Read this article in Hindi to learn about:- 1. हिमाचल प्रदेश में गरीबी  का परिचय (Introduction to Poverty in Himachal Pradesh) 2. हिमाचल प्रदेश में गरीबी  के कारक (Causes of Poverty in Himachal Pradesh) 3. समस्याये एवं उपाय (Problem and Solution).

हिमाचल प्रदेश में गरीबी  का परिचय (Introduction to Poverty in Himachal Pradesh):

हिमाचल प्रदेश भारत के पर्वतीय प्रदेशों में से एक है जिसके अर्थव्यवस्था मुख्य: कृषि, कृषि बागवानी, खनिज, पर्यटन आदि आधार भूत तथ्यों से जुड़ा हे प्राकृतिक संसाधनी से सम्पन्न होने के साथ-साथ प्रशासनिक योजनाओं के द्वारा अन्य राज्यों की अपेक्षा गरीबी उन्मूलन के सहायक प्रयास सराहनीय रहे है ।

वर्ष 2004-05 अन्य राज्यों में गरीबी अनुपात की रचना में 2009-10 में घटकर सामान्यता: 6 से 8 प्रतिशत रही है जबकि हिमाचल प्रदेश यह अनुपात: 13.4 प्रतिशत रहा है । गरीबी उन्मूलन में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रम सराहनीय रहे है  ।  

जिसमें प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री रोजगार योजना, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना, जवाहर ग्राम समृद्धि योजना इत्यादि योजनाऐं गरीबी उन्मूलन में सहायक रही है हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था के आधार में कृषि, कृषि बागवानी, खनिज सम्पदा एवं पर्यटन आदि अर्थव्यवस्था के सुपुर्द किया है कृषि क्षेत्र 69 प्रतिशत काम काजी लोगों को सीधा रोजगार देता है कृषि और उसके सहायक क्षेत्र से प्रान्त आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पादन का 22 प्रतिशत है कृषि बागवानी में 1950 में फल उत्पादन 1200 मिट्रिक टन था जो 2007 में बढ़कर 695 लाख टन हो गया ।

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खनिज भण्डार जिसमें लौह अयस्क ताँबा, चाँदी, शीशा, यूरेनियम, चूने का पत्थर, सिलिका रेत, चटटानी नमक इत्यादि विद्यमान है वही पर्यटन के क्षेत्र में राज्य, पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशन का योगदान करता है जिससे कहा जा सकता है कि हिमाचल प्रदेश में गरीबी उन्तुलन में खनिज क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।

हिमाचल प्रदेश भारत के पर्वतीय प्रदेशों में एक है जिसकी अर्थव्यवस्था मुख्य: पर्यटन, कृषि, बागवानी एवं नदियों से जुड़े आधार भूमि व्यवस्थाओं से है प्राकृतिक रूप से संसाधनों से सम्पन्न राज्य होने के साथ-साथ सकारात्मक प्रशासनिक व्यवस्थाओं के कारण विगत दशकों में अन्य राज्यों की अपेक्षा गरीबी उन्मूलन या सन्तुलन सहायक कार्यक्रम सराहनीय रहें है ।

जहाँ भारत के अन्य राज्यों में गरीबी अनुपात 2004-05 के आंकडों की तुलना में 2009-10 में घटकर सामान्यत: 6-8 प्रतिशत रही है जबकि हिमाचल प्रदेश में यह अनुपात घटकर 13.4 प्रतिशत रहा है (योजना आयोग के आकड़े 2009-10) यह स्थिति विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं बाढ़, भूकम्प, बादल गिरना आदि समस्याओं के साथ है ।

गरीबी का आशय निम्न जीवन निर्वाह स्तर से होता हे जिसे सापेक्ष या निरपेक्ष दृष्टि से देखा जा सकता है योजना आयोग द्वारा गठित विशेष दल की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में प्रतिव्यक्ति 2400 कैलोरी / दिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी दिन ऊर्जा खाद प्राप्त नहीं हो रहा है, या प्राप्त कर पाने में असमर्थ है उसे गरीबी रेखा से नीचे माना जाता हैं ।

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जो हिमाचल प्रदेश 2009-10 में निर्धनता का प्रतिशत 95 है, जो अन्य प्रदेशों के मुकाबले औसतन कम है । कृषि हिमाचल प्रदेश का मुख्य व्यवसाय है कृषि से 69 प्रतिशत कामकाजी नागरिकों को सीधा काम मिलता है । कृषि और उसके सहायक क्षेत्र से प्राप्त आय प्रदेश के कुल घरेलू उत्पादन का 221 प्रतिशत भाग है ।

1950 में कृषि बागवानी में केवल 792 हैक्टर क्षेत्र बागवानी के अन्तर्गत था जो वर्तमान में बढ़कर 223 लाख हैक्टेयर हो गया है । पर्यटन क्षेत्र में प्रमुख स्थल, धर्मशाला, कुल्लू मनाली, सोलन्दू लाहोन, शिमला इत्यादि पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों द्वारा 2 करोड़ रूपये वार्षिक आय का योगदान राज्य की आय में होता है ।

हिमाचल प्रदेश में गरीबी  के कारक (Causes of Poverty in Himachal Pradesh):

हिमाचल में गरीबी कम होने के आधार को मुख्य: दो भागों में रखकर विश्लेषण किया जा सकता है जिसमें पहला प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े कारक एवं दूसरा प्रशासनिक (सरकारी) योजनाओं से जुड़े कारक ।

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1. प्राकृतिक संसाधनों से जुड़े कारक:

(i) तकनीकी कृषि एवं भण्डारण:

हिमाचल प्रदेश राज्य में कृषि भूमि केवल 10.4 प्रतिशत है जो लगभग 80 प्रतिशत भूमि वर्षा द्वारा सिंचित है वर्ष 2006-07 में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 16 लाख मिलियन टन रहा है ।

(ii) उन्नत बागवानी एवं परिवहन:

कृषि बागवानी में सेब, नाशपाती, आडू, बेर, जुमानी नींबू, आम, लीची, अमरूद इत्यादि फलों का उत्पादन किया जाता है वर्ष 1950 में फलो का उत्पादन 1200 मिट्रिक टन था जो 2007 में बढ़कर 6.95 लाख टन हो गया, फल उद्योग से लगभग 22.00 करोड़ रूपये की घरेलू वार्षिक आय प्राप्त होती है यहीं उन्नत कृषि में टेक्नोलॉजी मिशन 80 करोड़ रूपये की कुल लागत के साथ स्थापित किया गया है ।

(iii) खनिज सम्पदा:

हिमाचल प्रदेश में अनेक खनिज हे जिनमें चूने का पत्थर, डोलोमाइट युक्त चूने का पत्थर, सिलिका रेत और स्लेट एवं लौह अयस्क, ताँबा, चाँदी, शीशा, युरेनियम और प्राकृतिक गैस भी पाई जाती है स्लेट की 222 छोटी एवं बड़ी खाने पाई जाती है ।

(iv) सुनियोजित पर्यटन आधारित विकास:

हिमाचल प्रदेश में पर्यटन उद्योग को उच्च प्राथमिकता दी गई है राज्य सरकार ने विकास के लिये सुनियोजित विकास किया गया हे जिसमें जनपयोगी सेवाऐं सडकें संचार के तंत्र, हवाई अड्‌डे, यातायात, सेवाऐं, जलापूर्ति और जनस्वास्थय सेवाओ को शामिल किया है राज्य पर्यटन विकास निगम की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है ।

2. प्रशासकीय (सरकारी) योजनाओं से संबंधित कारक:

अन्य राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश में भी गरीबी को ध्यान में रखकर उनके हितार्थ विभिन्न योजनायें एवं प्रयास किये जा रहे है ।

जिनमें मुख्यत: है:

(i) प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम:

स्वरोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित करने के लिये प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम 15 अगस्त, 2008 से शुरू किया गया है । इस योजना के अन्तर्गत 5 से 10 लाख रूपये तक ऋण सहायता उपलब्ध कराई जाती है । जिससे लोगों के जीवन में आर्थिक सुधार होने से गरीबी का स्तर कम हुआ है ।

(ii) प्रधानमंत्री रोजगार योजना:

यह योजना वर्ष 1993 से प्रारम्भ की गई इस योजना के अन्तर्गत शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिये 10 लाख रूपये तक ण प्रदान कर उद्योग सेवा कारोबार में सहायता प्रदान करता है ।

(iii) मनरेगा:

इस योजना के द्वारा ग्रामीण बेरोजगारी भूख और गरीबी से निजात पाने के लिये केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना 2 फरवरी, 2006 से प्रारम्भ की गई इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन श्रम वालों को रोजगार की गारंटी दी गई, जिसमें 60 से 120 रूपये तक प्रतिदिन मजदूरी दी जाती है ।

(iv) स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना:

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना 1 दिसम्बर, 1997 में लागू की गई है । इस योजना के अन्तर्गत निर्धनता निवारण वित्तीय सहायता प्रदान करना एवं स्वरोजगार सृजन हेतु उत्पादक परिसम्पत्तियों का निर्माण करता है ।

(v) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना:

यह योजना 1 अप्रैल 1999 में प्रारम्भ की गई । इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी एवं अल्प बेरोजगारी व्यक्तियों के लिये लाभकारी रोजगार अवसरों का सृजन करता है ।

हिमाचल प्रदेश में गरीबी की समस्याये एवं उपाय (Problem and Solution of Poverty in Himachal Pradesh):

i. बढ़ती जनसंख्या:

हिमाचाल प्रदेश में बढ़ती जनसंख्या गरीबी का प्रमुख कारण रही है । जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है । जनसंख्या वृद्धि से गरीबी के उपभोग स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है ।

ii. बेरोजगारी की समस्या:

देश में सारी श्रमिक संख्या रोजगार में नहीं लगी होती । अपितु उसका एक भाग बेरोजगार भी होता हैं । कोई भी क्षेत्र या वर्ग इससे मुक्त नहीं है । बेरोजगारी गाँवों में और शहरों में भी समान रूप से पाई जाती है ।

iii. बाद की समस्या:

हिमाचल प्रदेश में अधिक वर्षा होने के कारण कृषि पर अधिक प्रभाव पड़ता है जिससे लोगों का जीवन सार गिर जाता है और बाढ़ भुखमरी महामारी जैसी समस्या देखने को मिलती है ।

iv. दोषपूर्ण विकास रणनीति:

देश में गरीबी तथा आय-विषमताओं के लिये विकास की रणनीति भी बहुत हद तक उत्तरदायी है ।

v. मुद्रा प्रसार और मूल्य वृद्धि:

राज्य में बढ़ते विकास व्ययों को पूरा करने के लिये भारी मात्रा में घाटे की वित्त व्यवस्था का सहारा लिया जाता है । इससे अर्थव्यवस्था पर भारी स्फीति कारी दवाब उत्पन्न हुए है और कीमतें बढ़ी हैं जिससे निम्न आय वर्ग में गरीबी का स्तर बढ़ रहा है ।

भूकम्प की समस्या एवं अन्य प्राकृतिक आपदायें:

हिमाचल प्रदेश में भूकम्प जैसे प्राकृतिक आपदाऐ आने से राज्य की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है । जिससे लोगों का जीवन स्तर प्रभावित होता है और उनको बार-बार अपनी अर्थव्यवस्था को पुर्नजीवित करना पड़ता है ।

उन्मूलन के उपाय:

राज्य शासन के सुनियोजित प्रशासनिक कारण गरीबी का स्तर 2009-10 से घटकर 95 प्रतिशत रहा जबकि यह 2004-05 में 225 प्रतिशत रहा था गरीबी उन्मूलन के लिये अन्य सुझाव / उपाय भी हे ।

जिससे अर्थव्यवस्था में सकारात्मक सुधार होते हुये परस्पर जीवन स्तर सुधारा जा सकता है जो निम्न है:

(i) पर्वतीय क्षेत्र संबंधी उद्योग की स्थापना:

इसके अंतर्गत कृषि, खनिज पर्यटन से लघु उद्योग कुटीर एवं बड़े कारखाने स्थापित हो जिससे उससे संबंधित खपत को राज्य के निर्माण से पूरा किया जायें, जिससे शासकीय राजस्व एवं जनसामान्य को रोजगार उपलब्ध हो ।

(ii) परिवहन एवं पर्यटन संबंधी अन्य सुधार:

पर्यटन के क्षेत्र में अच्छी आय हो जिसे बढ़ाये जाने का प्रयास किया जाना चाहिए, पुराने स्थलों की खोज, उनका बेहतरीन रख-रखाव, परिवहन संचार से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर उत्पन्न किये जाए ।

(iii) निम्न स्तर (आय) को प्रेरित करना:

गरीबी रेखा के नीचे व्यक्तियों को विभिन्न तरीकों से शिक्षित करना, विशेष शिक्षा कार्यक्रम चलाना जो सीधे रोजगार संबंधित हो, लघुकालिक पाठ्‌यक्रम उपलब्ध करना जो पर्यटन आदि के क्षेत्र में मान्य हो और अवसर उपलब्ध कराये जाये जैसे होटल मैनेजमेंट, भ्रमण सलाहकार, यात्रा प्रबंधक आदि ।

इसके अतिरिक्त विभिन्न सरकारी योजनाओ का लाभ लेना सुनिश्चित कराया जायें । इन सभी प्रयासों से राज्य में निम्न आर्थिक स्तर (गरीबी) में संख्यात्मक एवं गुणात्मक और भी कमी होगी जिसका अन्य राज्य विशेषकर पर्वतीय प्रदेश लाभ उठा सकते है ।

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