Read this article in Hindi to learn about the administrative system of France along with its features.

श्री. टी. एन. चतुर्वेदी के अनुसार फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था की दो प्रमुख विशेषताएं रही हैं:

1. विगत दो शाताब्दियों की राजनीतिक अस्थिरता तथा

2. शासन व्यवस्था में बारम्बर परिवर्तन ।

ADVERTISEMENTS:

इसके साथ एक विशेषता और भी रही, शाक्तिशाली राजतन्त्र और उसका असीमित देवी अधिकारों से युक्त राजा । उपरोक्त तीनों बातों ने फ्रांसीसी प्रशासनिक तन्त्र को शक्तिशाली होने में मदद की । हैडी के अनुसार फ्रांस ने 1789 की राज्यक्रांति के बाद अनेक राजनीतिक परिवर्तन देखे और इस दौरान यहाँ 3 वैधानिक राजतन्त्रों का गठन हुआ । एक बार साम्राज्यवाद का दौर आया, एक बार अर्थतानाशाही रही है और कुल पाँच गणतन्त्रों की स्थापना हुई । इन सब परिवर्तनों का एक दुखद पहलू यह रहा कि उनके पीछे जबरदस्त हिंसा रही ।

इन राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद फ्रांस में यह शासन व्यवस्था की निरन्तरता ही थी जिसने जनता को अपनी सेवाएँ अनवरत जारी रखी और उसमें व्यवधान न आने दिया । फ्रांसीसी शासन अपने सांस्कृतिक-सामाजिक पर्यावरण से प्रभावित रहा है । उस पर राजनीतिक विचारधाराओं का भी प्रभाव आया है, फिर भी उसमें स्थायित्व का गुण समाया रहा ।

फ्रांसीसी प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

1. क्लासिक प्रशासन:

ADVERTISEMENTS:

फैरल हडी ने फ्रांसीसी प्रशासन को शास्त्रीय प्रशासन के अन्तर्गत रखा है क्योंकि गम्भीर राजनीतिक और अस्थिरता के दौर में प्रशासनिक परिपाटियां अक्षुण्ण रहीं तथा प्रशासन जनता से संबंधित सेवाओं को सदैव की भांती प्रदान करता रहा । हबर्ट लूथी के शब्दों में जब विधायिका कार्य नहीं कर रही होती है तब भी वह प्रशासन की सहायता से परिस्थितियों से निपट लेती है ।

2. एकात्मक शासन:

फ्रांस ब्रिटेन की तरह एकात्मक राज्य है । देश की एक ही कानूनी संरचना है जो सामान्य और प्रशासनिक कानूनों द्वारा शासित है । यहाँ केन्द्र में ही कार्यपालिका, विधायिका होती है, राज्यों में नहीं । यहाँ राज्यों के स्थान पर सम्पूर्ण देश डिपार्टमेन्ट में विभक्त है जिनका शासन प्रिपेक्ट देखते हैं । इनकी नियुक्ति केन्द्र द्वारा होती है ।

3. दो पृथक पृथक कानून:

ADVERTISEMENTS:

ब्रिटेन में विधि का शासन है जबकि फ्रांस प्रशासनिक कानून के लिए जाना जाता है । इससे तात्पर्य है कि फ्रांस में दो प्रकार के कानून प्रचलित है- एक वे सामान्य कानून जिनके अन्तर्गत नागरिकों के मध्य के विवाद निपटाए जाते है तथा दूसरे वे प्रशासनिक कानून जिनके अन्तर्गत प्रशासन-जनता के मध्य के विवाद निपटाए जाते हैं ।

जिन मुकदमों में प्रशासन या उनके कार्मिक एक पक्ष होता है उनकी सुनवाई हेतु प्रादेशिक परिषदों या प्रशासनिक न्यायाधिकरणों का जाल सर्वत्र फ्रांस में बिछा हुआ है । ये न्यायाधिकरण प्रशासनिक कानून के प्रतीक हैं ।

4. केन्द्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली:

राजतन्त्र के समय से लेकर आज तक फ्रांस का प्रशासन केन्द्रीकरण की प्रवृति से प्रेरित रहा है । उल्लेखनीय है कि फ्रांस में कार्यों को तो निचले स्तर तक वितरित किया गया है लेकिन उस अनुपात में शक्तियों विकेन्द्रीत नहीं की गयी हैं । इसका मुख्य कारण यह भी है कि फ्रांस की 20 प्रतिशत जनसंख्या अकेले पेरिस में केन्द्रित है ।

कहावत है कि पेरिस को छींक आती है तो पूरे फ्रांस को न्यूमोनिया हो जाता है और फ्रांस को सर्दी लगती है तो यूरोप छींकने लगता है । स्पष्ट है कि पेरिस का शासन ही फ्रांस के शासन के बराबर है और इसलिए शक्तियों पेरिस अर्थात राजधानी में केन्द्रीत हैं ।

5. राज्य की सर्वोच्चता:

यद्यपि फ्रांस रोम साम्राज्य का अंग कभी नहीं रहा तथापि उसकी राजनीतिक प्रणाली से प्रभावित अवश्य रहा है जहाँ पोप के राज्य को सर्वोपरी माना जाता रहा है । फ्रांस की जनता राज्य और उसके कानूनों के अधीन ही अपने को मानती और स्वीकारती हैं ।

6. प्रशासकीय राज्य का चरित्र:

फ्रांस में प्रशासनिक कानूनों का बोलबाला है और सरकार के ऊपर अनेक कार्यों का दायित्व है । ये सब कार्य प्रशासन ही करता है और जनता ने प्रशासन की इस भूमिका को मन से स्वीकारा है । यहाँ कार्यपालिका की भूमिका पूँजीवाद के फैलाव के बावजूद बड़ी है तथा इसका स्वाभाविक परिणाम लोक सेवा के विस्तार के रूप में हुआ है ।

फ्रांस की नौकरशाही को जन स्वीकृति प्राप्त है और उसमें पर्याप्त विशेषज्ञता का विकास हुआ है । वस्तुतः फ्रांस में निजी पूंजीवाद और सरकारी समाजवाद का सुन्दर मिश्रण देखा जा सकता है जबकि फ्रांस सैद्धांतिक रूप से एक पूँजीवादी देश है ।

7. एस्प्रीट डी कार्पस:

फ्रांसीसी लोक सेवा में नागरिक सेवा भावना व्याप्त है । सभी सरकारी कार्मिक अपने कार्यों को इसी भावना से प्रेरित होकर करते है और जनता भी उनसे यही उम्मीद रखती है । सरकार भी अपने लोक सेवकों के प्रति यही दायित्व निभाती है अर्थात वह आदर्श नियोक्ता की भूमिका में है ।

लोक सेवक जन सेवा को ईश्वर सेवा के समान समझते हैं अर्थात वहाँ स्वामी के स्थान पर सेवक की भावना प्रशासन में व्याप्त है, यद्यपि सरकारी कार्मिक सरकारी अधिकारी कहलाते हैं लोक सेवक नहीं ।