Read this article in Hindi to learn about the selection of civil servants.

उपर्युक्त वर्णित योग्यताओं के निर्धारण का प्रश्न कतिपय पेचिदगीयाँ खड़ी करता हैं, क्योंकि इस हेतु प्रयुक्त प्रत्येक विधि के अपने गुण-दोष हैं अधिकांश देशों ने यह उचित ही समाधान निकाला हैं कि इन विकल्पों का संयुक्त रूप से प्रयोग करने की कोशीश की हैं, ताकि सभी के लाभों को प्राप्त करके एक दुसरे के दोषों से छुटकारा पाया जा सके । विभिन्न देशों में योग्यता निर्धारित करने की अनेक विधियां प्रचलित है ।

सामान्य विधियां हैं:

1. परीक्षा,

ADVERTISEMENTS:

2. शैक्षिक उपलब्धियाँ,

3. अनुभव,

4. नियोक्ता का स्वैच्छिक अभिमत,

5. कार्य निष्पादन का प्रत्यक्ष-परीक्षण ।

1. परीक्षा (Examination):

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परीक्षा का उद्देश्य न्यूनतम निर्धारित योग्यता का पता लगाना और उनमें तुलनात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ योग्यता को निर्धारित करना है । इस हेतु सामान्य ज्ञान, मानसिक योग्यता, विषयगत ज्ञान आदि का परीक्षण किया जाता है ।

लिखित एवं मौखिक परीक्षा, कार्य कुशलता का प्रदर्शन, शिक्षा एवं अनुभव का मूल्यांकन, बुद्धि परीक्षण, मनोवैज्ञानिक परीक्षण आदि इसमें शामिल है । यदि आधुनिक भर्ती प्रणाली का आधार योग्यता है, तो योग्यता निर्धारण का आधार परीक्षा है ।

(क) लिखित परीक्षा (Written Exam):

नाम से ही स्पष्ट हैं कि ये परीक्षाएं लिखित रूप से होती है । स्टाल ने लिखित परीक्षाओं को मौखिक परीक्षा की तुलना में वरीयता देते हुए बताया कि इसमें एक साथ असंख्य व्यक्तियों को परीक्षित किया जा सकता है । लिखित परीक्षा के दो प्रमुख उद्देश्य हो सकते हैं- प्रथम सामान्य बौद्धिक क्षमता और मानसिक गुणों का आकलन तथा द्वितीय विशिष्ट योग्यता (तकनीकि, व्यवसायिक) का आंकलन ।

ADVERTISEMENTS:

मैकाले ने प्रथम उद्देश्य को केन्द्र में रखकर ही 1853 में ”सामान्यज्ञ” लोकसेवा की स्थापना पर बल दिया था । ब्रिटेन, भारत में यही दृष्टिकोण अपनाया गया । इसके विपरीत अमेरिका में विशिष्ट योग्यता का पता लगाने हेतु उस विशिष्ट विषय से संबंधित लोकसेवा (सांख्यिकीय, विधि आदि) पर केन्द्रीत परीक्षाएं आयोजित होती हैं । भारत, ब्रिटेन में इसका उद्देश्य सामान्य बुद्धिमता को निर्धारित करना है । लिखित परीक्षा निबन्धात्मक या वस्तुनिष्ठ या दोनों का मिला जुला रूप हो सकती है ।

a. निबन्धात्मक परीक्षा (Essay Pattern):

इसमें परीक्षार्थी का निबंध शैली में विस्तृत ‘उत्तर’ लिखने होते हैं । इसका उद्देश्य परीक्षार्थी की विश्लेषणात्मक क्षमता, बौद्धिक चिंतन का स्तर, अभिव्यक्ति की क्षमता और तर्क करने की शक्ति को परीक्षित करना हैं। यह भारत और ब्रिटेन की लोक सेवा में ”निर्णायक” परीक्षा के रूप में प्रचलित हैं । मेण्डले इसका समर्थक है जबकि स्टाल ने इसकी आलोचना की है ।

गुण:

1. परीक्षार्थी के अभिव्यक्ति कौशल और बौद्धिक स्तर का पता लगाने में श्रेष्ठतम ।

2. यह चिंतन, तर्क और विश्लेषण को परखने का व्यापक आधार प्रदान करती है ।

दोष:

1. उत्तर-पुस्तिकाओं को जांचना श्रम साध्य पूर्ण ।

2. उत्तरों का वस्तुनिष्ठ आंकलन संभव नहीं ।

3. परीक्षाओं द्वारा अंक प्रदान करने में विभिन्न मापदण्डों का प्रयोग ।

4. खर्चीली पद्धति ।

b. वस्तुनिष्ठ परीक्षा (Objective Pattern):

इसका उद्देश्य सामान्य ज्ञान और विचार प्रखरता, परीक्षार्थी की कम समय में श्रेष्ठ निर्णय लेने की क्षमता का आकलन करना है । इस लघुउत्तरीय या वस्तुनिष्ठ पद्धति में प्रत्याशी को संक्षिप्त उत्तर देना होता है या सही अथवा गलत पर निशान लगाने होते है । इन प्रश्नों का उत्तर निश्चित होता है और सही उत्तर देने पर ही उसे अंक मिलते हैं, यह अमेरिका में प्रचलित है । स्टाल प्रमुख समर्थक है । वस्तुत: वस्तुनिष्ठ परीक्षा के भी कई प्रकार हो सकते हैं ।

जैसे:

1. बहुविकल्पी परीक्षा:

प्रत्येक प्रश्न के कुछ विकल्प दिये होते है, इनमें एक सही होता हैं, शेष गलत या एक सबसे अधिक उपयुक्त होता हैं । परीक्षार्थी को अंक पाने हेतु इस एक को ही चुनना होता है ।

2. ‘हां’ या ‘नहीं’ में उत्तर:

प्रश्न में ही उत्तर की उपयुक्तता के बारे में पूछा जाता है । परीक्षार्थी को ‘हां’ या ‘नहीं’ में से एक विकल्प लिखना होता है ।

3. रिक्त स्थान पूर्ति:

प्रश्न के मध्य में खाली जगह छोड़ी जाती हैं, किसी तथ्य की पूर्ति हेतु । परीक्षार्थी को उस तथ्य को लिखना होता है ।

अमेरिका में लोकसेवा भर्ती हेतु वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली ही प्रचलित है और उसमें उक्त तीनों प्रकार के प्रश्न शामिल होते है । भारत में लोक सेवा आयोगों ने प्रारंभिक छंटनी परीक्षा में बहुविकल्पी परीक्षा परीक्षा प्रणाली अपनाई हैं ।

गुण:

1. परीक्षार्थी के सामान्य ज्ञान और विचार प्रखरता का परीक्षण ।

2. व्यक्ति निरपेक्ष पद्धति हैं अर्थात् परीक्षक के पूर्वाग्रह का प्रभाव नहीं आता ।

3. कम्प्यूटर का प्रयोग जांच में संभव । इससे कम खर्च और कम समय में मूल्यांकन संभव ।

4. त्वरित निर्णय क्षमता का मूल्यांकन इस प्रकार की परीक्षाओं द्वारा संभव ।

5. भेदभाव रहित पद्धति ।

दोष:

1. प्रश्नों को उचित प्रकार से निर्धारित किये बिना परीक्षार्थी की चिंतन, तर्क आदि शक्ति का परीक्षण संभव नहीं ।

2. प्रश्नों को तैयार करना बेहद श्रम साध्यपूर्ण ।

3. विचार अभिव्यक्ति की क्षमता, विश्लेषण की क्षमता, लेखन शैली की प्रभावशीलता आदि इसके द्वारा परीक्षित नहीं होती ।

(ख) मौखिक परीक्षा या साक्षात्कार:

परीक्षार्थी के व्यक्तित्व का आंकलन लिखित परीक्षा के बजाय मौखिक परीक्षा से ही संभव हैं । लोक सेवा एक चुनौतीपूर्ण कैरियर हैं और परीक्षार्थी का व्यक्तित्व परीक्षण यह परखने के लिए आवश्यक होता हैं, कि उसमें इस चुनौती के दवाबों को झेलने का धैर्य, समस्याओं के समाधान हेतु निर्णय लेने की क्षमता, तत्काल निर्णयन की क्षमता जैसे गुण मौजूद है या नहीं ।

व्यक्तित्व परीक्षा हेतु मौखिक साक्षात्कार सर्वाधिक देशों में स्वीकारा गया है । यह आसान और मितव्ययी तरीका भी है, इस प्रयोजन की पूर्ति हेतु । सर्वप्रथम 1909 में इंग्लैण्ड ने लोकसेवा भर्ती में मौखिक साक्षात्कार का प्रयोग किया था ।

मुख्य रूप से मौखिक परीक्षा के दो रूप हैं- प्रथम चयन मण्डल पद्धति, जिसमें विशिष्ट तकनीकी या प्राविधिक पदों की भर्ती उस विद्या के एक्सपर्ट व्यक्तियों को लेकर ”चयन मण्डल” बनाया जाता है । परीक्षार्थी का चयन पूरी तरह चयन मण्डल के निर्णय पर निर्भर होता हैं ।

द्वितीय ”बोर्ड प्रणाली” हैं, जिसे लोकसेवा जैसी संस्थाऐं अपनाती है । इसमें उम्मीदवार को निर्धारित बोर्ड के सामने उपस्थित होना पड़ता है । इस बोर्ड में अनुमन 5 से लेकर 7 तक सदस्य हो सकते हैं, जो विशिष्ट क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं । आयोग का सदस्य बोर्ड का अध्यक्ष होता हैं । साक्षात्कार के कुल अंक निर्धारित होते हैं और उसमें से ही अभ्यर्थी को उसके प्रदर्शन के आधार पर अंक आवंटित किये जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त मौखिक प्रश्नोत्तर प्रणाली और छँटनी साक्षात्कार जैसी मौखिक परीक्षाएं भी मौजूद है जिनकी सीमित उपयोगिताएं है । प्रथम प्रणाली जहां व्यक्ति के स्थान पर ”ज्ञान” का परीक्षण करती है वही दूसरी प्रणाली अर्थात् छँटनी साक्षात्कार लिखित परीक्षा के लिये अभ्यर्थियों की संख्या सीमित करने के आयोजित किये जाते हैं ।

गुण:

1. व्यक्तित्व आँकलन का श्रेष्ठ विकल्प ।

2. निर्णयन क्षमता का परीक्षण करने के अवसर उपलब्ध होते हैं ।

3. अभ्यर्थी का विभिन्न दृष्टिकोण से परीक्षण संभव होता है ।

4. यह लिखित परीक्षा की कमियों को पूरा करती है ।

दोष:

1. आत्मनिष्ट व भावनात्मक प्रवृत्ति । एक ही प्रत्याशी को अलग-अलग अंक देना ।

2. कृत्रिम वातावरण जिससे अभ्यर्थी का वास्तविक परीक्षण नहीं हो पाता ।

3. विभिन्न उम्मीदवारों से कठिन, सरल जैसे अलग-अलग प्रश्न पूछे जाते हैं ।

4. भाग्य का सौदा ।

5. मात्र 30-35 मिनट की अवधि में पूर्ण मूल्यांकन करना संभव नहीं हो सकता ।

6. पक्षपात की प्रबल संभावना ।

नोट:

गोरावाला ने इसकी आलोचना की तथा इसके स्थान पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण अपनाने पर जोर दिया था । कुछ विद्वान ग्रुप डिस्कशन को अपनाने पर जोर दे रहे है ।

श्रेष्ठ साक्षात्कार प्रणाली:

हरमन फाइनर ने एक श्रेष्ठ साक्षात्कार प्रणाली में निम्नलिखित विशेषताएं बतायी:

1. साक्षात्कार का समय बढ़ाया जाना चाहिए । न्यूनतम आधा घाटा तो होना ही चाहिए ।

2. साक्षात्कार को चयन प्रणाली का एक भाग होना चाहिए, अंतिम चयन का विकल्प नहीं ।

3. अभ्यर्थी से उसकी रूचिगत विषयों से संबंधित ही प्रश्न पूछे जाएं ।

4. साक्षात्कार के अंक निर्धारित नहीं हो तथा वह सदा लिखित परीक्षा के बाद आयोजित हो ।

5. साक्षात्कार बोर्ड में एक प्राध्यापक तथा एक व्यवसायिक प्रशासक शामिल हो ।

6. साक्षात्कार के प्रारम्भ में प्रमाणपत्रों और उपलब्धियों पर विचार न करते हुए, अंत में करना चाहिए ।

(ग) सामूहिक वाद-विवाद या परिचर्चा प्रणाली:

प्राइवेट सेक्टर में व्यक्तित्व परीक्षण का उतना महत्व नहीं है । अपितु ”सामूहिक परिचर्चा” प्रणाली को अधिक उपयुक्त समझा जाता है । इसमें एक ही विषय पर प्रत्याशियों का एक समूह चर्चा करता हैं और इस पर चयन मण्डल सूक्ष्म प्रणाली निगरानी रखते हैं । इसका प्रमुख लाभ यह हैं कि लगभग 9-10 प्रत्याशियों को एक ही विषय पर विचार करना होता है, इससे उनकी अभिव्यक्ति क्षमता और ज्ञान आदि योग्यताओं की तुलना अधिक वस्तुनिष्ठ हो जाती है ।

(घ) मानसिक योग्यता परीक्षा या बुद्धि परीक्षण:

यद्यपि उपर्युक्त परीक्षाओं का भी एक उद्देश्य प्रत्याशी की मानसिक योग्यता (स्मरण और तर्क शक्ति आदि) का परीक्षण करना है, तथापि वे विशिष्ट रूप से इस बिन्दु पर केन्द्रीत नहीं होती । जिन देशों या विभागों में वस्तुनिष्ट ज्ञान को अधिक महत्व दिया जाता है वहां बुद्धि परीक्षाओं की विशिष्ट भूमिका होती है ।

अमेरिका में इसलिए अनेक बुद्धि परीक्षण तकनीकों विकसित हुई हैं:

(i) बिनेट-साइमन माडल:

अमेरिका में बिनेट और साइमन ने 1905 में इसे विकसित कर लिया था । यह अंदरूनी भावनाओं और विचारों को संख्यात्मक पैमाने पर मापने की एक प्रणाली प्रदान करता है । बौद्धिक पैमाने पर इन विचारों को परखा जाता है, और ”प्रेसी सीरिज” तैयार की जाती हैं ।

(ii) गॉट स्काल्ड माडल:

व्यक्तियों में विद्यमान प्रशासनिक क्षमता के तीन ही मूलाधार होते हैं- प्रथम अन्य व्यक्तियों के मूल्यांकन की योग्यता, द्वितीय सोचने, निर्णयन की क्षमता और तृतीय सामाजिक व्यवहार । गॉट स्काल्ड मॉडल इन्हीं गुणों का परीक्षण करने की प्रविधि उपलब्ध कराता है ।

(iii) थर्स्टोन की इकाई विशेषक प्रणाली (यूनिट ट्रेट सिस्टम):

थर्स्टोन ने इसका विकास किया । प्रत्याशी में तार्किक योग्यता, स्मृति क्षमता, व्यवहारिक ज्ञान आदि विशेष गुण कितने अंशों में मौजूद है, यह प्रणाली इसका पता लगाती हैं । बाद में थर्स्टोन ने सामान्य बुद्धि परीक्षण की प्रणाली भी विकसित की । इसमें व्यक्ति की उस क्षमता का पता लगाया जाता हैं, जिसके द्वारा वह परिवर्तनों से तालमेल बैठा पाता हैं ।

(iv) अन्य परीक्षण मॉडल:

मनुष्य में संभव विशेषताओं को खोज निकालने हेतु यूरोपीय देशों और अमेरिका में अनेक परीक्षण मॉडल विकसित हुए जैसे लेपर्ड की व्यक्तिगत तालिका, वर्गन्यूस की व्यक्तिगत तालिका, एलोपार्ट की ए.एस मॉडल प्रणाली, फेलैनेगन तालिका आदि । इंग्लैण्ड, अमेरिका की रक्षा सेवाओं तथा तकनीकि सेवाओं के प्रत्याशियों में व्याप्त विशेष अभिक्षमता का पता लगाने हेतु अनेक अभिक्षमता परीक्षण मण्डल विकसित हुए हैं ।

मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के रूप में विगत दो दशकों से ”एप्टीटयूड टेस्ट” अभिरक्षण परीक्षण भी आयोजित होने लगे हैं । उपरोक्त सभी बुद्धि परीक्षाओं का उद्देश्य व्यक्ति की उपर्युक्त सभी परीक्षा प्रणालियों के अपने गुण-दोष और मनोवैज्ञानिक दशाओं का ज्ञान प्राप्त करना होता है ।

2. शैक्षिक उपलब्धियाँ (Educational Achievements):

योग्यता का निर्धारण परीक्षा के स्थान पर प्रत्याशी की शैक्षिक उपलब्धियों के आधार पर भी किया जा सकता हैं । विशिष्ट तकनीकी, प्राविधिक पदों (विधिवेत्ता, डाक्टर, इंजिनियर, वैज्ञानिक) पर चयन हेतु संबंधित क्षेत्र या विधा में डिग्री, डिप्लोमा आदि की अनिवार्यता होती है । यदि उपलब्ध पदों की तुलना में आवेदन कर्ता बराबर या कम संख्या में हो तो मात्र प्रमाणपत्रों के आधार पर ही नियुक्ति ही दी जा सकती हैं । कुछ अधिक उम्मीदवार होने पर साक्षात्कार आवश्यक हो जाता है ।

3. अनुभव (Experience):

वरीष्ठ पदों पर नियुक्ति हेतु अनुभव को भी एक योग्यता के रूप में प्रमाणित किया जाता है । कभी-कभी यह मात्र वांछित होता हैं, अर्थात् अन्य बातें समान होने पर अनुभवी को प्राथमिकता मिल जाती है । अमेरिका में तो शैक्षिक उपलब्धि न होने पर भी अनुभवी व्यक्ति को ही प्राथमिकता मिलती है ।

4. नयोक्ता का स्वैच्छिक अभिमत (Voluntary Opinion of the Employer):

इस प्रणाली में नियोक्ता प्राधिकारी अपने ज्ञान से तय करता हैं, कि आवेदित अभ्यार्थियों में से कौन विज्ञापित पद हेतु श्रेष्ठ हो सकता है । यह व्यक्ति निष्ठ प्रणाली हैं तथा प्रजातंत्र के ”योग्यता सिद्धान्त” से मेल नहीं खाती, अत: इसे अपवाद स्वरूप वरिष्ठ पदों को छोड़कर अन्य पदों के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाता ।

5. कार्य निष्पादन का प्रत्यक्ष-परीक्षण (Direct-Test Performance):

कौशल आधारित पदों पर चयन के लिए यह अधिक उपयुक्त होता है, प्रत्याशी को उससे अपेक्षित कार्य करने हेतु दे दिया जाये । यदि वह अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करें या अन्य से बेहतर करें तो इस आधार पर उसका चयन किया जाये ।

स्टैनोग्राफर, टायपिस्ट, ड्राइवर जैसे पदों पर भर्ती हेतु यह विधि अपनायी जाती है । उपर्युक्त सभी परीक्षा प्रणालियों के अपने गुण-दोष और सीमाएं हैं । टामलिन आयोग ने प्रत्येक परीक्षण प्रणाली को खतरों से युक्त माना तथा उनमें सुधार की गुंजाइश का जिक्र किया हैं ।