Read this article in Hindi to learn about the two important fasteners used in a factory.

1. रिवॉट और रिवॉटिंग (Rivet and Riveting):

रिवॉट एक गोल धातु का पीस होती है जिसके एक सिरे पर हैड, बीच में बॉडी और दूसरे सिरे पर टेल बनी होती है । इसका मुख्य प्रयोग दो या दो से अधिक धातु की प्लेटों को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है ।

मेटीरियल:

रिवॉट प्रायः रॉट ऑयरन या साफ्ट स्टील, पीतल, तांबा और एल्युमीनियम आदि से बनाई जाती हैं ।

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वर्गीकरण:

रिर्वेट का वर्गीकरण उसके मेटीरियल, हैड के आकार, बॉडी की लंबाई और व्यास के अनुसार किया जाता है । जैसे माइल्ड स्टील स्नैप हैड रिवॉट 12×3 मि.मी. ।

प्रकार:

i. स्नैप हैड रिवॉट:

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इस प्रकार की रिवॉट का हैड अर्धवृत्ताकार होता है । इसका प्रयोग प्रायः बनावट संबंधी कार्यों के लिए किया जाता है ।

ii. पान हैड रिवॉट:

इस प्रकार की रिवॉट का हैड तसले के आकार का होता है । इस रिवॉट का प्रयोग प्रायः बड़े साइज के बनावट संबंधी कार्यों के लिये किया जाता है ।

iii. काउंटरसिंक हैड रिवॉट:

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इस प्रकार की रिवॉट का हैड ऊपर से गोलाई में अधिक और नीचे से कम होता है । इस रिवॉट का अधिकतर प्रयोग वहां पर किया जाता है जहां पर रिवॉट के हैड को जॉब की सतह से ऊपर न रखना हो ।

iv. कोनिकल हैड रिवॉट:

इस प्रकार की रिवॉट का हैड शंकु के आकार का होता है । इसका अधिकतर प्रयोग हल्के कार्यों के लिये किया जाता है ।

v. मशरूम हैड रिवॉट:

इस रिवेंट से धातु की सतह के ऊपर रिवॉट हैड की ऊंचाई कम की जाती है ।

vi. फ्लैट हैड रिवॉट:

इसका प्रयोग शीट मेटल ज्वाइनिंग में करते हैं ।

2. सोल्डर और सोल्डरिंग (Solder and Soldering):

धातु के दो या अधिक पार्टस को आपस में अर्ध स्थायी रूप से जोड़ने के लिए सोल्डरिंग की जाती है । इसमें ज्वाइंट को जोड़ने के लिए जो माध्यम प्रयोग में लाया जाता है उसे सोल्डर कहते हैं ।

सोल्डर:

सोल्डर एक प्रकार का मिश्रण होता है जिसमें सीसा और टिन को मिलाया जाता है । साधारण सोल्डर का गलनांक 205C होता है । इसके अतिरिक्त कई प्रकार के सोल्डर पाए जाते हैं । तालिका में सॉफ्ट सोल्डर और हार्ड हार्ड सोल्डर के विभिन्न मिश्रण दिए गए हैं ।

सोल्डरिंग:

यह एक प्रकार की कार्य क्रिया है जिसमें सोल्डर के द्वारा दो या अधिक पार्ट्स को आपस में अर्ध स्थायी रूप से जोड़ा जाता है ।

सोल्डरिंग प्रायः निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

1. सॉक्स सोल्टरिंग:

इसमें साफ सोल्डर का प्रयोग करके धातु के दो या अधिक पार्टस को आपस में जोडा जाता है ।

2. हार्ड सोल्टरिंग:

इसमें सिल्वर सोल्डर या चेस्टर का प्रयोग करके दो या अधिक पार्टस को आपस में जोड़ा जाता है ।

हार्ड सोल्डरिंग निम्नलिखित दो प्रकार की होती है:

(क) सिल्वर सोल्डरिंग

(ख) ब्रेजिंग

सोल्डर का चयन:

सोल्डर के चयन को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं:

a. प्रयोग में लाया जाने वाला स्थान

b. गलनांक

c. ठोस होने की रेंज

d. स्ट्रैंग्थ

e. हार्डनैस

f. सील करने की योग्यता

g. दाम

फ्लक्स:

जिस माध्यम से ज्वाइंट को साफ किया जाता है उसे फ्लक्स कहते हैं । यह प्रायः द्रव, पेस्ट या पाउडर के रूप में पाया जाता है । जब सोल्डरिंग या ब्रेजिंग की जाती है तो ज्वाइंट के ऊपर फ्लक्स को लगाया जाता है ।

फ्लक्स के निम्नलिखित मुख्य कार्य होते हैं:

I. ज्वाइंट को साफ करना ।

II. सोल्डर को शीघ्र पिघलाने और उसका बहाव बढ़ाने ।

III. ज्वाइंट के ऊपर सोल्डर या स्पेल्टर की मजबूत पकड़ लाना ।

IV. कोरोजन को दूर करना ।

सॉफ्ट सोल्डरिंग की विधि:

i. जिस ज्वाइंट पर सोल्डरिंग करनी है उसे अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए जिससे मिट्टी की धूल ग्रीस या जंग आदि को हटाया जा सके ।

ii. सोल्डरिंग आयरन के टिप के फेस पर फाइल लगा कर अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए ।

iii. सोल्डरिंग आयरन के टिप के फेस को गर्म करके उस पर पलकर लगाकर टिनिंग कर देनी चाहिए ।

iv. ज्वाइंट पर फ्लक्स लगा देना चाहिए ।

v. गर्म सोल्डरिंग आयरन को सोल्डर के साथ ज्वाइंट के एक सिरे से शुरु करके धीरे-धीरे दूसरे सिरे तक ले जाना चाहिए जिससे पिघला हुआ सोल्डर ज्वाइंट में बैठता जाएगा ।

vi. सोल्डरिंग कार्यक्रिया समाप्त होने के बाद पार्टस को ठंडा करके साफ कर देना चाहिए ।

स्वैटिंग:

यह एक प्रकार की साफ्ट सोल्डरिंग है जिनमें प्रायः प्लेन सरफेस पर टिनिंग कार्य क्रिया की जाती है । यह कार्यक्रिया स्प्लिट बुश पर भी की जाती है । इसमें बुश के दोनों भागों की जोड़ी जाने वाली सतहों को टिनिंग अर्थात् साफ सोल्डर की कोटिंग कर दी जाती है ।

फिर दोनों भागों को मिलाकर क्लेम्प कर दिया जाता है और जोड़ वाले स्थानों पर फ्लक्स लगाकर उसे गर्म किया जाता है जिससे क्लिट बुश के दोनों भागों को अलग कर दिया जाता है । इस प्रकार प्लेन सरफेस या क्लिट बुश पर टिनिंग करने की कार्यक्रिया को स्वैटिंग कहते हैं ।

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