Read this article in Hindi to learn about the features of the constitution of Japan.

जापान का आधुनिक राज्य 1868 के मेईजी पुन: स्थापन (Meiji Restoration) के साथ अस्तित्व में आया था । मेईजी संविधान 58 वर्ष (1889 से 1947 तक लागू रहा) । यह संविधान एकतंत्र (Autocracy), सत्तावाद (Authoritarianism) और राजतंत्र (Monarchy) के आदर्शों पर आधारित था ।

दूसरे विश्व युद्ध (1939-45) के बाद जापान 1945 से 1952 तक मित्र राष्ट्रों के अधीन रहा था । जापान में मित्र राष्ट्रों का सर्वोच्च सेनापति संयुक्त राज्य अमरीका का जनरल डगलस मैक्आर्थर था । 1946 में जापान ने उसके निर्देशों के अधीन एक नया जनतांत्रिक संविधान अपनाया ।

यह जनतंत्र और शांति के आधिपत्यकारियों के आदर्शों पर आधारित था । जापान का नया और वर्तमान संविधान 1947 से लागू हुआ । इसको मैक्आर्थर और शोवा (Showa) संविधान के नाम से जाना गया । शोवा सम्राट हिरोहितो के शासन की उपाधि है जिसका अर्थ है- ‘कांतिमान शांति’ । नए संविधान के अंगीकरण के दौरान जापान का सम्राट हिरोहितो और प्रधानमंत्री शिहारा था ।

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जापान के वर्तमान संविधान की प्रमुख विशिष्टताएँ निम्न हैं:

i. लिखित संविधान (Written Constitution): 

अमरीकी संविधान की तरह, जापान का संविधान भी लिखित है । इसमें एक प्रस्तावना तथा 11 अध्यायों में विभक्त 103 धाराएँ शामिल हैं । यह अमरीकी और ब्रिटिश संविधान का विलक्षण सम्मिश्रण है । प्रस्तावना में जनता की प्रभुसत्ता पर बल दिया गया है ।

ii. अनम्य संविधान (Inflexible Constitution): 

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अमरीकी संविधान की भौतिक जापानी संविधान भी अनम्य है । इसको उसी तरह से संशोधित नहीं किया जा सकता है जैसे कि सामान्य कानून बनाए जाते हैं । इसमें संशोधन उसी विशेष प्रक्रिया द्वारा ही किए जा सकते हैं जिनका प्रावधान इस उद्देश्य के लिए संविधान में किया गया है । अत: जापान में सामान्य कानून और संवैधानिक कानून में अंतर है ।

संशोधन के लिए जापानी संविधान में निम्न प्रक्रिया निर्धारित की गई है:

1. संशोधन का प्रारंभ विधानसभा करेगी और ऐसे किसी प्रस्ताव को उसके दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से पारित होना चाहिए ।

2. इसके बाद इसे एक विशेष जनमत संग्रह या विशेष चुनाव के द्वारा अनुमोदन हेतु जनता के सामने रखा जाएगा । इसे जनता के बहुमत की स्वीकृति मिलनी आवश्यक है ।

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3. इस प्रक्रिया से अनुमोदित संशोधन को जनता के नाम पर संविधान के अविभाज्य अंग के रूप में सम्राट द्वारा लागू किया जाएगा । यहाँ इस तथ्य का उल्लेख किया जाना जरूरी है कि जापानी संविधान में अभी तक कोई संशोधन नहीं किया गया है । अत: यह संविधान आज भी वैसा ही है जैसाकि 1947 में था ।

iii. एकात्मक संविधान (Unitary Constitution): 

ब्रिटिश संविधान की भांति, जापानी संविधान भी एकात्मक राज्य प्रदान करता है । केंद्र और प्रांत सरकारों के बीच शक्तियों का कोई विभाजन नहीं है । सारी शक्तियाँ टोक्यो स्थित एकमात्र सर्वोच्च केंद्र सरकार में निहित हैं । प्रांतों को उनकी सत्ता केंद्र से मिलती हैं ।

प्रांतों की सत्ता और उनके अधिकार क्षेत्र को विधानसभा घटा या बढ़ा सकती है । अत: प्रांत केंद्र सरकार की अधीनस्थ इकाइयों हैं और वे उन्हीं शक्तियों का उपयोग करती हैं जो उनको केंद्र सरकार द्वारा सौंपी जाती हैं ।

iv. संसदीय सरकार (Parliamentary Government): 

जापान ने अमरीका की अध्यक्षात्मक प्रणाली की सरकार के स्थान पर ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली को तरजीह दी ।

जापानी सरकार की संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ निम्न हैं:

1. सम्राट नाममात्र का कार्यपालक होता है । वास्तविक कार्यपालिका मंत्रिमंडल है । मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है जिसके अधीन 20 राज्यमंत्री होते हैं । सम्राट राज्य प्रमुख है और प्रधानमंत्री सरकार प्रमुख ।

2. सरकार का गठन प्रतिनिधि सभा में बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी करती है । प्रधानमंत्री अनिवार्यत: ऐसा व्यक्ति बनता है जो बहुमत वाली पार्टी या बहुमत वाले गठबंधन का नेता होता है ।

3. प्रधानमंत्री का मनोनयन विधानसभा के प्रस्ताव द्वारा इसके सदस्यों में से किया जाता है । इस प्रकार मनोनीत प्रधानमंत्री की नियुक्ति सम्राट करता है ।

4. प्रधानमंत्री राज्यमंत्रियों की नियुक्ति करता है । लेकिन उनके बहुमत को विधानसभा का सदस्य होना आवश्यक है ।

5. राज्यमंत्री को प्रधानमंत्री अपनी इच्छा से हटा सकता है ।

6. अपनी कार्यकारी शक्तियों का उपयोग करने के मामले में मंत्रिमंडल विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होता है । प्रतिनिधि सभा द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित किए जाने पर इसको त्यागपत्र देना पड़ता है ।

7. प्रधानमंत्री की सलाह पर सम्राट प्रतिनिधि सभा को भंग कर सकता है ।

उपरोक्त बिंदुओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि जापान ने हालांकि ब्रिटेन के संसदीय रूप को ग्रहण किया है किन्तु यह चार अर्थों में उससे भिन्न है:

1. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री का चुनाव एवं नियुक्ति राजा/रानी द्वारा की जाती है जबकि जापान में प्रधानमंत्री का चयन विधानसभा करती है लेकिन उसकी नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती है ।

2. ब्रिटेन में मंत्रियों की नियुक्ति राजा/रानी द्वारा की जाती है, जबकि जापान में मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री करता है ।

3. ब्रिटेन में प्रधानमंत्री मंत्रियों को नहीं हटा सकता जबकि जापान में वह अपनी इच्छानुसार मंत्रियों को पद से हटा सकता है ।

4. ब्रिटेन में सारे मंत्रियों का संसद सदस्य होना आवश्यक है जबकि जापान में मंत्रियों के बहुमत को ही विधानसभा का सदस्य होना जरूरी है ।

v. संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional Monarchy): 

जापान राजतांत्रिक राज्य है । इसे सीमित वंशानुगत राजतंत्र कहा जाता है । सम्राट की संस्था को बनाए रखते हुए भी संविधान उन सम्राट को सभी शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्राधिकारों से वंचित रखता है, जिनका उपयोग वह पहले किया करता था ।

सम्राट की संस्था के संबंध में संविधान निम्नलिखित प्रावधान करता है:

1. सम्राट, राज्य और जनता की एकता का प्रतीक है । उसको यह स्थिति जनता की इच्छा से प्राप्त है जिसमें समूची प्रभुसत्ता निहित है । इस प्रकार सम्राट को प्रभुसत्ता का अंत कर दिया गया है ।

2. राजसी सिंहासन वंशानुगत है और यह विधानसभा (Diet) द्वारा पारित कानून के अनुसार उत्तराधिकार में सौंपा जाता है ।

3. सम्राट को सभी कार्यों के लिए मंत्रिमंडल की सलाह और स्वीकृति आवश्यक है ।

4. सम्राट केवल ऐसे काम कर सकता है जिनका वर्णन संविधान में किया गया है । उसे सरकार से जुड़ी कोई भी शक्तियां प्राप्त नहीं है ।

5. विधानसभा द्वारा अधिकृत किए जाने के बिना सम्राट किसी भी राजसी संपत्ति का लेनदेन नहीं कर सकता है ।

इस प्रकार संविधान ने सम्राट को केवल नाममात्र का संवैधानिक प्रमुख बनाया है । उसकी सत्ता कड़ाई के साथ संवैधानिक राजतंत्र के औपचारिक कार्यों तक सीमित है । अपने ब्रिटिश समकक्ष की तरह वह केवल राज करता है, शासन नहीं ।

vi. संविधान की सर्वोच्चता और न्यायिक समीक्षा (Constitution Supremacy and Judicial Review): 

जापानी संविधान में संविधान की सर्वोच्चता के सिद्धांत को स्थापित किया गया है । इसको देश का सर्वोच्च (उच्चतम और मूलभूत) कानून माना जाता है । तमाम कानूनों, अध्यादेश, शाही राजघोषणाओं तथा सरकारी कार्यों को इस सर्वोच्च कानून के अनुरूप होना चाहिए ।

अगर ये संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध हैं, तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनको गैर-कानूनी और इसलिए अप्रभावी घोषित किया जा सकता है । अत: जापान ने जहाँ न्यायिक पुनरावलोकन का अमरीकी सिद्धांत अपनाया है, वहाँ दोनों के बीच अंतर भी है ।

अमरीकी सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की अपनी शक्ति संविधान से प्राप्त नहीं करता है जबकि जापान के सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति सीधे संविधान से मिलती है । जापानी संविधान की धारा 81 में यह विशेष रूप से कहा गया है कि किसी भी कानून, आदेश, विनियम या सरकारी कार्य की संवैधानिकता का निर्धारण करने का अंतिम न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय है ।

vii. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): 

जापानी संविधान में अधिकारों का प्रावधान अमरीका के अधिकार अधिनियम के मॉडल पर किया गया है । इसमें जापानी जनता को बड़ी संख्या में नागरिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार सुनिश्चित किए गए हैं और उनको ‘अपरिवर्तनीय और अलंघनीय’ घोषित किया गया है ।

न्यायिक समीक्षा के अपने अधिकार के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के नेतृत्व में न्यायपालिका इन अधिकारों के संरक्षक का काम करती है । जापानी संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार अमरीकी अधिकार अधिनियम की तुलना में अधिक सुस्पष्ट और सुनिश्चित हैं । संविधान की कुल 103 धाराओं में से 31 धाराएँ (10 से 40 तक निम्नलिखित) जनता के अधिकारों एवं कर्तव्यों को समर्पित हैं ।

संविधान ने निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए हैं:

(i) समानता का अधिकार,

(ii) स्वतंत्रता का अधिकार,

(iii) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार,

(iv) निजी संपत्ति का अधिकार,

(v) आर्थिक अधिकार,

(vi) शिक्षा का अधिकार,

(vii) सांस्कृतिक अधिकार,

(viii) संवैधानिक उपचार का अधिकार ।

viii. युद्ध का परित्याग (Abandonment of War): 

जापानी संविधान युद्ध तथा अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए उपाय के तौर पर धमकी या ताकत के प्रयोग के परित्याग को राष्ट्र का संप्रभु अधिकार घोषित करता है । यह जापान को थल, जल और वायु सेना तथा युद्ध की अन्य क्षमताओं को बनाये रखने से प्रतिबंधित करता है ।

यह राज्य के युद्ध संलग्नता के अधिकार को भी स्वीकार नहीं करता है । जापान पहला आधुनिक राज्य है जिसने युद्ध का सदा के लिए संवैधानिक तौर पर परित्याग किया है । जापानी संविधान की यह सबसे अनोखी और सबसे विवादास्पद विशेषता है ।

संविधान में इस प्रावधान को जनरल मैक्आर्थर ने यह सुनिश्चित करने के लिए रखवाया था कि जापान को फिर कभी सैनिक राष्ट्र के रूप में व्यवहार करने की अनुमति न मिले जैसाकि उसने 1931 और 1945 के दौरान किया था ।

इस प्रावधान को संविधान में रखने का एक अन्य उद्देश्य यह भी था की सुदूर पूर्व में अमरीका के प्रतिद्वंदी के रूप जापान को एक ताकत के तौर पर समाप्त कर दिया जाए, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि अपनी सुरक्षा और प्रतिरक्षा के लिए जापान हथियारों आदि का प्रयोग नहीं कर सकता ।

किसी भी अन्य आधुनिक राज्य की तरह जापान की अपनी प्रतिरक्षा क्षमता है । लेकिन संवैधानिक तौर पर सही प्रदर्शित करने के लिए, ‘प्रतिरक्षा सेना’ शब्द का प्रयोग किया गया है । यह इस आधार पर न्यायोचित है कि विदेशी आक्रमणकारी के विरुद्ध प्रत्येक देश को अपनी रक्षा करने का जन्मजात अधिकार है ।

ix. द्विसदनी पद्धति (Bicameral System): 

जापानी संसद (Diet) द्विसदनीय है, अर्थात इसमें दो सदन हैं- हाउस ऑफ कौंसिलर्स या पार्षद सभा (उच्चसदन) और हाउस ऑफ रिप्रजेन्टेटिव्स या प्रतिनिधि सभा (निम्नसदन) । पार्षद सभा में छह वर्ष के लिए निर्वाचित कुल 252 सदस्य होते हैं ।

इनमें से 152 का चुनाव भौगोलिक आधार अर्थात स्थानीय निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर और शेष 100 का चुनाव पूरे देश में से अर्थात राष्ट्रीय निर्वाचन क्षेत्र से होता है । प्रतिनिधि सभा में कुल 512 सदस्यों का निर्वाचन चार वर्ष के कार्यकाल के लिए किया जाता है ।

प्रतिनिधि सभा को, विशेषतया वित्तीय मामलों में पार्षदसभा से अधिक अधिकार प्राप्त होते हैं । संवैधानिक तौर पर राजसत्ता का सर्वोच्च और एकमात्र विधि निर्माता अंग विधानसभा (Diet) है ।

x. केंद्र सरकार का संगठन (Organisation of Central Government):

जापान में केंद्र सरकार के संगठन का निर्धारण राष्ट्रीय सरकारी संगठन कानून (1948) के द्वारा होता है । वर्तमान में केंद्र सरकार का गठन बारह मंत्रालयों और प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा किया जाता है ।

मंत्रालय निम्न हैं:

1. वित्त मंत्रालय,

2. गृह मंत्रालय,

3 न्याय मंत्रालय,

4. स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय,

5. परिवहन मंत्रालय,

6. विदेश मंत्रालय,

7. श्रम मंत्रालय,

8. शिक्षा मंत्रालय,

9. निर्माण मंत्रालय,

10. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मंत्रालय,

11. डाक एवं दूर संचार मंत्रालय,

12. कृषि, वानिकी एवं मत्स्य मंत्रालय ।

इन 12 मंत्रालयों और प्रधानमंत्री कार्यालय के अतिरिक्त जापान की केंद्र सरकार में कई आयोग और एजेंसियाँ कार्य करती हैं । उनका गठन मंत्रालयों अथवा प्रधानमंत्री कार्यालय के बाह्य अंगों के तौर पर होता है । आयोग के प्रमुख को अध्यक्ष तथा एजेंसी के प्रमुख को महानिदेशक कहा जाता है । प्रधानमंत्री कार्यालय के कुछ बाह्य अंगों के प्रमुख केन्द्रीय मंत्री (जिनको जापान में राज्यमंत्री कहते हैं) ।

प्रधानमंत्री कार्यालय के बाह्य अंगों के रूप में आयोग एवं एजेंसियों की सूची इस प्रकार है:

1. राष्ट्रीय सार्वजनिक सुरक्षा आयोग,

2. निष्पक्ष व्यापार आयोग,

3. पर्यावरणीय विवाद समन्वय आयोग,

4. प्रबंधन एवं समन्वय एजेंसी,

5. आर्थिक नियोजन एजेंसी,

6. पर्यावरण एजेंसी,

7. राष्ट्रीय भूमि एजेंसी,

8. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एजेंसी,

9. प्रतिरक्षा एजेंसी,

10. साम्राज्यीय सम्पदा एजेंसी,

11. ओकीनावा विकास एजेंसी,

12. होकैडो विकास एजेंसी ।

प्रत्येक मंत्रालय का प्रमुख कैबिनेट मंत्री (जिसे जापान मैं राज्यमंत्री भी कहते हैं) होता है । वह एक राजनीतिज्ञ होता है और उसके सहायकों में एक या दो संसदीय उपमंत्री और एक प्रशासनिक उपमंत्री शामिल होता है । कैबिनेट मंत्रियों की तरह संसदीय उपमंत्री भी राजनीतिक आधार पर नियुक्ति पाते हैं और इनका कार्य मंत्रियों के राजनीतिक कार्यों में सहायता करना है । दूसरी ओर, प्रशासनिक उप-मंत्री उसी मंत्रालय में पेशेवर लोकसेवक होता है । भारत में सचिव और ब्रिटेन में स्थायी सचिव की तरह वह भी मंत्रालय का प्रशासनिक प्रमुख होता है ।

जापान में मंत्रालय के अधिकारियों के श्रेणीक्रम का संकेत निम्न है:

मंत्रालय अनेक ब्यूरो में विभक्त हैं और प्रत्येक ब्यूरो प्रभागों में बंटा होता है जिनका आगे विभाजन अनुभागों में होता है । ब्यूरो, प्रभागों और अनुभागों के प्रमुख पेशेवर अधिकारियों के पदनाम क्रमश: महा-निदेशक, निदेशक और अनुभाग प्रमुख होते हैं ।

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