Read this article in Hindi to learn about:- 1. फ्रांसीसी सिविल सेवा का विकास (Development of the French Civil Service) 2. सिविल सेवा अधिनियम 1946 द्वारा सुधार (Improvement by the Civil Services Act 1946) and Other Details.

फ्रांसीसी सिविल सेवा का विकास (Development of the French Civil Service):

1789 के पूर्व तक फ्रांसीसी सिविल सेवा का स्वरूप अभिजातीय था जिसमें योग्यता के बजाय कुलिनता, धानढ्यता मुख्य आधार थे । उच्च प्रशासनिक पदों की बोली लगती थी और अधिक बोली लगाकर कोई भी प्रशासनिक पद खरीद सकता था । यही नहीं इस प्रकार प्राप्त पद का वह पुन: विक्रय भी कर सकता था ।

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इस प्रथा को कार्यालय बिक्री प्रथा (Sale of Office) के नाम से जाना जाता है । इसके अतिरिक्त कुलीनों और सामन्तों को अपने पदों पर वंशानुगत अधिकार भी प्राप्त थे । राजा कई बार अपने कृपापात्रों की भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर देता था ।

इस प्रकार 1789 तक फ्रांस में सिविल सेवा की भर्ती के तीन माध्यम प्रचलित थे:

1. पदों का विक्रय या बोली (Sale of Offices)

2. पदों पर वंशानुगत अधिकार

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3. अनुग्रह या उपहार में प्राप्त पद ।

राज्य क्रांति का प्रभाव:

1789 की राज्य क्रांति का एक कारण प्रशासनिक आरजकता भी थी । इस अराजकता के लिए अयोग्य और अक्षम प्रशासन को मुख्य कारण माना गया । क्रांतिकारियों ने उक्त भर्ती प्रथाओं का अन्त कर योग्यता आधारित सिविल सेवा को अपनाया ।

यह सिविल सेवा अब राजा के स्थान पर राज्याधीन थी । लेकिन फ्रांस बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक राजनौतिक-संवैधानिक अस्थिरता के दौर से गुजरता रहा । परिणामस्वरूप सिविलसेवा में भी क्रांतिपूर्व की विसंगतियाँ हावी होती रहीं । उसका स्वरूप 1946 के सुधार के पूर्व तक राष्ट्रीय के स्थान पर प्रान्तीय ही बना रहा ।

सिविल सेवा अधिनियम 1946 द्वारा सुधार (Improvement by the Civil Services Act 1946):

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सिविल सेवा में सुधार हेतु महत्वपूर्ण कदम 1946 में उठाया गया जब सिविल सेवा अधिनियम द्वारा निम्नलिखित प्रावधान किये गये:

1. पहली बार एक केन्द्रीय सिविल सेवा संचालनालय ”डायरेक्शन जनरल डी ला फंक्शन पब्लिक” की स्थापना की गयी इसे प्रधानमंत्री के सीधे नियन्त्रण में रखा गया ।

2. लोक सेवा संबंधी नियमों को विधायिका बना तो सकती थी लेकिन उस पर प्रधानमंत्री की सहमति अनिवार्य थी । यदि उन नियमों का कोई वित्तीय प्रभाव होता तो वित्तमंत्री की सहमति भी अनिवार्य की गयी ।

3. लोक सेवकों की सेवा शर्तों का निर्धारण और संशोधन पूर्णतः राज्याधीन किया गया ।

4. सम्पूर्ण लोक सेवा के 4 भाग किये गये-विशेषीकृत-प्रकार्य, अविशेषीकृत-प्रकार्य, नियोजन और निर्देशन संबंधी प्रकार्य तथा अनुप्रयोग संबंधी प्रकार्य ।

5. लोकसेवा की संरचना को एकीकृत स्वरूप दिया गया । उक्त सुधारों के क्रियान्वयन ने फ्रांसीसी लोक सेवा के प्रान्तीय या विभागीय स्वरूप को राष्ट्रीय स्वरूप में बदल दिया ।

फ्रांसीसी लोक सेवा की वर्तमान प्रवृत्त्विां भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, सेवा शर्त (Recruitment, Training, Promotion, Service Condition of French Public Service):

फ्रांस में समय-समय पर हुए सुधारों ने लोक सेवा को जहाँ योग्यता आधारित किया है वहीं उसमें विशेषीकरण को भी सुनिश्चित किया है ।

भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नती, के लिये फ्रांस में निम्नलिखित व्यवस्था है:

A. भर्ती व्यवस्था इस हेतु निम्नलिखित संस्थाएँ और कार्य प्रणाली है:

i. इकोल नेशनल ‘डी’ एडमिनिस्ट्रेशन (ENA):

1945 में पेरिस में स्थापित इस राष्ट्रीय संस्था द्वारा उच्चतर लोक सेवा में भर्ती की जाती है । यह प्रधानमंत्री के प्रत्यक्ष नियन्त्रण और पर्यवेक्षण में काम करती है । योग्यता आधारित भर्ती प्रणाली के अन्तर्गत दो चरणों में परीक्षा आयोजित होती है- प्रथम लिखित और दूसरा साक्षात्कार ।

ई. एन. ए. के प्रमुख कार्य:

1. खुली प्रतियोगिता परीक्षा का आयोजन करना ।

2. साक्षात्कार आयोजित करना ।

3. वरीयता सूची तैयार करना और इस आधार पर योग्य उम्मीद्‌वारों के चयन की अनुशंसा करना । (उल्लेखनीय है कि इसी वरीयता सूची के आधार पर सरकार नियुक्ति करती है)

4. सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने वाले उम्मीद्‌वारों की कोचिंग की व्यवस्था करना (एक प्रकार का प्रवेश पूर्व प्रशिक्षण) ।

5. सिविल सेवा में प्रवेश पश्चात उम्मीद्‌वारों को दीर्घकालीन प्रशिक्षण देने की जवाबदारी भी ई. एन. ए. की है ।

6. अपना प्रतिवेदन फ्रांस की सरकार को सौंपती है ।

स्पष्ट है कि ई. एन. ए. फ्रांस की विशिष्ट भर्ती एजेन्सी है, जिसके भर्ती और प्रशिक्षण संबंधी कार्य तथा उस पर प्रधानमंत्री का नियन्त्रण आदि ऐसे है जो भारत, ब्रिटेन की भर्ती एजेन्सीयों से भिन्नता रखते है ।

ii. इकोल पॉलीटेक्नीक:

इस पॉलीटेक्नीक के द्वारा उच्च तकनीकी सेवाओं के लिये स्नातक तैयार किये जाते हैं ।

iii. इकोल नेशनल डेस इम्पोट (ENDI):

यह राष्ट्रीय स्कूल फ्रांस की वित्तीय लोक सेवा में प्रवेश हेतु युवकों को तैयार करता है ।

iv. ”द ग्रेंडड कार्पस” अवधारणा:

योग्यता को अपनाने के बावजूद फ्रांस की सिविल सेवा (तकनीकी और सामान्य दोनों) का स्वरूप आज भी अभिजातीय बना हुआ है जिसका आधार है ”द ग्रेंड कार्पस ।” ”द ग्रेंड कार्पस” वस्तुतः प्रत्येक सेवा के सदस्यों का समूह है । ग्रेंड कार्पस मिलकर ही प्रशासनिक अभिजातीय उच्चता (Administrative Super Elite) को अस्तित्व प्रदान करते हैं ।

प्रत्येक कार्पस तीन भागों में विभक्त है- ग्रेड, वर्ग और सोपान (Echelons) । सभी सेवाओं के उसी तरह अपने ग्रेंड कार्म्स है जैसे भारत में 8., के कॉडर है । लेकिन फ्रांस में ग्रेड कार्पस का आधार सामाजिक है । फ्रांस में सिविल सेवकों का चयन अभिजातीय सामाजिक वर्ग से होता हैं ।

फेरल हडी के अनुसार फ्रांस में प्रशासनिक उच्च अभिजातीय वर्ग का अस्तित्व आज भी है जो फ्रांस की नौकरशाही का एक अनूठा लक्षण है । हडी ने इसका उद्‌भव काफी हद तक नेपोलियन के लिजियन ऑफ हानर में देखा है । ग्रेंड कार्पस का आधार सामान्य और तकनीकी दोनों में पाया जाता है ।

सामान्य या गैर तकनीकी कार्पस के अन्तर्गत तीन कार्पस हैं:

1. कांसल डी इटेट

2. कोर्स उस काप्टेस और

3. इंसपेक्शन डेस फायनान्सेस ।

तकनीकी कार्पस के अन्तर्गत दो कार्पस हैं:

1. कार्पस डेस माइन्स और

2. कार्पस डेस पांटस इट चाउसेस

B. प्रशिक्षण व्यवस्था:

अपनी भिन्न विशेषताओं के कारण फ्राँस की प्रशासनिक प्रशिक्षण व्यवस्था विश्व भर में जानी जाती है । वस्तुतः व्यवहारिक प्रशिक्षण पर आधारित यह प्रणाली अन्य देशों के लिये ”आदर्शात्मक” और ”प्रेरणादायी” बन गयी है ।

फ्राँसीसी प्रशिक्षण प्रणाली (लोक सेवक) की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. इसमें सिद्धांतों के स्थान पर व्यवहारिक समस्याओं पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है । और इसलिये फ्राँसीसी प्रशिक्षण को व्यवहारिक प्रशिक्षण की संज्ञा दी जाती है ।

2. प्रशिक्षण का उद्देश्य लोक सेवकों में सामान्य योग्यता के साथ किसी एक में विशेषज्ञता का विकास भी करना है ।

3. प्रशिक्षण की व्यवस्था वरिष्ठ लोक सेवकों के द्वारा ही संचालित की जाती है । अकादमिक प्रोफेशनल्स के स्थान पर ये लोक सेवक ही नये रंगरूटों को प्रशिक्षण देते है ।

4. लोक सेवकों को निजी क्षेत्र की कार्यप्रणाली का भी प्रशिक्षण दिया जाता है ।

5. प्रशिक्षण भर्ती के पहले ही शुरू हो जाता है और लगभग 3 वर्ष तक की लंबी अवधि तक चलता है ।

उच्च लोक सेवकों का प्रशिक्षण:

ENA (इकोल नेशनल डी एडमिनिस्ट्रेशन) ही फ्रांस का शीर्षस्थ केंद्रीय भर्ती एवं प्रशिक्षण संस्थान भी है । इसे उच्चतर लोक सेवकों के प्रशिक्षण के लिये ”स्नातकोत्तर महाविद्यालय” का दर्जा दिया गया है ।

इसके द्वारा नये रंगरूटों को 28 माह का प्रशिक्षण दो चरणों में दिया जाता है:

1. फिल्ड ट्रेनिंग:

सर्वप्रथम लोक सेवकों को ”प्रिफेक्चर” (जिला) के साथ संलग्न कर दिया जाता है, जहां ”प्रिफेक्ट” के मार्गदर्शन में वे व्यवहारिक ज्ञान का प्रशिक्षण लगभग 11 माह तक लेते हैं । यह प्रशिक्षण भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत दिये जाने वाले आई.सी.एस. के प्रशिक्षण की तरह होता है ।

2. ENA में प्रशिक्षण:

प्रिफेक्चर प्रशिक्षण के उपरांत लोक सेवकों को ENA भेजा जाता है । यहाँ कुल 17 माह का प्रशिक्षण वरिष्ठ लोक सेवकों द्वारा दिया जाता है । इस दौरान 2 माह के लिये वे किसी औद्योगिक या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में भी प्रशिक्षण लेते हैं । यहाँ भी उन्हें व्यवहारिक प्रशिक्षण ही दिया जाता है । उक्त प्रशिक्षण के उपरांत लोक सेवक ”ग्रेंड कार्पस” के सदस्य बन जाते हैं और मंत्रालय में पदस्थ कर दिये जाते हैं ।

C. पदोन्नति प्रणाली:

फ्रांस में पदोन्नति का क्षेत्र सीमित है क्योंकि यह मात्र ‘कापर्स’ के अंदर ही होता है । प्रत्येक कापर्स के अंतर्गत 3 स्तर है- ग्रेड, वर्ग और सोपान । पदोन्नति में ”वारिष्टता और योग्यता” दोनों को समान महत्व प्राप्त है ।

ENA:

यह पदोन्नति के लिये पात्र अभ्यर्थियों की सूची बनाकर उसे पदोन्नति सलाहकार समिति को सौंप देती है ।

पदोन्नति सलाहकार समिति:

इस समिति में सरकारी और स्टाफ दोनों के प्रतिनिधि बराबर संख्या में होते हैं । यह ENA की सूची पर विचार कर उसे अंतिम रूप देती है । पदोन्नति संबंधित विवादों का निपटारा भी यह समिति ही करती है । उल्लेखनीय है कि फ्रांस में लोक सेवक को निजी प्रतिष्ठान में भी पदोन्नति के बाद भेजा जा सकता है और वह कुछ वर्षों पश्चात वापस अपने सरकारी पद पर आ सकता हैं । ऐसा होने पर भी उसकी वरीयता बनी रहती है और अन्य लाभ भी, यद्यपि पेंशन संबंधी कुछ नुकसान उसे उठाने पड़ सकते हैं ।

D. वेतन भत्ते और सेवा शर्तें:

फाँस में वेतन निर्धारण के लिये ”इण्डेक्स प्रणाली” अपनायी जाती है, लेकिन इस प्रणाली से उच्च लोक सेवकों को बाहर रखा गया है ।

वेतन भत्ते:

वेतन निर्धारण के लिये 1948 में ”जनरल ग्रीड सिस्टम” अपनाया गया । इसके लिये एक जटिल सूत्र अपनाया जाता है । इसके तहत प्रत्येक पद को निश्चित ”इण्डेक्स संख्या” दी जाती है और इस ”इण्डेक्स नंबर” के अनुसार ही उस पद का वेतन निर्धारित होता है ।

वेतन के अतिरिक्त लोक सेवकों को विभिन्न भत्ते भी दिये जाते है, जैसे जीवन निर्वाह भत्ता, पारिवारिक भत्ता, समय-अधिक्य भत्ता, यात्रा भत्ता, तकनीक-प्रीमीयम, कार्यकुशलता-प्रीमियम आदि । लोक सेवकों के वेतन पर वित्त और कार्मिक मंत्रालय संयुक्त रूप से नियंत्रण रखते हैं ।

ट्रेड-यूनियन:

1959 के अधिनियम द्वारा फीस में लोक. सेवकों को संघ या समूह बनाने का अधिकार प्राप्त है । उन्हें ट्रेड यूनियन में शामिल होने तथा इसके द्वारा अपनी राजनीतिक विचारधारा का प्रचार करने का अधिकार प्राप्त है ।

राजनीतिक अधिकार:

अमेरिका और भारत के विपरीत फ्रांस के लोक सेवकों को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने, चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त है । वे किसी भी राजनीतिक सभा के लिये चुने जा सकते हैं । निर्वाचन के पश्चात अपनी पदावधि पूर्ण करके या पहले ही इस्तीफा देकर लोक सेवक अपने पद पर पुन: आ सकता है, पदोन्नति, पेंशन आदि अधिकार भी उसके बने रहते हैं । उनकी राजनीतिक गतिविधियों को निर्देशित करने वाली एक मात्र संस्था फाँस की सर्वोच्च प्रशासकीय अदालत ”कांसेल डी इटेट” है । इस प्रकार फ्रांस में लोक सेवक को विस्तृत राजनीतिक अधिकार प्राप्त है ।

हड़ताल का अधिकार:

फ्राँस में लोक सेवकों को हड़ताल का अधिकार बकायदा एक कानून बनाकर दिया गया है । 1959 के अधिनियम द्वारा ही उन्हें हड़ताल का अधिकार प्राप्त है लेकिन वे तभी हड़ताल पर जा सकते है, जब सरकार से समझौते के अन्य विकल्प आजमाये जा चुके हों ।

सेवानिवृत्ति और पेंशन:

60 वर्ष की आयु सेवानिवृत्ति के लिये तय की गयी है । सेवानिवृत्ति के उपरांत मासिक पेंशन, ग्रेज्युर्टी आदि लाभ मिलते हैं ।

फ्राँस में व्हिट्लेवाद (Whitley Controversy in France):

ब्रिटेन की भांती फ्राँस में भी कार्मिकों से परामर्श करने, किसी विषय पर उनसे वार्ता करने और समझौते पर पहुँचने के उद्देश्य से तीन तरह की एजेन्सीयां कार्यरत हैं:

1. संयुक्त प्रशासनिक आयोग (Joint Administrative Commission):

लोक सेवा के प्रत्येक क्षेत्र के लिये ऐसा एक आयोग स्थापित है ।

2. संयुक्त तकनीकी समिति (Joint Technical Committee):

प्रत्येक विभाग में एक ऐसी समिति स्थापित है ।

3. उच्चतर परिषद (Higher Council for Public Service):

यह सर्वोच्च परिषद है । इसका प्रमुख प्रधानमंत्री या लोक सेवा से संबंधित मंत्री होता है । इसका दायरा काफी व्यापक है जिसमें कार्मिकों से संबंधी नीति-निर्माण, उनकी सेवाशर्ते और कार्मिक मामलों की देखरेख शामिल है । यह परिषद उपरोक्त दोनों एजेंसीयों में न सिर्फ समन्वय रखती है अपितु उनके द्वारा निर्णित अनुशासनिक कार्यवाहियों के विरूद्ध अपील भी सुनती है ।

प्रशासनिक न्यायालय की व्यवस्था ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ (Administration of the Administrative Court Dryte Administrator):

फ्रांस अपने प्रशासनिक कानून के लिये विश्व में एक विशिष्ट और पृथक पहचान रखता है । सामान्य कानून और प्रशासनिक कानून में अंतर है । पहला विधि के शासन से संबंधित है, इसलिये सबके लिये समान है जबकि दूसरा परिस्थितियों के शासन से संबंधित है, अतः प्रशासन को विशेष महत्व देता है ।

वस्तुतः सामान्य न्यायालय सभी मामलों या विवादों में सामान्य कानून के तहत विचार और निर्णय करते हैं । जबकि प्रशासनिक न्यायालयों की स्थापना प्रशासनिक अधिकारियों और अभिकरणों के विरूद्ध नागरिकों की शिकायतों के निपटारे हेतु विशेष रूप से की गयीं ।

ये अपने समक्ष आये ऐसे विवादों पर विचार और निर्णय प्रशासनिक कानूनों के तहत करते हैं । फ्रांस में दोनों तरह के न्यायालय और कानून की विस्तृत व्यवस्था है और जिन्हें जनता का भी पूरा समर्थन प्राप्त है । इस प्रकार फ्राँस में न्याय की दोहरी व्यवस्था है; सामान्य न्यायालयों की व्यवस्था जिसके शीर्ष पर सर्वोच्च सामान्य अदालत है और प्रशासनिक न्यायालयों की व्यवस्था, जिसके शीर्ष पर राज्य परिषद है ।

दोनों व्यवस्था के मध्य क्षेत्राधिकार संबंधी विवाद के समाधान हेतु विवाद न्यायालय है । विवाद न्यायालय का पदेन अध्यक्ष फ्राँस का न्यायमंत्री होता है जबकि उसके 6 अन्य सदस्यों में से 3 केसेशन न्यायालय (सर्वोच्च सामान्य न्यायालय) के न्यायाधीश और 3 राज्य परिषद (सर्वोच्च प्रशासनिक न्यायालय) के सदस्य होते हैं ।

ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ की विशेषताएं (Features of Dryte Administrator):

फीस में प्रशासनिक कानून की संपूर्ण व्यवस्था को ”ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ” कहा जाता है । ”ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ” का संबंध उन विशेष नियमों से है, जो नागरिक और राज्य के संबंधों को शासित करते हैं ।

इसके प्रमुख लक्षण हैं:

1. सरकारी अधिकारियों (लोक सेवक) के व्यैक्तिक कार्यों और शासकीय कार्यों में कानूनी दृष्टि से अंतर रखना । अधिकारी अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिये सामान्य कानून और न्यायालय के प्रति उत्तरदायी है लेकिन शासकीय कार्यों के लिये मात्र प्रशासनिक कानून और प्रशासनिक न्यायालय के प्रति ।

2. पदेन कर्तव्यों के निर्वहन में किये जाने वाले प्रत्येक कार्य के लिये शासकीय कार्मिक सामान्य न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर है ।

3. शासकीय कार्मिकों के द्वारा किये गये शासकीय कार्य से यदि किसी नागरिक या संस्था को हानि पहुंची हो तो उस पर विचार और निर्णय के लिये विशेष अधिकरण (प्रशासनिक न्यायाधिकरण) हैं ।

4. शासकीय कार्यों से हुई क्षति के लिये संबंधित नागरिक को क्षतिपूर्ति करना ।

5. प्रशासनिक त्रुटियों, गलतियों और गलत कार्यवाहियों की सुनवाई एवं निर्णय विशेषज्ञों के द्वारा हो ।

6. नागरिक और प्रशासन दोनों के अधिकार एवं दायित्व की व्याख्या करना और इस हेतु निश्चित प्रक्रिया को स्थापित करना ।

7. प्रशासनिक अधिकारियों के ‘स्वविवेक’ की सीमा का निर्धारण करना ।

8. प्रशासनिक न्याय-निर्णयों को सामान्य न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

उल्लेखनीय है कि किसी लोक सेवक के द्वारा पदेन कर्तव्यों के निर्वहन में यदि त्रुटि की जाये, तो उस लोक सेवक पर ”संपूर्ण लोक सेवा” के रूप में प्रशासनिक न्यायालय में विचरण किया जाता है अर्थात वह क्षतिपूर्ति के लिये व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होता अपितु सरकारी खजाने से वह राशि संबंधित नागरिक या संस्था को दी जाती है । उक्त विशेषताओं से युक्त ”ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ” की इस व्याख्या से ही फ्रांस में प्रशासनिक कानून और न्यायालयों का अधिक विकास ।

संगठन और प्रक्रिया (Organization and Process):

ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ व्यवस्था में सर्वोच्च सोपान पर ”काउंसील डी इटेट” अर्थात राज्य परिषद है । इसके अधीन पूरे देश में प्रशासनिक न्यायालय है जिन्हें प्रशासनिक अधिकरण या क्षेत्रीय परिषद के नाम से जाना जाता है ।

काउंसील डी इटेट:

प्रशासनिक न्याय व्यवस्था (ड्राइट एडमिनिस्ट्रेटीफ) के शीर्ष पर विद्ययमान काउंसील डी इटेट का मुख्यालय राजधानी पेरिस में है । इसके सदस्यों की संख्या परिवर्तित होती रहती है । सभी सदस्यों और अध्यक्ष की नियुक्ति मंत्रिपरिषद के परामर्श पर राष्ट्रपति करता है । इसके दो अनुभाग हैं- प्रशासनिक और न्यायिक ।

काउंसील डी इटेट के अधिकार और कर्तव्य इस प्रकार हैं:

1. सभी प्रशासनिक अभिकरणों के निर्णयों के विरूद्ध अपील सुनना ।

2. कतिपय विशेष प्रशासनिक मामलों को सीधे सुनना और उन पर निर्णय करना ।

3. प्रशासन के ऊपर सामान्य नियंत्रण रखना ताकि उसकी स्वैच्छाचारिता पर अंकुश रहे ।

4. यह देखना कि प्रशासनिक कार्यवाहियां विधि सम्मत तरीके से चलें ।

5. कार्मिकों से संबंधित अनुशासनिक मामलों में काउंसील का निर्णय अंतिम होता है ।

6. काउंसील सभी विधिक मामलों में सरकार को सलाह देती है ।

क्षेत्रीय प्रशासनिक अधिकरण (Regional Administrative Tribunal):

इनका पूरे फ्राँस में जाल बिछा हुआ है । इनके सदस्यों की नियुक्ति काउंसील डी इटेट के परामर्श पर की जाती है । प्रशासनिक कार्यवाही से पीड़ित कोई भी नागरिक यहाँ वाद दायर कर सकता है । इन अधिकरणों को अधिकार है कि वे प्रशासनिक कार्यवाही को शून्य घोषित कर दे या उसे समाप्त कर दे अथवा वादी के उस अधिकार को मान्यता दे जिसकी प्रशासन ने अवमानना की । एसी मान्यता मिलने पर वादी को उपयुक्त क्षतिपूर्ति भी दिलायी जाती है ।

फ्राँस में स्थानीय शासन (Local Government in France):

फ्रांस एक एकात्मक राज्य है जिसमें केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी स्थानीय शासन संस्था को रखे या समाप्त कर दे । फ्राँस में शासन का स्वरूप अत्यधिक ”केन्द्रीकृत” है जिसमें समस्त अधिकार केंद्र सरकार में निहित हैं । केंद्र द्वारा स्थापित स्थानीय शासन भी अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था है जो उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण कहा जा सकता है ।

फ्रांस में विकेंद्रित व्यवस्था के लिये स्थानीय स्वशासन शब्दावली के स्थान पर स्थानीय शासन शब्दावली का इस्तेमाल भी स्पष्ट करता है कि स्थानीय इकाइयां केंद्र की कार्यपालक एजेन्सीयां मात्र हैं जिन्हें बहुत कम स्वायत्तता प्राप्त है । ये न तो स्वायत्त है न ही सरकार है । अतः कहा जाता है कि फाँस में स्थानीय प्रशासन तो है, स्वशासन नहीं है ।

प्रमुख लक्षण:

1. अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था ।

2. जन्म और जीवन दोनों केंद्र सरकार पर निर्भर ।

3. केंद्रीय मंत्री (आंतरिक व्यवस्था) द्वारा नियंत्रित और निर्देशित ।

4. स्थानीय शासन की चार में से दो इकाइयों में ही निर्वाचन की व्यवस्था ।

5. प्रत्येक इकाई के संगठन, अधिकार और कार्यों में देशभर में एकरूपता (मात्र सदस्य संख्या में विविधता) ।