Read this article in Hindi to learn about:- 1. नागरिक चार्टर का अर्थ (Meaning of Citizen Charter) 2. ब्रिटेन में चार्टरों का जन्म – छः मुख्य सिद्धांत (Birth of Charter in Britain – Six Main Principles) 3. विकासक्रम (Development) and Other Details.

नागरिक चार्टर का अर्थ (Meaning of Citizen Charter):

वर्तमान लोकतंत्रों में प्रचलित उत्तरदायित्व की परंपरागत अवधारणा का आधार यह विचार है कि सत्ता का स्त्रोत जनता है उसी के हित में इसका प्रयोग किया जाना चाहिए । इसके अनुरूप उत्तरदायित्व निर्धारण की व्यवस्था है ।

इस तरह जटिल समाज की सबसे बड़ी न केवल उत्तरदायित्व तय करने का सवाल है बल्कि इसके तरीके निर्धारित करने का सवाल भी काफी महत्वपूर्ण है। लोक उत्तरदायित्व की अवधारणा को हाल के वर्षों में बल मिलने का कारण है और नागरिक चार्टर प्रशासन की लोक उत्तरदायिता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है ।

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जनता प्रशासन को तभी समर्थन देती है जब उसे यह विश्वास हो जाए कि प्रशासन का कार्य कुल मिलाकर न्यायपूर्ण है । इस संदर्भ में सरकारें जनता की चिंताओं के प्रति जागरूक हैं और नागरिक चार्टसे का जन्म चिंता का परिणाम है ।

ब्रिटेन में चार्टरों का जन्म – छः मुख्य सिद्धांत (Birth of Charter in Britain – Six Main Principles):

ब्रिटेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री जान मेजर के नेतृत्व में प्रशासन को जनता की जरूरतों व इच्छाओं के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए 1991 में नागरिक चार्टरों का जन्म हुआ । चार मुख्य मुद्दे थे- गुणवत्ता, विकल्प, मानकीकरण और मूल्य ।

कालांतर में इन चार्टरों का और विकास हुआ तथा इनके बेहतर क्रियान्वयन के लिए 6 मुख्य सिद्धान्त बनाए गए:

1. मानकों का निर्धारण:

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सेवाओं हेतु सुस्पष्ट मानकों का निर्धारण, निगरानी व प्रचार जिसकी जनता अपेक्षा कर रही हो । इन मानकों के आधार पर काम हो रहा है या नहीं इसका प्रकाशन व स्वतंत्र रूप से इसकी जांच हो ।

2. सूचना व खुलापन:

इस बात की संपूर्ण सटीक व साधारण भाषा में जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए कि अमुक कार्य का प्रभारी कौन है और कार्य की प्रक्रिया क्या है ।

3. परामर्श और विकल्प:

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जब भी जरूरत हो विकल्पों को अजमाना चाहिए । इसके लिए उपभोक्ता वर्ग से नियमित परामर्श की प्रक्रिया होनी चाहिए । अंतिम निर्णय लेने से पहले उसकी पसंद व प्राथमिकताओं पर उसके विचारों को ध्यान में रखना होगा ।

4. शिष्ट व सहयोगी व्यवहार:

सेवकों से ये अपेक्षा की जाती है कि सबके लिए समभाव से सेवाएं प्रदान करे ।

5. कार्य उचित तरीके से हो:

यदि कुछ गलत हुआ है तो क्षमायाचना के साथ स्पष्टीकरण दिया जाए तथा तत्काल उपचार किया जाए । शिकायत निस्तारण हेतु व सुप्रकाशित प्रक्रिया की शुरूआत की जाए ।

6. पैसे की उचित कीमत:

संसाधनों की सीमा के तहत सस्ती व कारगर सेवाएं प्रदान करना ।

भारत में नागरिक चार्टर का विकासक्रम (Development of Citizen Charter in India):

भारत में भी जनता से ज्यादातर सीधे रूप से जुड़े 68 मंत्रालयों व विभागों में नागरिक चार्टरों की व्यवस्था की गई है । इन चार्टरों में सेवा देने वाले लोगों और कार्य की संभावित समय सीमा का उल्लेख होता है ।

भारत में वास्तविक रूप ग्रहण करने से पहले इन चार्टरों ने कई पड़ाव पार किये, जो इस प्रकार हैं:

i. मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन (1996) की अनुशंसाएं:

प्रशासन के सभी स्तरों पर अक्षमता व अलोकप्रियता के मद्‌देनजर प्रधानमंत्री ने 1996 में मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया जिसका विषय था, ”कारगर व जिम्मेदार प्रशासन हेतु एजेंडा ।”

लोकसेवाओं को ज्यादा कारगर, स्वच्छ, उत्तरदायी व लोकमित्र बनाने सम्मेलन ने सिफारिश की, कि:

1. लोक संस्थाओं द्वारा जनता के साथ व्यापक अंतःक्रिया के साथ दीर्घावधि व अल्पावधि की योजनाओं का विकास करना,

2. प्रत्येक मंत्रालयों व विभागों द्वारा लेखांकन व कार्यप्रदर्शन की निगरानी हेतु स्वतंत्र प्रणाली की स्थापना,

3. नीतिनिर्धारण को मजबूत बनाने तथा उनके क्रियान्वयन की संवीक्षा के संदर्भ में उपभोक्ता संगठनों, नागरिक समूहों व चुने हुए प्रतिनिधियों से सहायता प्राप्त करना,

4. चार्टरों के माध्यम से जनता के हाथ मजबूत करना, और

5. नियमित रूप से इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए कैबिनेट सचिव के नेतृत्व में एक समूह की स्थापना ।

ii. 1997 के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में उभरी कार्ययोजना:

जिम्मेदार पारदर्शी व स्वच्छ प्रशासन देने हेतु सरकारी मशीनरी को तैयार करने के लिए मई 1997 में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में एक कार्ययोजना तैयार की गई जिसमें 3 मुख्य क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है:

1. प्रशासन को उत्तरदायी व लोकमित्र बनाना,

2. पारदर्शिता और सूचना का अधिकार सुनिश्चित करना, तथा

3. नागरिक सेवाओं को स्वच्छ करने तथा अभिप्रेरित करने हेतु उपाय करना ।

कामनकॉज संस्था का योगदान:

भारत में नागरिक चार्टरों के आगाज में कामनकाज (अध्यक्ष-एच.डी.शौरी) नामक संख्या की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है । कैबिनेट सचिवालय की मदद से इसने स्वास्थ्य, बिजली, बैंक, दूरसंचार व निगम सेवाओं में चार्टरों की स्थापना हेतु विविध सर्वेक्षण किए ।

नागरिक चार्टरों की भूमिका (Role of Citizen Charter):

i. प्रशासन की छवि दुरुस्त करने में:

दसवीं योजना आयोग पैनल (2001) भी इस बात को स्वीकार करता है कि लगभग सभी राज्यों में नौकरशाही को भावशून्य तथा लोकल्याण का अनिच्छुक और भ्रष्ट समझा जाता है । अस्तु प्रशासन की छवि दुरुस्त करने के लिए प्रधानमंत्री ने 1996 व 1997 में मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया और इसकी सिफारिशों को लागू करके प्रशासन की नकारात्मक छवि को बदलने तथा प्रशासन को सुलभ बनाने की दिशा में ठोस कार्यवाई की ।

ii. उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने में:

आधुनिक लोक प्रशासन के विद्वानों में प्रशासन की लोक उत्तरदायिता बहस का केंद्र बिंदु रही है । लोक उत्तरदायित्व लोकतंत्र व विकास दोनों को प्रभावित करता है । नागरिक चार्टर अभियान की शुरूआत प्रशासन के इसी उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने के लिए हुई है । इसके तहत किसी निश्चित कार्य के लिए किसी निश्चित अधिकारी की जवाबदेही तय कर दी जाती है तथा मानकों के अनुसार कार्य न करने पर उससे हरजाने वसूले जाते हैं और बेहतर कार्य निष्पादन पर पुरस्कृत किया जाता है ।

iii. पारदार्शता सुनिश्चित करने में:

प्रशासन के कार्यों में जनभागीदारी बढ़ाने हेतु सबसे आवश्यक उपाय है इसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करना । यह जनता को सबलीकृत करने का रास्ता है ताकि वे यह जान सकें कि उनका धन कैसे खर्च किया जाता है ।

प्रशासन के कम्प्यूटरीकरण से कुछ हद तक इसमें सफलता मिल रही है और सूचनाओं तक जनता की पहुँच संभव हो रही है । नागरिक चार्टरों में प्रशासनिक कार्यों की प्रक्रियाएं उल्लिखित करके पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकती है । इससे प्रशासन का जनता से अलगाव कम होगा और जनता से सीधे संवाद की गुंजाइश बढ़ेगी ।

iv. जनसहभागिता सुनिश्चित करने में:

नागरिक चार्टर सेवाओं को लोगों की आवश्यकताओं की तरफ मोड़ने में सहायता प्रदान करते है तथा जनभागीदारी के माध्यम से उनका मूल्यांकन करते हैं । नागरिक स्वयं अपनी आवश्यकताओं का निर्धारण, नियोजन और सेवाओं के वित्त का प्रबंधन करने में भूमिका निभाते हैं ।

भारत में चार्टर अभियान (Charter Campaign in India):

प्रशासनिक सुधार व लोकशिकायत विभाग के प्रयासों से सभी आवश्यक केंद्रीय एवं राज्य विभागों व एजेंसियों में नागरिक चार्टरों का निर्माण हुआ । भारत में अब तक लगभग 68 सेवाओं में ऐसे चार्टरों की स्थापना की जा चुकी है । ये विभिन्न सेवाएं, अस्पताल, बैंक, बीमा जैसी लोकापयोगी क्षेत्र में तो है ही, केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों जैसे, प्रत्यक्षकर बोर्ड, केंद्रीय आबकारी बोर्ड, रेलवे, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय आदि में भी इसकी शुरूआत की गई है ।

चार्टरों के उद्देश्य:

1. समयबद्ध निस्तारण पद्धति:

चार्टर स्थापना के लिए एजेंसियों का चयन अपनी भूमिका व कार्य के अनुरूप किया गया है । संगठन की विशिष्ट भूमिका और उसकी आवश्यकताओं के अनुसार ही चार्टरों के लक्ष्य तय किए गए है । अधिकतर चार्टर संगठन के लक्ष्यों का उल्लेख करते हैं ।

2. संगठन की प्रतिबद्धता व नागरिकों से सहयोग की आशा:

अधिकतर चार्टर नागरिकों की भागीदारी व कार्यों पर उनकी प्रतिक्रिया चाहते हैं ।

3. उपभोक्ता को शिक्षित व समर्थ बनाना:

उपभोक्ता को सेवाओं के विकल्प चयन, प्रक्रिया की जानकारी और सेवा में लगे लोगों के बारे में शिक्षित करने के अलावा सूचना का अधिकार जैसे विषय किसी भी चार्टर के महत्वपूर्ण पहलू है, उदाहरणार्थ, एलआईसी अपने उपभोक्ता को विभिन्न विकल्पों को समझाने का प्रयास करता है ।

चार्टर प्रक्रिया की कमियां (Drawbacks of the Charter Process):

किंतु कुछ क्षेत्र ऐसे है जिनको उपेक्षित किया गया है । जहां कोई चार्टर नहीं है, और न शिकायत निस्तारण की कोई व्यवस्था है । विभिन्न चार्टरों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं जो नागरिकों द्वारा असंतुष्ट होने पर की जाने वाली कार्रवाई की रूप रेखा बताता हो । क्षतिपूर्ति की व्यवस्था किए जाने की जरूरत है ।

अभी सिर्फ रेलवे चार्टर ही कर्तव्ययुक्त होने की दशा में क्षतिपूर्ति का अवसर देता है । जरूरत इस बात की है कि प्रक्रियागत व्यवस्थाओं में सुधार किया जाए ताकि प्रत्येक विभाग में अपनी आंतरिक व्यवस्था हो जो कार्य निष्पादन का मूल्यांकन परीक्षण कर सके । भारत में उन निजी क्षेत्रों को चार्टरों से मुक्त रखा गया है जो लोक सेवा के कार्यों में संलग्न है । विदेशों में इन्हें भी चार्टरिग के दायरे में रखा गया है ।

चार्टर अभियान की सफलता हेतु आवश्यक कदम (Steps to Success in Charter Campaign):

दार्शनिक रूप से नागरिक चार्टर अवधारणा नागरिक को प्रशासन के केंद्र में स्थापित करता है । लेकिन भारतीय संदर्भ में देखें तो बहुत सारी समस्याएं है जिन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है ।

i. बेहतर समन्वय व तारतम्यता:

चार्टरों के निर्धारण में बेहतर समन्वयन व इसके मूलभूत सिद्धांतों के साथ संगतता एक प्रमुख जरूरत है चार्टर अभियान को सफल बनाने के लिए । शिकायत निस्तारण प्रणाली व निगरानी पद्धतियों को इन सिद्धांतों के अनुरूप विकसित किए जाने की जरूरत है । चार्टरों का लक्ष्य न्यूनतम संभव समय, लागत व असुविधाओं के बगैर जनता की अधिकतम संभव संतुष्टि पर केंद्रित होनी चाहिए ।

ii. मानकों को लागू करना:

मानक बनाना कठिन नहीं बल्कि उन्हें लागू करना वास्तव में बेहद कठिन होता है । भारत में तो विशेष रूप से, जहां नौकरशाही हर नए सुधारों की राह में रोड़े अटकाती रही है । लेकिन यदि सुस्पष्ट भाषा में मानकों का निर्धारण हो और उनको जनता ठीक से समझ लेती हो तो यह काम आसान हो जाता है ।

iii. शिकायत निस्तारण प्रणाली का कारगर बनाना:

इसी तरह चार्टर प्रणाली की सफलता के लिए इसके शिकायत निस्तारण मशीनरी को मजबूती प्रदान करना एक आवश्यक पूर्वापेक्षा है । अधिकतर मामलों में देखा गया है कि चार्टर उन अधिकारियों के नाम पते व टेलीफोन नंबरों का उल्लेख नहीं करते जिनसे उत्पीड़न की दशा में जनता संपर्क कर सके ।

दूसरी तरफ यदि ऐसा है भी तो अधिकारी अपनी सीट पर नहीं पाया जाता या टेलीफोन पर कोई जवाब नहीं मिलता । राजनीति व नौकरशाही के प्रभावों से बचाना: लोक सेवाओं के समूचे तंत्र को राजनीति व नौकरशाही के प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करना चार्टरों की सफलता के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है । वस्तुतः बिना किसी पक्षपात के तथा राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का ध्यान दिए बगैर स्वाभाविक तरीके से इन चार्टरों को लागू किया जाना एक आवश्यक शर्त है ।

iv. जवाब देयता और नियंत्रण:

अच्छे कार्यों हेतु पुरस्कारों की व्यवस्था:

ब्रिटेन के मामले में हमने देखा है कि वहां अच्छे कार्यों को पुरस्कृत करने तथा लापरवाही को हतोत्साहित करने हेतु एक सुव्यवस्थित तंत्र का निर्माण किया गया है । यह सर्वविदित ही है कि भारतीय प्रशासन में न तो अच्छे कार्य को पुरस्कृत करने और न ही गलत कार्य को हतोत्साहित किए जाने का प्रचलन है । इस दिशा में अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है ।