“मेरे आदर्श” पर नेल्सन मंडेला का भाषण | Speech of Nelson Mandela on “My Ideal” in Hindi Language!

सन् 1964 में 20 अप्रैल को नेल्सन मण्डेला ने दक्षिण अफ्रीका की संभेदी सरकार द्वारा विभिन्न आरोपों में गिरफ्तार होने पर जो बयान दिया, यह भाषण उसी में से लिया गया है: 

सन् 1960 में शार्पविले में गोलीकाण्ड हुआ जिसके कारण आपातकालीन स्थिति की घोषणा की गयी और अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस को गैर-कानूनी संगठन घोषित किया गया ।

मैंने और मेरे साथियों ने काफी देर तक गहन विचार करने के पश्चात् यह निर्णय किया कि हम इस आदेश को नहीं मानेंगे । अफ्रीकी लोग इस सरकार में भागीदार नहीं और वे कानून नहीं बनाते हैं, जो उन पर लागू किये जाते हैं । हम मानव अधिकार की इस सार्वभौम घोषणा में विश्वास रखते हैं: ‘जन-आकांक्षा को सरकार की सत्ता का आधार होना चाहिए ।’

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अत: हमारे लिए इस प्रतिबन्ध को मानना अफ्रीकियों को हमेशा के लिए चुप कराने को मानने के बराबर होता । अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने विभक्त होने से मना कर दिया । उसके सदस्य भूमिगत हो गये । हमारा मानना था कि इस संगठन को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है, जो पचास सालों की कड़ी मेहनत से बना है ।

मुझे जरा भी सन्देह नहीं कि कोई भी आत्माभिमानी श्वेत संगठन किसी ऐसी सरकार द्वारा अवैध घोषित किये जाने पर स्वयं को विघटित करेगा जिसमें उसका कोई अधिकार नहीं । सन् 1960 में सरकार ने एक जनमत-संग्रह करवाया था जिसकी बदौलत गणतन्त्र की स्थापना की गयी । दक्षिण अफ्रीका की जनसंख्या में 75% अफ्रीकी हैं । इनको वोट देने का अधिकार नहीं दिया गया ।

संविधान में किये जाने वाले प्रस्तावित फेर-बदल के लिए उनसे सलाह-मशविरा तक नहीं किया गया । प्रस्तावित श्वेत गणतन्त्र में अपने भविष्य को लेकर हम सब आशंकित थे । इस अवांछित गणतन्त्र की पूर्व स्वथ्या पर प्रदर्शन करने और सर्व-अफ्रीकी सम्मेलन बुलाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया ।

मुझ पर सम्मेलन का सचिव होने के कारण गणतन्त्र की घोषणा वाले दिन ‘घर पर बैठे रहो’ को संगठित करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया; क्योंकि अफ्रीकियों की प्रत्येक हड़ताल अवैध है, इसलिए उसे संगठित करने वाले के लिए गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करना जरूरी हो जाता है, इसलिए मुझे अपना परिवार और अपनी वकालत छोड्‌कर गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपना पड़ा ।

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मैं और मेरे कुछ साथी सन् 1961 में जून महीने के शुरुआती दिनों में दक्षिण अफ्रीकी परिस्थितियों के अति विस्तृत आकलन के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस देश में हिंसा अनिवार्य है । अफ्रीकी नेताओं के लिए शान्ति और अहिंसा के उपदेश देते रहना गलत व अवास्तविक होगा; क्योंकि सरकार हमारी शान्तिपूर्ण मांगों का उत्तर बल प्रयोग से देती है ।

अफ्रीका महाद्वीप का दक्षिण अफ्रीका सबसे सम्पन्न देश है । यह सम्भवत : संसार के सर्वाधिक अमीर देशों में गिना जा सकता है । लेकिन यह अतिशयता और विषमता का देश भी है । यहां श्वेतों की जीवनशैली विश्व में सर्वोच्च जीवन स्तर के समतुल्य है, जबकि अफ्रीकी गरीबी व कष्टों से भरपूर जीवन व्यतीत कर रहे हैं । 40% अफ्रीकी अत्यन्त घनी बस्तियों में रहते हैं ।

कई मामलों में तो वे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में रहते हैं, जहां भू-क्षरण के कारण उनके लिए धरती के आधार पर सामान्य जीवन व्यतीत करना नामुमकिन हो जाता है । 30% श्रमिक या श्रमिक काश्तकार हैं । वे श्वेतों के फार्मों में रहते हैं और मध्यकालीन कृषि दासों की भांति जीवन व्यतीत करते हैं । अन्य 30% शहरों में रहते है ।

उनकी सामाजिक व आर्थिक आदतें श्वेतों के समतुल्य ही बन गयी हैं, लेकिन इनमें से भी अनेक कम आमदनी व महंगाई के कारण गरीबी का जीवन व्यतीत करते हैं । फिर भी अफ्रीकियों की शिकायत केवल यही नहीं है कि वे गरीब हैं और श्वेत अमीर हैं, अपितु यह है कि इस स्थिति को बहाल रखने वाले कानून बनाये जा रहे हैं ।

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गरीबी से मुक्ति पाने के दो उपाय हैं-पहला औपचारिक शिक्षा है, दूसरा काम में ज्यादा कुशलता प्राप्त करना है, ताकि ज्यादा पारिश्रमिक मिल सके । जहां तक अफ्रीकियों का प्रश्न है, विकास के ये दोनों ही रास्ते जान-बूझकर कानून से अवरुद्ध कर दिये गये हैं । मैंने अपना जीवन अफ्रीकियों के संघर्ष को समर्पित कर दिया है ।

मैंने श्वेत आधिपत्य के खिलाफ संघर्ष किया है, तो अश्वेत आधिपत्य के खिलाफ भी संघर्ष किया है । मैंने एक लोकतान्त्रिक व स्वतन्त्र समाज के आदर्श को अपने हृदय में संजोये रखा है, जिसमें सभी लोग समान अवसरों के साथ मिल-जुलकर रहें । मैं इस आदश के लिए और इसे प्राप्त करने के लिए जीवित हूं । लेकिन यदि जरूरत पड़े तो मैं इस आदर्श के लिए अपने जीवन का बलिदान भी दे सकता हूं ।

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