Read this article in Hindi to learn about the civil society and social movements.

समकालिक विश्व में सामाजिक आंदोलनों की धारणा का संबंध नागरिक समाज की संकल्पना से है । सामाजिक आंदोलनों से जुड़ा साहित्य उन प्रक्रियाओं का वर्णन करता है जिसके द्वारा साझे उद्देश्यों के लिए अनौपचारिक व औपचारिक सूत्रों द्वारा लोग एकजुट हो जाते हैं । नागरिक समाज एक ऐसी संकल्पना है जो हमें संघर्ष प्रक्रिया समझने में मदद करती है ।

नागरिक समाज को लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया में सहायक माना जा सकता है । लोकतंत्र को प्राय: राज्य व कुछ प्रथाओं से जोड़ा जाता है । इन प्रतीकात्मक मान्यताओं ने लोकतंत्र को उन मूल्यों से वंचित कर दिया जिनका यह प्रतिनिधित्व करता है । परिणामस्वरूप नागरिक समाज अस्तित्व में आया । नागरिक समाज उन सभी मान्यताओं मूल्यों और संस्थाओं को स्वीकृत करता है जिनसे लोकतंत्र का विकास होता है जैसाकि सामाजिक राजनीतिक, आर्थिक एवं जन अधिकार कानून, बहुसंघों का निर्माण, प्रतिनिध्यात्मक संस्थाएँ आदि ।

अपनी सेवाओं की आपूर्ति में लोकतंत्र की असफलता के फलस्वरूप सामाजिक आंदोलनों का भी उदय हुआ । इस प्रकार सामाजिक आंदोलन और नागरिक समाज अवश्यभावी रूप से संबंधित हैं ।

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पश्चिम में राज्य शक्ति पर नियंत्रण के उद्देश्य से नागरिक समाज की अवधारणा का उदय हुआ । यूरोप में अठारहवीं सदी में लोकतांत्रिक आंदोलनों को मूर्त रूप देने के लिए नागरिक समाज की स्वतंत्रता का विचार आया । उदारवादी सिद्धांत के अनुसार, नागरिक समाज का संबंध व्यक्ति की स्वतंत्रताओं की आकांक्षा से था । नागरिक समाज के भीतर ही प्रबुद्ध जन एकजुट हुए और उन्होंने संघों का निर्माण किया ।

उत्तर औपनिवेशिक काल में परिदृश्य भिन्न था । यहां राज्य ने नागरिक समाज का निर्माण किया । यहां नागरिक समाज एक तटस्थ क्षेत्र था । यह शांति और राजनीति के उन रूपों के तटस्थीकरण का क्षेत्र था जिन्हें राज्य का सामना करना होता है । यह बहिष्कृत क्षेत्र भी था । कोई भी आवाज यदि राज्य का विरोध करती थी तो उसे राष्ट्र-विरोधी की संज्ञा दी जाती थी । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि स्वतंत्रता के बाद जो राष्ट्रीय विशिष्ट वर्ग सत्ता में आया उसने राज्य को विकास का झंडा थमा दिया । राज्य को तटस्थ बना दिया गया जिसे सभी की हितपूर्ति करनी थी ।

इस प्रकार राज्य को ही समस्त शक्ति सौंप दी गई जिस पर प्रश्नचिह्‌न नहीं लगाया जा सकता था। राज्य के लोप और नागरिक अधिकारों के अध:पतन से जनसाधारण ने अनुभव किया कि इसे उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए । अत: नागरिक समाज राज्य के शिकंजे से बाहर आया और इसने राज्य को अधिक लोकतांत्रिक बनाने का प्रयास किया । आज नागरिक समाज को वहां देखा जा सकता है जहां आंदोलनों को प्रोत्साहित करने वाले तंत्रों (नेटवर्कों) का विकास हो रहा है।

नागरिक समाज को एक ऐसा मच माना जाता है जो उन लोगों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है जिनका इस बात में विश्वास है कि राज्य उनकी बात सुनेगा । इन लोगों ने भ्रष्ट अधिकारियों का विरोध करते हुए पर्यावरण, लिंग वर्ग आदि मुद्दों के लिए आवाज उठाई है । ये वे लोग हैं जो नागरिक समाज से बाहर नहीं रहना चाहते पर इन लोगों की मांग है कि संविधान और कानून में राज्य ने जो वचनबद्धता प्रकट की है उसे वह पूरा करें । परिणामस्वरूप आज हमारे समक्ष विश्व सामाजिक फोरम जैसे संगठन मौजूद हैं ।