Read this article in Hindi to learn about:- 1. फोर्जिंग का परिचय (Introduction to Forging) 2. फोर्ज को जलाना (Lighting of Forge) 3. तापमान (Temperature) and Other Details.

Contents:

  1. फोर्जिंग का परिचय (Introduction to Forging)
  2. फोर्ज को जलाना (Lighting of Forge)
  3. फोर्जिंग तापमान (Forging Temperature)
  4. फोर्ज आग की विशिष्टयां (Characteristics of Forge Fire)
  5. फोर्जिंग कार्यक्रियायें (Forging Operations)


1. फोर्जिंग का परिचय (Introduction to Forging):

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फोर्जिंग एक प्रकार की कार्यविधि है जिसमें स्टील या रॉट ऑयरन को गर्म करके हथौड़े द्वारा चोट लगाकर अथवा पॉवर हैमर या फोर्जिंग मशीन के द्वारा किसी निश्चित आकार में बनाया जाता है ।

फोर्जिंग प्राय: निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

I. हैंड फोर्जिंग- हैंड फोर्जिंग में जॉब को गर्म करने के बाद एन्विल पर रखकर हैंड फोर्जिंग टूल्स की सहायता से फोर्जिंग कार्यक्रिया करते हैं । हैंड फोर्जिंग को स्मिथी भी कहते हैं ।

II. मशीन फोर्जिंग- मशीन फोर्जिंग में पॉवर हैमर या फोर्जिंग मशीन का प्रयोग करके जॉब पर फोर्जिंग कार्यक्रिया की जाती है ।


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2. फोर्ज को जलाना (Lighting of Forge):

I. सबसे पहले नोजल और कोयला रखने वाले स्थान को अच्छी से साफ कर लेना चाहिए ।

II. तेल से भीगे हुए कपड़े, जूट या सूखी लकड़ी को फोर्ज में रखकर आग लगानी चाहिए ।

III. थोड़ी देर तक आग को फैलने देना चाहिए । फिर कच्चे या पक्के कोयले को आग पर डालना चाहिए और हवा के वाल्व को थोड़ा सा खोलना चाहिए या हैंड ब्लोअर को धीरे से चलाना चाहिए ।

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IV. जब कोयले को आग पकड़ ले तो हवा का प्रेशर बढ़ा देना चाहिए और कोयले की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए ।

V. फोर्ज जब अच्छी तरह से जल जाए तो जॉब को उसमें रखकर गर्म करना चाहिए ।


3. फोर्जिंग तापमान (Forging Temperature):

स्टील के लिए फोर्जिंग तापमान उसमें कार्बन की प्रतिशत मात्रा और मिश्रण तत्वों पर निर्भर करता है । जॉब को सही गर्म करना चाहिए । यदि फोर्जिंग तापमान बहुत कम होता है तो जॉब पर क्रेक विकसित हो सकते हैं ।

यदि जॉब को बहुत अधिक गर्म किया जाता है तो बाहरी सतह पर स्केल बन जाएगी । यदि स्टील में 1.7% तक कार्बन होती है तो उसे फोर्जिंग किया जा सकता है ।

स्टील के फोर्जिंग तापमान निम्नलिखित होते हैं:

(क) लो कार्बन स्टील 800°C से 1300°C

(ख) हाई कार्बन स्टील 900°C से 1150°C

(ग) हाई स्पीड स्टील 950°C से 1100°C

ईंधन:

फोर्ज शाप में प्राय: निम्नलिखित ईंधन प्रयोग में लाए जाते हैं:

1. ठोस जैसे लकड़ी का कोयला और पत्थर का कोयला,

2. तरल जैसे तेल,

3. गैसीय जैसे प्राकृतिक गैस, उत्पादित गेस ।

अच्छे ईंधन के गुण:

एक अच्छे ईंधन में निम्नलिखित गुण होने चाहिए:

i. यह सस्ता और आसानी से उपलब्ध होना चाहिए ।

ii. यह आसानी से जलने वाला होना चाहिए ।

iii. यह अधिक धुआँ निकालने वाला नहीं होना चाहिए ।

iv. इसमें आवश्यक फोर्जिंग तापमान बनाए रखने की योग्यता होनी चाहिए ।


4. फोर्ज आग की विशिष्टयां (Characteristics of Forge Fire):

यह अच्छी फोर्ज आग में निम्नलिखित विशिष्टयां होनी चाहिए:

I. यह साफ होनी चाहिए ।

II. यह गहरी होनी चाहिए ।

III. यह घनी होनी चाहिए ।


5. फोर्जिंग कार्यक्रियायें (Forging Operations):

फोर्जिंग शाप में प्राय: निम्नलिखित कार्यक्रियायें की जाती है:

1. बेंडिंग:

यह एक आपरेशन है जिसमें धातु की बिना चिप वाली शेपिंग की जाती है । इसमें जॉब को किसी गोलाई या कोण में मोड़ा जाता है । इसके लिए कई बेंडिंग टूल्स प्रयोग में लाए जाते हैं ।

जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं:

(क) बेंडिंग ब्लॉक,

(ख) बेंडिंग लिंक्स,

(ग) फोर्क टूल्स,

(घ) अन्य टूल्स, जैसे- वाइस, ऐन्विल, बोल्स्टर स्वेजिस, बेंडिंग डाईयां इत्यादि ।

2. ड्राइंग आउट:

यह एक फोर्जिंग आपरेशन है जिसमें जॉब का क्रॉस सेक्शन कम किया जाता है और उसकी लंबाई बढ़ाई जाती है ।

ड्राइंग आउट में निम्नलिखित चरण होते हैं:

(i) स्टॉक की सेटिंग,

(ii) नैकिंग,

(iii) फुलरिंग और फिनिशिंग ।

विधियां:

ड्राइंग आउट के लिए निम्नलिखित विधियां प्रयोग की जाती हैं:

(क) फुलर और स्लेज हैमर के प्रयोग द्वारा,

(ख) एक स्प्रैडर के प्रयोग द्वारा ।

ड्राइंग आउट में दोष:

ड्राइंग आउट में प्राय: निम्नलिखित दोष आ सकते हैं:

(क) सैग- यह दोष तब आता है जब जॉब को बिना घुमाए केवल एक साइज पर हैमरिंग की जाए ।

(ख) लैप्स- यह दोष सेट हैमर के गलत रखने के कारण आता है ।

(ग) अक्षीय क्रेक और फोल्ड्स- यह दोष छोटे सेक्शन की बिना इंटरमीडिएट चरण के कारण आता है ।

(घ) इनटर्नल क्रेक्स- यह दोष बहुत कम तापमान पर फोर्जिंग करने से आता है ।

3. अपसेटिंग- यह एक फोर्जिंग आपरेशन है जिसमें जॉब की लंबाई कम की जाती है और क्रॉस सेक्शन बढ़ाया जाता है ।

यह प्राय: निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है:

(क) ऐण्ड अपसेटिंग,

(ख) सेंटर अपसेटिंग,

(ग) जम्पिंग ।

अपसेटिंग में दोष:

(क) फोल्ड- यह दोष प्राय: तब आता है जब मुड़े हुए जॉब को सीधा किया जाता है ।

(ख) बकलिंग- यह दोष प्राय: निम्नलिखित कारणों से आता है- जॉब को उसके पूरे क्रास सेक्शन तक पर्याप्त गर्म न करना, अपसेटिंग के दौरान जॉब को गोलाई में न घुमाना, स्टॉक की लंबाई का उसके व्यास का 2 से 2½ गुना बढ़ जाता इत्यादि ।

(ग) सरफेस और इनटर्नल क्रेक्स- यह दोष तब आता है जब जॉब को उसके पूर्ण क्रॉस सेक्शन तक यूनिफार्म गर्म न किया जाए ।

4. रिवटिंग- इस कार्य क्रिया में दो या दो से अधिक पार्ट्स को रिवट या प्लेन रॉड के द्वारा गर्म या ठंडी दशा में रिवटिंग करके जोड़ा जाता है ।

5. पंचिंग- इस कार्यक्रिया में पंचिंग टूल के द्वारा जॉब में किसी भी आकार का सुराख बनाया जाता है ।

6. ड्रिफ्टिंग- इस कार्यक्रिया में ड्रिफ्टिंग टूल के द्वारा जॉब पर पंचिंग होल को टेपर, समानान्तर या किसी आकार में बड़ा किया जाता है ।

7. कटिंग- इस कार्यक्रिया में जॉब को आवश्यकतानुसार हॉट या कोल्ड सेट के द्वारा काटा जा सकता है ।

8. ट्‌विस्टिंग- इस कार्यक्रिया में धातु को गर्म करने के बाद वाइस में बांधकर कुछ स्पेशल कार्यों के लिए ट्‌विस्ट किया जाता है ।

9. फोर्ज वेल्डिंग- इस कार्यक्रिया में धातु के दो या दो से अधिक पीसों को आपस में जोड़ा जाता है । इसमें धातु के पीसों को फोर्ज में रखकर वेल्डिंग ताप पर गर्म किया जाता है । फिर जॉब को एन्विल के ऊपर रखकर चोट लगाई जाती है जिससे धातु के पीस आपस में जुड़ जाते हैं ।

10. फिनिशिंग- जब जॉब पर फोर्जिंग कार्यक्रिया कर ली जाती है तो जॉब को फिनिशिंग करने की आवश्यकता होती है । इसके लिये फ्लैटर, फुलर या स्वेजों का प्रयोग किया जाता है । आवश्यकता के अनुसार रेती का प्रयोग भी किया जा सकता है ।

11. स्करोल बेंडिंग- यह एक कार्यक्रिया है जिसमें स्पायरल बनाने के लिए जॉब को सर्क्यूलर आकार में मोड़ा जाता है । इसका प्रयोग प्राय: सजावट संबंधी कार्यों के लिए किया जाता है ।


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