Here is a list of top eleven fasteners used in industries in Hindi language.

मशीनों को छोटे या बड़े कई प्रकार के पार्ट्स को मिलाकर बनाया जाता है । इन पार्ट्स को आपस में जोड़ने के लिए कई प्रकार के माध्यम प्रयोग में लाए जाते हैं । इन माध्यमों को फास्टनर्स कहते हैं और जिस कार्य विधि से इनका प्रयोग करते हैं उसे फास्टनिंग कहते हैं ।

मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार की फास्टनिंग होती है:

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a. टेम्परेरी फास्टनिंग:

मशीन के कई पार्ट्स होते हैं जिनको बार-बार खोलने या बांधने की आवश्यकता होती है । इसलिए ऐसे पार्ट्स की टेम्परेरी फास्टनिंग की जाती है । जैसे नट और बोल्ट, ‘की’ कॉटर, पिन, स्क्रू, स्टड इत्यादि से पार्ट्स को जोड़ना ।

b. सेमी परमानेंट फास्टनिंग:

मशीन के कई पार्ट्स ऐसे होते हैं जिनको न तो स्थाई रूप से बांधा जाता है और न ही अस्थाई रूप से । इस प्रकार की फास्टनिंग तब प्रयोग की जाती है जब पार्ट्स को जोड़ देने के बाद किसी कारणवश अलग करने की आवश्यकता पड़ती है । इसमें पार्टस को जब अलग किया जाता है तो फास्टनर खराब हो सकता है और पार्ट्स में अधिक खराबी नहीं आती है । जैसे सोल्डरिंग करके पार्ट्स को जोड़ना ।

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c. परमानेंट फास्टनिंग:

मशीन के कई पार्ट्स ऐसे होते हैं जिनको स्थाई रूप से आपस में जोड़ा जाता है । इसमें जोड़े गए पार्टस को आसानी से अलग नहीं किया जा सकता । यदि इनको अलग करने की कोशिश की जाए तो पार्ट्स और ‘फास्टनर’ दानों के खराब होने की संभावना रहती है । जैसे रिवॉटिंग और ब्रेजिंग करना ।

1. चाबी और चाबीघाट (Key and Keyway):

किसी असेम्बली में पार्ट्स को अस्थाई रूप में जोड़ने के लिए कई प्रकार के माध्यम प्रयोग में लाए जाते हैं जिनमें से चाबी भी एक है । चाबी एक धातु का पीस होती है जिसको शाफ्ट और पुली या गियर आदि के चाबीघाट में फिट किया जाता है । इस प्रकार चाबी फिट करने से शाफ्ट और पुली या गियर एक साथ चाल ले सकती हैं ।

चाबीघाट:

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शाफ्ट पर और हब के बीच में अक्ष के समानान्तर चाबी को फिट करने के लिए जो ग्रुव बनाया जाता है उसे चाबीघाट कहते हैं । चाबीघाट को बनाने के लिए साइज के अनुसार मार्किंग करके चाबीघाट बनाया जाता है । मार्किंग करने के लिए ‘की सीट रूल’ या बाक्स स्क्वायर का प्रयोग किया जा सकता है ।

चाबीघाट प्रायः निम्नलिखित विधियों से बनाए जाते हैं:

i. हाथ द्वारा:

हाथ के द्वारा चाबीघाट बनाने के लिए पहले साइज के अनुसार मार्किंग कर ली जाती है । मार्किग के अंदर निश्चित गहराई तक चेन ड्रिलिंग की जाती है । फिर साइड कट चीजल से साइजों को बनाया जाता है और बीच की अनावश्यक धातु क्रॉस कट चीजल से साफ करते हैं ।

आखिर में फाइल से चाबीघाट को साइज में फिनिश कर दिया जाता है । हब से चाबीघाट बनाने के लिए मार्किंग करने के बाद हेक्सॉ से साइडों को काट लिया जाता है और बीच की अनावश्यक धातु को क्रॉस कट चीजल से साफ कर दिया जाता है और अंत में फाइल से चाबीघाट को फिनिश कर दिया जाता है ।

ii. मशीन द्वारा:

इस विधि में चाबीघाट की मार्किंग करने के बाद मशीनिंग करके चाबीघाट को बनाया जाता है । जैसे शेपर, स्लॉटर या मिलिंग मशीन के द्वारा टूल या कटर का प्रयोग करके चाबीघाट बनाया जा सकता ।

चाबी को फिट करना या निकालना:

शाफ्ट और पुली या गियर आदि पर सही साइज का चाबीघाट बनाने के बाद चाबी को फिट किया जाता है । चाबी को फिट करने के लिए हाथ का दबाव लगाकर या हथौड़ी की हल्की चोट लगाकर फिट करनी चाहिए ।

कभी-कभी शाफ्ट से पुली गियर या व्हील आदि को बदलने की आवश्यकता पड़ती है जिससे चाबी को भी निकालना पड़ता है इसलिए चाबी को निकालने के लिए ‘की ड्रिफ्ट’ का प्रयोग किया जाता है । यदि चाबी अपने चाबी-घाट में जाम हो गई हो तो शाफ्ट से पुली, गियर या व्हील आदि को अलग करने के लिए व्हील पुलर का प्रयोग किया जा सकता है ।

2. कॉटर और पिन (Cotter and Pin):

कॉटर:

यह एक प्रकार का फास्टनर है जिसको शाप के अक्ष के क्रॉस में सुराख करके प्रयोग में लाया जाता है जबकि चाबी को शाफ्ट के अक्ष के समानान्तर प्रयोग में लाया जाता है । कॉटर प्रायः स्टील के पीस से वृत्ताकार आकार में बनाई जाती है । कुछ कॉटरों के एक सिरे पर चूड़ियां काट कर नट लगा दिया जाता है । प्लेन कॉटर पर साधारण टेपर बना होता है ।

पिन:

इसका प्रयोग भी कॉटर की तरह होता है जिसको शाफ्ट के अक्ष के क्रॉस में सुराख करके प्रयोग में लाया जाता है ।

कार्य के अनुसार ये कई प्रकार की पाई जाती है जोकि प्रायः निम्नलिखित होती है:

I. सिलण्ड्रिकल पिनें:

ये पिनें सिलण्ड्रिकल आकार की होती हैं जिन्हें असेम्बलियों में होल की पोजीशन की लोकेशन के लिए प्रयोग किया जाता है । आवश्यकता पड़ने पर एक ही लोकेशन में पार्ट्स को असेम्बल और खोला जा सकता है जैसे प्रेस इन, मशीन टूल असेम्बली आदि ।

ये पिनें बिना हार्ड की हुई व हार्ड की हुई दशाओं में पाई जाती हैं:

(क) बिना हार्ड की हुई सिलण्ड्रिकल पिनें:

ये पिनें साधारण असेम्बली कार्य के लिए उपयोगी होती हैं और तीन प्रकार की पाई जाती हैं- एक सिरे पर पैकर्ड और दूसरे सिरे पर गोलाई वाली; दोनों चैम्फर्ड सिरों वाली; दोनों स्क्वायर सिरों वाली इन पिनों को नाम, नामिनल डायमीटर, डायमीटर पर टॉलरेंस, नामिनल लम्बाई और बी.आई.एस. नम्बर के द्वारा नामांकित की जाती है जैसे सिलण्ड्रिकल पिन 10h8 x 20 IS:2393 ।

(ख) हार्ड की हुई सिलण्ड्रिकल पिनें:

इन पिनों को डॉवल पिनें भी कहते हैं जिन्हें उच्च ग्रेड की स्टील से बनाकर ग्राइडिंग द्वारा फिनिश कर दिया जाता है । स्टैंडर्ड डवल पिनों के एक सिरे पर 5° का टेपर बना होता है । इनकी सरफेस हार्डनैस 60 से 64 HRC और कोर हार्डनैस 50-54 HRC होती है । ये पिनें उच्चतम शियर फोर्स को सहन कर सकती हैं और प्रिसीजन असेम्बलियों में प्रयोग की जाती हैं जैसे जिस और फिक्सचर्स और अन्य टूल मेकिंग कार्य ।

II. टेपर पिनें:

ये पिनें 1:50 के टेपर के साथ बनाई जाती हैं और छोटी टॉर्क्स के ट्रांसमिशन के लिए प्रयोग की जाती है । असेम्बली कार्य में विभिन्न प्रकार की टेपर पिनें प्रयोग की जाती हैं जैसे टाइप-A, टाइप- B, और टाइप-C पिनें । टाइप-A टेपर पिनों की सरफेस फिनिश N6 होती है और टाइप-B टेपर पिनों की सरफेस फिनिश N7 होती है । इन पिनों को नाम, प्रकार, नॉमिनल डायमीटर (टेपर के छोटे सिरे का व्यास) नॉमिनल लम्बाई और बी.आई.एस. नम्बर द्वारा नामांकित किया जाता है जैसे टेपर पिन A10 x 50, स्प्लिट टेपर पिन C10 x 60 ।

III. थ्रेडिड टेपर पिनें:

इन पिनों का प्रयोग पिनों को लॉक करने और उन्हें लूज होने से रोकने के लिए किया जाता है तथा ब्लाइंड होल से पिनों को आसानी से बाहर भी निकाला जा सकता है । एक अन्य थ्रेडिड पिन भी पाई जाती है जिसमें अन्दरूनी थ्रेड्स बनी होती है जिससे लोकेटिंग होल से टेपर पिन को आसानी से बाहर निकाला जा सकता है

IV. ग्रुव्ड पिनें:

इन पिनों को उनकी बाहरी सरफेस पर तीन ग्रुव्स के साथ बनाया जाता है । ग्रुव्स की साइडें होल में फूल जाती हैं । इन पिनों के लिए होल को रीपर के द्वारा फिनिश नहीं किया जाता है । इन पिनों का प्रयोग वहां पर किया जाता है जहां पर अधिक परिशुद्धता की आवश्यकता नहीं होती है । ये पिनें स्ट्रेट पिनों की तरह और टेपर्ड पिनों की तरह प्रयोग की जाती हैं । हैडों वाली ग्रुव्ड पिनें भी पाई जाती हैं ।

V. स्प्रिंग पिनें:

ये पिनें फ्लैट स्टील बैंडों से बनाई जाती हैं और सिलण्ड्रिकल आकार में रोल कर दी जाती हैं । स्प्रिंग ऐक्शन के कारण ये पिनें फिटिंग होल में टाइट बनी रहती हैं ।

3. बोल्ट (Bolt):

बोल्ट एक गोल धातु का पीस होता है । इसके एक सिरे पर हैड बना होता है और दूसरे सिरे पर चूड़ियां बनी होती हैं । इसका मुख्य प्रयोग टेम्परेरी फास्टनिंग करने के लिए किया जाता है ।

मेटीरियल:

बोल्ट प्रायः माइल्ड स्टील के बनाए जाते हैं । कार्य के अनुसार ये बास और लाइट एलाय के भी पाए जाते हैं ।

वर्गीकरण:

बोल्ट का वर्गीकरण उसकी लम्बाई, व्यास, मेटीरियल और हैड के अनुसार किया जाता है ।

4. नट (Nut):

टेम्परेरी फास्टनिंग करने के लिए बोल्ट के साथ जिस साधन का प्रयोग करते हैं उसे नट कहते हैं । नट एक धातु का पीस होता है जिसमें स्क्रू थ्रेड बनी होती है । कार्य के अनुसार ये कई आकारों में पाए जाते हैं ।

प्रकार:

मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार के नट पाए जाते हैं:

i. हेक्सागोनल नट:

यह नट छ: पहलुओं वाला होता है जिसमें प्रायः स्टैंडर्ड साइज की ‘V’ आकार की चूडियां बनी होती हैं । इस नट का प्रयोग प्रायः साधारण कार्यों के लिए किया जाता है ।

ii. स्क्वायर नट:

यह नट चार पहलुओं वाला होता है जिसमें प्रायः स्टैंडर्ड साइज की ‘V’ आकार की चूड़ियां बनी होती हैं । इस नट का प्रयोग हेक्सागोनल नट की अपेक्षा कम किया जाता है ।

iii. डोम्ड कैप नट:

यह नट छ: पहलुओं वाला होता है जिसके ऊपरी भाग पर गोलाकार गुम्बद बना होता है । इस नट को बोल्ट पर उतना ही कसा जा सकता है जितनी गहराई में इसमें चूडियां बनी होती हैं ।

iv. थम्ब नट:

इस नट को नर्ल्ड नट भी कहते हैं । यह नट गोल आकार का होता है और इसकी गोलाई वाली बाहरी सरफेस पर नर्लिंग की होती है । इसको हाथ के अंगुठे और उंगलियों से घुमाते हैं ।

v. विंग नट:

इसको फ्लाई नट भी कहते हैं । इस नट के बीच के भाग में चूड़ियां बनी होती हैं और दोनों पंख के समान दो भाग बने होते हैं । इसकी हाथ की उंगली और अंगूठे से पकड़कर प्रयोग में लाया जाता है । इस नट का अधिकतर प्रयोग हेक्साफ्रेम, हैंड वाइस पर किया जाता है ।

vi. सेल्फ लॉंकिंग नट:

यह हेक्सागोनल नट होता है जिसमें नाइलन इनसर्ट लगे होते हैं । इन नाइलन इनसर्टों से नट लूज नहीं होने पाता ।

5. वॉशर (Washer):

जब नट और बोल्ट के द्वारा टेम्परेरी फास्टनिंग की जाती है तो पार्टस की स्थिति के अनुसार वॉशर का प्रयोग भी किया जाता है । वॉशर प्रायः धातु की शीट से बनाई जाती है जिसके सेंटर में एक सुराख बनाया जाता है । कार्य के अनुसार फेरस और नॉन-फेरस धातुओं की वॉशरें भी पाई जाती हैं ।

लाभ:

वॉशर के निम्नलिखित लाभ होते हैं:

(a) फ्रिक्शन ग्रिप बढ़ती है ।

(b) कम्पन के कारण नट को ढीला नहीं होने देती है ।

(c) जॉब को खराब होने से बचाती है ।

(d) फोर्स को अधिक क्षेत्रफल तक विभाजित कर देती है ।

विवरण:

वॉशर को उसके नाम, टाइप, साइज और इंडियन स्टैंडर्ड के नंबर तथा मेटीरियल के अनुसार विनिर्दिष्ट करते हैं जैसे- मशीन्ड वॉशर ।

उपयोग:

वॉशर का प्रयोग करने के प्रायः निम्नलिखित कारण होते हैं:

(a) टेम्परेरी फास्टनिंग करते समय पार्ट्स की सरफेस पर नट से खुरचन लगने से बचने के लिये ।

(b) टेम्परेरी फास्टनिंग करते समय अच्छी ग्रिपिंग लाने के लिये ।

(c) नट और पार्ट्स के बीच में स्पर्श का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिये ।

(d) नट पर कंपन या झटके का असर कम करने के लिये ।

(e) फिटिंग करते समय समायोजन करने के लिये ।

6. सर्क्लिप (Circlip):

सर्क्लिप एक फास्टनिंग डिवाइस है जिसे ‘रिटेनिंग रिंग’ भी कहते हैं । असेम्बली में पार्ट्स के मूवमेंट की पोजीशनिंग या सीमित करने यह शोल्डर प्रदान करता है । असेम्बलियों में प्रायः इनटर्नल और एक्सटर्नल सर्क्लिप प्रयोग में लाए जाते हैं । होल नोर या हाउसिंग में इनटर्नल और शॉफ्ट, पिन स्टड और इसी प्रकार के पार्टस पर एक्स्टर्नल सर्क्लिप प्रयोग में लाए जाते हैं ।

लाभ:

अन्य फास्टनिंग डिवाइसों की अपेक्षा सर्क्लिप के निम्नलिखित लाभ होते हैं:

a. उत्पादन की लागत कम होती है ।

b. रॉ मेटीरियल की बचत होती है ।

c. सरल मशीनिंग ऑपरेशनों के लिए सहायक होती है ।

d. पार्ट्स को शीघ्रता से असेम्बल किया जा सकता है ।

मेटीरियल:

सर्क्लिप प्रायः स्प्रिंग स्टील से बनाए जाते हैं जिनमें हाई टेंसाइल और यील्ड स्ट्रेग्थ होती है ।

7. स्टड (Stud):

ये गोल आकार की धातु के पीस से बनाये जाते हैं जिसके दोनों सिरों पर चूड़ियां बनी होती हैं और बीच का भाग प्लेन रखा जाता है । बीच का भाग गोल या चौकोर होता है । स्टड का प्रयोग प्राय: टेम्परेरी फास्टनिंग करने के लिये किया जाता है ।

i. प्लेन स्टड:

यह स्टड गोल आकार की धातु की रॉड से बनाया जाता है जिसके दोनों सिरों पर चूड़ियां बनी होती हैं और बीच का भाग प्लेन रखा जाता है । इसका प्रयोग प्रायः साधारण कार्यों के लिये किया जाता है ।

ii. शोल्डर स्टड:

यह प्लेन स्टड की तरह होता है । अंतर केवल इतना होता है कि इसमें एक शोल्डर बना होता है । इसके भी दोनों सिरों पर चूड़ियां बनी होती हैं । इस स्टड को जब फिट किया जाता है तो शोल्डर के कारण यह स्टड पाई की सरफेस पर अच्छी तरह से बैठ जाता है ।

8. स्क्रू (Screw):

टेम्परेरी फास्टनिंग करने के लिये नट और बोल्ट की भांति स्क्रू का प्रयोग भी किया जाता है । इसके एक सिरे पर चूड़ियां और दूसरे सिरे पर हैड या स्लॉट बना होता है । स्क्रू को प्रायः पेंचकस के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है । सॉकेट हैड स्क्रू को ‘ऐलन की’ के द्वारा प्रयोग में लाते हैं । स्कू प्रायः माइल्ड स्टील के बनाये जाते हैं परंतु कार्य के अनुसार कार्बन स्टील, बास आदि के भी स्क्रू पाये जाते हैं ।

9. लॉंकिंग डिवाइस (Locking Device):

मशीन को कई प्रकार के छोटे और बड़े पार्ट्स को असेम्बल करके बनाया जाता है । कुछ पार्ट्स स्थाई रूप से फिट किये जाते हैं । कुछ पार्ट्स ऐसे होते हैं जो कि अधिक कंपन और झटके लगने वाले स्थानों पर फिट किये जाते हैं ।

ऐसे पार्ट्स को नट और बोल्ट से जब अस्थाई रूप से फिट किया जाता है तो कंपन या झटकों के कारण नट के ढीला होने की संभावना रहती है जिससे कभी-कभी दुर्घटना भी हो जाती है । इसलिए ऐसे पार्ट्स की फास्टनिंग करते समय लॉक करने की आवश्यकता पड़ती है । नट को लॉक करने के लिए जो माध्यम प्रयोग में लाये जाते हैं उन्हें लाकिंग डिवाइस कहते हैं ।

10. टेपर (Taper):

किसी जॉब के दोनों सिरों के व्यासों या मोटाइयों की अक्ष रेखा से समरूपता में घटाव या बढाव को टेपर कहते हैं ।

लाभ:

(a) मशीन के पार्टस की सेटिंग आसानी से की जा सकती है ।

(b) टेपर से पार्टस स्वयं लॉक हो जाते हैं । इसलिये अलग से लॉंकिंग माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है ।

(c) पार्टस अपने आप सेंटर लाइन में फिट हो सकते हैं ।

(d) पार्टस को आसानी से अलग भी किया जा सकता है ।

टेपर प्रकट करने की विधियां:

i. टेपर को प्रति इंच में प्रकट कर सकते हैं ।

ii. टेपर को प्रति फुट में प्रकट कर सकते हैं ।

iii. टेपर का अनुपात देकर प्रकट कर सकते हैं जैसे 1:50 ।

iv. टेपर को डिग्री देकर प्रकट किया जा सकता है ।

v. टेपर का नं० देकर प्रकट किया जा सकता है जैसे मोर्स टेपर नं० 2 ।

vi. भारतीय स्टैंडर्ड टेपर को अनुपात और मानक नं० देकर प्रकट करते हैं । जैसे 1:12 ।

वर्गीकरण:

टेपर का वर्गीकरण निम्नलिखित की तरह करते हैं:

A. सेल्फ होल्डिंग टेपर:

इस टेपर पर 3° तक का छोटा टेपर कोण होता है यह टेपर स्वयं लोक हो जाता है जैसे टेपर शैक ड्रिल्स, रीमर्स इत्यादि ।

B. क्विक रिलीजिंग टेपर:

इस टेपर पर बडा टेपर कोण होता है । यह टेपर स्वयं लीक नहीं होता अर्थात् इसे अन्य लॉंकिंग डिवाइस की आवश्यकता होती है जैसे मिलिंग मशीन की आर्बर ।

11. स्प्रिंग (Spring):

स्प्रिंग एक साधन है जो कि कंपोनेंट्‌स को कंप्रेशन या टेंशन देता है । कार्य के अनुसार ये कई आकारों व प्रकारों में पाए जाते हैं ।

ये मुख्यतः निम्नलिखित के लिए प्रयोग किए जाते हैं:

(a) ऊर्जा को स्टोर करना तथा झटके व कंपन को कम करना जैसे वफ्फर्स, रेलवे कैरेज व्हील माउंटिंग्स ।

(b) मकेनिज्म्स को मोटिव पॉवर प्रदान करना जैसे घड़ियां ।

(c) लोड या टोर्क को कंट्रोल करना जैसे भार तोलने वाली मशीन ।

मेटीरियल:

स्प्रिंगों को प्रायः कार्बन स्टील, सिलिकन/मेंगेनीज स्टील, क्रोमियम/वेनेडियम स्टील, स्टेनलैस स्टील, टिटेनियम एलॉय से बनाया जाता है तथा आवश्यकता के अनुसार इनकी हीट ट्रीटमेंट कर दी जाती है ।

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