पर्यावरण गिरावट और पानी की कमी पर अनुच्छेद | Paragraph on Environmental Degradation and Water Scarcity in Hindi!

जल की आपूर्ति का अभाव, विश्व की 21वीं शताब्दी की सबसे बडी चुनौती है । वर्ष 1900 से लेकर 2000 तक विश्व में जल के इस्तेमाल में छ: गुनी वृद्धि हो चुकी है । वास्तव में निरंतर बढती हुई जनसंख्या, सिंचाई, उद्योगों तथा घरेलू उपयोग के लिये जल की माँग में तीव्र गति से वृद्धि होती जा रही है ।

विश्व स्तर पर जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, परंतु जल का विश्व में वितरण बहुत असमान है । यदि कुछ प्रदेशों में जल की आपूर्ति अत्यधिक है, तो कुछ प्रदेशों में जल की भारी कमी है । संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अनुमान (वर्ष 2000 में) के अनुसार विश्व की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या हो ऐसे देशों में रहती है । जहाँ पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध है ।

आगामी दो दशकों में जल की उपलब्धि और भी बिगड़ जाएगी । बढ़ती जनसंख्या के कारण विकासशील देशों में पीने के पानी की समस्या तेजी से बिगडती जा रही है । औद्योगिकीकरण के कारण भी जल की उपलब्धता की समस्या गंभीर होती जा रही है ।

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खाद्य-पदार्थों की बढती माँग को देखते हुये, सिंचाई जल की भी अधिक आवश्यकता होगी । आज भी लगभग जल का 70 प्रतिशत भाग सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता है । कृषि में सिंचाई की मात्रा में संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकडों के अनुसार, 50 से 100 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है ।

विकासशील देशों में कृषि सिंचाई के लिये जल की माँग विशेष रूप से बढ़ेगी । जल प्रदूषण के कारण पानी की समस्या और भी जटिल होती जा रही है । पोखर, तालाब एवं झीलों में खरपतवार तेजी से बढ़ रहा है जिससे पानी की उपलब्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है ।

जल की कमी को दूर करने के लिए, उपलब्ध जल का सदुपयोग करने की आवश्यकता है । पारितंत्र को टिकाऊ बनाने के लिये भी जल का सदुपयोग करना अनिवार्य है । विकासशील देशों में जल का बहुत दुरुपयोग होता है । उदाहरण के लिये विकासशील देशों में सिचाई के लिये उपयोग होने वाले जल का 60 से 75 प्रतिशत जल का दुरुपयोग हो रहा है अथवा वाष्पीकरण के द्वारा नष्ट हो जाता है । ड्रिप सिंचाई के उपयोग से भी जल की भारी बचत हो सकती है ।