Read this article in Hindi to learn about the meaning, types and alignment of lathe centres.

लेथ सेंटर्स का अर्थ और प्रकार (Meaning and Types of Lathe Centres):

लेथ पर लंबे जॉब के दोनों किनारों को हैडस्टॉक और टेलस्टॉक की ओर से सहारा देने के लिए लेथ सेंटर्स का प्रयोग किया जाता है । लेथ सेंटर्स प्राय: हाई कार्बन स्टील के बनाए जाते हैं जिनको हार्ड व टेम्पर करके ग्राइडिंग फिनिश कर दिया जाता है ।

प्रकार:

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मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के लेथ सेंटर्स प्रयोग में लाए जाते हैं:

1. लिव सेंटर:

जो सेंटर हैडस्टॉक के स्पिण्डल में लगी स्लीव में फिट किया जाता है उसे लिव सेंटर कहते हैं । इसका प्रयोग हैडस्टॉक की ओर से जॉब को सहारा देने के लिए किया जाता है । इसकी शैंक पर मोर्स स्टैण्डर्ड टेपर कटा होता है और नोंक का कोण 60° होता है ।

2. डैड सेंटर:

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जो सेंटर टेलस्टॉक के स्पिण्डल में फिट किया जाता है उसे डैड सेंटर कहते हैं । इसका प्रयोग टेलस्टॉक की ओर से जॉब को सहारा देने के लिए किया जाता है ।

इसका प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियां अपनाने की आवश्यकता पड़ती है:

(a) जॉब के काउंटर सक होल और डैड सेंटर की नोंक पर ग्रीस लगा कर कार्य करना चाहिये ।

(b) जॉब को दोनों सेंटरों के बीच अधिक कस कर नहीं बांधना चाहिए ।

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(c) जॉब को दोनों सेंटरों के बीच पकड़ कर हाथ से घुमा कर चैक कर लेना चाहिए कि वह अधिक जाम या ढीला तो नहीं है । अधिक ढीला होने पर जॉब पर टर्निंग सही नहीं होगी और कसा होने पर सेंटर जल जायेगा ।

(d) सेंटरों के बीच में जॉब को बार-बार कसना या ढीला नहीं करना चाहिये । इससे टर्निंग सही नहीं होगी ।

3. अन्य प्रकार के कुछ सेंटर्स:

(i) साधारण सेंटर:

इस प्रकार के सेंटर को एक धातु से बनाया जाता है । मुख्यतः साधारण, कार्यों के लिए इसका उपयोग किया जाता है ।

(ii) हाफ सेंटर:

इस प्रकार के सेंटर की नोंक का कुछ भाग चपटा कर दिया जाता है । इसका उपयोग तब किया जाता है जब किसी जॉब की फेसिंग बिना सेंटर हटाए करनी हो ।

(iii) टिप्ड सेंटर:

इस प्रकार के सेन्टर की शैंक प्रायः माइल्ड स्टील की होती है और नोंक पर कार्बाइड या किसी हार्ड एलॉय का टिप बेज कर दिया जाता है जिससे टिप वियर रेजिस्टेंट हो जाता है ।

(iv) बाल सेंटर:

इस प्रकार के सेंटर की नोंक पर एक बाल बनी होती है जिससे घिसावट कम होती है । इस सेंटर का प्रयोग टेपर टर्निंग करत समय किया जाता है । विशेषतया टेल स्टॉक ऑफसेट विधि से टपर काटते समय इस सेन्टर का उपयोग करते हैं तथा जॉब को सेन्टरों के मध्य बांधते समय दोनों ओर बाल सेन्टर फिट करके ऑफसेट विधि से टेपर काटते हैं ।

(v) पाइप सेंटर:

इस प्रकार के सेंटर की नोंक आगे से चपटी कर दी जाती है । इसका मुख्य उपयोग पाइप, शैल और हॉली सिरे वाले कार्य को टेल स्टॉक की ओर से सहारा देने के लिए किया जाता है

(vi) रिवाल्विंग सेंटर:

इस प्रकार के सेंटर में घर्षण पैदा नहीं होती । क्योंकि इसकी बॉडी में एक बियरिंग फिट रहता है । इस प्रकार कार्य के साथ सेंटर भी घूमता है और घर्षण पैदा नहीं हो सकता है । इसका मुख्य उपयोग वहां पर किया जाता है जहां पर बड़े व भारी कार्य को अधिक स्पीड पर चलाना हो ।

(vii) इन्सर्टिड टाप सेंटर:

इस प्रकार के सेन्टर में हाई स्पीड स्टील से सेन्टर के आकार के अनुसार एक इन्सर्ट बना लिया जाता है जो कि छोटे साइज का होता है । इस इन्सर्ट को एक स्टील की टेपर बाडी में फिट कर दिया जाता है । इससे यह लाभ होता है कि यदि सेन्टर खराब भी हो जाये तो उसे कम लागत में बदला जा सकता है ।

(viii) सेल्फ ड्राइविंग सेंटर:

यह एक लाइव सेन्टर है जिस हैड स्टॉक स्पिण्डल में बांधकर प्रयोग में लाते हैं । इस सेन्टर की नोंक पर ग्रूव बने होते हैं जिससे ग्रिपिंग अच्छी आती है और कार्य को सेल्फ ड़ाइविंग मिलती है । इसका प्रयोग प्रायः तब किया जाता है जब किसी कार्य पर एक ही सेटिंग में पूरी लम्बाई तक मशीनिंग करनी होती है । इस सेन्टर को केवल साफ धातु के कार्यों पर प्रयोग में लाया जा सकता है । हार्ड धातुओं के लिए यह उपयोगी नहीं है ।

(ix) फिमेल सेंटर:

इस सेन्टर के सिरे पर 60° का काउंटर संक होल बना होता है । इसका मुख्य उपयोग ऐसे कार्यों को सहारा देने के लिए किया जाता है जिनका सिरा नोंक वाला हो अर्थात् जिनके सिरे पर काउंटर संक होल न बना हो ।

अलाइनमेंट ऑफ लेथ सेंटर्स (Alignment of Lathe Centres):

लेथ पर जब कार्य को सेंटरों के बीच में पकड़कर टर्निंग की जाती है तो चैक करना आवश्यक होता है कि दोनों सेंटर्स आपस में एक-दूसरे के बिलकुल सीध में हैं कि नहीं । यदि दोनों सेंटर्स सीध में नहीं होंगे तो कार्य का साइज एक ओर सें अधिक और दूसरी ओर से कम हो सकता है अर्थात् कार्य टेपर में बन सकता है । इसलिये दोनों सेंटर्स का सीध में होना अति आवश्यक है जिसे ”अलाइनमेंट ऑफ सेंटर्स” कहते हैं ।

लैथ सेंटर्स को प्रायः निम्नलिखित कार्य रीतियों से अलाइनमेंट में करते हैं:

कार्य रीति नं. 1 (ट्रायल कट विधि):

1. एक बेलनाकार धातु की रॉड को लेथ सेंटरों के बीच में कैरियर की सहायता से बांध लेना चाहिये ।

2. लेथ टूल द्वारा कैरियर के पास रॉड के सिरे पर लगभग 5 या 6 मिमी. चौड़ा कट ‘A’ लगा देना चाहिये ।

3. क्रॉस स्लाइड की फीड को उसी पोजीशन में रखकर रॉड को सेंटरों से निकाल लेना चाहिये ।

4. कैरेज को टेत्नस्टॉक की और ले जाना चाहिये ।

5. रॉड को उलटकर दोबारा पहले वाली पोजीशन में बांध लेना चाहिये ।

6. रॉड के दूसरे सिरे पर पहले सेट की हुई क्रॉस स्लाइड फीड से लगभग 5 या 6 मि.मी. चौड़ा कट ‘B’ लगा लेना चाहिये ।

7. ‘A’ और ‘B’ दोनों के व्यासों को अलग-अलग चैक करना चाहिये । यदि दोनों सिरों के व्यास बराबर हों तो समझना चाहिये कि लेथ सेंटर्स अलाइनमेंट में हैं । यदि दोनों व्यासों में अंतर हो तो टेल स्टॉक के नट को समायोजित करके लेथ सेंटर्स का अलाइनमैंट कर लेना चाहिये ।

कार्य रीति नं. 2 (टेस्ट मेंड्रल):

i. लगभग 250 मि.मी. लंबी परिशुद्धता में टर्निंग की हुई एक टेस्ट रॉड की लेथ सेंटरों के बीच में बिना कैरियर की सहायता से बांध लेना चाहिये ।

ii. डायल टेस्ट इंडिकेटर को टूल पोस्ट के पास फिक्स कर लेना चाहिये ।

iii. कैरेज की सहायता से डायल टेस्ट इण्डिकेटर को पूरी रॉड पर लंबाई से चलाना चाहिए ।

यदि डायल टेस्ट इंडिकेटर की सुई में कोई हलचल न हो तो समझना चाहिये कि सेंटर्स अलाइनमेंट में हैं । यदि सुई आगे या पीछे जाती है तो तेल स्टॉक के नट को समायोजित करके सेंटरों को अलाइनमेंट में कर लेना चाहिए ।

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