नेल्सन थ्योरी ऑफ़ लो लेवल इक्विलिब्रम ट्रैप | Read this article in Hindi to learn about Nelson’s theory of low level equilibrium trap.

रिचर्ड आर. नेल्सन का निम्न-स्तर सन्तुलन पाश विश्लेषण अर्द्धविकसित देशों की समस्याओं का विश्लेषण करता है । यह सिद्धान्त हार्वे लीबिन्सटीन द्वारा प्रस्तुत न्यूनतम आवश्यकता प्रयास व्याख्या से काफी समानता रखता है । दोनों व्याख्याएँ एक ही समय में प्रस्तुत की गयी थीं ।

मान्यताएँ (Assumptions):

नेल्सन का सिद्धान्त माल्थस की संकल्पना पर आधारित है जिसके अनुसार न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर से ऊपर एक देश की प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि पर जनसंख्या बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है । प्रारम्भ में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने पर जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ती है लेकिन जब जनसंख्या की वृद्धि दर एक उच्च भौतिक सीमा पर पहुँच जाती है तब प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि इसमें कमी कर देती है ।

ADVERTISEMENTS:

सिद्धान्त की व्याख्या (Explanation of Theory):

नेल्सन के अनुसार अर्द्धविकसित देशों की रोगग्रस्तता का निरीक्षण जीवन-निर्वाह आवश्यकताओं पर अथवा इसके निकट प्रति व्यक्ति आय के एक स्थायी सन्तुलन स्तर के द्वारा किया जा सकता है । इस निम्न सन्तुलन पर, बचत एवं विनियोग की दरें निम्न होती है । यदि न्यूनतम जीवन-स्तर से ऊपर प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तो यह जनसंख्या की एक वृद्धि को प्रोत्साहित करेगा ।

जनसंख्या में होने वाली वृद्धि से प्रति व्यक्ति आय पुन: न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर पर आ जाएगी । इस प्रकार अर्थव्यवस्था निम्न सन्तुलन पाश में फँसी रह जाएगी । निम्न स्तर सन्तुलन पाश से मुक्ति पाने के लिए आवश्यक है कि जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के सापेक्ष प्रति व्यक्ति आय के स्तरों में अधिक वृद्धि हो ।

निम्न स्तर सन्तुलन पाश के निवारण हेतु नेल्सन ने निम्न चार सामाजिक एवं तकनीकी दशाओं का उल्लेख किया:

ADVERTISEMENTS:

(i) प्रति व्यक्ति आय के स्तर एवं जनसंख्या वृद्धि की दर के मध्य उच्च सहसम्बन्ध ।

(ii) अतिरिक्त प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि के लिए प्रति व्यक्ति विनियोग की न्यून प्रवृत्ति ।

(iii) खेती अयोग्य कृषि भूमि की सीमितता ।

(iv) उत्पादन की अकुशल विधियाँ ।

ADVERTISEMENTS:

नेल्सन ने उपर्युक्त घटकों के अतिरिक्त सांस्कृतिक जड़ता एवं आर्थिक जड़ता के घटकों को भी रेखांकित किया । उन्होंने स्पष्ट किया कि सांस्कृतिक बढ़ता से आर्थिक जड़ता उत्पन्न होती है और आर्थिक जड़ता सांस्कृतिक जड़ता को बढ़ाती है ।

उपर्युक्त दशाएँ अर्द्धविकसित देशों में देखी जाती है जिससे यह देश निम्न स्तरीय सन्तुलन पाश में जकड़े रहते है । यह पारा तब दूर किया जा सकता है जब प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि की दर जनसंख्या वृद्धि की दर से अधिक बढ़े ।

नेलसन के अनुसार एक अर्थव्यवस्था के न्यून आय के स्तर से घिरे रहने की स्थिति का प्रदर्शन, सम्बन्धों के तीन समुच्चयों द्वारा सम्भव है:

पहला समुच्चय:

आय, पूँजीगत, स्टॉक, तकनीक के स्तर एवं जनसंख्या के आकार का फलन है ।

दूसरा समुच्चय:

शुद्ध विनियोग में बचत दारा सृजित पूँजी धन खेती के अधीन भूमि का योग सम्मिलित होता है ।

 

तीसरा समुच्चय:

निम्न प्रति व्यक्ति आय के साथ जनसंख्या वृद्धि की दर में होने वाले अल्पकालीन परिवर्तन मृत्यु दर में होने वाले परिवर्तनों के कारण होते है तथा मृत्यु दर में होने वाले परिवर्तन का कारण प्रति व्यक्ति आय के स्तर में होने वाला परिवर्तन है ।

जब प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर से अधिक हो जाती है तब प्रति व्यक्ति आय से होने वाली और अधिक वृद्धि का मृत्यु दर पर नहीं के बराबर प्रभाव पड़ता है । उपर्युक्त तीनों समुच्चयों के द्वारा यह प्रदर्शित किया जाना सम्भव है कि एक अर्थव्यवस्था किस प्रकार एक न्यून स्तरीय पाश में फँस जाती है ।

इस स्थिति को चित्र 1 के द्वारा स्पष्ट किया गया है:

चित्र 1 A में X अक्ष में प्रति व्यक्ति आय एवं Y अक्ष में जनसंख्या वृद्धि की दर dp/p को प्रदर्शित किया गया है । पहली दशा में, X अक्ष में प्रदर्शित बिन्दु S प्रति व्यक्ति आय के न्यूनतम जीवन-स्तर को प्रदर्शित करता है, जब प्रति व्यक्ति आय न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर से कम होती है अर्थात् 5 बिन्दु के बाएँ जनसंख्या गिरती हुई है ।

बिन्दु 5 पर जनसंख्या स्थिर है जब न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर से ऊपर प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तब इस स्थिति को बिन्दु 5 के दायीं ओर दिखाया जाता है । जनसंख्या में इसकी उच्च भौतिक सीमा तक वृद्धि होती है जिसे चित्र में बिन्तु K के द्वारा दिखाया गया है । जनसंख्या वृद्धि की उच्च भौतिक सीमा वस्तुत: 3 प्रतिशत वार्षिक दर को सूचित करती है । जनवृद्धि K से K’ बिन्दु तक होती है । K’ बिन्दु के उपरान्त जनवृद्धि दर dp/P गिरने लगती है ।

जनसंख्या वृद्धि में होने वाली कमी का कारण प्रति व्यक्ति आय के स्तर में वृद्धि होना है । आय स्तर के बढ़ने से व्यक्ति अपने जीवन-स्तर को उच्च करने के लिए अधिक जागरुक हो जाता है तथा यह आवश्यक समझता है कि वह अपने परिवार का आकार सीमित रखे । वक्र PSKK ‘P’ आय के विभिन्न स्तरों पर जनसंख्या वृद्धि के पथ को सूचित करता है ।

चित्र 1 B में प्रति व्यक्ति आय के स्तर (Y/P) को X अक्ष एवं प्रति व्यक्ति विनियोग की वृद्धि को Y अक्ष द्वारा दिखाया गया है । चित्र में 1′ वक्र या dk/p, X अक्ष को बिन्दु X पर काटता है । X बिन्दु आय के उस स्तर को सूचित करता है जहाँ बचत शून्य है । इससे अभिप्राय है कि समस्त आय को उपभोग पर व्यय कर दिया जाता है ।

बिन्दु X के बायीं ओर विनियोग ऋणात्मक है, क्योंकि बचतें ऋणात्मक है अर्थात् यहाँ उपभोग की तुलना में आय कम है । बिन्दु X के दायीं ओर प्रति व्यक्ति आय बचत के शून्य स्तर से बढ़ती है । विनियोग वक्र I’ ऊपर की ओर बढ़ता जाता है तथा इसके बढ़ने की कोई सीमा नहीं है । जैसे-जैसे X बिन्दु की ओर बढ़ता जाएगा, कुल आय में बचत का अनुपात बढ़ेगा जिसका विनियोग किया जा रहा है ।

चित्र A में K बिन्दु से आने वाली बिन्दुदार रेखा चित्र B में I’ वक्र को K’ बिन्दु पर छूती है जिसके उपरान्त बचत व विनियोग की वृद्धि सम्भावना सर्वाधिक होती है ।

चित्र C में, X अक्ष प्रति व्यक्ति आय के स्तर को निरुपित करता है । Y अक्ष में जनसंख्या वृद्धि की दर dp/P एवं कुल आय में वृद्धि की दर ही dy/Y को दिखाया गया है । बिन्दु S पर आय का शून्य बचत स्तर एवं प्रति व्यक्ति आय का न्यूनतम जीवन-निर्वाह स्तर बराबर है ।

अत: 5 बिन्दु न्यून स्तरीय सन्तुलन पाश का बिन्दु है जहाँ X अक्ष में आय की वृद्धि दर dy/Y बराबर होती है जनसंख्या वृद्धि दर dp/P के । S बिन्दु में आगे प्रति व्यक्ति आय में होने वाली किसी भी वृद्धि पर, जनसंख्या में होने वाली वृद्धि, आय की वृद्धि से अधिक होती है अर्थात् (dp/P > dy/Y) । अत: अर्थव्यवस्था पूर्ण साम्य स्तर OS पर वापस आ जाती है । स्पष्ट है कि S बिन्दु पर अर्थव्यवस्था निम्न सन्तुलन पाश से घिरी है ।

निम्न स्तर सन्तुलन पाश के घेरे से दूर होने के लिए आवश्यक है कि एक असतत् छलांग लगायी जाए जिससे अस्थायी सन्तुलन के एक नए बिन्दु T पर आया जाए । T बिन्दु पर प्रति व्यक्ति आय का स्तर (Y/P) M है । अर्थव्यवस्था निम्न स्तरीय सन्तुलन पाश से बाहर तब आएगी, जबकि असतत् छलांग के दारा प्रति व्यक्ति आय में SM से अधिक की वृद्धि हो ।

M बिन्दु के उपरान्त ही कुल आय में वृद्धि की दर जनसंख्या वृद्धि की दर से अधिक होगी । नेल्सन के अनुसार निम्न स्तरीय सन्तुलन पाश को तोड़ने के लिए कुल आय में वृद्धि की दर 3 प्रतिशत वार्षिक से अधिक होनी चाहिए ।

इसके साथ ही निम्न घटक भी प्रभावशील होने चाहिएँ:

i. देश में अनुकूल राजनीतिक-सामाजिक वातावरण होना चाहिए ।

ii. बचत एवं उपक्रमशीलता को प्रोत्साहित करते हुए सामाजिक संरचना में परिवर्तन ही ।

iii. उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ परिवार के आकार को सीमित करने के लिए व्यक्तियों को प्रेरित किया जाए ।

iv. सरकार द्वारा विनियोग का वृहद कार्यक्रम संचालित हो ।

v. आय के वितरण में परिवर्तन करने के उपाय अपनाए जाएँ तथा विनियोगियों को प्रोत्साहित किया जाए ।

vi. विदेशों से आय एवं पूंजी प्राप्त कर कोषों में वृद्धि की जाए ।

vii. दिए हुए साधनों के द्वारा आय में वृद्धि हेतु वर्तमान संसाधनों के अधिक प्रयोग हेतु सुधरी हुई उत्पादन तकनीकों का प्रयोग किया जाए ।

आलोचनात्मक समीक्षा (Critical Evaluation):

प्रो.एच. मिण्ट ने अपनी पुस्तक The Economics of the Developed Economics (1969) में नेलसन के निम्न सन्तुलन पाश सिद्धान्त की आलोचना निम्न आधार पर की:

(i) प्रति व्यक्ति आय के स्तर एवं जनसंख्या वृद्धि की दर तथा कुल आय में वृद्धि दर के मध्य हमेशा एक दृढ़ फलनात्मक सम्बन्ध विद्यमान नहीं होता । अर्द्धविकसित देशों में मृत्यु दर में होने वाली कमी मुख्यत: सार्वजनिक स्वास्थ्य के स्तरों में सुधार, महामारी व अकाल की घटनाओं की कमी से सम्बन्धित होती है जो कि प्रति व्यक्ति आय के स्तर में होने वाली वृद्धि से सम्बन्धित नहीं हैं ।

(ii) प्रति व्यक्ति आय के स्तर एवं कुल आय की वृद्धि दर के मध्य फलनात्मक सम्बन्ध काफी जटिल होते हैं । मिष्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति आय के स्तर तथा बचत व विनियोग की दर के मध्य सम्बन्धों को आय के वितरण तथा बचतों को गतिशील करने में वित्तीय संस्थाओं की समर्थता के द्वारा सुधारा जा सकता है । इसी प्रकार विनियोग एवं इसके द्वारा प्राप्त उत्पादन के मध्य सम्बन्ध एक स्थिर कुल पूँजी उत्पाद अनुपात के द्वारा दिया नहीं होता बल्कि इस बात पर निर्भर होता है कि देश में उत्पादक संगठनों में कितना सुधार किया गया है तथा जनवृद्धि की दर के 3 प्रतिशत से अधिक बढ़ने पर अतिरिक्त विनियोग द्वारा गिरते प्रतिफल की प्रवृति को रोकने के लिए किन भूमि बचत नवप्रवर्तनों को अपनाया गया है ।

(iii) मिष्ट के अनुसार यह विश्लेषण जनवृद्धि एवं आय में वृद्धि को काल श्रेणी के स्थान पर समय रहित फलनात्मक सम्बन्धों के समुच्चय द्वारा विरचित करता है ।