मोटापा पर निबंध | Essay on Obesity in Hindi!

बहुत कम मामलों में मोटापे और वजन के ये कारण हो सकते हैं । बदलती खान-पान संबंधी आदतें ही मोटापे से जग में मुख्य योगदान देने वाला कारक है । अधिकतर लोग बहुत लंबे समय तक भूखे रहते हैं और अक्सर खाने के लिए फास्ट फूड चुनते हैं, जो कभी भी घर में बने भोजन की तरह पोषक नहीं होता । रेस्त्रां में मिलने वाले भोज्य पदार्थों का आकार भी बढता ही जा रहा है ।

आरामतलब जीवनशैली भी मोटापे के समीकरण का एक हिस्सा है । शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्ति कभी-कभार बहुत अधिक कैलोरी लेने के बाद भी उससे बाहर आ सकता है, वहीं दूसरी तरफ वे लोग, जिनके कार्यक्षेत्र में दिन का अधिकांश समय बैठे रहने में गुजरता है, जिनके जीवन में नियमित रूप से व्यायाम करना शामिल नहीं है, उनके शरीर में वसा के रूप में अतिरिक्त कैलोरी एकत्रित होने लगती है ।

जिस वातावरण से हम आज घिरे हुए हैं, उसमें हम जरूरत से ज्यादा खा रहे हैं और वजन बढा रहे हैं । ये सारे कारण मोटापे को विश्वव्यापी महामारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, हमें जल्द ही नजर आएगा ।

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बदलते आहार प्रतिरूप (Changing Dietary Pattern):

फास्ट फूड और प्रसंस्कृत भोजन के प्रति हमारा प्रेम उतनी ही तेजी से बढ रहा है, जितना हमारी कमर का दायरा । 1950 के दशक में, एक सामान्य फास्ट फूड आहार में लगभग 590 कैलोरी होती थी । आज यह मात्रा औसतन 1550 कैलोरी तक पहुँच गई है, जो वयस्क व्यक्ति की लगभग एक पूरे दिन की कैलोरी आवश्यकता है और इसमें विटामिन, खनिज और रेशे बहुत कम मात्रा में हैं ।

यद्यपि शासन ने प्रतिदिन 3 से 6 औंस माँस की मात्रा निर्धारित की है, लेकिन सामान्यतः रेस्त्रां में उपलब्ध सबसे छोटा माँस का टुकड़ा भी 8 औंस का होता है और अब तो 24 औंस माँस और 34 औंस के पेय का चलन आम हो चला है । यहाँ तक कि कॉफी शॉप में उपलब्ध मफिन भी बहुत बडा होता है । शायद इसलिए कि यह विक्रेता को महँगा नहीं पड़ता, क्योंकि आकार के साथ दाम भी बढ़ जाते हैं ।

यह निश्चित तौर पर मिलने वाला लाभ है । 1970 में फास्ट फूड पर अमेरिकी 6 अरब डॉलर खर्च करते थे । वर्ष 2000 में यह खर्च बढकर 110 अरब डॉलर हो गया । अमेरिकी अब उच्च शिक्षा, कम्प्यूटर या नई कार की अपेक्षा फास्ट फूड पर अधिक पैसा खर्च करते हैं ।

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और यह केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं है । 1980 में अगर प्रतिदिन पाँच नए रेस्त्रां खुल रहे थे, तो इनमें से चार संयुक्त राज्य अमेरिका से बाहर खुल रहे थे । लगता है फास्ट फूड के प्रति प्रेम अंतरराष्ट्रीय रूप ले चुका है ।

मोटापे से अपने संघर्ष के बारे में चिंतित कुछ लोग बड़ी ही समझदारी से संतृप्त वसा से दूर हैं, लेकिन उतनी ही नासमझी से इसे उच्च-शर्करा की मात्रा से विस्थापित कर रहे हैं । कम वसा-युक्त मफिन शक्कर से भरा होता है । कम वसा का मतलब हमेशा कम कैलोरी से नहीं होता – अधिकतर निर्माता वसा की मात्रा कम करते हैं, पर दो उत्पादों की कैलोरी की मात्रा लगभग एक-सी होती है ।

व्यावहारिक रूप से इसका क्या अर्थ है? कोला का एक कैन या वाइन का एक गिलास, हालाँकि इसमें बिल्कुल वसा नहीं होती, पर इसमें उतनी ही कैलोरी है जितनी चीज या केक के उस टुकडे में होती है, जिसे हम खाने से बचते हैं ।

अधिकतर उच्च वसा-युक्त भोजन में बहुत अधिक कैलोरी होती है, लेकिन इसके कारण उच्च शर्करा-युक्त भोजन की और न मुझे, क्योंकि इसमें भी भरपूर कैलोरी होती है । कैलोरी तो कैलोरी ही होगी, चाहे वह किसी भी स्रोत से मिली हो, और यदि लगातर अपनी आवश्यकता से अधिक खाते रहेंगे तो शरीर उस कैलोरी को वसा में परिवर्तित कर लेगा और किसी सुविधाजनक भंडार स्थान, जैसे कूल्हे या कमर पर संग्रहीत कर लेगा ।

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कार्बनिक शीतल पेय सबसे खतरनाक हैं और आधुनिक आहार में परिष्कृत शक्कर के अकेले सबसे बड़े स्रोत हैं । एक आम किशोर शीतल पेय के जरिये प्रतिदिन 7 छोटे चम्मच शक्कर ग्रहण करता है – इसका मतलब 2555 छोटे चम्मच शक्कर प्रतिवर्ष या 41,200 कैलोरी प्रतिवर्ष है, जिसका कोई पोषक मूल्य नहीं है ।

सारे विश्व में प्रशासनिक संस्थाएँ कम वसा और प्रतिदिन के आहार में संतृप्त वसा की मात्रा कम करने की मुहिम में लगी हुई है इसका असर भी पड़ा है । लेकिन वैसा नहीं, जो उनका उद्देश्य था । जब से यह मुहिम उत्तरी अमेरिका में शुरू हुई, वहाँ प्रतिदिन ली जाने वाली कैलोरी की मात्रा 400 की दर से बढ गई है जो मोटापा बढने का एक बहुत प्रमुख कारण है ।

आराम-तलब जीवनशैली (Relaxed Call Lifestyle):

एक सक्रिय, स्वस्थ व्यक्ति, जिसका वजन अधिक नहीं है, वह कभी-कभी ज्यादा खा-पी भी ले, तो उसे कोई खास नुकसान नहीं होगा । लेकिन अपने आस-पास ऐसे व्यक्ति को ढूँढना मुश्किल होता जा रहा है, जो हमें घर में आराम से बैठकर, टी.वी. पर खाने-पीने से संबंधित विज्ञापन देखते रहने के लिए प्रेरित करे ।

शरीर और पूर्वजों की शारीरिक संरचना में हमेशा विरोध नजर आता है । उनकी जीवनशैली बहुत सक्रिय थी और वे भोजन के लिए लगातार परिश्रम करते थे । वसा के रूप में अतिरिक्त कैलोरी संग्रहीत करना हमारे पूर्वजों के लिए एक तरह का लाभ था, क्योंकि यही वसा उन्हें अपरिहार्य अकाल के दौरान जीवित रखने में सहायक होती थी । दूसरी तरफ, सारा दिन कम्प्यूटर के सामने बैठे रहते हैं और रात में टी. वी. के सामने बैठ जाते हैं । इस जीवनशैली में बमुश्किल ही कोई सक्रियता है ।

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