Read this article in Hindi to learn about the eight major security issues of the world. The issues are:- 1. आतंकवाद (Terrorism) 2. मानवाधिकारों का उल्लंघन (Violation of Human Rights) 3. निर्धनता, कुपोषण तथा भुखमरी (Poverty, Malnutrition and Starvation) 4. प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters) 5. समुद्री सुरक्षा (Maritime Security) 6. शरणार्थी समस्या (Refugee Problem) and Other Details.

Issue # 1. आतंकवाद (Terrorism):

वर्तमान में विश्व समुदाय ने आतंकवाद को सुरक्षा की प्रमुख चुनौती माना है । आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य जनता में भय व आतंक उत्पन्न कर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करना है । आतंकवाद का मुख्य तत्व उसकी गतिविधियों की गोपनीयता व अनिश्चितता है ।

इसीलिये परम्परागत सुरक्षा उपायों से इस चुनौती का सामना नहीं किया जा सकता है । वैसे तो आतंकवाद व संगठित अपराधों का अस्तित्व सदैव रहा है, लेकिन 1990 के दशक से इस समस्या ने विश्व चुनौती का रूप धारण कर लिया है । 11 सितम्बर, 2001 को अलकायदा संगठन के आतंकवादियों ने अमेरिका के न्यूयार्क शहर स्थित विश्व व्यापार केन्द्र की इमारत को अपहृत विमान से टकराकर ध्वस्त कर दिया था । इस घटना से व्यापक जन-धन की हानि हुई ।

साथ ही विश्व समुदाय की चिन्ता भी बढ़ गयी । अलकायदा के आतंकवादियों का गढ़ अफगानिस्तान था तथा उन्हें वहाँ की तालिबान सरकार का समर्थन प्राप्त था । अत: अमेरिका तथा नाटो की सेनाएँ दिसम्बर 2001 में अफगानिस्तान भेजी गयीं तथा वहाँ अलकायदा के आतंकवादी नेटवर्क का सफाया किया गया ।

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यद्यपि अलकायदा के मुखिया ओसामा बिन लादेन को 2011 में पाकिस्तान में अमेरिकी सेनाओं द्वारा मार दिया गया है, लेकिन अलकायदा संगठन का आतंकी नेटवर्क विश्व के कई अरब देशों में विद्यमान है ।

भारत भी 1990 के दशक से ही आतंकवाद की समस्या से ग्रसित है । पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तायबा व जैश-ए-मोहम्मद ने भारत में विशेषकर जम्मू व कश्मीर राज्य में अपनी जड़ें जमा रखी हैं तथा कई आतंकवादी घटनाओं को अंजाम दिया है ।

दिसम्बर 1999 में ये आतंकवादी काठमाण्डू से एक भारतीय विमान का अपहरण कर अफगानिस्तान के शहर कंधार ले गये थे । भारत में बद तीन आतंकवादियों को रिहा करने की शर्त पर ही इस विमान को मुक्त किया गया । इसके साथ ही आतंकवादियों ने दिसम्बर 2001 में भारतीय संसद तथा सितम्बर 2008 में मुम्बई के ताजमहल होटल एण्ड पैलेस पर हमला किया था । इसके अलावा अन्य कई आतंकवादी घटनाएँ भारत में हो चुकी हैं ।

अत: वर्तमान में आतंकवाद वैश्विक सुरक्षा की प्रमुख चुनौती है । भारत सहित विश्व समुदाय के सभी देश व संयुक्त राष्ट्र संघ इस चुनौती का सामना करने के लिये कटिबद्ध हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2013 तक आतंकवाद से निबटने के लिये 12 कानूनी उपाय अपनाये हैं । सुरक्षा परिषद् ने 26 सितम्बर 2001 को आतंकवादियों के वित्तीय साधनों पर रोक लगाने के लिये प्रस्ताव संख्या 1373 स्वीकर किया था तथा इसके क्रियान्वयन हेतु आतंकवाद रोधी समिति की स्थापना की थी ।

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2002 में महासभा ने प्रस्ताव संख्या 57/83 के द्वारा आतंकवादियों द्वारा नरसंहारक हथियारों की प्राप्ति पर रोक लगाने का संकल्प लिया था । 2002 में ही आतंकवाद विरोधी वैश्विक प्रोजेक्ट को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लागू किया गया था । 2004 के सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव 1545 द्वारा राज्यों को आतंकवादी संगठनों को किसी प्रकार की मदद न देने का प्रस्ताव पारित किया गया था ।

2005 में आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये महासभा ने एक नयी सन्धि को भी स्वीकार किया था । 2006 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकवाद रोधी वैश्विक रणनीति को भी स्वीकार किया गया है ।

वर्तमान में एक व्यापक सन्धि महासभा में विचार हेतु लम्बित है । राष्ट्रीय स्तर पर भी विभिन्न देशों द्वारा आतंकवाद को रोकने के लिये कानूनी प्रशासनिक तथा सैनिक उपाय अपनाये गये हैं । इसके बावजूद भी विश्व आतंकवाद की समस्या से सुरक्षित नहीं है । देशों के मध्य इस सम्बन्ध में अधिक सक्रिय सहयोग की आवश्यकता है ।

Issue # 2. मानवाधिकारों का उल्लंघन (Violation of Human Rights):

समकालीन युग में विश्व के विभिन्न देशों में मानवाधिकारों का उल्लंघन विश्व में सुरक्षा की एक प्रमुख चुनौती है । द्वितीय विश्व युद्ध के अनेक कारणों में एक प्रमुख कारण जर्मनी तथा इटली में तानाशाही शासन का होना तथा नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होना है ।

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इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में मानव गरिमा तथा अधिकारों पर विश्वास व्यक्त किया गया तथा महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार किया । इसीलिये विश्व में 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है ।

मानवाधिकारों के प्रकार:

मानवाधिकारों की सार्वभौमिक उक्त घोषणा में पाँच प्रकार के मानवाधिकारों को शामिल किया गया है:

(अ) नागरिक अधिकार:

नागरिक अधिकारों के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भ्रमण की स्वतंत्रता संघ बनाने की स्वतंत्रता राष्ट्रीयता प्राप्त करने की स्वतंत्रता तथा शरण पाने की स्वतंत्रता के अधिकारों को शामिल किया गया है । ये वे अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति को नागरिक के रूप में प्राप्त होते हैं ।

(ब) राजनीतिक अधिकार:

मानव के राजनीतिक अधिकारों में राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने का अधिकार तथा सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने का समान अधिकार शामिल किये गये हैं । राजनीतिक अधिकार एक लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करते हैं ।

(स) आर्थिक अधिकार:

आर्थिक मानवाधिकारों में पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार सम्पत्ति का अधिकार विश्राम का अधिकार तथा विपत्ति में सामाजिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार आदि को शामिल किया गया है ।

(द) सामाजिक अधिकार:

सामाजिक श्रेणी के मानव अधिकारी में शिक्षा का अधिकार तथा परिवार बसाने के अधिकार को स्थान दिया गया है ।

(य) सांस्कृतिक अधिकार:

सांस्कृतिक अधिकारों में अपने समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार तथा सांस्कृतिक व वैज्ञानिक विकास के फलस्वरूप प्राप्त नैतिक व भौतिक हितों के संरक्षण का अधिकार शामिल है ।

इन अधिकारों को विधिक रूप से लागू करने के लिये 1966 में दो अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों पर हस्ताक्षर किये गये । इन सन्धियों को अभिसमय कहा जाता है । इसी तरह कतिपय विशिष्ट अधिकारों जैसे जातीय भेदभाव के विरुद्ध अधिकार महिलाओं बच्चों विकलांगों प्रवासी मजदूरों शरणार्थियों व बन्दियों के अधिकारों के संबन्ध में समय-समय पर अलग सन्धियों पर हस्ताक्षर किये गये हैं ।

इस प्रकार के कुल नौ अभिसमयों पर अभी तक देशों द्वारा हस्ताक्षर किये जा चुके हैं । इन अधिकारों तथा सार्वभौमिक घोषणा को संयुक्त रूप से मानवाधिकारों की विश्व संहिता की संज्ञा दी जाती है । संयुक्त राष्ट्र संघ ने इन मानवाधिकारों की रक्षा के लिये निरन्तर प्रयास किये हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की है ।

2006 में इसके स्थान पर अधिक अधिकार प्राप्त संस्था मानवाधिकार परिषद की स्थापना की गयी है । यह परिषद् विभिन्न देशों में अपने जाँचकर्ता भेजकर मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करती है तथा अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा को प्रस्तुत करती है । यदि कोई राष्ट्र मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है तो सुरक्षा परिषद् उसके विरुद्ध सैनिक कार्यवाही भी कर सकती है ।

इसके अतिरिक्त कतिपय गैर-सरकारी स्वैच्छिक विश्व संस्थाएँ जैसे एमनेस्टी इण्टरनेशनल, ह्यूमन राइट्‌स वॉच आदि भी मानवाधिकारों की रक्षा हेतु प्रयासरत हैं । विभिन्न देशों ने राष्ट्रीय स्तर भी मानवाधिकारों की रक्षा के लिये अलग मानवाधिकारों की स्थापना की है ।

मानवाधिकारों का उल्लंघन अब किसी देश की आन्तरिक समस्या नहीं रह गया है । मानवाधिकारों व लोकतंत्र की रक्षा के लिये विश्व समुदाय व सुरक्षा परिषद अब किसी देश के आन्तरिक मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकते हैं । इसी आधार पर अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों ने 2003 में इराक में तथा 2012 में लीबिया में संयुक्त सैनिक कार्यवाही की थी । इन सैनिक कार्यवाहियों को सुरक्षा परिषद का भी समर्थन प्राप्त था ।

निष्कर्ष यह है कि मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन विश्व व क्षेत्रीय शान्ति को खतरा उत्पन्न कर सकता है । अत: विश्व सुरक्षा के लिए मानवाधिकारों की रक्षा आवश्यक है ।

भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के प्रयास (Attempts to Protect Human Rights in India):

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है तथा भारतीय संविधान में समानता, न्याय व स्वतंत्रता के मूल्यों को शामिल किया गया है ।

आजादी के बाद भारत में मानवाधिकारों के संरक्षण से संबंधित निम्न उपाय किये गये हैं:

1. भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर हस्ताक्षर किये हैं तथा मानव गरिमा व उसके अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है । समय-समय पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रस्तावित सभी संधियों पर भारत ने हस्ताक्षर कर दिये हैं । भारत वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद का सदस्य है तथा सक्रिय भूमिका निभा रहा है ।

2. भारत के संविधान में भाग 3 में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया गया है, जिसमें स्वतंत्रता समानता, धार्मिक स्वतंत्रता तथा अल्पसंख्यकों के विशेष अधिकारों को शामिल किया गया है ।

3. भारत के संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में नागरिकों के सामाजिक व आर्थिक अधिकारों को स्थान दिया गया है तथा एक समतापूर्ण समाज की स्थापना का संकल्प लिया गया है ।

4. भारत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों तथा समाज के कमजोर वर्गों जैसे महिलाओं, बच्चों, विकलांगों आदि के विशेष अधिकारों की रक्षा हेतु कदम उठाये गये हैं । इन कदमों में प्रतिनिधि, संस्थाओं व प्रशासनिक सेवाओं में आरक्षण के साथ-साथ विशेष आर्थिक सहायता के उपाय भी शामिल हैं ।

5. 1993 में संसद के एक कानून द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गयी है । मानवाधिकार के उल्लंघन के मामले में इस आयोग को सिविल कोर्ट की शक्तियों प्राप्त हैं । यह आयोग उल्लंघन के मामलों की जाँच कर सरकार को उचित कार्यवाही हेतु अपनी संस्तुति प्रस्तुत करता है ।

6. भारत में प्रेस की स्वतंत्रता, स्वैच्छिक संगठनों तथा मानवाधिकार की संस्थाओं के माध्यम से भी इन अधिकारों की रक्षा का प्रयास किया जाता है ।

Issue # 3. निर्धनता, कुपोषण तथा भुखमरी (Poverty, Malnutrition and Starvation):

विश्व में व्याप्त निर्धनता व भुखमरी मानव सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है । संयुक्त राष्ट्र सघ के आकड़ों के अनुसार प्रतिदिन 1.25 डॉलर से कम आय वाले व्यक्तियों को गरीब माना गया है तथा विश्व में ऐसे व्यक्तियों की संख्या लगभग 50 प्रतिशत है, जोकि अधिकांशत: एशिया व अफ्रीका के गरीब देशों में केन्द्रित हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकड़ों के अनुसार 2012 में विश्व के 840 मिलियन लोग भुखमरी के शिकार हैं ।

विश्व खाद्य दिवस प्रतिवर्ष 16 अक्टूबर को मनाया जाता है तथा 2013 में इसकी मुख्य थीम ‘खाद्य सुरक्षा’ रखी गयी थी । 2012 में भारत के नवीनतम कड़ी के अनुसार देश की 28 प्रतिशत जनता गरीबी के नीचे निवास कर रही है । गरीबी की समस्या सामाजिक तनाव तथा सिविल युद्ध को जन्म दे सकती है । यदि विश्व के अधिकांश देशों में गरीबी और भुखमरी की समस्या भयावह हो जाती है तो यह विश्व सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है ।

कुपोषण व महामारी भी विश्व शान्ति व सुरक्षा की नई चुनौतियों में से एक है । गरीब देशों की अधिकांश जनसंख्या विशेषकर बच्चे व महिलाएँ कुपोषण के शिकार हैं । एड्‌स की समस्या ने मानव सुरक्षा के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है । विश्व के लोगों के मध्य बढ़ती अन्त क्रिया के कारण कोई भी छुआछूत की महामारी वैश्विक चुनौती बन सकती है ।

यद्यपि पोलियो प्लेग व मलेरिया जैसी महामारियों पर विश्व समुदाय द्वारा काफी हद तक काबू पाया जा चुका है, लेकिन बच्चों व महिलाओं का कुपोषण तथा एड्‌स जैसी नई बीमारियाँ मानव सुरक्षा के लिये अब भी चुनौती बनी हुयी हैं ।

इसके लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तथा प्रतिरोधात्मक उपायों को अपनाये जाने की आवश्यकता इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए विश्व समुदाय द्वारा गरीबी तथा भुखमरी के निवारण के लिए समय-समय पर विभिन्न उपाय किये गये हैं । वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा 8 विकास लक्ष्यों को सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों में शामिल किया गया है ।

इन लक्ष्यों को 2015 तक प्राप्त किया जाना है । इन विकास लक्ष्यों में गरीबी निवारण तथा भुखमरी व महामारी के साथ-साथ कुपोषण को कम करने के लक्ष्य भी शामिल हैं । लक्ष्यों की प्रगति का जायजा लेने के लिए 2005 और 2010 में दो विश्व सम्मेलन भी आयोजित किये जा चुके हैं । इसके अतिरिक्त विभिन्न देशों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर भी इन चुनौतियों के समाधान हेतु उपाय किये गये हैं ।

भारत में 1970 के दशक से ही गरीबी निवारण को पंचवर्षीय योजनाओं में स्थान दिया गया है । 2013 में भारत ने गरीब जनता को भोजन उपलब्ध कराने के लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम भी पारित किया है । इसके अतिरिक्त भारत में कुपोषण व मुख्य महामारियों से निबटने के लिये कई राष्ट्रीय कार्यक्रम व अभियान चलाये हैं । व्यापक स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास किया गया है तथा इनसे बचने के लिये जनता में जागरूकता अभियान चलाया गया है ।

Issue # 4. प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters):

विद्वानों के अनुसार विकास की वर्तमान रणनीति का एक दुष्परिणाम पर्यावरण संतुलन में आयी गड़बड़ी है । वन सम्पदा के विनाश जैव विविधता की कमी तथा पर्यावरण प्रदूषण के कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है । जलवायु परिवर्तन इसी का परिणाम है ।

इसका परिणाम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखा जाता है । ये प्राकृतिक आपदाएँ बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूस्खलन, भूकम्प आदि के रूप में देखी जाती हैं । एशिया प्रशान्त क्षेत्र में 2004 में आयी सुनामी अर्थात् समुद्री भूकम्प के कारण जन-धन की व्यापक स्तर पर हानि हुई थी । 2013 में ही फिलीपीन्स, इण्डोनेशिया, अमेरिका तथा भारत जैसे देशों में समुद्री चक्रवातों ने तबाही का दृश्य प्रस्तुत किया है ।

जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून का चक्र असंतुलित हो गया है तथा विश्व के तमाम देशों में सूखा व अतिवृष्टि की समस्याएँ भी सामने आ रही हैं । मानसून पर आधारित कृषि के लिए यह एक गंभीर संकेत हैं । जलवायु परिवर्तन का कारण कार्बन डाइऑक्साइड के कारण विश्व के तापमान में आयी वृद्धि है ।

इससे ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है तथा समुद्र का जल स्तर बढ़ने की आशंका उत्पन्न हो गयी है । इससे समुद्र के तटीय क्षेत्रों में निवास कर रही जनता का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । प्राकृतिक आपदाओं की उक्त समस्या मानव सुरक्षा के लिए घातक है ।

1970 के दशक से ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व स्तर पर पर्यावरण सुरक्षा के प्रयास किये जा रहे हैं । 1992 में इस संबंध में ब्राजील के शहर रियो में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन भी बुलाया गया था । वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में जलवायु परिवर्तन वार्ताओं का आयोजन किया जा रहा है ।

अभी इस संबंध में विश्व तापमान को कम करने के लिए देशों के मध्य किसी बाध्यकारी समझौते पर सहमति नहीं बन सकी है । उम्मीद यह है कि 2015 तक जलवायु परिवर्तन के संबंध में प्रदूषणकारी गैसों को कम करने के लिए किसी बाध्यकारी समझौते को लागू किया जा सकेगा ।

भारत भी पर्यावरण के संरक्षण व प्राकृतिक आपदाओं की समस्या से ग्रसित है । 2013 में उत्तराखंड में आयी अतिवृष्टि व भूस्खलन के कारण हजारों लोगों की जान जा चुकी है । भारत में पर्यावरण की रक्षा करना सरकार का एक दायित्व माना गया है ।

भारत ने 2008 में जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की है । इसके साथ ही भारत में 2005 में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए प्राकृतिक आपदा प्रबन्धन अधिनियम भी पारित किया गया है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय प्रादेशिक व जिला स्तर पर आपदा प्रबन्धन संस्थाओं की स्थापना की गयी है ।

Issue # 5. समुद्री सुरक्षा (Maritime Security):

विश्व का अधिकांश व्यापार समुद्री मार्गों से होता है । साथ ही संचार के लिए भी विश्व में समुद्री मार्गों का प्रयोग किया जाता है । अत: समुद्री मार्गों की सुरक्षा विश्व व्यापार विकास व शांति के लिए आवश्यक है । वर्तमान में समुद्री डकैती की समस्या हिन्द महासागर में अरब की खाड़ी तथा प्रशान्त महासागर में मलक्का की खाड़ी में गंभीर रूप धारण कर रही है ।

इससे विश्व व्यापार असुरक्षित हो गया है । सोमालिया के पास स्थित समुद्री क्षेत्रों में वहाँ की राजनीतिक अस्थिरता के कारण तेल के कई व्यापारिक जहाजों का अपहरण किया जा चुका है । अत: समुद्री सुरक्षा का सम्बन्ध विश्व की ऊर्जा सुरक्षा से भी है, क्योंकि समुद्री मार्गों द्वारा ही ऊर्जा की आपूर्ति की जाती है ।

विश्व समुदाय समुद्री सुरक्षा को सुरक्षित करने के लिए चिंतित है । इस संबंध में राष्ट्रों द्वारा आवश्यक सूचनाओं के आदान-प्रदान संयुक्त सैनिक अभ्यास तथा नौसेना की तैनाती जैसे उपाय किये गये हैं । विश्व समुदाय के देशों में समुद्री सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए आम सहमति बन चुकी है तथा विभिन्न क्षेत्रीय व वैश्विक संगठनों द्वारा इस चुनौती से निपटने के लिए सहयोगात्मक उपाय किये जा रहे हैं ।

Issue # 6. शरणार्थी समस्या (Refugee Problem):

शरणार्थी का तात्पर्य है- एक देश के नागरिकों द्वारा विभिन्न कारणों से बाध्य होकर दूसरे देश में निवास करने के लिए चला जाना । संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनाइटेड नेशन्स हाई कमीशन फार रिफ्‌यूजीज- यू. एन. एच. सी. आर. के अनुसार 2012 में 15.4 मिलियन लोग दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इन शरणार्थियों में बच्चों तथा महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है ।

2013 में अफगानिस्तान शरणार्थियों का विश्व में सबसे बड़ा स्रोत है । वर्तमान में सीरिया संकट के कारण भी वहाँ के लाखों लोग पड़ोसी देशों में शरणार्थी जीवन व्यतीत कर रहे हैं । 1970 के दशक में वियतनाम युद्ध के कारण हजारों की तादाद में शरणार्थी नावों के द्वारा दूसरे देशों में पलायन कर गये थे । इन्हें बोट पीपुल्स के नाम से जाना जाता है । अफ्रीका व एशिया के देशों में शरणार्थियों की समस्या अधिक गंभीर है ।

शरणार्थी दो प्रकार के होते हैं:

प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय शरणार्थी जो एक देश को छोड्‌कर दूसरे देश में शरणार्थी का जीवन व्यतीत करते हैं तथा दूसरा आन्तरिक विस्थापित शरणार्थी जो देश के एक हिस्से को छोड्‌कर उसी देश के दूसरे क्षेत्रों में विस्थापित नागरिकों का जीवन व्यतीत करते हैं ।

उदाहरण के लिए भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से देश के दूसरे हिस्सों में हिन्दुओं का पलायन आन्तरिक विस्थापित शरणार्थी की श्रेणी में आता है । शरणार्थियों की समस्या उनके अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ सम्बन्धित देशों में शांति व सुरक्षा से भी जुड़ी है । शरणार्थियों की समस्या शरण प्राप्त करने वाले देश में भी शांति व व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर सकती है ।

संक्षेप में शरणार्थी समस्या के उत्पन्न होने के निम्न कारण हैं:

(i) गरीबी व भुखमरी:

गरीबी व भुखमरी की विषम स्थिति में जनता एक देश से दूसरे देश में शरणार्थी के रूप में चली जाती है । इसका प्रमुख कारण यह है कि नये स्थान पर उन्हें भोजन तथा जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं के बेहतर अवसर उपलब्ध हो जाते हैं । अफ्रीका के कई देशों में इस तरह के शरणार्थियों की भरमार है । भारत में भी बांग्लादेश से गरीबी के कारण शरणार्थी बड़ी संख्या में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बस गये हैं ।

(ii) गृह युद्ध व आन्तरिक अशान्ति:

अफ्रीका और एशिया के कई देश जातीय संघर्ष व आन्तरिक सिविल वार की समस्याओं से ग्रसित हैं । इन देशों के नागरिक ऐसी स्थिति से बचने के लिए दूसरे देशों में शरणार्थी के रूप में चले जाते हैं ।

(iii) राजनीतिक उत्पीड़न:

कई बार सरकार द्वारा अपने विरोधियों का जातीय आधार पर राजनीतिक उत्पीड़न किया जाता है तथा उत्पीडित समुदाय के लोग सुरक्षा के लिए दूसरे देशों में चले जाते हैं । उदाहरण के लिए बांग्लादेश के चकमा समुदाय के शरणार्थी सुरक्षा की दृष्टि से भारत में चले आये थे ।

चकमा शरणार्थी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं तथा उत्पीड़न के कारण उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी थी । जिन देशों में तानाशाही सरकारें हैं तथा जातीय आधार पर भेदभाव विद्यमान है वहाँ इस तरह के उत्पीड़न की समस्या अधिक है । उदाहरण के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी में यहूदियों का राजनीतिक उत्पीड़न किया गया तथा यहूदी दूसरे देशों में शरणार्थी का जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य हो गये । एक अनुमान के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध के समय 50 लाख से अधिक यहूदी दूसरे देशों में शरणार्थी बन गये थे ।

(iv) प्राकृतिक आपदाओं के कारण:

प्राकृतिक आपदाएँ भी शरणार्थी समस्या के लिए उत्तरदायी हैं । प्राकृतिक आपदाओं के कारण जनसंख्या सुरक्षित स्थानों के लिए पलायन कर जाती है तथा शरणार्थी के रूप में जीवन व्यतीत करती है । अकाल, भुखमरी, बाढ़ तथा भूकम्प आदि के कारण बड़ी संख्या में लोग बेघर हो जाते हैं तथा इनसे बचने के लिए सुरक्षित स्थानों में चले जाते हैं ।

शरणार्थी समस्या से निपटने के लिए विश्व समुदाय द्वारा समय-समय पर विशेष उपाय किये गये हैं संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक उपायों में समायोजन के लिए हाई कमिश्नर की नियुक्ति भी की गयी है । शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा के लिए 1966 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक संधि भी तैयार की गयी थी जिस पर अभी तक 125 देशों ने हस्ताक्षर कर दिये हैं ।

इसके अतिरिक्त कई स्वैच्छिक संस्थाएँ जैसे- रेडक्रॉस सोसाइटी भी शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा व कल्याण के लिए प्रयासरत् है । राजनीतिक शरणार्थियों को अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्तर्गत शरण पाने का अधिकार भी प्राप्त है । शरणार्थी समस्या का समुचित प्रबन्धन आवश्यक है । अन्यथा यह समस्या मानव सुरक्षा के लिए एक खतरा बन सकती है ।

Issue # 7. साइबर सुरक्षा (Cyber Security):

वर्तमान युग संचार क्रांति का युग है, जिसमें कम्प्यूटर तथा इंटरनेट का प्रयोग सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ प्रशासनिक प्रबन्धन के लिए किया जाता है । लेकिन आपराधिक तत्व संचार प्रणाली में छेड़छाड़ कर साइबर सुरक्षा की चुनौती उत्पन्न कर सकते हैं । वर्तमान में अधिकांश देशों की रक्षा प्रणाली आधुनिक संचार साधनों पर निर्भर है । यदि साइबर सुरक्षा के उचित उपाय नहीं किये गये तो ये सुरक्षा प्रणाली ध्वस्त हो सकती है ।

साइबर सुरक्षा का संबंध नागरिकों के निजी जीवन की गोपनीयता के साथ-साथ सरकारों के क्रियाकलापों की गोपनीयता से भी है । 2013 में यह तथ्य सामने आया है कि अमेरिका के द्वारा अन्य देशों की कूटनीतिक गतिविधियों की जानकारी गोपनीय तरीके से प्राप्त की जा रही थी । इनमें इंटरनेट सुविधाओं का दुरुपयोग किया गया था ।

अमेरिका के पूर्व रक्षा कर्मचारी एडवर्ड स्नोडेन ने यह रहस्योद्‌घाटन किया है तथा वर्तमान में उसने रूस में शरण प्राप्त कर रखी है । जबकि अमेरिका उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही करना चाहता है । भारत ने साइबर सुरक्षा के लिए 2000 में सूचना तकनीकि अधिनियम पारित किया था तथा 2013 में एक नई साइबर सुरक्षा नीति की घोषणा की है ।

Issue # 8. सुरक्षा की अन्य नई चुनौतियाँ (Other Security Challenges):

उक्त चुनौतियों के अतिरिक्त वर्तमान में सुरक्षा की कतिपय अन्य नई चुनौतियाँ जैसे- ऊर्जा सुरक्षा, जलापूर्ति, संगठित अपराध, हथियारों मुद्रा तथा नशीली दवाओं का अवैध व्यापार भी महत्त्वपूर्ण है । सभी देशों का आर्थिक विकास व सुरक्षा ऊर्जा संसाधनों की सुरक्षा पर निर्भर करती है ।

स्वयं भारत अपनी 70 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकता के लिए विदेशों पर निर्भर है । अंत: अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए उसे ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है । इसी प्रकार स्वच्छ जल मानव जीवन की आधारभूत आवश्यकता है ।

बढ़ती जनसंख्या तथा प्रदूषण के कारण कई क्षेत्रों में स्वच्छ जल की उपलब्धता का संकट भी उत्पन्न हो सकता है । इसके अलावा जल का प्रयोग सिंचाई तथा औद्योगिक कार्यों में किया जाता है । अत: जल की सुरक्षा मानव सुरक्षा का आवश्यक तत्व है ।

आतंकवाद के कारण अवैध हथियारों तथा नशीली दवाओं का व्यापार भी बढ़ रहा है । उदाहरण के लिए भारत और नेपाल के बीच खुली सीमा है तथा नकली मुद्रा व अवैध हथियारों के व्यापार को रोकना एक बड़ी चुनौती है ।

इसी तरह 2008 से चल रहे विश्व वित्तीय संकट ने वैसे तो विश्व के सभी देशों को प्रभावित किया है, लेकिन यूरोपीय देशों जैसे यूनान व इटली में वर्तमान में यह समस्या सामाजिक व राजनीतिक तनाव एवं आर्थिक अस्थिरता का मुख्य कारण है । कई देशों में सरकार की नीतियों के विरुद्ध जन आन्दोलन भी चलाये गये हैं । अतः आर्थिक व वित्तीय संकट भी मानव सुरक्षा को प्रभावित करते हैं ।