Read this article in Hindi to learn about how to control pests of guava.

(1) फल मक्खी (Fruit Fly):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेक्टोसिरा डार्सेलस है । यह डिप्टेरागण के ट्रिपीडी कुल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क मक्खी धुमैली भूरे रंग की होती है । नर व मादा वयस्कों की पंख से पंख की लम्बाई क्रमशः 9-11 एवं 1-14 मि.मी. होती है । इस कीट के मैगट हल्के क्रीम, बेलनाकार, 5-8 मि.मी. लम्बे होते हैं ।

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क्षति:

मादा अपने अश्व निक्षेपक की मदद से पके हुए फलों में छिद्र बनाकर अण्डे देती है । अण्डे से मैगट निकालकर फलों में छिद्र करके कोमल गूदा खाते है । यह कीट कच्चे फलों में क्षति नहीं पहुँचा सकता क्योंकि ये कच्चे फलों के कठोर छिलके में अण्डे देने के लिये छिद्र बनाने में असमर्थ होता है । प्रभावित फलों को चिरकर देखने पर अन्दर मैगट साफतौर पर दिखाई देते हैं । प्रभावित फल बाद में सड़कर गिर जाते हैं ।

जीवन-चक्र:

इसके अण्डे चिकने, सफेद, चमकदान, 1-1.5 मि.मी. लम्बे होते हैं । इन अण्डे का ऊष्मायन काल 1-4 दिन होता है । पूर्ण विकसित मैगट हल्के, क्रीमी, बेलनाकार 5-8 मि.मी. लम्बे होते हैं ये मैगट 3-5 बार निर्मोचन करके 5-7 दिनों में पूर्ण विकसित हो जाते है । घूमा काल 7-14 दिनों का होता है ।

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समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. समय-समय पर पेड़ के नीचे की मिट्‌टी को पलटते रहने से भूमि में पाये जाने वाले प्यूपा नष्ट हो जाते हैं ।

ii. उद्यान में विष चुग्गा रखकर इसे नियंत्रित करा जा सकता है । विष लग चौड़े मुँह वाले बर्तन में भरकर उद्यान के विभिन्न भागों में रखना चाहिये ।

विष चुग्गों को विभिन्न प्रकार से बनाया जा सकता है:

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(क) 20 ग्राम मैलाथियान + 200 ग्राम गुड + 2 लीटर पानी ।

(ख) पानी 100 ग्राम + लेड आर्सिनेट 1 भाग + मोलासिस 24 ग्राम ।

iii. मिथाइल यूजीनोल पाश द्वारा उद्यान में मक्खियों की संख्या का आंकलन कर फल मक्खियाँ दिखाई देने के 2-3 दिन बाद डेल्टामेथ्रिन (0.0025 प्रतिशत) का प्रथम छिडकाव करना चाहिये । अगला छिड़काव 10-12 दिन के अन्तराल में डाइमेथोएट (0.045 प्रतिशत) या कार्बरिल (0.1 प्रतिशत) का करना चाहिये ।

(2) छाल भक्षक सूँडी (Bark Eating Caterpillar):

इस कीट का वैज्ञानिक नाम इन्डरबेला क्यादिनोटाटा है । यह लेपिडोप्टेरा गण के मेटरबोलिडी कल का कीट है ।

पहचान:

वयस्क कीट स्थूल, मटमैले, भूरे रंग के शलभ होते हैं । जिनमें अग्र पंख पर भूरे रंग के धब्बे व धारियांहोती हैं । पश्च पंख सफेद होते हैं । पंख से पंख की लम्बाई नर व मादा में क्रमशः 35-38 व 46-50 मि.मी. होती है । पूर्ण विकसित लारवी मटमैले भूरे रंग की 40-45 मि.मी. लम्बी होती है ।

क्षति:

अण्डे से निकलकर लार्वी पौधों के तने की छाल कुतरना आरम्भ कर देती है और 2-3 दिन बाद या उसी पौधे में छेद करके अन्दर ही अन्दर खाना आरम्भ कर देती है । इस प्रकार की क्षति से कोशिका द्रव्य के स्थानान्तरण में बाधा उत्पन्न होती है फलस्वरूप पौधों की बढ़वार रुक जाती है और फल उत्पादन क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । नये पौधों की अपेक्षा पुराने पेड़ों पर इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।

जीवन-चक्र:

मादा कीट पेड़ की छाल पर अपने अण्डे देती है । अण्डे का ऊष्मायान काल 10 दिनों का होता है । इन अण्डों से निकली लार्वी छाल या मुख्य तने में छिद्र बनाती है व उसी के अन्दर रहकर पौधे के तनों व ऊतकों को खाती है । ये 5-6 बार निर्मोचन करके पूर्ण विकसित हो जाती है । लार्वा का जीवनकाल 10-11 माह का होता है व प्यूपा काल 15-20 दिनों का होता है । वर्ष में इस कीट की केवल एक पीढ़ी पायी जाती है ।

समन्वित प्रबन्धन उपाय:

i. उद्यान की स्वच्छता और पौधों की सघनता को सीमित रखकर कीट की संख्या वृद्धि को सीमित करा जा सकता है ।

ii. पौधों की दो शाखाओं के कक्ष में कीट द्वारा बनाये गये जाले इस कीट की उपस्थिति का आभास देते हैं अतः छिद्र में लोहे के तार डालकर लार्वा को मार देना चाहिये । ये उपाय प्रायः छोटे-उद्यानों व कम प्रकोप की दशा में उपयुक्त होता है ।

iii. कीट द्वारा किये गये छिद्रों में डाइक्लोरोवॉस (DDVP) 0.05 प्रतिशत या एण्डोसल्फॉन 0.05 प्रतिशत डालकर भी अन्दर उपस्थित लार्वा को नष्ट करा जा सकता है ।

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