वेल्डिंग तरीके: वेल्डिंग के शीर्ष 3 तरीके | Read this article in Hindi to learn about the top three methods of welding. The methods are:- 1. इलेक्ट्रिक आर्क वेल्डिंग (Electric Arc Welding) 2. गैस वेल्डिंग (Gas Welding) 3. ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग (Oxy Acetylene Welding).

Method # 1. इलेक्ट्रिक आर्क वेल्डिंग (Electric Arc Welding):

यह फ्यूजन वेल्डिंग की एक विधि है जिसमें धातुओं को जोड़ने के लिए इलेक्ट्रोड का प्रयोग करते हैं ।

इलेक्ट्रोड:

इलेक्ट्रिक आर्क वेल्डिंग द्वारा वेल्डिंग करने के लिए इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है ।

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जो मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार की होती हैं:

i. बेयर इलेक्ट्रोड,

ii. फ्लक्स कोटिड इलेक्ट्रोड,

iii. डीप पेनिट्रेशन इलेक्ट्रोड,

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iv. आयरन पाउडर इलेक्ट्रोड,

v. कोर्ड इलेक्ट्रोड,

vi. लो हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड ।

प्राय: फ्लक्स कोटिड इलेक्ट्रोड का प्रयोग किया जाता है जो कि रॉड के रूप में एक मेटालिक पीस या फ्लक्स के साथ कोट की हुई वायर होती है ।

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साइज:

साधारणतया इलेक्ट्रोड की लंबाई 150 मि.मी. से 450 मि.मी. तक होती है । कोर वायर का व्यास 1 मि.मी. से 2.5 मि.मी. तथा और अधिक भी हो सकता है ।

पोलारिटी:

जब डी.सी. का प्रयोग किया जाता है तो करेंट बहने की दिशा पोलारिटी कहलाती है ।

यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

i. स्ट्रेट पोलारिटी- इसे इलेक्ट्रोड नेगेटिव भी कहते हैं जिसमें इलेक्ट्रोड नेगेटिव टर्मिनल और वर्कपीस पोजीटिव बनाती है ।

ii. रिवर्स पोलारिटी- इसे इलेक्ट्रोड पोजीटिव भी कहते हैं जिसमें इलेक्ट्रोड पोजीटिव टर्मिनल और वर्कपीस नेगेटिव बनाती है ।

मोटे और भारी जॉबों की डी.सी. के साथ वेल्डिंग के लिए, इलेक्ट्रोड को नेगेटिव टर्मिनल बनाना चाहिए और पतले जॉबों की वेल्डिंग के लिए जॉब को नेगेटिव होना चाहिए । यह नियम कार्बन आर्क वेल्डिंग के लिए उपयुक्त नहीं होता क्योंकि कार्बन रॉड हमेशा नेगेटिव होती है ।

आर्क की लंबाई:

जब एक आर्क को बनाया जाता है तो इलेक्ट्रोड टिप व वर्कपीस सरफेस के बीच की दूरी को आर्क की लंबाई कहते हैं ।

आर्क की लंबाई तीन प्रकार की होती है:

(क) नार्मल,

(ख) लंबी,

(ग) छोटी ।

विभिन्न वेल्डिंग स्थितियां:

आर्क वेल्डिंग की निम्नलिखित मुख्य स्थितियां होती हैं:

I. फ्लैट वेल्डिंग- इसमें दो प्लेटों को ऐज से ऐज मिलाकर हॉरिजांटल प्लेन के समानान्तर वेल्डिंग कर दी जाती है ।

II. हॉरिजांटल वेल्डिंग- इसमें दो प्लेटों को ऐज से ऐज मिलाकर ऐसा रखा जाता है कि ज्वाइंट हॉरिजांटल हो जाए । इसके बाद दोनों प्लेटों की वेल्डिंग कर दी जाती है ।

III. वर्टिकल वेल्डिंग- इसमें दो प्लेटों को ऐज से ऐज मिलाकर वर्टिकल प्लेन में रखकर वेल्डिंग की जाती है ।

IV. ओवर-हैड वेल्डिंग- इसमें दो प्लेटों को ऐज से ऐज मिलाकर हॉरिजांटल पोजीशन में रखकर नीचे से वेल्डिंग की जाती है ।

आर्क वेल्डिंग में दोष:

वेल्ड दोषों को निम्नलिखित दो वर्गों में बांटा जा सकता है:

I. दिखाई देने वाले दोष- ये दोष वेल्ड सरफेस पर नंगी आंखों से दिखाई देते हैं जैसे- स्लैग इनक्लूशन ब्लो होल, सैटर, स्प्रे आर्क और अंडरकट ।

II. दिखाई न देने वाले दोष- ये दोष नंगी आंखों से दिखाई नहीं देते क्योंकि ये वेल्ड धातु के अंदर होते हैं जैसे- स्लैग इनक्लूशन, रि-स्टार्ट, गैस पाइप होल, पोरोसिटी, क्रेटर पाइप होल और ब्लो होल्स ।

Method # 2. गैस वेल्डिंग (Gas Welding):

यह फ्यूजन या नान प्रैशर वेल्डिंग विधि है जिसमें ज्वाइंट को गैस के तेज फ्लेम द्वारा गर्म किया जाता है और फिलर मेटल को पिघलाकर ज्वाइंट पर बनी केविटी में भर दिया जाता है ।

इस क्रिया के लिए कई प्रकार की गैसें प्रयोग में लाई जाती है और अतिरिक्त मेटल के लिए फिलर रॉड या वेल्डिंग रॉड का प्रयोग किया जाता है । गैस वेल्डिंग की विभिन्न विधियों में वेल्डिंग हीट को ईंधन गैसों के कम्बस्चन द्वारा प्राप्त किया जाता है ।

सभी गैसों के कम्बस्चन को सहारा देने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है । इस प्रकार ईंधन गैसों और ऑक्सीजन के कम्बस्चन के द्वारा एक फ्लेप बनता है जो वेल्डिंग के लिए धातु को हीट देने के लिए प्रयोग में लाया जाता है ।

वेल्डिंग के लिए प्राय: निम्नलिखित गैसों का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है:

i. एसीटिलीन गैस,

ii. हाइड्रोजन गैस,

iii. कोल गैस,

iv. लीक्विड पेट्रोलियम गैस ।

विभिन्न गैस फ्लेम कम्बीनेशन:

I. ऑक्सी-एसीटिलीन गैस फ्लेम- वह ऑक्सीजन और एसीटिलीन का कम्बीनेशन होता है जिसका प्रयोग सभी फेरस और नॉन-फेरस धातुओं की वेल्डिंग, गैस कटिंग और बॉज वेल्डिंग के लिए किया जाता है । इसके फ्लेम का तापमान 3100°C से 3300°C होता है ।

II. ऑक्सी-हाइड्रोजन गैस फ्लेम- यह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का कम्बीनेशन होता है जिसका प्रयोग केवल ब्रेजिंग और सिल्वर सोल्डरिंग के लिए किया जाता है । इसके फ्लेम का तापमान 2400°C से 2700°C होता है ।

III. ऑक्सी-कोल गैस फ्लेम- यह ऑक्सीजन और कोयले का कम्बीनेशन होता है जिसका प्रयोग सिल्वर सोल्डरिंग और ब्रेजिंग के लिए किया जाता है । इसके फ्लेम का तापमान 1800°C से 2200°C होता है ।

IV. ऑक्सी-लीक्विड पेट्रोलियम गैस फ्लेम- यह ऑक्सीजन और लीक्विड पेट्रोलियम गैस (LPG) का कम्बीनेशन होता है जिसका प्रयोग केवल स्टील की गैस कटिंग और हीटिंग उद्देश्यों के लिए किया जाता है । इसके फ्लेम का तापमान 2700°C से 2800°C होता है ।

Method # 3. ऑक्सी एसीटिलीन वेल्डिंग (Oxy Acetylene Welding):

इस प्रकार की वेल्डिंग का प्रयोग प्राय: सभी धातुओं और एलायस की वेल्डिंग के लिए किया जाता है । इसमें आक्सीजन के साथ एसीटिलीन का प्रयोग किया जाता है ।

इस प्रकार की वेल्डिंग में निम्नलिखित दो पद्धतियों पाई जाती हैं:

i. हाई प्रैशर सिस्टम- इस पद्धति में ऑक्सीजन और एसीटिलीन दोनों को हाई प्रेशर सिलिण्डर से लिया जाता है ।

ii. लो प्रैशर सिस्टम- इस पद्धति में ऑक्सीजन को हाई प्रैशर सिलिण्डर से लिया जाता है और एसीटिलीन को लो प्रैशर एसीटिलीन जनरेटर से प्राय: कैल्सियम कार्बाइड पर पानी के ऐक्वान द्वारा उत्पन्न किया जाता है ।

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