Read this article in Hindi to learn about:- 1. राष्ट्रीय विकास परिषद  का दर्जा (Status of National Development Council) 2. राष्ट्रीय विकास परिषद  का संरचना (Composition of National Development Council) 3. उद्देश्य (Objectives of National Development Councils) 4. कार्य (Functions) 5. आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation).

Contents:

  1. राष्ट्रीय विकास परिषद  का दर्जा (Status of National Development Council)
  2. राष्ट्रीय विकास परिषद  का संरचना (Composition of National Development Council)
  3. राष्ट्रीय विकास परिषद  का उद्देश्य (Objectives of National Development Council)
  4. राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्य (Functions of National Development Council)
  5. राष्ट्रीय विकास परिषद  का आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of National Development Council)


1. राष्ट्रीय विकास परिषद  का दर्जा (Status of National Development Council):

राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रारूप में की गई अनुशंसा के आधार पर भारत सरकार के कार्यकारी प्रस्ताव द्वारा अगस्त, 1952 में हुई थी । योजना आयोग की तरह ही राष्ट्रीय विकास परिषद भी न तो संवैधानिक निकाय है और न ही विधायी निकाय ।

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तथापि, केंद्र राज्य संबंधों व संबद्ध सरकारिया आयोग ने अनुशंसा की थी कि राष्ट्रीय विकास परिषद का संविधान 263 के तहत संवैधानिक दबा दिया चाहिए तथा इसका नाम ‘राष्ट्रीय आर्थिक और विकास परिषद’ रखा जाना चाहिए ।


2. राष्ट्रीय विकास परिषद  का संरचना (Composition of National Development Council):

राष्ट्रीय विकास परिषद में निम्नलिखित सदस्य शामिल हैं:

1. भारत के प्रधानमंत्री (अध्यक्ष के रूप में)

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2. मंत्रिमंडल स्तर के सभी केंद्रीय मंत्री (वर्ष 1961 से)

3. सभी राज्यों के मुख्यमंत्री

4. सभी संघशासित राज्यों के मुख्यमंत्री/प्रशासक

5. योजना आयोग के सदस्य

ADVERTISEMENTS:

योजना आयोग का सचिव राष्ट्रीय विकास परिषद का भी सचिव होता है । राष्ट्रीय विकास परिषद को कार्यों के निष्पादन में योजना आयोग से प्रशासनिक और अन्य तरह की सहायता भी प्राप्त होती है ।


3. राष्ट्रीय विकास परिषद  का उद्देश्य (Objectives of National Development Council):

राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना निम्नलिखित उद्देश्यों से हुई थी:

1. राष्ट्रीय विकास परिषद का परम उद्देश्य योजना को कार्यरूप देने में राज्यों का सहयोग प्राप्त करना है ।

2. योजना/योजनाओं के समर्थन में राष्ट्र के प्रयासों और संसाधनों को सुदृढ़ता और गतिशीलता प्रदान करना ।

3. सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समान आर्थिक नीतियों को बढ़ावा देना ।

4. देश के सभी भागों में त्वरित एवं संतुलित विकास सुनिश्चित करना ।


4. राष्ट्रीय विकास परिषद के कार्य (Functions of National Development Council):

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वर्ष 1952 के प्रस्ताव (जिसके फलस्वरूप परिषद का गठन हुआ) द्वारा राष्ट्रीय विकास परिषद को कई कार्य सौंपे गए थे । इन कार्यों को वर्ष 1967 में प्रशासनिक सुधार आयोग की अनुशंसा के आधार पर संशोधित और पुनर्परिभाषित किया गया था ।

संशोधित कार्यों की सूची इस प्रकार है:

1. राष्ट्रीय योजना की तैयारी के लिए मार्ग-निर्देश निर्धारित करना ।

2. योजना आयोग द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय योजना पर विचार करना ।

3. योजना को कार्यान्वित करने के लिए अपेक्षित संसाधनों का आकलन करना और उनको बढ़ाने के उपाय सुझाना ।

4. राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक और आर्थिक महत्व के विषयों पर विचार करना ।

5. राष्ट्रीय योजना से संबंधित कार्यों की समय-समय पर समीक्षा करना ।

6. राष्ट्रीय योजना में निर्धारित उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति के उपाय सुझाना ।

योजना आयोग द्वारा तैयार पंचवर्षीय योजना के प्रारूप को पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल को प्रस्तुत किया जाता है । इसकी स्वीकृति के बाद उसे राष्ट्रीय विकास परिषद के समक्ष स्वीकृति के लिए रखा जाता है । इसके बाद योजना को संसद में रखा जाता है ।

संसद की स्वीकृति के बाद इसे अधिकारिक योजना माना जाता है और भारत के राजपत्र में प्रकाशित होती है । इसलिए, सामाजिक और आर्थिक विकास से संबंधित नीतिगत विषयों के लिए राष्ट्रीय विकास परिषद संसद के बाद सर्वोच्च निकाय है जो इन विषयों से संबंधित नीति-निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार है ।

राष्ट्रीय विकास परिषद को योजना आयोग के परामर्शी निकाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है । इसकी अनुशंसाएँ बाध्यकर नहीं है । यह परिषद केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी अनुशंसाएँ करती है । प्रतिवर्ष इसकी कम से कम दो बैठकें होनी चाहिएं ।


5. राष्ट्रीय विकास परिषद  का आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation of National Development Council):

राष्ट्रीय विकास परिषद का प्रथम और योजना आयोग के मध्य विशेषतः नियोजन के क्षेत्र में उनकी नीतियों तथा कार्ययोजनाओं के संदर्भ में तालमेल बनाए रखना है तथा उनके बीच एक सेतु के रूप में कार्य करना है । परिषद अपने इस कार्य में काफी हद तक सफल रही है ।

इसके अतिरिक्त परिषद ने राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर केंद्र राज्य के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच का तथा संघीय राजनीतिक प्रणाली में केंद्र और राज्य के बीच जिम्मेदारियों के बँटवारे के तंत्र का भी कार्य किया है ।

इसके अतिरिक्त, परिषद की कार्यप्रणाली के संबंध में दो भिन्न-भिन्न मत व्यक्त किए गए हैं । एक ओर इसे ‘सुपर कैबिनेट’ इसलिए कहा गया है कि इसकी संरचना व्यापक और शक्तिशाली है तथा इसकी अनुशंसाएँ मात्र परामर्शी हैं, बाध्यकर नहीं । किंतु इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किए जाने के कारण इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती ।

दूसरी ओर इसे केंद्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का महज एक ‘रबर स्टांप’ करार कर दिया गया है । ऐसा मात्र केंद्र और राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार और शासन का लंबी अवधि से बने रहने के कारण ही है । विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के उद्‌भव के कारण राष्ट्रीय विकास परिषद अपने संघीय चरित्र की प्राप्ति तेजी से करती दिख रही है और इस प्रकार राष्ट्रीय योजना की तैयारी में राज्यों के हित का अधिक ध्यान रखा जा रहा है ।

राष्ट्रीय विकास परिषद की कार्य प्रणाली के संबंध में कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने ये टिप्पणियाँ की हैं:

1. एम ब्रीचर:

इन्होंने ‘पॉलीटिकल बायोग्राफी ऑफ नेहरू’ में लिखा है कि ”राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थापना नियोजन विषयक एक सर्वोच्च प्रशासनिक और परामर्शी निकाय के रूप में हुई थी – यह परिषद कैबिनेट द्वारा अनुमोदित नीति निदेशक का निर्धारण करती है । अपने गठन के समय से ही राष्ट्रीय विकास परिषद और इसकी स्थायी समिति ने योजना आयोग के दर्जे को कम करने का कार्य किया है ।”

2. एच.एम. पटेल:

पूर्व वित्तमंत्री एच.एम.पटेल का मानना है कि ”योजना आयोग के परामर्शी निकाय में राष्ट्रीय विकास परिषद भी शामिल है । संरचना पर ध्यान दें तो यह बिल्कुल ठीक नहीं है । राष्ट्रीय विकास परिषद योजना से उच्च निकाय है । वस्तुतः यह एक नीति-निर्धारक निकाय है और इसकी सिफारिशों को परामर्श सुझाव मात्र नहीं माना जा सकता वास्तव में ये नीतिगत निर्णय ही हैं ।”

3. के. संथानम:

इन्होंने अपने पुस्तक यूनियन-स्टेट रिलेशन में लिखा है कि राष्ट्रीय विकास परिषद की स्थिति पूरे भारतीय संघ में लगभग एक ‘सुपर कैबिनेट’ की हो गई है वह कैबिनेट जो भारत सरकार और सभी राज्यों के लिए कार्य कर रही हो ।

4. ए.पी.जैन:

पूर्व खाद्यमंत्री स्व. श्री जैन ने फूड प्राब्लम एड दि एन.डी.सी. शीर्षक से अपने लेख में टिप्पणी की है कि ”राष्ट्रीय विकास परिषद ने उन कार्यों पर भी अधिकार जमा लिया है जिन पर संवैधानिक दृष्टि से मंत्रिपरिषद (केंद्र और राज्य दोनों) का अधिकार है और कभी-कभी परिषद लक्ष्यों में की गई वृद्धि को भी संबद्ध मंत्रालय से परामर्श किए बिना ही अनुमोदित कर देती है । राष्ट्रीय विकास परिषद को न ही कानूनी दृष्टि से और न ही इसकी संरचना की प्रकृति की दृष्टि से यह अधिकार है कि वह राष्ट्रीय स्तर के मुद्‌दों पर निर्णय ले सकें । इस परिषद को वाद-विवाद और परामर्श तक ही स्वयं को सीमित रखना चाहिए तथा निर्णय लेने का कार्य केंद्र और राज्यों के कैबिनेट पर छोड़ देना चाहिए ।”