Read this article in Hindi to learn about the six modern approaches of comparative public administration. The approaches are:- 1. व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Behavioural Approach) 2. पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण (Ecological Approach) 3. विकासात्मक दृष्टिकोण (Development Approach) and a Few Others.

परम्परागत दृष्टिकोणों की अनेक कमियां सामने आयीं, अतएव नये दृष्टिकोणों का विकास होने लगा । इनके विकास में 1940 के बाद प्रकट हुई नवीन प्रवृत्तियों ने मुख्य भूमिका निभायी । राजनीति प्रशासन की द्विभाजकता का खण्डन, आदर्श के स्थान पर व्यवहारिक अध्ययन की स्वीकृति आदि के साथ तृतीय विश्व में  ”विकास” के मुद्‌दे ने भी लोक प्रशासन के अध्ययन में ”नवीन दृष्टि” को आवश्यक बना दिया ।

तुलनात्मक लोक प्रशासन के आधुनिक दृष्टिकोण निम्नलिखित हैं:

1. व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Behavioural Approach):

परम्परागत दृष्टिकोण की कमी को पूरा करने वाला व्यवहारवादी उपागम राजनीति विज्ञान के दरवाजे से लोक प्रशासन में आया । लोक प्रशासन में बर्नाड और साइमन ने इसे पहले पहल प्रयुक्त किया । यह दृष्टिकोण संगठन को एक ”समूह व्यवहार” मानता है और इस व्यवहार के घटक, इसको प्रभावित करने वाले कारक आदि के विश्लेषण पर बल देता है ।

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साइमन ने अपने ”निर्णय निर्माण मॉडल” में स्पष्ट किया कि यांत्रिक सिद्धान्त मात्र उपकल्पनायें हैं । वास्तविक सिद्धान्तों की खोज तभी हो सकेगी, जब अनुभव आधारित क्रियात्मक शोध किये जाऐंगे । बनाऊ मर्टन, वीडनर, फेरल हडी, फ्रेडरिग्स, डहल आदि ने इसके विकास में योगदान दिया ।

उल्लेखनीय है कि 1970 के बाद व्यवहारवाद की दिशा तथ्यों के साथ मूल्यों की तरफ भी उम्मुख हुई । डेविड ईस्टन की इस धारा को ”उत्तर-व्यवहारवादी” उपागम की संज्ञा दी गयी । लेकिन इसका प्रभाव अधिक नहीं हो पाया और व्यवहारवाद के व्यापक क्षेत्र में ही यह विलीन हो गया ।

2. पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण (Ecological Approach):

यह तुलनात्मक लोक प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध दृष्टिकोण है । वस्तुत: तुलनात्मक लोक प्रशासन का उदभव में निहित है कि ”पर्यावरण अपने प्रशासन को प्रभावित और निर्धारित करता है ।”

“पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण की मान्यता भी यही है । लोक प्रशासन में इसका सर्वप्रथम प्रयोग जान एम. गाँस ने किया था, लेकिन इसे लोकप्रिय बनाया प्रो. फेडरिग्स’ ने । रिग्सू ने विकासशील देशों की प्रशासनिक संस्थाओं और उनके वातावरण के परस्पर प्रभावों को जानने के लिये दूरगामी अध्ययन किये ।

3. विकासात्मक दृष्टिकोण (Development Approach):

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यह दृष्टिकोण वस्तुत: तुलनात्मक लोक प्रशासन में विकास संबंधी मुद्‌दों के विश्लेषण से संबंधित है । इसके अन्तर्गत विकास कार्यों के सम्पादन में लगी प्रशासनिक मशीनरी की संरचना, क्षमता, अनुकूलता आदि का अध्ययन किया जाता है । यह दृष्टिकोण रिग्स, विडनर, ग्रांट द्वारा अपनाया गया ।

4. संरचनात्मक-कार्यात्मक उपागम (Structural Functional Approach):

इस उपागम का पहला प्रयोग मानव विज्ञान में मौलिनावस्की और रैडक्लिफ ब्राउन ने बीसवीं शती के प्रारंभ में किया था । धीरे-धीरे यह सभी सामाजिक विज्ञानों के विश्लेषण के लिये एक आवश्यक उपागम बन गया । इस उपागम का उपयोग करने वाले प्रमुख विद्वान हैं- टालकाट पारसंस (समाजशास्त्र) और फ्रेडरिग्स (लोक प्रशासन) ।

अन्य विद्वानों में ग्रेब्रिएल आलमाण्ड, डेंविड इप्टर, राबर्ट मर्टन आदि शामिल हैं । शास्त्रीय विचारकों ने संरचना पर तथा व्यवहारवादियों ने कार्यों या व्यवहार पर जोर दिया । संरचनात्मक-कार्यात्मक उपागम इन दोनों को नये स्वरूप में प्रस्तुत करता है प्रत्येक संरचना का एक विशिष्ट कार्य व्यवहार होता है । यह व्यवहार अपनी सामाजिक व्यवस्था के लिये ”मानक” (Standard) होता है ।

5. व्यवस्था दृष्टिकोण या प्रणाली दृष्टिकोण (General System Approach):

मूलत: जीव विज्ञान में 1920 के दशक में लुडविग वॉन बर्टनलेन्फी ने व्यवस्था दृष्टिकोण का प्रयोग किया था । सामाजिक विज्ञानों में सर्वप्रथम समाजशास्त्र में टालकाट पारसंस ने अपनी पुस्तक “द सोशियल सिस्टम” (1953) में इसका प्रयोग किया था ।

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लोक प्रशासन में सर्वप्रथम चेस्टर बर्नाड ने व्यवस्था सिद्धान्त को अपनाया और बाद में हरबर्ट साइमन ने इसका खूब विकास किया । यह लोक प्रशासन का आधुनिकतम दृष्टिकोण है । लोक प्रशासन में व्यवस्था या प्रणाली दृष्टिकोण अन्य दृष्टिकोणों का एकीकृत स्वरूप है ।

बर्नाड, साइमन के अलावा व्यवस्था उपागम में योगदान करने वाले प्रमुख विद्वान हैं- नारबर्ट वीनर, मेरी पार्कर फालेट, फिलिप सेल्जनिक, हैयर्स, मार्च और इंग्लैण्ड की एक संस्था, ”टेवीस्टॉक इंस्टीट्यूट आफ हूमन रिलेंशस” ।

वीनर का साइबर नेटिक्स मॉडल, चेस्टर बर्नाड का सहकारी व्यवस्था मॉडल, साइमन का निर्णय निर्माण माडल, फालेट का सामाजिक व्यवस्था दृष्टिकोण, लेविन का आकस्मिक दृष्टिकोण या परिस्थिति प्रबन्ध व्यवस्था उपागम से ही संबंधित है ।

6. अन्य उपागम (Other Approach):

तुलनात्मक लोक प्रशासन के अध्ययन में विभिन्न विद्वानों ने अन्य उपागमों का प्रयोग किया:

(i) डोरसी का सूचना ऊर्जा मॉडल वस्तुत: सामान्य व्यवस्था उपागम का ही एक रूप या प्रकार है ।

(ii) मार्टिन लेंडयू ने ”निर्णय निर्माण” मॉडल को विकासशील देशों के प्रशासनों की तुलना में प्रयुक्त किया । उसके अनुसार इससे इन देशों के प्रशासनों की निर्णय निर्माण शक्ति में वृद्धि होगी और निर्णय में असंमजस की स्थिति दूर होगी ।

(iii) एंथोनी डाउन्स ने अपने मॉडल में उच्च स्तरीय नौकरशाहों की तुलना की और उन्हें 5 वर्गों में रखा आरोही (Climbers) संरक्षक (Conservers), जीलट (Zealots), समर्थक (Advocator) और राजनीतिज्ञ (Statesmen) ।

(iv) पाउल मीयर, एफ.एम. मार्क्स और ब्राउन चैपमेन द्वारा विकसित राष्ट्रों के तुलनात्मक अध्ययन हेतु विकसित विभिन्न मॉडल ।