Read this article in Hindi to learn about the top four theories of coordination.

(1) मेरी पार्कर फालेट की विचारधारा (Ideology of Mary Parker Follett):

एक सामाजिक-मनौवेज्ञानिक के रूप में श्रीमति फालेट ने सामाजिक और प्रशासनिक संगठनों में चलने वाले संघर्ष और परिणाम स्वरूप होने वाले विघटन के न सिर्फ कारणों का पता लगाया अपितु उनके समाधान भी प्रस्तुत किये । फालेट ने सामाजिक संघर्षों को दूर करने के तीन विकल्प बताये, प्रभुत्व या शक्ति, परस्पर समझौता और एकीकरण ।

इन आधारों पर प्रशासनिक संगठन में समन्वय को सुनिश्चित करने हेतु फालेट ने अपने 4 प्रसिद्ध सिद्धांत दिये:

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i. परिस्थिति का शासन:

फालेट के अनुसार समन्वय वस्तुतः सभी घटकों में परिस्थितिजन्य संबंध की स्थापना है । उनके अनुसार आदेश मात्र विधि पर ही नहीं, परिस्थिति पर भी आधारित होना चाहिये । और इसका आशय है कि आदेश देने के पहले अधीनस्थों को विश्वास में लिया जाये । वे स्थिति से आदेश का नियम प्रतिपादित करती हैं जिसके अनुसार अधीनस्थ ऊपर से आदेश के बजाय परिस्थिति से आदेश लेना श्रेयस्कर समझते हैं और तब उनमें किसी प्रकार का द्वंद या संघर्ष पैदा नहीं होता ।

ii. प्रत्यक्ष संपर्क द्वारा समन्वय:

फालेट ने समन्वय के दूसरे सिद्धांत में संपर्क को महत्व दिया और कहा कि अधिकारी को अपने पद या स्थिति की परवाह किये बिना अधीनस्थों से सीधा संपर्क रखना चाहिये, तभी वह उनकी ”मनःस्थिति” को समझ पाएगा और मन स्थिति को समझकर ही आदेश की परिस्थिति को समझ पाएगा ।

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iii. शुरूवाती चरण अर्थात नियोजन से ही अधीनस्थों को सहभागी बनाना:

फालेट के अनुसार नीति निर्माण और नियोजन के चरण से ही सांगठनिक गतिविधियों में कार्मिकों को सहभागी बनाना चाहिये । इससे वे संगठन की सफलता, विफलता सभी में समान भागीदारी महसूस करते है जो उनकी प्रतिबद्धता को बढ़ाता है और समन्वय आसान होता है ।

iv. समन्वय एक निरंतर प्रक्रिया हो:

फालेट कहती हैं कि नियोजन-कार्यान्वयन-नियोजन का चक्र चलना चाहिये, ताकि पिछली खामियों को भावी नीतियों में दूर किया जा सके । इस प्रकार फालेट ने समन्वय को प्रबंध का केन्द्र बताया और कहा कि समन्वय का अर्थ है – ”विभिन्न भागों में व्यवस्थित समरसता ।” इस समन्वय के लिये प्रबंध में नेतृत्व की क्षमता होना अनिवार्य है ।

(2) लूथर गुलिक की विचारधारा (Ideology of Luther Gulick):

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गुलिक के अनुसार समन्वय का अर्थ है, कार्य के विभिन्न भागों को परस्पर अंतर्सम्बन्धित करना । वह कहते हैं कि जब कार्य का उपविभाजन जरूरी है, तो उनमें समन्वय भी अनिवार्य है । गुलिक यह भी कहते हैं कि संगठन का आकार और समय दो प्रमुख तत्व है जो समन्वय को प्रभावित करते हैं ।

अतः उन्होंने समन्वय को लागू करने के लिये ”विचारशीलता” का सिद्धांत दिया । इसके अनुसार समन्वय दुर्घटनावश या अचानक उत्पन्न नहीं हो जाता है, अपितु इसके लिये योग्यता, परिश्रम, धैर्य, संगठित प्रयास आदि की जरूरत होती है और इन सबके लिये जरूरी है, ”सचेत विचार” अर्थात अधीनस्थों के दिमाग में उद्देश्य को अच्छी तरह से बैठा देना और यह काम नेतृत्व ही कर सकता है ।

गुलिक ने समन्वय के 3 साधन बताये:

1. पदसोपान

2. समितियां और

3. सचेत विचार अर्थात कार्मिकों में एक सामान्य उद्देश्य का विकास करना ।

लुथर गुलिक के अनुसार अधिक प्रभावशाली नेतृत्व अधिक प्रभावशाली समन्वय की और ले जाता है । गुलिक कहते हैं कि समन्वय विचारों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है और इसलिये नेतृत्व का दृष्टिकोण, व्यक्तित्व और योग्यता का समन्वय में विशेष महत्व है ।

(3) जे.डी. थाम्पसन की विचारधारा (Ideology of J.D. Thompson):

थाम्पसन ने सांगठनिक समन्वय को विभिन्न अंतरनिर्भरताओं में एकीकरण की आवश्यकता के रूप में परिभाषित किया है । उसके अनुसार तीन तरह की अंतरनिर्भरताएं संगठन में पायी जाती हैं और उनमें से प्रत्येक को समन्वित करने के लिये एक विशेष समन्वय तकनीक की जरूरत पड़ती है ।

ये तीन अंतरनिर्भरताएँ हैं:

i. संग्रहित अंतरनिर्भरता (Pooled Interdependence):

थाम्पसन के अनुसार संगठन में कतिपय स्वतंत्र (Fairly) स्वायत्त इकाइयां हो सकती हैं, लेकिन संगठन का निष्पादन इन सब इकाइयां के कुल कार्य-निष्पादन पर निर्भर करता है ।

ii. क्रमिक अंतरनिर्भरता (Sequential Interdependence):

संगठन की विभिन्न इकाइयों को इस प्रकार जमाया जाता है कि एक इकाई का निर्गत (Out-Put) अगली इकाई के आगत (Input) के रूप में उपयोग आता है । इससे ये इकाइयां एक चैन के रूप में अंतर्सम्बंधित और परस्पर निर्भर हो जाती हैं ।

iii. परस्पर अंतरनिर्भरता (Reciprocal Interdependence):

संगठन की विभिन्न इकाइयों को इस प्रकार संगठित किया जाता है कि प्रत्येक इकाई का निर्गत (Out-Put) अन्य सभी इकाइयों के लिये आगत (Input) का काम करता है ।

थाम्पसन ने उक्त अंतरनिर्भरताओं के अनुरूप समन्वय की तीन तकनीके बतायीं:

(1) मानकीकरण – यह प्रथम अंतरनिर्भरता के लिये समन्वय की तकनीक है ।

(2) नियोजन – यह दूसरे प्रकार की अंतरनिर्भर संरचनाओं में समन्वय के लिये हैं ।

(3) परस्पर सहमति – यह तीसरे प्रकार की अंतरनिर्भर संरचनाओं में समन्वय के लिये हैं ।

(4) हानेल क्लीवलैण्ड का तनाव सिद्धांत (Ideology of Hanlan Cleveland’s Tension Theory):

क्लीवलैण्ड सरल संगठनों में आसान समन्वय को अच्छा नहीं मानते । उनके अनुसार जब तक विभागों, कार्मिकों के मध्य तना-तनी नहीं होगी तब तक इनके अधिकार, दायित्व व कर्तव्य जैसे प्रशासनिक मुद्दे स्पष्ट नहीं होंगे । अतः प्रबंध को झगड़े योजनाबद्ध ढंग से शुरू करने चाहिए ।