संघ व राज्यों के मध्य सम्बंध । “Relations between the Union and the States”!

(i) केन्द्र-राज्य सम्बन्ध को भारतीय संविधान भाग 11 में, अनुच्छेद 245-263 में स्पष्ट किया गया है ।

(ii) भारत संघ मैं केन्द्र-राज्य सम्बन्ध तीन वर्गों में वर्गीकृत किये गये हैं: 1. विधायी सम्बन्ध, 2. प्रशासनिक सम्बन्ध, 3. वित्तीय सम्बन्ध ।

विधायी सम्बन्ध:

(i) संविधान की सातर्वी अनुसूची (अनुच्छेद 246) में शक्तियों को तीन सूचियों में बांटा गया है: संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची ।

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(ii) संघ सूची पर विधि निर्माण की आइ धकारिता केवल संघ (संसद) को है ।

(iii) संघ सूची राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों की सूची है । इस सूची में रक्षा वैदेशिक मामले मुद्रा रेलवे संचार डाकघर जैसे विषय रखे गये हैं ।

(iv) समवर्ती सूची में ऐसे विषयों का वर्णन है, जिन पर संघ और राज्य दोनों ही विधि निर्माण कर सकते हैं । संविधान में डरा समवर्ती सूची कहा गया है ।

इनमें सम्मिलित कुछ प्रमुख विषय हैं-परिवार नियोजन, विवाह और विवाह विच्छेद जनसंख्या नियन्त्रण आदि ।

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(i) समवर्ती सूची के विषयों पर संसद  व राज्य विधानमण्डल दोनों ही विधि बना सकते हैं, लेकिन दोनों में विरोध की स्थिति में संघ की विधि प्रभावी होगी ।

(ii) ऐसे भी विषय हैं, जिनका उल्लेख संविधान की सातर्वी अनुसूची में किया गया है । इन पर विधि निर्माण कम संघ को दिया गया है कि वह उन विषयों पर कानून बनाये । ये अधिकार आयदिनष्ट कहलाते हैं ।

(iii) भारतीय संविधान में ऐसे प्रावधानों का भी उपबन्ध किया है, जब संसद राज्य सूची के विषय पर काल बनाये ।

(iv) अनुच्छेद 249 के अनुसार, यदि राज्यसभा अपने दो-तिहाई बहुमत से किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का सेनात्न्न कर दे तो संसद उस विषय पर विधि बना सकेगी लेकिन संघ की विधि मात्र रह वर्ष तक ही विधिमान्य रहेगी ।

प्रशासनिक सम्बन्ध:

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(i) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 73 एवं 162 के अनुसार, केन्द्र व राज्यों की प्रशासनिक शक्तियां उन विषयों तक सीमित होंगी, जिन विषयों तक उसे विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है ।

(ii) भारतीय संविधान में कुछ ऐसे उपबन्ध किये गये हैं, जिनके माध्यम से संघ राज्य प्रशासन पर भी अपना नियन्त्रण रख सकता है । इसको दो भिन्न कालों के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है: आपातकाल व सामान्यकाल ।

(iii) जहां तक आपातकाल का प्रश्न है, इसके प्रवर्तन काल में देश का पूरा प्रशासनिक तन्त्र एकात्मक राज्य के समान कार्य करने लगता है ।

(iv) शान्तिकाल में यद्यपि दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों में प्रशासन करते हैं, लेकिन ऐसे अनेक अवसर हैं, जिनकी सहायता से संघ का राज्यों पर नियन्त्रण हो सकता है ।

(v) इसका प्रथम माध्यम राज्यपाल होता है, जो कि राज्य का संविधान प्रमुख होने के साथ-साथ केन्द्र का प्रतिनिधि भी है ।

(vi) राज्यपाल की नियुक्ति स्थानान्तरण व पदक्षति तीनों पर संघ का नियन्त्रण है । राज्य अधिक-से- अधिक अपना विरोध प्रकट कर सकता है ।

(vii) संघ राज्य में प्रवर्तित केन्द्रीय विधि तथा अन्य विधियों के अनुपालन को सुनिश्चित कराने के लिए निदेश दे सकता है ।

(viii) संघ राज्यों को राष्ट्रीय तथा सैनिक महत्त्व के संचार साधनों को बनाने तथा रेलों के संरक्षण के लिए भी निदेश दे सकता है ।

(ix) संघ अनुसूचित जाति जन-जाति व अल्पसख्यक (भाषायी) के कल्याण के लिए योजना बनाने व उसके क्रियान्वयन के लिए राज्यों को निदेश दे सकता है ।

(x) संघ द्वारा दिये गये निदेशों के अनुपालन में यदि राज्य असफल रहता है, तो यह माना जायेगा कि राज्य का प्रशासन संवैधानिक उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता है । फलत: संघ राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकता है ।

(xi) संघ अनुच्छेद 258 के तहत राज्य को उसकी सहमति से किसी संघ सूची के विषय का प्रशासन सौंप सकता है ।

(xii) अनुच्छेद 258 के तहत, किसी राज्य का राज्यपाल संघ की सहमति ऐसे विषय से सम्बन्धित कृत्य संघ को सौंप सकेगा जिन पर उस राज्य के कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है ।

(xiii) अखिल भारतीय सेवाएं भी केन्द्र और राज्यों के मध्य महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक सहयोग स्थापित करती हैं । इन सेवाओं में भर्ती संघ द्वारा की जाती है, लेकिन ये अपनी सेवाएं राज्य को प्रदान करते हैं ।

(xiv) केन्द्र व राज्य के मध्य प्रशासनिक सम्बधों में केन्द्र को वरीयता प्रदान करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण अग सघ की राज्यों को अनुदान देने की शक्ति है ।

(xv) संघ कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लक्ष्य की पूर्ति के अधीक्षण के नाम पर राज्य के वित्तीय कार्यों पर अपना अप्रत्यक्ष नियन्त्रण स्थापित कर सकता है ।

(xvi) संविधान का अनुच्छेद 262 संसद को जल-सम्बधी विवादों के न्याय निर्णयन हेतु उपबन्ध करने का प्रावधान करता है ।

(xvii) अनुच्छेद 263 में अन्तर्राज्यीय परिषद् के सम्बन्ध में उपबन्ध किया गया है ।

वित्तीय सम्बन्ध:

(i) भारतीय संविधान के भाग 12 में (अनुच्छेद 264 से 291 तक) केन्द्र व राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों का उल्लेख है । केन्द्र व राज्यों में राजस्व वितरण की व्यवस्था बहुत कुछ भारत शासन अधिनियम 1935 का अनुसरण है ।

(ii) संघ व राज्यों के मध्य राजस्व का विभाजन मूलत 5 प्रकार से होता है ।

(iii) प्रथम भाग में अन्य रूप से सघ के राजस्व स्रोतों को रखा जा सकता है । ये कर संघ द्वारा लगाये व वसूल किये जाते हैं । इस राजस्व का प्रयोग संघ स्वयं करता है । इसमें आने वाले प्रमुख कर हैं-सीमा शुल्क निगम कर निर्यात शुल्क आयकर पर अधिकार इत्यादि ।

(iv) इसके उपरान्त राज्यों द्वारा लगाये व वसूले जाने वाले करों को रखा जा सकता है । इसके प्रमुख उदाहरण हैं : भू-राजस्व विज्ञापन पर कर उत्तराधिकार शुल्क, मनोरंजन कर, सम्पदा शुल्क विक्रय कर कृषि भूमि पर आय कर खनिज कर विद्युत् के उपयोग पर कर पथ कर इत्यादि ।

(v) तीसरी श्रेणी में ऐसे करों को रखा जा सकता है, जो लगाये तो संघ द्वारा जाते हैं, लेकिन इनको राज्य संग्रहीत करते हैं । इनमें स्टाम्प शुल्क ओषधियों व मृगार सामग्रियों पर उत्पाद शुल्क आदि आते हैं ।

(vi) चतुर्थ श्रेणी में उन करों को रखा जा सकता है, जो कि लगाये व संग्रहीत तो संघ द्वारा किये जाते है, लेकिन प्राप्तियों को राज्यों के मध्य वितरित कर दिया जाता है । इस भाग में कृषि भूमि से भिन्न सम्पत्ति के उत्तराधिकारी के सम्बन्ध में शुल्क, कृषि भूमि से भिन्न सम्पात्ति के सम्बन्ध में सम्पदा शुल्क रेल भाड़ों और माल भाड़ों पर कर समाचार-पत्रों के क्रय और उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर इत्यादि आते हैं ।

(vii) पांचवी श्रेणी में ऐसे कर आते हैं, जो कि लगाये व संग्रहीत तो संघ के द्वारा किये जाते हैं, लेकिन इनको राज्य व केन्द्र के मध्य वितरित कर दिया जाता है । इस वर्ग में कृषि आय से भिन्न आय पर कर उत्पाद शुल्क आदि आते हैं ।

परन्तु राजस्व में बंटवारे के बाद भी राज्यों की आर्थिक स्थिति सन्तोषजनक नहीं रहती है ।

(viii) फलत: संविधान मे प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक वर्ष संघ अपर्याप्त आर्थिक संसाधनों वाले राज्यों को सहायता अनुदान देगा ।

वित्त आयोग:

(i) संविधान के अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग की स्थापना का प्रावधान किया गया ।

(ii) वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति करता है । इसका कार्यकाल पाच वर्ष होता है । इस आयोग में एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं ।

(iii) अन्य चार सदस्य निम्नलिखित में से नियुक्त किये जाते हैं । एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश या ऐसी योग्यता रखने वाला व्यक्ति । ऐसा व्यक्ति जिसे सरकार के वित्त और लेखाओं का विशेष ज्ञान हो ।

ऐसा व्यक्ति जिसे वित्तीय विषयों और प्रशासन का व्यापक अनुभव हो । ऐसा व्यक्ति जिसे अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान हो ।

(iv) पहला वित्त आयोग 1951 में नियुक्त किया गया था जिनके अध्यक्ष के० सी० नियोगी थे ।

(v) वित्त आयोग का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होता है, जिसे सार्वजनिक कार्यों के बारे में अनुभव हो ।

वित्त आयोग के कार्य:

(i) संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों के जो इस अध्याय के अधीन उनमें विभाजित किये जाने हैं या किये जायें वितरण के बारे में और राज्य के बीच ऐसे आगमों के तत्सम्बन्धी भाग के आवण्टन के बारे में;

(ii) भारत संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धान्त के बारे में;

(iii) राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गयी सिफारिश के आधार पर राज्य में पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की अनुवृ।ग् के लिए किसी राज्य की उचित निधि के संवर्द्धन के लिए आवश्यक उपाय

करेगा ।

(iv) राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गयी सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगरपालिकाओं के संसाधनों की अनुपूर्ति के लिए किसी राज्य की संचित निधि के संवर्द्धन के लिए आवश्यक अत्युपायों के बारे में ।

(v) सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किये गये किसी अन्य विषय के बारे में ।

(vi) आयोग अपनी प्रक्रिया अवधारित करेगा और अपने कृत्यों के जालन में उसे ऐसी शक्तियां होंगी जो संसद विधि द्वारा उसे प्रदान करे ।

(vii) संविधान के अनुच्छेद 281 के अनुसार राष्ट्रपति संविधान के उपबन्धों के अधीन वित्त आयोग द्वारा की गयी प्रत्येक सिफारिशों को उस पर की गयी कार्रवाई के व्याख्यात्मक ज्ञापन सहित संसद के प्रत्चेक सदन के समक्ष रखवायेगा ।

(viii) संविधान लागू होने के बाद से अब तक 12 वित्त आयोग नियुक्त किये जा चुके हैं ।

भारत में योजना आयोग:

(i) आर्थिक नियोजन के इस कार्य को भली प्रकार सम्पन्न करने के लिए ही योजना आयोग की स्थापना की गयी है ।

(ii) संविधान योजना आयोग के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहता ।

(iii) इस आयोग की स्थापना केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल के संकल्प [संख्या पी॰ (सी॰) 50 भारत राजपत्र 15 मार्च 1950] के आधार पर सर्वप्रथम 15 मार्च, 1950 को की गयी ।

(iv) इस संकल्पना में कहा गया था कि वास्तविक संसाधनों को दृष्टि में रखते हुए तथा सभी संगत आर्थिक पहलुओं का निष्पक्ष विश्लेषण करते हुए व्यापक योजना बनाने को आवश्यकता है और इस कार्य के लिए ऐसे संगठन की आवश्यकता है, जो दैनिक एव प्रशासनिक कार्यकलापों से मुक्त हो किन्तु जिसका सरकार के उच्चतम स्तर पर सम्पर्क हो ।

राष्ट्रीय विकास परिषद:

(i) योजना के निर्माण में राज्यों की भागीदारी होनी चाहिए इस विचार को स्वीकार करते हुए सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 6 अगस्त, 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन किया गया ।

(ii) प्रधानमन्त्री इस परिषद् का अध्यक्ष होता है तथा योजना आयोग के सभी सदस्य इसके पदेन सदस्य होते हैं ।

(iii) समय-समय पर केन्द्र व राज्यों के अन्य मन्त्रियों को परिषद् की बैठकों में आमन्त्रित किया जा सकता है ।

राष्ट्रीय विकास परिषद् के उद्देश्य हैं:

(क) योजना आयोग की सहायता के लिए राष्ट्र के स्रोतों और साधनों का समुचित उपयोग करना तथा उनको गतिशील बनाना ।

(ख) सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में समरूप में आर्थिक नीतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना ।

(ग) देश के सभी भागों में तीव्र  एवं सन्तुलित विकास के लिए प्रयास करना ।

परिषद् के कार्य निम्ननिखित हैं:

(क) राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना ।

(ख) राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों-सम्बन्धी विषयों पर विचार करना ।

(ग) राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्रप्ति के लिए सुझाव देना ।

अन्तर्राज्यीय परिषद:

संविधान के अनुच्छेद 263 के अन्तर्गत केन्द्र एव राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति एक अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कर सकता है ।

अन्तर्राज्यीय परिषद् निम्न कार्य करेगी:

(क) वह राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों की जाच करेगी और उस पर परामर्श प्रदान करेगी ।

(ख) कुछ या सब राज्यों के या संघ या अधिक राज्यों के पारस्परिक हित से सम्बद्ध विषयों का अनुसंधान और उस पर विचार-विमर्श करेगी ।

(ग) ऐसे किसी विषय के बारे में अच्छे समन्वय हेतु नीति या कार्रवाईयों की सिफारिश करेगी ।

भारतीय राज्य व्यवस्था में पहली बार जून । 1990 में अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना की गयी ।

अन्तर्राज्यीय परिषद् में निम्न सदस्य होते है: प्रधानमन्त्री तथा उसके द्वारा मनोनीत छह कैबिनेट स्तर के मन्त्री, सभी राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्यमन्त्री एव जिन संघ क्षेत्रों में विधानसभा नहीं है, उनके प्रशासक । अन्तर्राज्यीय परिषद् के लिए एक स्थायी सचिवालय स्थापित किया गया है ।

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