफ तनाव के प्रमुख बिन्दु (Reasons for Conflict between Line and Staff) 2. सूत्र-स्टाफ के आरोप (Allegation of Line and Staff) 3. सुधार हेतु उपाय (Remedy for Improvement)  4. बदलती अवधारणा (Changing Concept).

सूत्र-स्टाफ तनाव के प्रमुख बिन्दु (Reasons for Conflict between Line and Staff):

सूत्र-स्टाफ के मध्य विवाद उनके मध्य तनाव को लेकर है ।

इस तनाव के दो प्रमुख कारण है:

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i. सूत्र- स्टॉफ के कार्यों और सत्तात्मक स्वरूप में स्पष्टता का अभाव ।

ii. सूत्र- स्टॉफ अधिकारियों के परस्पर वैचारिक मतभेद ।

कूण्टज और ओडोनेल- ”प्रबंध का कोई अन्य क्षेत्र इतना तनाव और कठिनाई उत्पन्न नहीं करता, जितना ”स्टाफ-लाइन विवाद” । इससे समय का अपव्यय होता है और प्रभाव में कमी आती है ।”

1. व्यैक्तिक योग्यताएं और विशेषताएं:

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सूत्र की तुलना में स्टॉफ अधिकारी कम आयु के अधिक शिक्षित, स्पष्टवादी और महत्वांकाक्षी होते हैं । वे अधिक व्यवसायिक दृष्टिकोण के भी होते हैं । लेकिन उन्हें कम शिक्षित और कम योग्य सूत्र के निर्देशन में काम करना होता है जिससे दोनों के मध्य अविश्वास, घृणा आदि उत्पन्न ।

2. प्रतिष्ठा संबंधी द्वंद:

सूत्र को संगठन में प्राथमिक स्थिति प्राप्त होता है जबकि स्टॉफ को द्वितीयक या गौण । इससे उनमें प्रतिष्ठा संबंधी द्वंद पैदा होता है ।

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3. मनोवैज्ञानिक समस्या:

स्टॉफ की उपस्थिति सूत्रों के लिए मनोवैज्ञानिक समस्या पैदा कर देती है स्टॉफ की योग्यता और विशेषज्ञता सूत्र के प्रभाव क्षेत्र और सत्ता दोनों पर अघोषित निर्बंधन लगाती है ।

4. स्टॉफ का रूप आलोचनात्मक:

स्टॉफ अपने पद के औचित्य को सिद्ध करने के क्रम में सूत्र और उसकी कार्य-प्रक्रिया की जब-तब आलोचना करते रहते हैं ।

5. स्टॉफ का अहम:

स्टॉफ अपनी विशेष योग्यता के अहम में चूर होते है और सूत्र की परेशानियों को नहीं समझते ।

6. स्टॉफ की अवहेलना:

सूत्र स्टॉफ को पर्याप्त तवज्जों नहीं देते और उनके महत्वपूर्ण सुझावों की भी कभी-कभी अनदेखी कर देते हैं ।

सूत्र-स्टाफ के आरोप (Allegation of Line and Staff):

सूत्र के आरोप (Allegation of Line):

1. स्टाफ सूत्र की सत्ता का मन्दक और अपहरणकर्ता है:

स्टाफ की उपस्थिति सूत्र के कार्य-दायित्व में कटौती करती है । इससे सूत्र का प्रभाव, महत्व और आकर्षण मंद या कम होता है ।

2. अव्यवहारिक सुझाव:

सूत्र का सदैव से आरोप रहा है कि स्टॉफ उनके दबावों, समस्याओं को व्यापक परिप्रक्ष्य में नहीं समझते और ऐसे अव्यवहारिक सुझाव देते है जिन्हें या तो लागू करना मुश्किल होता है या अधिक समय और धन लगता है । वे ‘एक पौण्ड के कार्य को पैदा करने के लिए एक टन कागज व्यय करते है ।’ वे एकान्त सिद्वांतवादी (Ivory Tower Theoreticians) होते हैं ।

3. श्रेय हड़पने वाले:

सूत्र का यह भी आरोप है कि अंतिम उत्तरदायित्व के सिद्धांत के कारण योजना या निर्णय की असफलता का तो दोषारोपण उन पर ही होता है लेकिन उसकी सफलता का श्रेय स्टॉफ ले उड़ता है ।

4. दोष ढूंढने वाले:

स्टॉफ सदैव ही सूत्र के कार्यों या प्रक्रिया में कमी या दोष ढूंढने में लगे रहते है ।

5. अन्य कार्यों में उलझना:

सूत्र का आरोप है कि स्टॉफ बजट और अन्य नियंत्रणों में उलझा रहता है जिससे निषेधात्मक प्रकृति का विकास होता है । (विलार्ड होगन का कथन)

स्टॉक के आरोप (Allegation of Staff):

1. सत्ता का केन्द्रीकरण:

सत्ता का आरोप है कि सूत्र कार्य संबंधी समस्त सत्ता अपने हाथ में रखता है । जिस क्षेत्र के संबंध में सत्ता स्टॉफ को प्राप्त है वहाँ भी सूत्र स्वयं निर्णय ले लेते है ।

2. सूचना स्रोतों पर अधिपत्य:

स्टॉफ को परामर्श देने के लिए अनेक तथ्यों, आकड़ों, जानकारियों की जरूरत होती है, लेकिन जिन सूचना स्रोतों से ये सब वह इकट्‌ठा कर सकता है, वे सूत्र के नियंत्रण में रहती है, इससे स्टॉफ की स्थिति असहाय हो जाती है ।

3. स्टॉफ का पूरा उपयोग नहीं होता:

स्टॉफ के पास अधिक योग्यता, क्षमता और विशेषज्ञता होती है लेकिन सूत्र इसीलिए उनका उपयोग करने से कतराता है क्योंकि इससे स्टॉफ का महत्व संगठन में बढ़ता है ।

4. नवीन विचारों के विरोधी:

स्टॉफ का आरोप है कि सूत्र पूरानी प्रक्रियाओं को बदलने के उनके सुझावों को खारिज कर देते हैं ।

सूत्र-स्टॉफ संबंधों में सुधार हेतु उपाय (Remedy for Improvement of Line and Staff Relationship):

1. क्षेत्राधिकार स्पष्ट हो:

सूत्र और स्टाफ के कार्य, दायित्व आदि से संबंधित क्षेत्राधिकार स्पष्ट कर दिये जाऐ तो तनाव काफी हद तक शिथिल हो जाऐगें ।

2. सूत्र-स्टॉफ का परस्पर स्थानातरण:

एक-दूसरे के पदों पर अदला-बदली करने से दोनों के मध्य तालमेल को सुनिश्चित किया जा सकता है ।

3. परस्पर कार्यों का प्रशिक्षण:

सूत्र और स्टॉफ दोनों को एक-दूसरे के कार्यों की जानकारी, प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे उनकी जटिलताओं, सीमाओं, दबावों, दायित्वों आदि से परिचित सकें ।

4. स्टॉफ का अधिकतम उपयोग:

सूत्र को स्टॉफ की योग्यता, अनुभव आदि का फायदा उठाने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए ।

5. व्यवहारिक सुझाव:

स्टॉफ को चाहिए कि वह सूत्र को जो भी परामर्श दे वह प्रायोगिक और व्यवहारिक हो, न कि कोरा सिद्धांतवादी ।

6. स्टॉफ कार्य की पूर्णता:

स्टॉफ अपने कार्यों को इतनी समग्रता या पूर्णता में करे कि उनके आधार पर सूत्र अंतिम निर्णय लेने में सक्षम हो ।

7. परस्पर सम्मान की भावना:

सूत्र-स्टॉफ दोनों में एक-दूसरे के प्रति, उनके कार्यों-दायित्वों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए ।

8. टीम भावना:

मुख्य कार्यपालिका का यह दायित्व है कि वह सूत्र-स्टॉफ को उद्देश्य प्राप्ति के लिए एक टीम के रूप में काम करने के लिए प्रेरित करे ।

9. मेट्रिक्स संगठन:

सूत्र-स्टॉफ के संबंधों को सामान्य बनाने में पंखाकृति वाले मेट्रिक्स संगठन उपयोगी ही सकते है जिनमें आदेश की एकता के स्थान पर आदेश की समस्तरीय संरचना पायी जाती है ।

10. स्वतंत्र और अनिवार्य स्टॉफ सेवा:

मूने-रेले ने इस समस्या का एक समाधान ”स्वतंत्र और अनिवार्य स्टॉफ सेवा” में देखा है । भूने इसका उदाहरण ”जेस्युट” संगठन के रूप में देते है । रोमन कैथोलिकों के इस संगठन में अध्यक्ष अपनी उस परिषद के परामर्श से कार्य करने के लिए बाध्य होता है जो सदस्यों द्वारा ही निर्वाचित होती है ।

11. समन्वय और अंत: संचरण के सिद्धांत:

मूने-रेले ने संगठन के चार सिद्धांतों में सूत्र-स्टॉफ को एक सिद्धांत माना और बताया कि स्टॉफ सेवा मूलतः दो सिद्धांतों पर आधारित है; पहली समन्वय अर्थात् कार्यपालिकों को सूत्र-स्टॉफ में समन्वय सुनिश्चित करना चाहिए ।

दूसरा अंतः संचरण । इससे आशय है कि स्टॉफ केवल मुख्य कार्यपालिका को ही परामर्श या सूचना नहीं देते अपितु संपूर्ण संगठन के लिए वे इसे देने को तैयार रहते हैं । उक्त उपायों को बताना आसान रहा है लेकिन लागू करना बेहद कठिन ।

डिमॉक एवं कोइंग – ”स्टॉफ-सूत्र के मध्य समन्वय प्रबंध के कठिनतम क्षेत्रों में से एक है ।”

इसका दूसरा पहलू यह है कि सूत्र और स्टॉफ में भेद निरंतर कम होता जा रहा है ।

इसका कारण है:

(i) विशेषीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति जिसने विशेषज्ञों की संख्या और प्रभाव दोनों में वृद्धि कर दी है ।

(ii) सरकार के विविध कार्य, जिससे सामान्यज्ञता के स्थान पर विशेषज्ञता की प्रवृत्ति बड़ी है ।

स्टॉफ सूत्र सम्बन्ध-बदलती अवधारणा (Changing Concept of Line and Staff Relationship):

स्टॉफ सूत्र संबंधों को औपचारिक संगठन के समर्थक विद्वानों ने इस तरह प्रस्तुत किया कि ये दोनों पृथक्-पृथक् विशिष्ट कार्यों तक सीमित हो और उनके मध्य स्पष्ट विभाजन रेखा डाली जा सके ।

इस धारणा के समर्थक ओलिवर शेल्डन के अनुसार- ”स्टॉफ का गठन विचार मनन हेतु उसी प्रकार जान अकर किया जाता है, जिस प्रकार क्रियान्वयन हेतु सूत्र का” ।

इन विद्वानों ने सूत्र को स्टॉफ की तुलना में उच्च भी माना तथा उसे संगठन में अधिक महत्व प्रदान किया क्योंकि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति की जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से सूत्र के कंधों पर ही होती हैं । लोक प्रशासन में भी जनता के कष्टों का भार सूत्र अधिकारी ही उठाते हैं ।

यदि जनता को बिजली, पानी की समस्या या समस्या से गुजरना पड़े तो कलेक्टर को ही ज्ञापन दिया जाता है, जो कि सूत्र अधिकारी होता हैं । परन्तु आधुनिक परिप्रेक्ष्य में स्टॉफ-सूत्र संबंध बदल रहे हैं । अब उनके मध्य उच्च निम्न संबंधों पर जोर नहीं दिया जाता ।

जैसा कि लेपावस्की कहते है – ”स्टॉफ – सूत्र परस्पर समकक्ष है, उनमें उच्च -अधिनस्थ का संबंध नहीं हैं, बल्कि दोनों ही मुख्य कार्यपालिका के अधीन समान सत्ता और उत्तरदायित्व का उपभोग करते हैं ।”

लेपवस्की ने उस स्टॉफ को प्रभावहीन कहा जो सूत्र को आदेश नहीं देता, तथा उस सूत्र को असफल कहा जो स्टॉफ का महत्व ने समझता हो । उसके अनुसार एक सफल संगठन में सूत्र और स्टॉफ दोनों एक दूसरे के कुछ कार्यों को करते हैं ।

डिमॉक एवं कोइंग ने भी इस तरफ इशारा किया हैं कि- ”प्रायः उनके कार्यों में दिलचस्प और कष्टदायक मिश्रण होता है ।”

छोटे संगठनों में तो स्टॉफ सूत्र जैसी पृथक् इकाइयां खोजने से भी नहीं मिलती । वहां दोनों कार्य एक ही कार्मिक में निर्मित होते हैं ।

एम.पी. शर्मा के अनुसार- ”बड़े संगठनों में ही सूत्र स्टॉफ भेद नजर आता हैं, छोटों में नहीं ।”

तथ्य यह भी हैं, कि एक कार्मिक किसी सूत्र के लिए स्टॉफ का काम करता है, लेकिन अपने स्टॉफ-संगठन के पदसोपान में वह सूत्र का काम करता है । ऐसा तकनीकी संगठनों में विशेष रूप से दृष्टव्य होता हैं । जिले का सिविल सर्जन कलेक्टर के लिए स्टॉफ हैं, लेकिन अपने जिला-स्वास्थ्य प्रशासन में सर्वोच्च सूत्र हैं, जिसके अधिन विभिन्न डाक्टर्स, नर्स, आदि कार्यरत हैं, जिन्हें वह आदेश देता है ।

मंत्रीमण्डल, सचिवालय मंत्रीपरिषद का स्टॉफ है, लेकिन उसका स्वयं का संगठन एक सूत्रबद्ध संरचना हैं । इसका प्रमुख कैबिनेट सेक्रटरी अपने अधीन संयुक्त सचिव को आदेश देता हैं, आंतरिक क्रिया प्रणाली के बारे में निर्णय लेता हैं और उन्हें क्रियान्वित करवाता हैं ।

इस प्रकार लाइन एजेन्सी और स्टॉफ एजेन्सी में अंतर निरपेक्षता के स्थान पर सापेक्षता का है ।

जैसा कि ओलिवर रेल्डन कहते है- ”सूत्र तथा स्टॉफ सत्ता संबंधों को विशेषताएं है, विभागीय कार्यकलापों की नहीं ।”

अतः सूत्र स्टॉफ संबंधों का परीक्षण सत्ता संबंधों के परिप्रेक्ष्य में करना चाहिए । स्टॉफ सत्ता का प्रयोग करता हैं, निर्णय करता हैं, और आदेश भी देता हैं ।

स्टॉफ के पास परामर्श देने की सत्ता हैं, और क्या परामर्श दिया जाए यह भी एक निर्णय हैं ।

वह न सिर्फ अपने अधिनस्थ स्टॉफ को आदेश देता हैं, अपितु अनेक परिस्थितियों में सूत्रों को भी देता हैं । स्टॉफ का उच्च वेतनमान, उच्च सूत्रों के साथ निकटता और अनुभवयुक्त विशेषज्ञ ज्ञान स्टॉफ को अवसर देते है, कि वह सूत्रों को आदेश दे । इसी प्रकार जब सूत्र अनिर्णय की स्थिति में होता हैं, तब भी स्टॉफ को यही अवसर मिलता है, आदेश देने का ।

अतः कुछ अवसरों पर तथा कुछ क्षेत्रों में स्टाफ सूत्र के कार्यों को नियंत्रित करने की स्थिति में होते हैं । भारत में कार्मिक प्रशासन बजट तथा शक्ति O & M योजना आयोग जैसी स्टॉफ एजेन्सियों सूत्र अभिकरणों (मंत्रालयों) पर बाध्यकारी सत्ता का उपयोग करने लगी हैं ।

चुँकि स्टॉफ सूत्र पर हावी होने की कोशिश कर रहे है, अतः दोनों के मध्य तनाव और संघर्ष की स्थिति भी निर्मित होती है । होगन ने ”शासन में खतरनाक प्रगति” नामक पुस्तक में स्टॉफ के नियंत्रण से उद्‌भूत होने वाले खतरों का जिक्र किया है । उन्होंने स्टॉफ के वित्तिय, सेवावर्गीय एवं अन्य हस्तक्षेपों को ”निषेधात्मक प्रवृति” की संज्ञा दी, जो स्टॉफ-सूत्र के मध्य संघर्षों का मूल कारण है ।

स्टॉफ पर यह आरोप लगाया जाता है, कि वह मुख्य कार्यपालिका से अपनी निकटता का लाभ लेकर निम्न सूत्रों पर रोब जमाने की कोशिश करता है । वह समादेश श्रृंखला का पालन किये बिना ही सूत्र कार्मिकों को निर्देशित करने की कोशिश करता है ।

वस्तुतः सूत्र स्टॉफ संबंधों को प्रत्येक संगठन में उसकी जरूरतों के मुताबिक परिभाषित करने की जरूरत होती हैं । संगठन की संरचना का इन संबंधों पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं । उदाहरण के लिए एकक आदेश संगठन में सूत्र और स्टॉफ को पृथक् रूप से चिन्हित किया जा सकता हैं, जबकि कार्यात्मक संगठन में बिल्कुल नहीं ।

कार्यात्मक संगठन को कुछ विद्वान सूत्र स्टॉफ के मध्य बेहतर संबंधों का सबसे योग्य विकल्प मानते हैं । असल में कार्यात्मक संगठन में आदेशों की बहुलता पायी जाती हैं, और अधिनस्थ कार्मिक ही तय करते हैं, कि समय विशेष पर उनका कौन होता है ।

प्रत्येक स्थान पर नहीं अपनाया जा सकता विशेषकर लोक प्रशासन में तो कतई नहीं । इस समस्या को लेकर डिमॉक एवं डिमॉक ने ठीक ही कहा है कि- ”स्टॉफ सूत्र के मध्य उचित समायोजना प्रबंध की कठिनतम समस्याओं में से एक हैं ।”

यदि लोक प्रशासन के संगठन का विश्लेषण स्टाफ-सूत्र सम्बन्धों के नजरिये से करे तो यह समस्या उच्च स्तरों पर ही दिखायी देती हैं । यहां मंत्रालयों की प्रकृति सूत्र की हैं, जो कि मुख्य कार्यपालिका (राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री) के अधिक निस्पादकीय रेखा पर स्थित हैं ।

इनके साथ सचिवीय सहायता का स्टॉफ मौजूद है (जिसे केंन्द्रीय सचिवालय कहते हैं) भारत में जो नीति-निर्माण में और उसके क्रियान्वयन में सहायता करता हैं । इनकी प्रकृति सामान्यज्ञों की हैं । इसके विपरीत इनके विभाग जो विशेषज्ञों के अधीन नीतियों की क्रियान्वयन करने के लिए उत्तरदायी है, वे परामर्श देने के लिए नहीं बनाये गये हैं ।

स्टॉफ को जो महत्वपूर्ण काम सौंपा गया हैं वह परामर्श का ही है । यह विरोधाभास ही हैं, ऐसे महत्वपूर्ण कार्य के लिए आवश्यक उच्च योग्यताधारी विशेषज्ञों के स्थान पर सामान्य योग्यताधारी सचिव मंत्री को परामर्श देता है ।

भारत में इससे संबंधित दूसरे समस्या पर आते हैं । पाल एच एपीलबी ने सर्वप्रथम इस और ध्यान 1954 में खींचा था कि भारतीय सरकार का पूरा ढांचा स्टॉफ की प्रकृति का है । उन्हें यहां गृह मंत्रालय को छोड़कर कोई अन्य सूत्र नम्बर नहीं आया ।

प्रश्न यह हैं, कि एपीलबी ने ऐसा किस आधार पर कहा ? इसका उत्तर इस समस्या के कारण में ही निहित हैं । वस्तुतः स्टॉफ और सूत्रों के कार्यों में स्पष्ट भेद नहीं किया जा सकता । सैनिक प्रशासन में ये दोनों जितनी स्पष्ट है, उतनी नागरिक प्रशासन में नहीं । नागरिक प्रशासन में इनका विकास उतना नहीं हुआ हैं ।

और संभवतः यहां स्टाफ-सूत्र उतने स्पष्ट कभी नहीं हो पायेंगे, क्योंकि नागरिक प्रशासन का ढांचा काफी जटिल होता है । भारत में वित्त मंत्रालय मूलतः सूत्र हैं, लेकिन यह अन्य मंत्रालयों को उनकी वित्तिय नीति पर परामर्श देने का स्टॉफ कार्य भी करता है ।

उसका बजट संभाग मंत्रीपरिषद को जो बजट प्रेषित करता है, वह भी परामर्श के रूप में होता हैं । चुँकि हम यह विभाजन मान लेते है, कि स्टॉफ के पास आदेश और क्रियान्वयन की शक्ति नहीं होती हैं, जबकि सूत्र के पास ये अनन्य रूप से होती है, इसीलिए ”एपीलबी-निष्कर्ष” हमारे सामने आते हैं ।

इनका उचित समाधान तो यही हो सकता है, कि हम आदेश, अंतिम निर्णय, क्रियान्वयन जैसी शक्तियों को स्टॉफ के साथ भी उसी तरह आशिक रूप से संलग्न माने, जिस प्रकार यह भी मान ले कि परामर्श, समन्वय जैसे स्टॉफ प्रवृति के कार्य सूत्रों को भी करने पड़ते हैं ।

दोनों के मध्य संघर्ष की प्रवृति का अंत इसी तथ्य में मिलेगा । इस चर्चा को लेपावस्की के इस कथन के साथ अंतिम रूप देना यथोचित प्रतीत होता है, कि ”किसी भी संगठन में सूत्र-स्टॉफ एक दूसरे के परिपूरक लक्षण है, विरोधी नहीं ।”