Read this article in Hindi to learn about:- 1. मानव संसाधन विकास का अर्थ (Meaning of Human Resource Development) 2. मानव पूंजी के लिए अनिवार्य तत्व (Essential Elements for Human Capital) 3. बाधाएं (Obstacles) 4. भारत के विकास में भूमिका (Role in India’s Development).

मानव संसाधन विकास का अर्थ (Meaning of Human Resource Development):

मानव संसाधन विकास वस्तुत: मानव पूंजी निर्माण की प्रक्रिया है जिसमें मानवों के समूह को पूंजी के रूप में रूपांतरित करने के लिए उनकी अंतनिर्हित क्षमता विद्यमान निपुणता अथवा कौशल को बढ़ाते हुए उसे अधिक उपयोगी बनाने का प्रयत्न किया जाता है जिससे उन्हें संसाधन सृजन हेतु उत्पादकीय कार्यों से जोड़ा जा सके ।

पारंपरिक रूप से भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यमशीलता को उत्पादन कार्यों का अनिवार्य अवयव माना जाता था परन्तु वर्तमान में शिक्षा, स्वास्थ्य व उद्यमशीलता मानव पूंजी के निर्माण के आवश्यक तत्व के रूप में जाने जाते है । इस मानव पूंजी का निवेश व्यावसायिक लाभों की प्राप्ति के लिए किया जाता है ।

मानव संसाधन विकास की प्रक्रिया को ज्ञान अभियांत्रिकी व ज्ञान प्रबंधन जैसी गतिशीलत घटनाओं से गति मिलती है । इसमें यह प्रयास किया जाता है कि देश की जनशक्ति प्राविधिक ज्ञान, योग्यता, कुशलता की दृष्टि से विशिष्टता प्राप्त कर सके ।

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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने 1990 में प्रकाशित अपने पहले मानव विकास रिपोर्ट में ‘मानवीय विकल्पों’ को परिवर्तित करने की प्रक्रिया को मानव विकास के रूप में परिभाषित किया है । अर्थात आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक विकास ।

यद्यपि मानव विकास के लिए आर्थिक विकास आवश्यक है लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर है । जहाँ आर्थिक विकास में मानव की आय बढ़ाने पर बल दिया जाता है, वही मानव विकास में आय के उपयोग पर बल दिया जाता है ।

मानव में विनियोग का अर्थ ऐसे विनियोग से जिसमें जनशक्ति की शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण तथा जीवन स्तर में वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है । इस लक्ष्य की प्राप्ति में मानव विकास के संकेतकों (दीर्घ जीवन ज्ञान आधार एवं उच्च जीवन स्तर) में सुधार से मदद मिलती है ।

मानव संसाधन विकास को दो दृष्टिकोणों से अध्ययन अपेक्षित है । पूंजीवादी दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि इस प्रक्रिया द्वारा अवसंरचनात्मक पूंजी अथवा बौद्धिक पूंजी का निर्माण होता है जिसके प्रबंधन से वित्तीय पूंजी की गुणवत्ता बढ़ती है ।

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दूसरी ओर मानव संसाधन विकास का समाजवादी दृष्टिकोण मानव को केवल एक वस्तु अथवा भौतिक साधन के रूप में स्वीकार नहीं करता बल्कि उसके सामाजिक पक्ष पर अधिक जोर देता है ताकि मानव शक्ति का प्रत्यक्ष योगदान सामाजिक, सांस्कृतिक और सभ्यताओं के विकास में दिया जा सके ।

अत: स्पष्ट है कि मानव संसाधन विकास की प्रक्रिया में एक ऐसी सुदृढ़ सामाजिक कल्याण की प्रणाली का विकास लक्षित है जिसने श्रम की गतिशीलता में वृद्धि कर राष्ट्र तथा उसकी अर्थव्यवस्था की सकल उत्पादकता बढायी जा सके ।

मानव पूंजी के लिए अनिवार्य तत्व (Essential Elements for Human Capital):

मानव को मानव पूंजी के रूप में विकसित करने के लिए अनिवार्य तत्व निम्नांकित हैं:

1. शिक्षा- मानव विकास हेतु यह एक बुनियादी शर्त है उच्च गुणवत्ता की सार्वभौमिक शिक्षा में निवेश का आकार जितना बड़ा होगा राष्ट्र की समृद्धि उतनी ही तेज होगी । वस्तुत: शिक्षा सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण का सुदृढ़ आधार है ।

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2. अभिरूचियों की पहचान एवं कौशल प्रोन्नयन मानव पूंजी के निर्माण की आवश्यक शर्त है । इसके तहत उपयुक्त व्यावसायिक प्रशिक्षण, नेतृत्व, संचार, विक्रय की कला, विपणन, मोलभव की तकनीक जैसे बौद्धिक एवं विशिष्टीकृत कौशलों के विकास का प्रयास सम्मिलित ।

3. सूचना प्रौद्योगिकी, संचार क्रांति, कम्प्यूटर अनुप्रयोगों एवं तीव्र गति से विचारों का कार्यरूप देने के लिए बढ़ते दबाव ने संगठन द्वारा अपनाई जा रही प्रशिक्षण प्रविधियों के बारे में प्रबंधन तंत्र को नये सिरे से सोचने के लिए बाध्य कर दिया है ।

4. व्यक्तित्व विकास के प्रयासों को भी मानव पूंजी निर्माण की प्रक्रिया से जोडा जाता है । अर्थशास्त्री अर्मल्य सेन व आर्थानुसवाम ने क्षमता, अधिकारिता विकास को मानव पूंजी के निर्माण और उसके सामाजिक रूप से संवेदनशीलता में वृद्धि के लिए आवश्यक माना है ।

5. विचारो और अनुभवों के आदान प्रदान की प्रक्रिया मानव पूंजी निर्माण का आवश्यक भाग है ।

6. उद्यमशीलता का विकास भी मानव पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक है क्योंकि इससे रोजगार के अवसरों के सृजन की दर में वृद्धि अतिरिक्त संपदाओं के सृजन नई पद्धतियों व तकनीकों के प्रचार प्रसार को बढ़ावा मिलता है ।

मानव संसाधन के विकास में अनेक बाधाएं (Obstacles in Human Resources Development):

मानव संसाधन के विकास के मार्ग में अनेक बाधाएं आती हैं ।

जो निम्नलिखित हैं:

1. मातृत्व मृत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर में वृद्धि ।

2. श्रम बाजार की अकार्यकुशलता ।

3. श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का अभाव ।

4. बालश्रम एवं बाल अपराध जैसी समस्याओं में वृद्धि ।

5. युवाओं की दिशाहीनता, अति सक्रियता और स्वयं को उत्पादकीय प्रक्रियाओं से न जोड़ पाना ।

6. प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण के लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में बाधा ।

7. महिलाओं, बच्चों, श्रमिकों का कमजारे स्वास्थ्य, कुपोषक आदि की समस्याएं ।

8. विभिन्न वर्गों की असामाजिक कार्यों में संलिप्तता ।

9. निर्धनता में वृद्धि ।

कार्मिक प्रशासन जरा भारत में मानव विकास द्वारा मानव पूंजी विकास की रणनीति निर्धारित की गई है । भारत की गणना विश्व के उन देशों में की जाती है जो वैश्वीकरण की ओर बढ़ते विश्व में ‘जनांकिकीय लाभांश’ अर्जित करने की स्थिति में है ।

लेकिन विश्व आर्थिक समुदाय और भारतीय उद्योग परिसंस द्वारा तैयार किये गये एक संयुक्त प्रतिवेदन में कहा गया है कि ”भारत की जनसंख्या एक विरोधाभास है, जहां आयु के रूप में भारत सबसे बड़े एवं सर्वाधिक संतुलित जनांकिकीय समूहों में से एक है ।

(भारत की कुल जनसंख्या में 25 वर्ष तक की आयु वाली जनसंख्या का अनुपात 54 प्रतिशत है) वहीं आयु एवं लिंगमूलक असमानाओं के रूप में यह सतत् रूप से सर्वाधिक असंतुलित, जनांकिकीय समूहों में से एक है । (उदाहरणार्थ पुरूष/महिला जन्म अनुपात 1:2 है ।)

भारत में दूसरी प्रमुख चुनौती इसकी युवा जनसंख्या का भरण पोषण, उसे शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना तथा रोजगार में लगाना है । ऊर्ध्वोन्मुखी गत्यात्मकता, शहरीकरण तथा औद्योगीकरण ने नीति निर्माताओं के समक्ष समायोजन करने में लगतों एवं जोखिमों के रूप में गंभीर समस्या उत्पन्न की है । उल्लेखनीय है कि 2014 में मानव विकास रिपोर्ट में भारत मानव विकास सूचकांक के मामले में 135 वे स्थान पर है जो संतोषजनक स्थिति नहीं कही जा सकती है ।

भारत सरकार ने मानव संसाधन विकास की दृष्टि से प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण पर ध्यान दिया है । 6 से 14 आयु वर्ग के बालकों को अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया है । इसके अतिरिक्त सर्वशिक्षा अभियान, मिड डे मिल योजना के माध्यम से साक्षरता का प्रसार एवं नामांकन दर में वृद्धि का प्रयास किया गया है ।

11वीं पंचवर्षीय योजना में भारत सरकार ने एक कौशल प्रोन्नयन मिशन को प्रारंभ करने का प्रावधान किया था । 20 मार्च, 2015 में कौशल विकास मिशन प्रारंभ कर दिया गया । इसके अतिरिक्त 7 करोड़ लोगों के लिए रोजगार सृजन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । योजनाकाल में शिक्षा पर व्यय को जीडीपी के 20 प्रतिशत तक किया गया है । विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के माध्यम से मानव पूंजी के निर्माण की प्रक्रिया जारी है ।

भारत के विकास में मानव संसाधन की भूमिका (Role of Human Resources in India’s Development):

किसी भी देश की प्रगति में उसका मानव संसाधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है ।

(i) यदि मानव संसाधन आवश्यकता से बेहद कम है तो आर्थिक विकास अवरूद्ध होगा क्योंकि तब उद्योग, व्यवसाय, खनन जैसे कार्यों के लिये आवश्यक कार्मिक कम पड़ेंगे । इसके विपरीत आवश्यकता से बहुत अधिक मानव संसाधन अर्थव्यवस्था पर बोझ बन जाएंगें, जैसे कि भारत में स्थिति है ।

यहां प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में अत्यधिक जनसंख्या विकास को अवरूद्ध कर रही है । क्योंकि एक तो इस जनसंख्या के भरण-पोषण, स्वास्थ्य पर ही देश का अधिकांश उत्पादन और आय खर्च हो जाती है, दूसरे जो कुछ भी उत्पादन होता है वह प्रति व्यक्ति वितरित करने पर कम दिखायी देता है । जैसे हमारी कुल राष्ट्रीय आय तो अनेक यूरोपिय देशों के बराबर है लेकिन प्रति व्यक्ति आय अनेक पिछड़े देशों से भी कम हो जाती हैं ।

(ii) इसका एक पहलू उपभोक्ता बाजार से है । आज भारत विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन गया है और इससे प्रत्यक्ष पूंजी निवेश भारत में आ रहा है जिससे आर्थिक विकास को गति मिली है ।

(iii) मानव संसाधन की गुणवत्ता भी विकास को निर्धारित करती है । तकनीकी रूप से दक्ष या शिक्षित मानव संसाधन आर्थिक विकास को गति प्रदान करते है । भारत पहले इसमें पिछड़ा हुआ था लेकिन अब हमारे यहां से लाखों प्रोफेनल्स प्रतिवर्ष विभिन्न क्षेत्रों में तैयार हो रहे है और जो देश के भीतर और बाहर दोनों तरीकें से आर्थिक विकास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण हो गये है ।

मानव विकास निम्नांकित कारणों से अत्यन्त आवश्यक है:

1. विकास की सभी क्रियाओं का अंतिम उद्देश्य मानवीय दशाओं को सुधारना तथा लोगों के लिए विकल्पों को बढ़ाना है ।

2. मानव विकास उच्चतर उत्पादकता का साधन है, स्वस्थ, शिक्षित, कुशल और सतर्क श्रमिक अधिक उत्पादन करने में समर्थ होते है । अत: उत्पादकता के आधार पर भी मानव विकास में विनिवेश न्यायसंगत माना जाता है ।

3. मानव प्रजनन की गति धीमी करके यह परिवार के आकार को छोटा करने में मदद करता है ।

4. मानव विकास भौतिक पर्यावरण का भी हितैषी है, निर्धनता के घटने से निर्वनीकरण, मरूस्थलीकरण और मृदा अपरदन भी कम हो जाता है ।

5. सुधरी मानवीय दशाएं और घटी गरीबी स्वस्थ और सभ्य समाज के निर्माण में योगदान देती है तथा लोकतंत्र एवं सामाजिक स्थिरता को बढ़ाती है ।

मानव विकास सामाजिक अशांति को कम करने तथा राजनीतिक स्थिरता को बढ़ाने में सहायक हो सकता है ।