Read this article in Hindi to learn about the two major causes for rapid growth of population in India. The causes are:- 1. उच्च जन्म दर (High Birth Rate) 2. धीमी मृत्यु दर (Low Death Rate).

मृत्यु दर में सतत् गिरावट और जन्म दर के उच्च रहने के कारण भारत में जनसंख्या की अत्याधिक हुई है ।

अतः भारत की जनसंख्या के वास्तविक स्वरूप को समझने के लिये आवश्यक है कि जनसंख्या के कारणों का परीक्षण किया जाये:

(1) उच्च जन्म दर के कारण,

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(2) निम्न मृत्यु दर के कारण ।

(1) उच्च जन्म दर के कारण (Causes of High Birth Rate):

i. शीघ्र और व्यापक विवाह प्रथा (Early and Universal Marriage):

विवाह की प्रथा एक धार्मिक एवं सामाजिक उत्सव है जो भारत में जनसंख्या की वृद्धि का मुख्य कारण विवाह 15 से 20 वर्ष की आयु में हो जाता है जोकि उच्च जनन क्षमता की आयु होती है । परंतु हमारे देश में इस शीघ्र प्रजनन के तीव्र विपरीत यू. के. में अविवाहित लड़कियों की प्रतिशतता 30 वर्ष की आयु तथा यू. एस. ए. में 41 वर्ष है ।

इसके अतिरिक्त भारत में 50 वर्ष की आयु 1000 लड़कियों में केवल 5 लड़कियां अविवाहित रहती हैं । एन. सी. डी. दास द्वारा किये गये एक अध्ययन के दौरान विवाह करने वाली लडकियों की जनन क्षमता उतनी ही होती है जितनी कि बीस वर्ष से कम आयु की लड़कियों की । जब विवाह की आयु 25 वर्ष से अधिक हो जाती है तो जनन क्षमता में कुछ कमी होती है । अतः विश्वास किया जाता है कि शिक्षा के प्रसार से विवाह के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदलेगा, परन्तु शिक्षा का प्रसार तीव्रतापूर्वक नहीं हो रहा इसलिये देर से विवाह की सम्भावनाएँ उज्जल नहीं हैं ।

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ii. संयुक्त परिवार प्रणाली (Joint Family System):

देश के विस्तृत भाग में संयुक्त परिवार प्रणाली अभी भी प्रचलित है । नि:सन्देह, बड़े शहरों में संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन आरम्भ हो गया है, परन्तु अभी यह भारतीय समाज का एक सामान्य लक्षण है । संयुक्त परिवार प्रणाली युवा जोड़ो को अधिक बच्चे उत्पन्न करने के लिये प्रोत्साहित करती, यद्यपि वह उनके पालन-पोषण का सामर्थ्य नहीं रखते । अतः संयुक्त परिवार प्रणाली जनसंख्या वृद्धि के लिये विशेषतया ग्रामीण क्षेत्रों में उत्तरदायी है ।

iii. विस्तृत निर्धनता (Wide Spread Poverty):

जनसंख्या वृद्धि के लिये उत्तरदायी एक अन्य कारक विस्तृत निर्धनता है । भारत में, प्रति व्यक्ति आय अन्य उन्नत देशों की तुलना में 38% भाग निर्धनता रेखा से नीचे है । यहाँ तक कि जो लोग निर्धनता आहार तथा जीवन का अन्य सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, फलतः एक अतिरिक्त बच्चे का जन्म कोई महत्व नहीं रखता इसलिये, समाज के निर्धन वर्गों द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रमों विरुद्ध निर्धनता मुख्य कारक है ।

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एक प्रसिद्ध समाज विज्ञानी महमूद मामतनी का मानना है कि समृद्ध किसान मशीनों में निवेश करते हैं जबकि निर्धन ग्रामीण बच्चों में निवेश करते करते हैं जबकि निर्धन ग्रामीण बच्चों में निवेश करते हैं । विश्व बैंक ने अपने एक विवरण में वर्णित किया, ”निर्धन माता-पिता के लिये बच्चों की आर्थिक लागतें नीची हैं और उनके आर्थिक लाभ अधिक हैं इसके लिये अधिक बच्चों को जन्म देने का आर्थिक महत्व है ।”

अतः विशेषतया निम्न आय वर्ग से सम्बन्धित युवा मुसलमानों में परिवार नियोजन एक स्वीकृत मानक नहीं है । पुन: निर्धनता के साथ, निरक्षरता और परिवार नियोजन विधियों के सम्बन्ध में अज्ञानता समस्या को और भी तीव्र कर देती है ।

iv. धार्मिक और सामाजिक अन्ध-विश्वास (Religious and Social Substitutes):

हिन्दू विचारधारा के अनुसार, बच्चे उत्पन्न करना व्यक्ति का धर्म समझा जाता है । किसी भी स्थिति में उनके लिये पुत्र को जन्म देना आवश्यक है क्योंकि कुछ धार्मिक कर्तव्य केवल उसी द्वारा निभाये जायेंगे किसी अन्य द्वारा नहीं । इसी प्रकार, बेटी का जन्म भी आवश्यक है क्योंकि विवाह में कन्यादान भी बहुत धार्मिक महत्व रखता है ।

अतः यह मनु द्वारा निर्मित गलत आर्थिक एवं सामाजिक मानकों द्वारा आधारित है । बच्चे के जन्म को भगवान का उपहार माना जाता है । इन धार्मिक एवं सामाजिक अन्य विश्वासों के कारण बढ़ती हुई जनसंख्या पर कोई रोक नहीं है ।

v. शिक्षा का अभाव (Lack of Education):

कुछ अर्थशास्त्रियों का विश्वास है कि परिवार, विवाह तथा बच्चे के जन्म सम्बन्धी लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन में शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा भाग अशिक्षित है इसलिये वैज्ञानिक शिक्षा में रुचि नहीं रखता । फलता: वे पिछडे हुए रहते हैं तथा पुराने धार्मिक अन्धविश्वासों का अनुकरण करते हैं ।

अतः शिक्षा को चाहिये कि उनको जागृत करके उनका जीवन स्तर ऊँचा करे । वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में केवल 36.17 प्रतिशत लोग साक्षर थे । इसके अतिरिक्त स्त्रीयों में साक्षरता की दर बहुत नीची है ।

vi. कृषि का प्रभुत्व (Pre-Dominance of Agriculture):

भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा जनसंख्या का 70 प्रतिशत भाग प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में कृषि पर निर्भर है । इसमें वर्ष 1901 से कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है अर्थात् जनसंख्या का व्यवसायिक वितरण अपरिवर्तित रहा है । वास्तव में, कृषि प्रधान देशों में, बच्चों को कढाई और बुनाई के दिनों में खेतों में आसानी से काम मिल जाता है । अतः ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक आधारों पर बड़े परिवार होते हैं । कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्थाएँ प्रायः पिछड़ी हुई, अधिक जनसंख्या वाली एवं अदृश्य बेरोजगारी से पीड़ित होती हैं ।

vii. नीचा जीवन स्तर (Low-Standard of Living):

अधिकांश लोगों के अशिक्षित और पिछड़े हुए होने के कारण उनका जीवन स्तर शिक्षित एवं उन्नत लोगों की तुलना में नीचा होता है । पिछड़े क्षेत्रों में लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने की स्थिति में नहीं होते । जैसे ही वह कुछ कमाई करने के योग्य होते हैं तो उनकी शादी कर दी जाती है । इसके अतिरिक्त दिल बहलाव का कोई अन्य साधन न होने के कारण वे इसे ही मनोरंजन का साधन मानते हैं । फलतः जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होती है ।

viii. मृत्यु दर में कमी (Decline in Mortality Rate):

जन्म एवं मृत्यु दर के बीच विस्तृत अन्तराल के कारण देश में जनसंख्या की स्थिति विस्फोटक हो गई है । घातक रोगों जैसे प्लेग, मलेरिया, चेचक, टाईफाइड और टी. बी. आदि पर नियन्त्रण के कारण मृत्यु दर में नाटकीय ढंग से कमी हुई है । सौभाग्य से भारत में अब इन घातक रोगों से कोई खतरा नहीं है ।

लोगों में जागृति और सफाई की व्यवस्थाओं के कारण मृत्यु दर बहुत कम हो गई है । इसी प्रकार चिकित्सा में उन्नति और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण म हामारी रोग नियन्त्रित हुये हैं ।

ix. अकालों एवं बाढ़ों पर नियन्त्रण (Control of Famines and Floods):

उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में भारत ने अनेक अकालों तथा बाढ़ों की स्थितियों का सामना किया । वर्ष 1943 में बंगाल के अकाल ने लाखों लोगों की जानें लीं, परन्तु इस प्रकार के अकाल अब पुरानी बात हो चुके हैं । इसके अतिरिक्त यातायात की विस्तृत संरचना और विभिन्न राष्ट्रों में सहयोग के कारण कहीं भी सहायता पहुँचाना कठिन नहीं ।

वर्ष 1970 और 1980-90 के देशकों में देश में मामूली अकाल की स्थितियाँ उत्पन्न हुई । परन्तु इन स्थितियों से निपटने के लिये सरकारी क्षमता की सराहना की गई क्योंकि खाद्य अनाजों में 7 से 10 प्रतिशत कमी के बावजूद, सरकार ने विदेशों से आयात के बिना स्थिति को संभाल लिया । संक्षेप में, सामग्रीक कल्याण में कोई भी सुधार मृत्यु दर को कम करने में सहायक होता है ।

x. शहरीकरण की धीमी प्रक्रिया (Slow Process of Urbanisation):

भारत में औद्योगीकरण की गति बहुत धीमी है जो देश में शहरीकरण की प्रक्रिया को और भी धीमा कर देती है । इसके फलस्वरूप, यही उन सामाजिक शक्तियों को उत्पन्न करने में असफल रहीं जो जन्म दर को नीचे लाने में सहायता कर सकती है । निःसन्देह, 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी जनसंख्या 29.4 रिकार्ड की गई जबकि वर्ष 1951 में यह 17.6 प्रतिशत थी, फिर भी शहरीकरण की गति विश्व के अन्य विकसित देशों की तुलना में धीमी है ।

(2) धीमी मृत्यु दर के कारण (Causes of Low Death Rate):

निम्न मृत्यु दर के मुख्य कारण नीचे दिये गये हैं:

i. महामारियों में गिरावट (Decline in Epidemics):

भारत में प्लेग, मलेरिया जैसे महामारी रोगों को कम करने के प्रयत्न किये गये हैं । सातवीं पंचवर्षीय योजना में 7.15 करोड़ रुपये इस विशेष दिशा में व्यय किये गये थे ।

ii. जनसंख्या का शहरीकरण (Urbanisation of Population):

जनसंख्या का बड़ा भाग शहरों में स्थानान्तरित हो चुका है । वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का एक बड़ा प्रतिशत शहरों में रहता था जबकि इसकी तुलना में वर्ष 1981 में काफी कम प्रतिशत लोग शहरों में रहते थे । इसके अतिरिक्त गांवों में चिकित्सक और सफाई में सुधार से भी मृत्यु दर कम हुआ है ।

iii. देर से विवाह (Late Marriage):

देश में देर से विवाह करने को प्रोत्साहित किया गया है । विवाह सम्बन्धी नियमों को कठोरता से लागू किया गया है । इससे भी घटते हुए मृत्यु दर को सहायता मिली है, विशेषतया युवा लड़कियों की मृत्यु दर कम हुई है ।

iv. अधिक चिकिन्सक सुविधाएं (More Medical Facilities):

देश में चिकित्सक सुविधाएं तेजी से विकसित हुई है । पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान जनसाधारण को चिकित्सक सुविधाएं उपलब्ध करने में लगभग 2000 करोड़ व्यय किये गये हैं ।

v. शिक्षा का प्रसार (More Medical Facilities):

देश का साक्षरता अनुपात निरन्तर बढ़ रहा है । लोग अपने बच्चों के पोषण में अधिक रुचि रखते हैं तथा उनके भविष्य का ध्यान रखते हैं ।

vi. आदतों में परिवर्तन (Change in Habits):

लोगों की आदतें भी बदल रही हैं । अब वे अपने स्वास्थ्य तथा सफाई का अधिक ध्यान रखते हैं जिस कारण मृत्यु दर नीचे आया है ।

vii. सामाजिक बुराइयों में कमी (Decline in Social Evils):

भारत से अधिकांश सामाजिक बुराइयां जैसे जाति प्रथा, अन्धविश्वास आदि को निष्कासित कर दिया गया है, जिससे मृत्यु दर कम हुआ है ।

viii. सन्तुलित आहार (Balanced Diet):

भारत में लोगों को अब बेहतर एवं सन्तुलित आहार प्राप्त होने लगा है । सरकार भी देशवासियों को बेहतर आहार उपलब्ध कराने की ओर अधिक ध्यान देने लगी है ।

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