Read this article in Hindi to learn about the meaning and importance of investment management.
विनियोग प्रबन्ध का अर्थ (Meaning of Investment Management):
‘विनियोग’ से आशय वित्तीय सम्पत्तियों अथवा मूर्त सम्पतियों से है जिनमें पूजी लगाने के बाद एक निश्चित समय बाद निश्चित रकम की प्राप्ति की आशा हो । ‘प्रबन्ध’ का अर्थ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मानवीय क्रियाओं को नियोजित, संगठित, निर्देशित, उत्प्रेरित, समन्वित तथा नियंत्रित करने की कला तथा विज्ञान है ।
विनियोग प्रबन्ध को सरल शब्दों में परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि ”विनियोग प्रबन्ध आय में से उपभोग करने के उपरान्त बचाये गये धन के इस प्रकार नियोजित, संगठित, निर्देशित, उत्प्रेरित, समन्वित तथा नियंत्रित करने कीं कला तथा विज्ञान है ताकि उस धन से अतिरिक्त आय प्राप्त हो सके तथा उसके वास्तविक मूल्य में वृद्धि का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त किया जा सके ।”
हैनरी सावैन के अनुसार – ”प्रबन्ध का आशय इच्छित परिणाम की प्राप्ति हेतु किये गये उद्देश्यपूर्ण कार्य से है ।”
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कुछ स्थितियों में प्राप्य लक्ष्यों का निर्णय करने तथा परिभाषित करने का कार्य विनियोग प्रबन्धकों के लिए सबसे कठिन कार्य है । जब यह कार्य सम्पन्न हो जाता है तब दूसरा प्रश्न होता है कि किस प्रकार हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम विधि से आगे बढें?
इस प्रश्न का सम्पूर्ण उत्तर है- एक विनियोग कार्यक्रम या विनियोग नीतियों का एक समूह जिसमें यह बताया गया है कि अभी क्या करना है तथा भविष्य में विभिन्न परिस्थितियों में क्या किया जाता है । विनियोग, प्रबन्ध का तीसरा भाग है । विनियोग, नीतियों के अनुरूप विशेष प्रतिभूतियों का चयन करके नीतियों का क्रियान्वयन है । इन नीतियों के क्रियान्वयन के लिए समयानुसार विभिन्न प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय किया जाता है ।
उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार विनियोग प्रबन्ध के निम्नांकित तत्व स्पष्ट होते हैं:
(1) इच्छित लक्ष्यों का निर्णय करना तथा उन्हें परिभाषित करना,
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(2) लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विनियोग कार्यक्रम बनाना तथा विनियोग की नीतियों का निश्चय करना तथा
(3) विनियोग नीतियों का क्रियान्वयन करना तथा उसके अनुरूप प्रतिभूतियों का क्रय एवं विक्रय करना ।
विनियोग प्रबन्ध का महत्व (Importance of Investment Management):
वर्तमान परिस्थितियों में विनियोग प्रबन्ध अधिक महत्वपूर्ण होता जा रहा है । इसके बढ़ते हुए महत्व को देखते हुये प्रत्येक विनियोक्ता अपने-अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए विनियोग करता है ।
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विनियोग प्रबन्ध का महत्व निम्नानुसार है:
(i) सेवा निवृत्ति के उपरान्त पर्याप्त धन हेतु:
एक व्यक्ति 55 या 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त (Retire) होता है । सेवा निवृत्ति के उपरान्त अपने शेष जीवन को सम्मान पूर्ण ढंग से जीने के लिए उसे कुछ धन तथा नियमित आय की आवश्यकता महसूस होती है । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु व्यक्ति अपनी आय का कुछ हिस्सा बचाता है तथा उसे ऐसे उपयोगी विनियोगों में लगाता है ताकि उसके धन के वास्तविक मूल्य में वृद्धि हो सके एवं नियमित आय भी प्राप्त होती रहे । विनियोग प्रबन्ध उनके इस उद्देश्य की पूर्ति करता है ।
(ii) करों का भार कम करने के लिए:
वर्तमान में जहां एक ओर व्यक्तिगत् कतें जैसे आयकर, धनकर, उपहार कर आदि की दसे में वृद्धि हो रही है । वहीं दूसरी ओर कुछ विशिष्ट मदों में विनियोग करने (जैसे जीवन बीमा, प्राविडेण्ट फण्ड, राष्ट्रीय बचत-पत्र, यूनिट ट्रस्ट आदि) पर कसे में छूट भी मिलती है । व्यक्ति एक उचित विनियोग योजना को अपनाकर व्यक्तिगत् करो से छूट प्राप्त कर सकता है तथा कर का भार हल्का कर सकता है ।
(iii) मुद्रा प्रसार का प्रभाव कम करने के लिए:
पिछले कुछ वर्षों से बाजार में वस्तु की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि होती जा रही है तथा मुद्रा की कीमत में कमी हो रही है । यदि कोई व्यक्ति अपनी बचत को यों ही पड़ा रहने दे तो कुछ वर्षों के उपरान्त मुद्रा प्रसार के प्रभाव के कारण उसके क्रय-मूल्य में कमी आती जायेगी ।
इस प्रकार यह आवश्यक हो जाता है कि कठिन परिश्रम से की गयी बचत का विनियोग ऐसी जगह किया जाये जहां उसके वास्तविक मूल्य में वृद्धि हो तथा नियमित आय भी मिलती रहे । विनियोग प्रबन्ध का ज्ञान इस उद्देश्य की प्राप्ति में बहुत सहायता करता है ।
(iv) अतिरिक्त आय का उचित विनियोजन:
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त रोजगार तथा शिक्षा के अवसरों में वृद्धि हुई है । समाज में महिलायें जो लगभग अशिक्षित ही रहती थीं अब न केवल शिक्षा प्राप्त करती हैं वरन् पारिवारिक आय में वृद्धि के लिए विभिन्न नौकरियों में भी जाती हैं । परिवार में पुरुष तथा महिला दोनों के पास रोजगार होने के करण आय में वृद्धि होती ही है । इस बढ़ी हुई अतिरिक्त आय का उचित विनियोजन करने के उद्देश्य की पूर्ति विनियोग प्रबन्ध के ज्ञान से ही सम्भव हो सकती है ।
(v) तरलता के उद्देश्य की पूर्ति के लिये:
प्रत्येक व्यक्ति भविष्य में आवश्यकताओं के लिये बचत तो करता ही है साथ ही वह यह भी चाहता है कि उसका धन ऐसी जगह विनियोजित किया जाये ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसे प्राप्त हो सके । दूसरे शब्दों में, वह तरलता (Liquidity) बनाए रखना चाहता है ।
संपत्तियों में रोकड़ (Cash) सबसे अधिक तरल संपत्ति है किन्तु रोकड़ को तरल रूप में रखे रहने से कोई लाभ नहीं होता है बल्कि मुद्रा प्रसार के कारण उसकी वास्तविक कीमत में कमी हो जाती है । इस प्रकार को कहीं-न-कहीं ऐसी जगह विनियोजित करना आवश्यक होता है जहां तरलता भी बनी रहे तथा उससे लाभ भी कमाया जा सके ।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये विभिन्न प्रतिभूतियों विशेष रूप से ऐसी कम्पनियों के अंश (Shares) खरीदे जाते हैं जिन्हें बाजार में शीघ्र बेचकर नकदी प्राप्त की जा सके ।
न केवल व्यक्ति बल्कि विभिन्न व्यावसायिक संस्थाएँ तथा बैंक आदि भी अपनी रोकड़ में ऐसे अंशों में विनियोजित करती हैं जिन्हें बेचकर शीघ्र रोकड़ तैयार की जा सके । बैंक तथा वित्तीय संस्थाएँ अपनी अतिरिक्त रोकड़ से अंशों को खरीद लेती हैं तथा जब रोकड़ की आवश्यकता होती है तो अंशों में बेच देती है । इस प्रकार रोकड़ को बेकार पड़े रहने की बजाय उससे लाभ कमाया जाता है । कब किस अंश में खरीदना तथा बेचना है जिससे लाभ भी हो तथा आवश्यकतानुसार तरलता भी बनी रहे, यह बात विनियोग प्रबन्ध के अध्ययन से ही ज्ञात हो सकती है ।
(vi) जोखिम तथा अनिश्चितता को कम करने के लिये:
सामान्यतः अधिक ब्याज दर वाले विनियोगों में जोखिम (Risk) तथा अनिश्चित्ता होती है जबकि कम ब्याज दर वाले विनियोग अपेक्षाकृत सुरक्षित होते हैं । सरकारी प्रतिभूतियां, बांड, विभिन्न बचत योजनाएं तथा बैंकों में जमा किये जाने वाले धन पर ब्याज अपेक्षाकृत कम प्राप्त होता है किन्तु इनमें धन लगाना अधिक सुरक्षित रहता है जबकि विभिन्न कम्पनियों के अंशों, ऋण-पत्रों तथा अन्य योजनाओं में धन लगाने पर यद्यपि ब्याज तो अधिक मिलता है किन्तु कम्पनियों के डूब जाने का भी भय बना रहता है ।
विनियोक्ता कई बार अधिक ब्याज पाने के लालच में अपने मूलधन से भी हाथ धो बैठता है । विनियोग प्रबन्ध के व्यवस्थित अध्ययन से ऐसी प्रतिभूतियों का चयन करना सरल हो जाता है जिनमें जोखिम तथा अनिश्चितता कम हो तथा ब्याज भी ऊँची दर से नियमित रूप से प्राप्त होता रहे ।
(vii) आय को अधिकतम् करने के लिये:
विनियोग प्रबन्ध के अध्ययन से विनियोक्ता अपनी आय अधिकतम् कर सकता है । विनियोग प्रबन्ध का अन्तिम उद्देश्य या लक्ष्य विनियोग से प्राप्त होने वाली आय को अधिकतम् ही करना होता है । बाजार में तरह-तरह की प्रतिभूतियां, अंश एवं ऋण-पत्र उपलब्ध होते है, जिनमें विनियोग किया जा सकता है । विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों, मकान, जमीन तथा सोने में भी विनियोग किया जा सकता है । देश की अर्थव्यवस्था के अनुरूप इन विनियोगों के मूल्य में उतार-चढाव होता रहता है । विनियोग प्रबन्ध का जानकर उचित समय पर इन विनियोगों को क्रय करता है तथा बेचता है । क्रय एवं विक्रय के सम्बन्ध में विनियोक्ता द्वारा लिये गये सही निर्णय से लाभ में अधिकतम किया जा सकता है ।
(viii) सही विनियोग का चुनाव करने के लिए:
बाजार में तरह-तरह के विनियोगों में धन लगाने के अवसर उपलब्ध होते हैं । लाभ, जोखिम तथा अनिश्चितता के तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा सही विनियोग का चुनाव किया जा सकता है । जोखिम तथा अनिश्चितता से भयभीत विनियोक्ता कुछ कम लाभ प्राप्त करके भी सन्तुष्ट हो लेता है जबकि जोखिम एवं अनिश्चितता से न डरने वाला विनियोक्ता अधिक लाभ क्या सकता है ।
कम जोखिम तथा कम अनिश्चितता वाले विनियोगों से यद्यपि लाभ क्या सकता है किन्तु इसमें मूलधन सुरक्षित होता है एवं ब्याज से आय नियमित रूप से होती रहती है जबकि इसके विपरीत अधिक जोखिम एवं नियमित रूप से आय प्राप्त होने की गारण्टी नहीं होती साथ ही कभी-कभी तो अपने मूलधन से भी हाथ धोना पड़ता है । विनियोग प्रबन्ध का अध्ययन अपनी रुचि एवं आवश्यकता के अनुरूप सही विनियोग को चुनने तथा योजना बनाने में सहायता पहुँचाता है ।
(ix) पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति करने के लिये:
विभिन्न व्यक्तियों के अपने पारिवारिक दायित्व होते है । बच्चों की शिक्षा, विवाह, रहने के लिये मकान तथा सेवा निवृत्ति के उपरान्त पारिवारिक भरण-पोषण आदि के दायित्व ऐसे ही कुछ दायित्व है । विनियोग प्रबन्ध का अध्ययन इन दायित्वों की पूर्ति हेतु उचित योजना बनाने में सहायक होता है ।
विनियोग की उचित योजना बनाने से सही समय पर धन उपलब्ध हो सकता है तथा पारिवारिक दायित्व की पूर्ति की जा सकती है उदाहरणार्थ बच्चों की शिक्षा के लिये निर्धारित अवधि के लिए बैंक की स्थायी जमा योजना (Fixed Deposit Scheme) या राष्ट्रीय बचत-पत्र (National Saving Certificates) में धन लगाया जा सकता है ।