Read this article in Hindi to learn about the rise and fall of political parties in India.

1990 के दशक में भारत के राजनीतिक दलों के प्रभाव तथा जनाधार व्यापक परिवर्तन दिखाई देता है । 1989 के बाद जहाँ कांग्रेस के जनाधार गिरावट देखी गयी, वहीं अन्य दलों जैसे जनता दल तथा विशेषकर भारतीय जनता पार्टी के जनाधार में निरन्तर वृद्धि देखी गयी ।

इस बदलाव के कारण जहाँ कांग्रेस के वर्चस्व अथवा ‘कांग्रेस सिस्टम’ का अन्त हुआ वहीं भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभरकर सामने आयी है । इस काल में भारत की दल प्रणाली में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव क्षेत्रीय दलों का भारतीय राजनीति में बढ़ता हुआ प्रभाव है ।

वर्तमान में क्षेत्रीय दल में राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में आ गये हैं । इन बदलावों के कारण कोई भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल केन्द्र में अकेले अपने बलबूते पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है । इसका परिणाम केन्द्र में गठबन्धन की राजनीति के रूप में देखने में आया है । अत: इस काल में दलों के उत्थान व पतन पर गौर करना आवश्यक है ।

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1990 के बाद भारतीय राजनीति में उभरती नई प्रवृत्तियाँ (After 1990 New Trends Emerging in Indian Politics):

1990 के बाद भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाली प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं:

(i) दल प्रणाली में बदलाव- ‘कांग्रेस सिस्टम’ का अन्त तथा कांग्रेस का पतन; भारतीय जनता पार्टी का उदय; क्षेत्रीय दलों का बढ़ता महत्त्व तथा गठबन्धन की राजनीति की शुरुआत ।

(ii) पिछड़ी जातियों का बढ़ता राजनीतिक प्रभाव- मंडल की राजनीति ।

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(iii) दलित सशक्तीकरण- बहुजन समाज की राजनीति व सोशल इंजीनियरिंग ।

(iv) साम्प्रदायिक राजनीति का उबाल- लोकतंत्र तथा पंथनिरपेक्षता की नयी चुनौती ।

(v) सत्ता का विकेन्द्रीकरण- नयी पंचायती राज व्यवस्था जिसके अन्तर्गत 1992 में 73वें संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों को अधिक शक्तियाँ तथा अधिकार प्रदान किये गये हैं । ये संस्थाएं ग्रामीण जनता के सशक्तीकरण तथा लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के मुख्य साधन हैं ।

(vi) नयी आर्थिक ज्वारवादी नीतियाँ, 1991- निजीकरण, विदेशी पूँजी तथा बाजारू शक्तियों को बढ़ावा तथा अर्थव्यवस्था पर राज्य के नियंत्रण में कमी ।

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(vii) ‘नयी राजनीति’ का उदय- आम आदमी पार्टी की नयी राजनीतिक संस्कृति ।

(अ) कांग्रेस का पतन (Fall of Congress):

1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस में उत्तराधिकार के प्रश्न को शीघ्र ही सुलझा लिया गया था तथा राजीव गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता नियुक्त किया गया था । इन्दिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति के कारण 1984 में 8वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी सफलता प्राप्त हुई ।

अब तक के राजनीतिक इतिहास में उसे लोकसभा में सबसे अधिक 415 स्थान प्राप्त हुये । इस भारी सफलता के बाद राजीव गांधी कांग्रेस की सरकार में प्रधानमंत्री बने । उनके कार्यकाल में जनता को प्रगतिशील नीतियों की उम्मीद थी । कई मामलों में सरकार द्वारा नई पहल करते हुए समस्याओं के समाधान के प्रयास किये गये ।

इन प्रयासों में प्रमुख हैं- 1985 में दल-बदल विरोधी कानून, पंजाब समस्या के समाधान के लिए 1985 का राजीव गांधी-लोंगोवाल समझौता, असम समस्या के समाधान के लिए 1985 में सम्पन्न हुआ, असम समझौता श्रीलंका में शांति स्थापना के लिए 1987 में श्रीलंका के साथ हुये समझौते के अंतर्गत भारतीय सेनाओं की नियुक्ति आदि । इन सभी प्रयासों में व्यावहारिक दृष्टि से सरकार को वांछित सफलता प्राप्त नहीं हुई ।

अत: शीघ्र ही सहानुभूति की लहर कमजोर पड़ गयी तथा जनता में असंतोष उपजने लगा । इस सरकार पर बोफोर्स तोप घोटाला तथा अन्य मामलों में भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाये गये । परिणाम यह हुआ कि 1989 तक आते-आते सरकार की लोकप्रियता घट गयी तथा जनता में बदलाव की इच्छा प्रबल हो गयी ।

(ब) भारतीय जनता पार्टी का उदय (Rise of Bharatiya Janta Party):

1980 व 1990 के दशकों में राष्ट्रीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का एक राष्ट्रीय दल के रूप में उदय एक महत्वपूर्ण घटना है । भारतीय जनता पार्टी पूर्ववर्ती जनसंघ पार्टी का नया रूप है । 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया था, लेकिन 1979 में जनता पार्टी का विघटन हो गया ।

जनसंघ के नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी नाम से एक नयी पार्टी का गठन किया । अटल बिहारी वाजपेयी इसके पहले अध्यक्ष थे । यह पार्टी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद गांधीवादी समाजवाद वास्तविक धर्मनिरपेक्षता आदि विचारों में आस्था रखती है । विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी पर हिन्दुत्ववादी अथवा साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाते रहे हैं ।

1984 के चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में चल रही सहानुभूति लहर के कारण भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा में केवल 2 स्थान प्राप्त हुये । भारतीय जनता पार्टी ने 1989 के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था तथा उसके सहयोग से ही केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार का गठन किया गया था ।

1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनाधार में वृद्धि की है । 1996 में भारतीय जनता पार्टी को केन्द्र में सरकार बनाने का अवसर प्राप्त हुआ, लेकिन बहुमत के अभाव में यह सरकार केवल 13 दिन ही चल सकी । पुन: 1998 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन की सरकार बनी लेकिन यह सरकार भी 13 महीने तक ही चल पायी ।

1999 के लोकसभा चुनावों में उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन को बहुमत प्राप्त हुआ तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने । इस सरकार ने अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया । वर्तमान में भारतीय जनता पाटी लोक सभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है तथा इस पार्टी की नेता सुषमा स्वराज लोक सभा में विपक्ष की नेता हैं ।

भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश आदि में अपने जनाधार को विस्तार किया है तथा इन राज्यों में वह एक प्रमुख दल के रूप मैं कार्यरत् है । दक्षिण राज्यों में कर्नाटक में उसने अपने जनाधिकार का विस्तार किया है । इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश में भी उसे कुछ सफलता मिली है ।

पंजाब में अकाली दल के गठबन्धन के कारण भारतीय जनता पार्टी प्रभावपूर्ण स्थिति में है । 2007 व 2012 में गुजरात में तथा 2008 में कर्नाटक में उसे सरकार बनाने में सफलता मिली । इसके अलावा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश में वह कई बार सरकार का गठन कर चुकी है ।

राष्ट्रीय राजनीति में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के एक राष्ट्रीय विकल्प के रूप में स्थापित है । एक अर्थ में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के टूटते जनाधार का एक बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में कर किया है । 2014 के लोक सभा चुनावों के लिये पार्टी ने गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया है ।

भारतीय जनता पार्टी के उदय व विकास में कई कारण उत्तरादायी थे-कांग्रेस का गिरता जनाधार, कांग्रेस सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार, शाहबानो मामला, अयोध्या विवाद, पार्टी की स्वच्छ छवि आदि ।

जनता दल की स्थापना (Establishment of Janata Dal):

जनता दल की स्थापना विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा की गयी थी । वे कांग्रेस सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार विशेषकर बोफोर्स तोप घोटाला का विरोध करते हुए कांग्रेस से अलग हो गये थे । उन्होंने पहले जनमोर्चा नामक संगठन बनाया तथा बाद में अन्य दलों के सहयोग से जनता दल की स्थापना की ।

1989 में जनता दल के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया गया जिसे 1989 के चुनावों में सफलता मिली तथा विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री नियुक्त किये गये । नवम्बर 1990 में लोकसभा में विश्वास मत न हासिल करने के कारण उनकी सरकार गिर गयी तथा जनता दल राजनीति में प्रभावहीन हो गया । इसके अन्य नेताओं जैसे लालूप्रसाद यादव, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार, जॉर्ज फर्नान्डीज आदि ने या तो दूसरी पार्टियों की स्थापना कर ली है या किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो गये हैं ।

(स) क्षेत्रीय दलों की बढ़ती राष्ट्रीय भूमिका (National Role of Regional Parties):

भारत क्षेत्रीय विभिन्नताओं वाला देश है । भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में क्षेत्रीयता की भावना आजादी के बाद से ही प्रबल होने लगी थी । 1956 में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के कारण क्षेत्रीयता की भावना और मजबूत हुई ।

इसके परिणामस्वरूप कई राज्यों में क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आये अथवा पुराने क्षेत्रीय दलों के जनाधार का विस्तार हुआ । तमिलनाडु में द्रविड मुनेत्र कडगम तथा अन्ना द्रविड मुनेत्र कडगम, पंजाब में अकाली दल का विस्तार, जम्मू व कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस आदि पूर्व से ही कार्यरत थे ।

1980 के दशक में तीन प्रमुख पार्टियाँ:

(i) 1983 में तेलगू देशम,

(ii) 1984 में बहुजन समाज पार्टी, तथा

(iii) 1985 में असम में असम गण परिषद अस्तित्व में आयीं ।

1990 के दशक में कतिपय नये क्षेत्रीय दलों के उद्‌भव के साथ ही इनके दलों के प्रभाव में अत्यंत वृद्धि हुई । 1990 के पहले क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय राजनीति में ही भूमिका निभाते थे, लेकिन 1990 के बाद गठबन्धन की सरकारों का जो क्रम आरंभ हुआ, उसमें क्षेत्रीय राजनीतिक दल राष्ट्रीय भूमिका निभाने की स्थिति में आ गये । वर्तमान समय में केन्द्र के दोनों बड़े गठबन्धनों- राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन में क्षेत्रीय दलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है ।

इस काल में गठित कतिपय नए प्रभावशाली क्षेत्रीय दलों का विवरण नीचे दिया जा रहा है:

(i) तेलगू देशम पार्टी (Telugu Desam Party):

इस पार्टी की स्थापना 1983 में फिल्म अभिनेता एन.टी. रामाराव द्वारा की गयी थी । यह पार्टी आन्ध्र प्रदेश में एक प्रमुख क्षेत्रीय दल के रूप में सक्रिय है । वर्तमान में इसके जेना चन्द्र बाबू नायडू है । यह पार्टी आन्ध्र प्रदेश में सत्ता में भी रह चुकी है ।

(ii) बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party):

इस पार्टी की स्थापना 1984 में दलित नेता काशीराम द्वारा की गयी थी । पार्टी को उत्तर प्रदेश, पंजाब, तथा हरियाणा में जनाधार बनाने में सफलता मिली है, लेकिन इसका मुख्य जनाधार उत्तर प्रदेश में है । 2007 में अपने बलबूते पर पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहुमत प्राप्त किया तथा सरकार का गठन किया । इसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती 2007 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं । 2012 के चुनावों में इसे सफलता नहीं मिली ।

(iii) असम गण परिषद (Assam Gana Council):

इस पार्टी की स्थापना 1985 में छात्र नेता प्रफुल्ल कुमार महन्तो ने की थी । यह पार्टी 1980 के आरंभिक वर्षों में बाहरी अप्रवासियों के विरुद्ध चलाये गये असम आन्दोलन का परिणाम है । इस पार्टी को 1985 के असम विधान सभा चुनावों में जीत मिली तथा प्रफुल्ल कुमार महन्तो असम के मुख्यमंत्री बने । यह पार्टी आज भी असम की राजनीति में सक्रिय है ।

(iv) समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party):

समाजवादी पार्टी की स्थापना 4 अक्टूबर, 1992 में मुलायम सिंह यादव द्वारा की गयी थी । यह उत्तर प्रदेश का प्रमुख क्षेत्रीय दल है तथा अन्य पिछड़ी जातियों का इसे व्यापक समर्थन प्राप्त है । इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कई बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की है । 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में इसे सफलता मिली तथा इसके नेता अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने ।

(v) समता पार्टी (Samata Party):

इस पार्टी की स्थापना जनता दल से अलग होकर जॉर्ज फर्नान्डीज व नीतीश कुमार द्वारा 1994 में की गयी थी । यह पार्टी बिहार की क्षेत्रीय पार्टी है । इसकी विचारधारा समाजवादी है तथा इसे गैर-यादव पिछड़ी जातियों का समर्थन प्राप्त है । इस पार्टी को 2005 तथा 2010 के विधान सभा चुनावों में बहुमत प्राप्त हुआ तथा 2005 से लगातार इसके नेता नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं ।

(vi) राष्ट्रीय जनता दल (Rashtriya Janata Dal):

इस पार्टी की स्थापना 1997 में जनता दल से अलग होने के बाद लालू प्रसाद यादव द्वारा की गयी थी । वर्तमान में यह बिहार में सक्रिय एक क्षेत्रीय दल है 2000 के बिहार विधान सभा चुनावों में इसे सफलता मिली तथा लालू प्रसाद यादव तथा बाद में उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनीं । 2005 के विधानसभा चुनावों में उन्हें सफलता नहीं मिली । सी. बी. आई. की विशेष अदालत ने 2013 में उन्हें चारा घोटाले में दोषी पाया है तथा 25 लाख रुपये जुर्माना व पाँच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है ।

(vii) बीजू जनता दल (Biju Janata Dal):

बीजू जनता दल की स्थापना जनता दल से अलग होने के बाद 26 दिसम्बर, 1997 को उड़ीसा के नेता नवीन पटनायक द्वारा की गयी थी । यह पार्टी उड़ीसा की राजनीति में प्रमुख भूमिका में है। इसके नेता नवीन पटनायक पार्टी की सफलता के बाद तीन बार से (2000, 2004 तथा 2009) लगातार उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे हैं ।

2000 तथा 2004 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर विधान सभा में बहुमत हासिल किया । बाद में भारतीय जनता पार्टी से मतभेद के कारण वे तीसरे मोर्चे में शामिल हो गये । 2009 में इस पार्टी ने अकेले उड़ीसा विधान सभा में बहुमत प्राप्त किया है ।

(viii) तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress):

तृणमूल कांग्रेस की स्थापना ममता बनर्जी द्वारा 01 जनवरी, 1998 को की गयी थी । इसके पहले वे दो दशकों से कांग्रेस की नेता थीं । यह पश्चिम बंगाल का क्षेत्रीय दल है । इस पार्टी का मुख्य नारा ‘माँ, माटी तथा मानुष’ अर्थात् माता, मातृभूमि तथा जनता है ।

इस पार्टी को 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में सफलता प्राप्त हुई है तथा वर्तमान में पार्टी की नेता ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं । पश्चिम बंगाल में तृणमूल की सफलता महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वहाँ लगभग दो दशकों तक लगातार मार्क्सवादी पार्टी की सरकार रही है ।

(ix) तेलंगाना राष्ट्र समिति (Telangana Rashtra Samithi):

यह आन्ध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में सक्रिय है । इसकी स्थापना 27 अप्रैल, 2001 को इसके प्रमुख नेता एस. चन्द्रशेखर राव द्वारा की गयी थी । इसी के द्वारा अलग तेलंगाना राज्य की माँग का आन्दोलन चलाया गया है तथा जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है ।

(x) आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party):

इस पार्टी का गठन नवम्बर 2012 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जुड़े एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अरविन्द केजरीवाल द्वारा किया गया । इस पार्टी ने एक स्वच्छ शासन तथा जनता के प्रति संवेदनशीलता के आधार पर दिल्ली में कम समय में ही व्यापक जन समर्थन प्राप्त किया है । दिसम्बर 2013 में यह पार्टी दिल्ली विधान सभा में 70 में से 28 सीटें जीतने में सफल हुयी तथा कांग्रेस के बिना शर्त समर्थन के बाद सरकार का गठन किया ।

क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका (Role of Regional Parties):

1990 दशक से क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ी है ।

इस भूमिका में निम्न तत्व शामिल हैं:

1. भारतीय राजनीति में कांग्रेस के पतन के बाद जो संक्रमण की स्थिति चल रही है, उसमें गठबन्धन की सरकारें ही एक मात्र विकल्प हैं । भारतीय परिवेश में क्षेत्रीय दलों के बिना गठबन्धनों की सफलता संभव नहीं है ।

2. भारत क्षेत्रीय विभिन्नताओं से युक्त एक विशाल देश है । राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय आकांक्षाओं व समस्याओं को उठाने में क्षेत्रीय दल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।

3. क्षेत्रीय विविधताओं के कारण ही भारत में संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है । क्षेत्रीय दल ही इस संघात्मक व्यवस्था को व्यवहारिक रूप देते हैं तथा राजनीतिक संघबाद के विकास में सहायता (योगदान) करते हैं ।

4. क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया में जन भागीदारी को बढ़ाकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने तथा उसे व्यापक आधार प्रदान करने में सहायक है ।

5. क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान करते हैं । इस प्रकार ये दल राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को मजबूत बनाते हैं । क्षेत्रीय आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति के लिये यदि संगठित समूह नहीं होंगे तो देश की एकता के लिये नयी चुनौतियाँ खड़ी हो जायेंगी ।

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