भारत के संविधान पर टिप्पणियाँ | Notes on the Constitution of India in Hindi Language!

भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है । इसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं । संविधान में सरकार के संसदीय स्वरूप की व्यवस्था की गयी है, जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है ।

केन्द्रीय कार्यपालिका का सांवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति है । भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार केन्द्रीय सरकार की परिषद् में राष्ट्रपति तथा दो सदन हैं, जिन्हें राज्यों की परिषद् को राज्यसभा तथा लोगों की सदन को लोकसभा के नाम से जाना जाता है ।

संविधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था की गयी है कि राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होगी जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री होगा । राष्ट्रपति इस मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा । इस प्रकार वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद् में निहित है, जिसका प्रमुख प्रधानमन्त्री है ।

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मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी है । प्रत्येक राज्य में एक विधानसभा है । जम्मू-कशमीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और  आंध्रप्रदेश में एक ऊपरी सदन है, जिसे विधान परिषद् कहा जाता है ।

राज्यपाल राज्य का प्रमुख है । प्रत्येक राज्य का राज्यपाल होगा तथा राज्य कार्यकारी शक्ति उसमें विहित होगी । मन्त्रिपरिषद्, जिसका प्रमुख मुख्यमन्त्री है राज्यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों का निष्पादन करने में सलाह देती है । राज्य की मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है ।

संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्य विधायिकाओं के बीच न्यधायी शक्तियों का वितरण किया गया है । अविशिष्ट शक्तियां संसद में विहित हैं । केन्द्रीय प्रशासित भू-भाग को संघराज्य क्षेत्र कहा जाता है ।

अनुसूचियां:

i. पहली अनुसूची: (अनुच्छेद 1 तथा 4) : राज्य तथा राज्य क्षेत्र का वर्णन ।

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ii. दूसरी अनुसूची:  (अनुच्छेद 59 (3), 65 (3), 75 (6), 97, 125, 148 (3), 164 (5), 186 तथा 221): मुख्य पदाधिकारियों के वेतन-भत्ते, भाग क-राष्ट्रपति और राज्यपाल के वेतन-भत्ते; भाग ख-लोकसभा तथा विधानसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष राज्यसभा तथा विधान पिरषद् के सभापति तथा उपसभापति के वतेन-भत्ते; भाग ग-उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वतेन-भत्ते; भाग घ-भारत के नियन्त्रक-महालेखा परी क्षक के   वेतन-भत्ते ।

iii. तीसरी अनुसूची:  (अनुच्छेद 75 (4), 99, 124 (6), 148 (2), 164 (3), 188 और 219): इसमें व्यवस्थापिका के सदस्य मन्त्री राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति न्यायाधीशों आदि के लिए शपथ लिये जाने वाले प्रतिज्ञान के प्रारूप दिये       हैं ।

iv. चौथी अनुसूची:  (अनुच्छेद 4 (1), 80 (2) ): राज्यसभा में स्थानों का आवण्टन राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों से ।

v. पांचवी अनुसूची:  (अनुच्छेद 244 (1) ): अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जन-जातियों के प्रशासन और नियन्त्रण से सम्बन्धित उपबन्ध ।

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vi. छठी अनुसूची: (अनुच्छेद 244 (2), 275 (1) ): असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जन-जाति क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबन्ध ।

vii. सातवीं अनुसूची: (अनुच्छेद 246): विषयों के वितरण से सम्बन्धित सूची-1 संघ सूची; सूची-2 राज्य सूची; सूची-3 समवर्ती सूची ।

viii. आठवीं अनुसूची:  (अनुच्छेद 344 (1), 351) : भाषाएं-22 भाषाओं का उल्लेख ।

ix. नवीं अनुसूची:  (अनुसूची 31ख) : कुछ भूमि सुधार सम्बन्धी अधिनियमों का विधिमान्यकरण ।

X. दसवीं अनुसूची: (अनुसूची 102 (2), 191 (2) ) : दल परिवर्तन सम्बन्धी उपबन्ध तथा परिवर्तन के आधार पर ।

xi. ग्यारहवीं अनुसूची:  पंचायती राज से सम्बन्धित ।

xii. बारहवीं अनुसूची: यह अनुसूची संविधान में वे संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ी गयी ।

इतिहास: द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 के ब्रिटेन ने भारत सम्बन्धी अपनी नयी नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भेजा जिसमें तीन मन्त्री थे ।

15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरम्भ कर दिया । संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गये थे । जवाहरलाल नेहरू, डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे ।

इस संविधान सभा ने 2 वर्ष 11 माह, 18 दिन में कुल 166 दिन बैठकें कीं । इन बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी । भारत के संविधान के निर्माण में डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी इसलिए उन्हें संविधान का निर्माता कहा जाता है ।

भारतीय संविधान की प्रकृति:  संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने इसको संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है । अमेरिकी विद्वान् इसको लोक-संघात्मक-संविधान कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता । संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है ।

आधारभूत विशेषताएं:

i. शक्ति विभाजन:  यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों में विभाजित होती हैं । शक्ति विभाजन के चलते द्वेध सत्ता (केन्द्र एवं राज्य सत्ता) होती है । दोनों सत्ताएं एक-दूसरे के अधीन नहीं होती हैं, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियन्त्रित होती हैं, दोनों की सत्ता अपने- अपने क्षेत्रों में पूर्ण होती है ।

ii. संविधान की सर्वोच्चता:  संविधान के उपबन्ध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते हैं ।

केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद:

i. अनुच्छे, 54, 55, 73, 162, 241

ii. भाग 5 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक सम्बन्ध ।

iii. अनुच्छेद 7 के अन्तर्गत कोई भी सूची ।

iv. राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व ।

v. संविधान में संशोधन की शक्ति ।

vi. अनुच्छेद 368-इन सभी अनुच्छेदों में संसद अकेले संशोधन नहीं ला  सकती है उसे राज्यों की सहमति भी चाहिए । अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नहीं हैं ।

iii. लिखित संविधान:  संविधान अनिवार्य रूप से लिखित रूप में होगा; क्योंकि उसमें शक्ति विभाजन का स्पष्ट वर्णन आवश्यक है । अत: संघ में लिखित संविधान अवश्य होगा ।

iv. संविधान की कठोरता:  इसका अर्थ है-संविधान संशोधन में राज्य एव केन्द्र दोनों भाग लेंगे ।

v. न्यायालयों की आधेकारिता: इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून की व्यवस्था हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र सत्ता का निर्माण करेंगे ।

विधि द्वारा स्थापित:

1.1 न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियों के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे ।

1.2 न्यायालय संविधान के अन्तिम व्याख्याकर्ता होंगे । भारत में यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है । ये पांच शर्तें किसी संविधान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य हैं । भारत के संविधान में ये पांचों लक्षण मौजूद हैं, अत: यही संघात्मक है, परन्तु भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएं भी हैं ।

भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएं :

1. यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है ।

2. राज्य अपना पृथक् संविधान नहीं रख सकते हैं, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है ।

3. भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है । केवल भारतीय नागरिकता है ।

4. भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबन्ध हैं । अनुच्छेद 352 के लागू होने पर राज्य एवं केन्द्र की शक्तियों का पृथक्करण समाप्त हो जायेगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जायेगा । इस स्थिति में केन्द्र का राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभुत्व हो जाता है ।

5. केन्द्र बिना राज्यों की सहमति से कभी भी राज्यों का नाम क्षेत्र तथा सीमा परिवर्तित कर सकता है (अनुच्छेद 3), अत: राज्य भारतीय संघ के अनविार्य घटक नहीं हैं । केन्द्र सँघ को पुनर्निर्मित कर सकती है ।

6. संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियां हैं-संघीय राज्य तथा समवर्ती । इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष में है ।

6.1 संघीय सूची में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विषय हैं ।

6.2. इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है ।

6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्त्वपूर्ण हैं । पांच विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है, किन्तु किसी एक भी परिस्थिति में राज्य केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते ।

क 1 अनुच्छेद 249:  राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है (दो-तिहाई बहुमत से) किन्तु यह बन्धन मात्र एक वर्ष हेतु लागू होता है ।

क 2 अनुच्छेद 250:  राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर ससद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है ।

क 3 अनुच्छेद 252: दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पारित कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है । (केवल सम्बन्धित राज्यों पर)

क 4 अनुच्छेद 253 :  अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए ससद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है ।

क 5 अनुच्छेद 356 : जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्थिति में संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है ।

7. अनुच्छेद 155: राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है । इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियन्त्रण रख सकता है ।

8. अनुच्छेद 360:  वित्तीय आपाकाल की दशा में राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियन्त्रण हो सकता है ।

9. प्रशासनिक निदेश (अनुच्छेद 256-257):  केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाये इसके बारे में निदेश दे सकता है । ये निदेश किसी भी समय दिये जा सकते हैं । राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है । यदि राज्य इन निदेशों का पालन न करे तो राज्य में संवैधानिक तन्त्र असफल होने पर अनुमान लगाया जा सकता है ।

10. अनुच्छेद 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है । ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णत: केन्द्र के अधीन है, जबकि ये सेवा राज्यों में देते हैं । राज्य सरकारों का इन पर कोई नियन्त्रण नहीं है ।

11. एकीकृत न्यायपालिका ।

12. राज्यों की कार्यपालिका शक्तियां संघीय कार्यपालिका शक्तियों पर प्रभावी अन्य हो सकती हैं ।

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