Read this article in Hindi to learn about the pollutants that cause ocean pollution.

1. घरेलू गंदगी (Household Waste):

साधारणतया मनुष्य को भोजन पकाने, नहाने, कपड़े धोने आदि के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती । इसलिए इन कार्यों में गंदे हो जानेवाले पानी की मात्रा भी थोड़ी होती है । उसे पास के नदी-नाले में आसानी से बहाया जा सकता है ।

ऐसा ही आमतौर पर प्राचीन काल से लोग करते रहे हैं और आज भी कर रहे हैं । सागर के तट के निकट रहनेवाले लोग बेकार और गंदे पानी को सागर में बहा देते हैं । जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ पानी के खर्च में भी वृद्धि हुई है । पर जब उद्योगों की स्थापना होने लगी तब पानी की माँग बहुत तेजी से बढ़ी ।

यद्यपि हर उद्योग में पानी की जरूरत होती है और जो उद्योग जितना बड़ा होता है, पानी की जरूरत भी उतनी ही अधिक होती है, पर कागज, रसायन, वस्त्र-निर्माण आदि के कारखानों में, चाहे वे छोटे ही हो, बहुत अधिक पानी की जरूरत होती है । साथ ही जो कारखाना जितना अधिक पानी इस्तेमाल करता है वह उतना ही अधिक पानी बेकार भी करता है । इस प्रकार औद्योगिकीकरण की प्रगति के साथ-साथ बेकार पानी की मात्रा भी बढ़ती जाती है ।

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कारखानों के बहि:स्राव को भी आमतौर से पास के नाले में बहा देने की प्रथा रही है । ये नाले उसे बहाकर किसी नदी में ले जाते हैं और नदी अंतत: उसे सागर में मिला देती है । पानी की अपने आपको शुद्ध करने की क्षमता बहुत अधिक होती है ।

इसलिए घरों और कारखानों से निकलनेवाला गंदा पानी नदी तक पहुंचते-पहुंचते अथवा नदी में कुछ किलोमीटर तक बह लेने पर, पुन: शुद्ध हो जाता है । ऐसा पिछले लाखों-करोड़ों वर्षों से हो रहा है । आज भी ऐसा होता है । इसके बावजूद नदियों का पानी गंदा रहने लगा ।

आज नदियों में इतनी अधिक मात्रा में विविध प्रकार के प्रदूषक मौजूद होते हैं कि नदियाँ पुन: शुद्ध नहीं हो पातीं । उनका प्रदूषित पानी ही सागर में मिल जाता है । उससे सागर भी प्रदूषित हो रहा है । यह गंदा पानी आमतौर से गँदला तरल होता है जिसमें कणीय पदार्थ, अत्यंत सूक्ष्म अघुलनशील पदार्थ, कोलॉयडी पदार्थ, घुलनशील अपद्रव्य और सूक्ष्मजीव होते हैं ।

घरों से निकलनेवाले गंदे पानी में रसोईघरों, स्नानघरों और शौचालयों से निकलनेवाली गंदगी होती है । रसोईघरों से निकलनेवाले गंदे पानी में मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन जैसे पदार्थ होते हैं, जबकि स्नानघरों के, जहाँ घर के गंदे कपड़े आदि भी धोए जाते हैं, गंदे पानी में मुख्य रूप से साबुन और डिटरजेंट होते हैं ।

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साथ ही उसमें तेल के रंच, थोड़ी मात्रा में वस्त्रों के रेशे, धूल के कण, वसा आदि भी होते हैं । इन दोनों प्रकार के बेकार पानी में गंदगी की मात्रा काफी होती है । ये प्रदूषण की दृष्टि से गंभीर समस्या उत्पन्न नहीं करते ।

2. सीवेज (Sewage):

गंभीर समस्या तो पैदा होती है शौचालयों की गंदगी से । उसमें मानव मल-मूत्र की मात्रा अधिक होती है । स्वस्थ मानव शरीर अपने अंदर किसी गैर-जरूरी वस्तु को संचित नहीं कर सकता । इसलिए भोजन के गैर-जरूरी अंश शरीर से मल-मूत्र आदि के रूप में बाहर निकल जाते हैं ।

उदाहरण के तौर पर भोजन के रूप में हम जितना फास्फोरस खाते हैं उतना ही मल-मूत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है । इसीलिए यह सीवेज में हमेशा मौजूद रहता है । यह सागर में पहुँचकर विशेष समस्या उत्पन्न कर देता है ।

मानव मल-मूत्र में विभिन्न किस्म के परजीवी, सूक्ष्मजीवी, बैक्टीरिया, वायरस आदि भी मौजूद होते हैं । ये भी सागर में पहुँचकर प्रदूषण उत्पन्न करते हैं । अनेक बड़े शहरों में, जहाँ सीवेज व्यवस्था काफी सुचारु है, उक्त तीनों प्रकार की-रसोईघर, स्नानघर और शौचालयों की गंदगी सीवेज में पहुँच जाती है ।

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सीवेज उपचार व्यवस्था में गंदे पानी को छाना जाता है । इससे उसके अघुलनशील पदार्थ अलग हो जाते हैं । फिर उसे निर्जर्मीकृत कर लिया जाता है । इन क्रियाओं के दौरान सीवेज में से ऐसे पदार्थ अलग हो जाते है जिन्हें पौधों के लिए खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।

अंत में सीवेज में जो पानी बचता है वह लगभग पूरी तरह से शुद्ध होता है । उसे नदी या नाले में बहा दिया जाता है । पर देहातों, कसबों और अधिकांश छोटे शहरों में सीवेज को ठिकाने लगाने की व्यवस्था समुचित नहीं होती; अधिकांशत: उनमें सीवेज व्यवस्था होती ही नहीं । इसलिए इन स्थानों पर रसोईघरों, स्नानघरों और शौचालयों से निकलने वाली गंदगी बिना किसी उपचार के, पास की नदी में मिला दी जाती है । बाद में उसका कुछ अंश सागर में भी पहुँच जाता है ।

सागर तट पर बसे गाँवों, कसबों और छोटे शहरों की गंदगी बिना उपचार के, सीधे ही, सागर में जा मिलती है । वैसे बंबई जैसे बड़े शहरों में भी आबादी के एक बड़े भाग को सीवेज व्यवस्था उपलब्ध नहीं है । इसलिए वहाँ भी काफी बड़ी मात्रा में मल-मूत्र तथा घरेलू गंदगी सीधी सागर में मिलती रहती है ।

अनेक देशों में, विशेष रूप से विकसित देशों में, सागर के तट पर बसे शहर सीवेज के उपचार से प्राप्त ठोस पदार्थों (ठोस आपंक- सॉलिड स्लज) को भी सागर में फेंक देते हैं । यह ठोस आपंक प्राय: तेजी से नीचे बैठ जाता है और तली पर जम जाता है । कहीं-कहीं तली पर उस आपंक की कई मीटर मोटी तह जम गई है ।

परिणाम:

घरेलू गंदगी और सीवेज से सागर के तटीय क्षेत्र, ज्वारनदमुख अथवा खाड़ी जैसे अंग विशेष रूप से प्रभावित होते हैं । गंदगी के प्रदूषक पदार्थ आमतौर से उन्मुक्त सागर तक नहीं पहुंच पाते । इसलिए पूरे सागर के संदर्भ में इन प्रदूषकों के प्रभाव नगण्य होते हैं, पर स्थानीय तौर पर ये प्रभाव गंभीर हो सकते हैं ।

सागर में गंदगी के मिलने के परिणाम पानी की भौतिक, रासायनिक और जैविक परिस्थितियों पर निर्भर होते हैं । जैसा आप जानते हैं कि सागर का पानी विभिन्न लवणों का घोल है जिसमें मुख्य रचक सदैव उच्च मात्रा में मौजूद होते हैं ।

सागर के पानी की अम्लीय और क्षारीय, दोनों प्रकार के पदार्थों को उदासीन बनाने की क्षमता और आयनिक सामर्थ्य बहुत अधिक होती है । इन गुणों के भी प्रभाव पड़ते हैं । इनके कारण ही घरेलू गंदगी के सागर में मिलने पर अवक्षेपण, स्कंदन और ऊर्णन जैसी क्रियाएं अवश्य होती हैं ।

उदाहरण के लिए, साबुन के रूप में मौजूद वसाम्ल सागर के पानी में मौजूद कैल्सियम और मैग्नीशियम आयनों से किया करके अघुलनशील पदार्थ बनाते हैं । विभिन्न किस्मों के कोलॉयडी पदार्थ उनके ऋणात्मक कणों के सागर के पानी में मौजूद धनात्मक आयनों से मिलने के परिणामस्वरूप उदासीन हो जाते हैं ।

इस प्रकार की क्रियाएं सागर के पानी में अवक्षेप पैदा कर देती हैं । सीवेज और आपंक को सागर में डालने पर हलके पदार्थ पानी में छितरा जाते हैं या सतह पर तिर आते हैं, जबकि भारी पदार्थ तली पर जम जाते हैं । हलके पदार्थों के तिरने अथवा छितराने से पानी गंदला हो जाता है ।

इससे उसमें प्रकाश भलीभाँति प्रविष्ट नहीं हो पाता । वह कम दूरी तक प्रवेश कर पाता है । प्रकाश की मात्रा कम होने से प्रकाश संश्लेषण क्रिया मंद पड़ जाती है । फलस्वरूप पादप उत्पादन कम हो जाता है और सागर की संपूर्ण खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा जाती है ।

विकसित देशों के बीच स्थित होने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण रोकने के अथक उपाय किए जाने के बावजूद भूमध्यसागर संसार के सर्वाधिक प्रदूषित सागरों में से एक है । उसके उत्तरी तट के अनेक स्थानों पर प्रति किलोमीटर 300 टन से भी अधिक सीवेज सागर में डाला जाता है ।

घरेलू गंदगी के सागर के पानी में मिलने से आपंक के कारण मछलियों को हानि पहुंच सकती है, फिशिंग गीयर नष्ट हो सकते हैं और तली के जीव-जंतु मर सकते हैं ।

गंदगी के तिरनेवाले पदार्थ लहरों के साथ किनारों पर भी आ जाते हैं जिससे पर्यटन स्थल प्रदूषित हो सकते हैं । पर ये घटनाएं स्थानीय ही होती हैं । इनके प्रभाव आमतौर से सागर के बहुत छोटे-से क्षेत्र तक ही सीमित रहते हैं । इसलिए ये बहुत गंभीर नहीं माने जाते ।

3. बैक्टीरिया और वायरस (Bacteria and Virus):

मानव-मल में आमतौर से बैक्टीरियाओं की संख्या काफी अधिक होती है । साधारणतः एक ग्राम मल में एक करोड़ बैक्टीरिया होते हैं । ये मुख्यतः कोलीफार्म बैक्टीरिया होते हैं । स्वयं कोलीफार्म बैक्टीरिया हानिकारक नहीं समझे जाते, पर इनकी उपस्थिति अनुपचारित मानव-मल के प्रदूषण की द्योतक अवश्य मानी जाती है ।

साथ ही, ये हानिकारक बैक्टीरियाओं और वायरसों की, जो टायफायड ज्वर, पीलिया, पोलियो आदि पैदा करते हैं, उपस्थिति के सूचक भी होते हैं । पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया जितनी अधिक संख्या में मौजूद होंगे, अन्य हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस भी उतनी अधिक मात्रा में उपस्थित हो सकते हैं ।

जब सीवेज बिना किसी उपचार के सागर में मिलता है तब कोलीफार्म तथा रोगवाहक बैक्टीरिया और वायरस भी वहाँ पहुंच जाते हैं । वहाँ इनकी संख्या में वृद्धि अनेक कारकों पर निर्भर होती है । प्रोटोजोआओ और जंतु प्लांक्टनों द्वारा उनके भक्षण, पानी की लवणता, ताप और दाब, सूर्य का प्रकाश तथा बैक्टीरिया-भक्षियों की उपस्थिति आदि कुछ ऐसे कारक हैं ।

गंदे पानी में छितराए हुए ठोस कणों के कारण पानी में बैक्टीरियाओं की संख्या कम हो जाती है । पर सागर की सतह पर आने के बाद बैक्टीरियाओं की संख्या उतनी तेजी से कम नहीं होती । जैसे-जैसे हम तट से दूर, उन्मुक्त सागर की ओर जाते हैं, कोलीफार्म बैक्टीरियाओं की संख्या कम होती जाती हैं । तलछटीकरण, तनुकरण, उर्णन, अधिशोषण, परभक्षण आदि कारक उसे प्रभावित करते हैं । सागर की गहराई के साथ-साथ भी बैक्टीरियाओं की संख्या में कमी आ जाती है ।

अत: जब नदियों के साथ बहाया गया सीवेज सागर में पहुँचता है तब बैक्टीरियाओं की काफी बड़ी संख्या लवणरागी बैक्टीरियाओं में बदल जाती है जो सागर के लवणयुक्त पानी में आसानी से पनप सकते हैं । इसी प्रकार सागर में अनेक बैक्टीरियानाशी यौगिक भी मौजूद होते हैं ।

सीवेज के साथ सागर में आनेवाले बैक्टीरिया, वायरस, स्ट्रेप्टोकोकाई, यीस्ट आदि समुद्री जीव-जंतुओं को भी संक्रमित कर देते हैं । इन संक्रमित जीवों के भक्षण से मनुष्य रोगग्रस्त हो सकता है । इस बारे में संक्रमित शैलफिशों का उदाहरण दिया जाता है ।

इस प्रकार की शैलफिशों को खाने से मनुष्य अकसर गैस संबंधी व्याधियों से पीड़ित हो जाता है । शैलफिशों की अनेक किस्में अपने शरीर में काफी मात्रा में पोलियो वायरस भी संचित कर लेती हैं । यह काम वे शीघ्रता से करती हैं ।

बाद में वे मनुष्यों में भी रोग फैला सकती हैं । वायरसों से ग्रस्त ओएस्टर मनुष्यों में पीलिया फैलाती पाई गई हैं । उनके भक्षण से स्वीडन में महामारी के रूप में पीलिया फैल गया था । संक्रमित क्वाहाँग और कठोर क्लैमों के भक्षण से संयुक्त राज्य अमेरिका में भी कई बार महामारी फैल चुकी है ।

4. परजीवी (Parasites):

यह एक सुविदित तथ्य है कि संदूषित भोजन खाने से अनेक प्रकार के परजीवी मनुष्य के शरीर में पहुँच जाते हैं । वे मल के साथ शरीर से बाहर निकल आते हैं और सीवेज में पहुंच जाते हैं । उसके साथ वे सागर में भी जा मिलते हैं ।

वहीं कुछ परजीवी, समुद्री जीव-जंतुओं के माध्यम से पुन: मानव शरीर में आ पहुँचते हैं । इस बारे में अकसर ही नीमाटोड, एनीसाकीज का उल्लेख किया जाता है । वह सागर के पानी में मौजूद होता है और हेरिंग मछली के शरीर में पहुँच जाता है ।

यह एक खाद्य मछली है और यदि इसे पूरी तरह पकाए बिना ही खा लिया जाए तो एनीसाकीज मनुष्य के शरीर में पहुँच सकता है । मनुष्य के शरीर में पुन: पहुंच जाने के बाद यह उसे घातक रोगों से पीड़ित कर सकता है । कुछ वर्ष पूर्व हालैंड में इससे अनेक लोगों की मृत्यु हुई थी ।