उच्चतम न्यायालय पर निबंध । Essay on “the Supreme Court of India” in Hindi Language!

स्थापना और गठन:

(i) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 124 उपबन्धित करता है कि भारत का एक उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित न करे, तब तक सात या उसे कम न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा ।

(ii) मूल रूप में सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक मुख्य न्यागाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों के वेतन या सेवा शर्तें निश्चित करने का अधिकार संसद को दिया गया था ।

(iii) संसद के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में 1956 में 1960 में तथा 1977 में वृद्धि की गयी तथा अधिनियम 1986 के द्वारा व्यवस्था की गयी है कि सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 25 अन्य न्यायाधीश होंगे ।

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(iv) संविधान के अनुच्छेद 124 में व्यवस्था है कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के विषय में राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करते      हैं । इस बात को लेकर विवाद था कि क्या राष्ट्रपति अकेले मुख्य न्यायाधीश के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है ।

(v) राष्ट्रपति द्वारा ये नियुक्तियां सर्वोच्च न्यायालय से प्राप्त परामर्श के आधार पर की जायेंगी ।

(vi) सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने से पूर्व ‘चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह’ से परामर्श प्राप्त करेंगे तथा न्यायाधीशों से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देंगे ।

(vii) सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने सर्वसम्मत निर्णय में कहा है: ”वरिष्ठतम न्यायाधीशों के समूह को एक मत से सिफारिश करनी चाहिए ।”

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(viii) जब तक न्यायाधीशों के समूह की राय मुख्य न्यायाधीश के विचार से मेल नहीं खाये तब तक मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति से कोई सिफारिश नहीं की जानी चाहिए ।

(ix) सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि भारत के मुख्य न्यायाधीश परामर्श की प्रक्रिया पूरे किये बिना न्यायाधीशों की नियुक्ति और उच्च न्यायालयों के स्थानान्तरण के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को सिफारिशें करते हैं, तो राष्ट्रपति ऐसी सिफारिश मानने के लिए बाध्य नहीं है ।

(x) सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भी व्यवस्था है ।  (अनुच्छेद 127)

(xi) तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश द्वारा राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से की जा सकती है ।

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(xii) तदर्थ न्यायाधीश के रूप में केवल उन्हीं व्यक्तियों को नियुक्त किया जा सकता है, जो सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखते हैं ।

(xii) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश में निम्न योग्यताओं का होना आवश्यक है:

(क) वह भारत का नागरिक हो ।

(ख) वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालय में लगातार कम-से-कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो या किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो ।

(ग) राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्चकोटि का ज्ञाता हो ।

(i) साधारणतय: सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकता है ।

(ii) इस अवस्था के पूर्व वह स्वयं त्याग-पत्र दे सकता है ।

(iii) दोषसिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के कारण संसद के द्वारा न्यायाधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है ।

(iv) यदि संसद के दोनों सदनों की बैठकों में उपस्थित और मत देने वाले मदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से किसी न्यायाधीश को अयोग्य या आपत्तिजनक आचरण करने वाला सिद्ध कर देते हैं, तो भारत के राष्ट्रपति के आदेश से उस न्यायाधीश को अपने पद से हटना होगा ।

(v) न्यायाधीश को हटाने वाला महाभियोग प्रस्ताव संसद के एक ही सत्र में स्वीकृत होना चाहिए ।

(vi) महाभियोग की स्थिति में न्यायाधीश को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिया गया है ।

(vii) भारत के संवैधानिक इतिहास में अब तक किसी न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव पारित नहीं किया गया है ।

(viii) संविधान के अनुच्छेद 125 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन संसद द्वारा निर्धारित किये जायेंगे । ये वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि से दिये जाते हैं ।

(ix) 1998 में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन में आवश्यक सुधार किया गया ।

(x) अब सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 33 हजार रुपये प्रतिमाह व अन्य न्यायाधीशों को 30 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन प्राप्त होता है ।

(xi) न्यायाधीशों के लिए पेंशन व सेवानिवृत्ति वेतन ग्रेज्यूटी की व्यवस्था सर्वप्रथम 1976 में की गयी थी और 1998 में उनकी पेंशन सेवानिवृत्ति वेतन व अन्य सेवा शर्तों में आवश्यक सुधार किये गये ।

(xii) संसद के द्वारा ही महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार करने के अतिरिक्त अन्य किसी समय पर न्यायाधीशों के आचरण पर विचार नहीं किया जा सकता ।

(xiii) अनुच्छेद 130 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का प्रधान कार्यालय दिल्ली में है ।

(xiv) मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठकें बुला सकता है । अभी तक दो बार उच्चतम न्यायालय दिल्ली के बाहर अधिविष्ट हुआ है । प्रथम बार हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश) 1950 में तथा दूसरी बार श्रीनगर (1954) में ।

(xv) संविधान में यह निश्चित किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से निवृत्ति के बाद भारत में वह किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं ।

(xvi) ‘संवैधानिक पीठ’ का आशय ऐसी पीठ से है, जिसके द्वारा संवैधानिक विवादों की सुनवाई की जाये ।

(xvii) सर्वोच्च न्यायालय ने प्रक्रिया सम्बन्धी नियम बनाकर यह व्यवस्था की है कि संवैधानिक पीठ में कम-से-कम पांच न्यायाधीश होंगे ।

(xviii) इस पीठ में पाँच से अधिक न्यायाधीश हो सकते हैं और व्यवहार में महत्त्वपूर्ण संवैधानिक विवादों की सुनवाई में पाँच से अधिक न्यायाधीश होते हैं ।

सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार या शक्तियां:

भारतीय संविधान के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को बहुत अधिक व्यापक क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है, जिसका अध्ययन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है ।

 प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार:

सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार को निम्नलिखित दो वर्गो में रखा जा सकता है :

1.प्रारम्भिक एकमेव क्षेत्राधिकार:

प्रारम्भिक एकमेव क्षेत्राधिकार का आशय उन विवादों से है, जिनकी सुनवाई केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है । अनुच्छेद 131 संघ तथा राज्यों या राज्यों के बीच विवादों के निर्णय का प्रारम्भिक तथा एकमेव क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय को सौंपता है । सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक एकमेव क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत निम्न विषय आते हैं:

(क) भारत सरकार तथा एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद ।

(ख) भारत सरकार संघ का कोई राज्य या राज्यों तथा एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद ।

(ग) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच संवैधानिक विषयों के सम्बन्ध में उत्पन्न कोई विवाद ।

2. प्रारम्भिक समवर्ती क्षेत्राधिकार:

(i) संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को लागू करने के सम्बन्ध में सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ उच्च न्यायालय को भी अधिकार प्रदान किया गया है ।

अत: मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से सम्बन्धित विवाद पहले किसी राज्य के उच्च न्यायालय में अथवा सीधे सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित किये जा सकते हैं ।

अपीलीय क्षेत्राधिकार:

(i) सर्वोच्च न्यायालय के प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के साथ-साथ संविधान ने अपीलीय क्षेत्राधिकार भी प्रदान किय। है और यह भारत का अन्तिम अपीलीय न्यायालय है । उसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है ।

(ii) सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

1. संवैधानिक, 2. दीवानी, 3. फौजदारी तथा 4. विशिष्ट ।

अभिलेख न्यायालय:

(i) अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है ।

(ii) अभिलेख न्यायालय के दो आशय हैं: प्रथम इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी रूप में स्वीकार किये जायेंगे और इन्हें किसी भी न्यायालय में प्रस्तुत किये जाने पर उनकी प्रमाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं उठाया जायेगा । द्वितीय इस न्यायालय के द्वारा न्यायालय की अवमानना के लिए किसी भी प्रकार का दण्ड दिया जा सकता है ।

मौलिक अधिकारों का रक्षक:

(i) भारत का सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक है । अनुच्छेद 22 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे ।

(ii) न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण परमादेश प्रतिषेध अधिकार पूचछा और उम्प्रेषण के लेख जारी कर सकता है ।

(iii) किसी व्यक्ति के अधिकारों का हनन होने पर वह सीधे सर्वोच्च न्यायालय की शरण ले सकता है ।

न्यायिक क्षेत्र का प्रशासन:

(i) सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक क्षेत्र के प्रशासन का अधिकार प्राप्त है ।

(ii) संविधान के अनुच्छेद 146 के अनुसार न्यायालय को अपने कर्मचारियों की नियुक्ति तथा उनकी सेवा शर्ते निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन राष्ट्रपति आवश्यक समझे तो यह निदेश दे सकता है इस प्रकार की नियुक्तियां लोक सेवा आयोग के परामर्श के बाद की जायें ।

(iii) सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय को न्यायिक प्रशासन के सम्बन्ध में भी निदेश दे सकता है ।

(iv) सर्वोच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र की इस व्यापकता को देखकर ही भारत के भूतपूर्व महान्यायवादी एम॰सी॰ सीतलवाड ने कहा था: ”इस न्यायालय के न्याय क्षेत्र तथा उसकी शक्तियां राष्ट्रीमण्डल के किसी भी देश के सर्वोच्च न्यायालय तथा संयुक्त राज्य अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र तथा शक्तियों से व्यापक हैं ।”

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