Read this article in Hindi to learn about the causes of rise of Napoleon.

कोर्सिका द्वीप के एक मामूली परिवार में उत्पन्न नेपोलियन बोनापार्ट का फ्रांस की राजनीति में उत्कर्ष यूरोपीय इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना थी । 1799 ई. में राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसात्मक वारदातों से परेशान होकर फ्रांस की जनता को नेपोलियन की तानाशाही स्वीकार करनी पड़ी ।

1795 से 1799 ई. के बीच डॉयरेक्टरी के शासनकाल में नेपोलियन का उत्कर्ष हुआ था । यह शासनकाल लज्जाजनक पराभवों और असफलताओं का काल था । घरेलू और वैदेशिक दोनों क्षेत्रों में डॉयरेक्टरी असफल रही थी और मध्यमवर्गीय प्रभुत्व के कारण निम्न वर्गों की परेशानियाँ बहुत बढ़ गयी थीं ।

ऐसे समय में नेपोलियन एक मुक्तिदाता के रूप में प्रकट हुआ और परिस्थिति से लाभ उठाकर उसने सत्ता हथिया ली । नेपोलियन का राजनीतिक जीवन एक मामूली सैनिक के रूप में शुरू हुआ था ।

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क्रांति के दिनों में वह कोर्सिका से पेरिस आया और जैकोबिन दल का एक सदस्य हो गया । फिर उसे सेना में एक छोटा-सा पद मिला । पेरिस की उग्र भीड़ को दबाने से उसकी ख्याति बढ़ गयी और वह गृह-सेना का सेनापति नियुक्त किया गया ।

उस समय फ्रांस का आस्ट्रिया से युद्ध चल रहा था । नेपोलियन की इच्छा थी कि डॉयरेक्टरी शासन उसे आस्ट्रिया के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई करने के लिए इटली जाने की अनुमति दे ।

यह अनुमति उसे मिल गयी और नेपोलियन 1797 ई. में अपने प्रथम इटालवी अभियान पर चल निकला । नेपोलियन के नेतृत्व में फ़्रांसीसी सेना ने आस्ट्रिया के विरुद्ध इटली में अनेक चमत्कार किये, आस्ट्रिया पराजित हुआ तथा इटली के एक बड़े भू-भाग पर नेपोलियन ने अधिकार कर लिया ।

नेपोलियन की विजयों के फलस्वरूप फ्रांस विरोधी यूरोपीय राज्यों का प्रथम गुट टूट गया । नेपोलियन का यश यूरोप भर में फैल गया । केवल इंगलैण्ड ही एक ऐसा देश था जो अभी फ्रांस के विरुद्ध टिका हुआ था ।

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इंगलैण्ड को हराना कुछ कठिन था, क्योंकि फ्रांस की नौ-सेना इंगलैण्ड से कमजोर थी । अत: नेपोलियन ने इंगलैण्ड को भारत में पराजित करने की योजना बनायी और एक विशाल सेना लेकर फ्रांस से रवाना हुआ ।

जब अंग्रेजों को इस योजना की भनक मिली तब उन्होंने नेपोलियन के मनसूबों को चकनाचूर करने के उद्देश्य से एडमिरल नेलसन को भेजा । नील नदी के मुहाने पर इन दोनों में भिड़न्त हुई और नेपोलियन बुरी तरह हार गया ।

उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर गया । निराश होकर कुछ दिनों तक वह अलेक्जेण्ड्रिया में बैठा रहा, पर जब फ्रांस की कठिनाइयों की खबर उसके पास पहुँचने लगीं, तब वह स्वदेश लौटने के लिए आतुर हो उठा । 9 अक्टूबर, 1799 को वह पेरिस पहुँचा ।

डॉयरेक्टरी के भ्रष्ट, अयोग्य और अकुशल शासन से फ्रांसीसी लोग तंग आ चुके थे । वे एक किसी ऐसे योग्य व्यक्ति को देश का नेता मानने को तैयार थे, जो उन्हें इन कठिन परिस्थितियों से छुटकारा दिला पाता । नेपोलियन ने फ्रांसीसियों के इस मनोभाव से फायदा उठाया और कुछ सैनिक अधिकारियों से मिल-जुलकर डॉयरेक्टरी के शासन का अन्त करने का निश्चय किया ।

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अपनी तैयारियाँ पूरी करने के उपरान्त नवम्बर, 1799 में उसने डॉयरेक्टरी-शासन का तख्ता पलट दिया और फ्रांस की व्यवस्थापिका ने एक प्रस्ताव पास करके उसे प्रथम कॉन्सल के पद पर नियुक्त कर दिया । दो और कॉन्सल बहाल हुए ।

तीन कॉन्सलों की यह ‘कॉन्स्यूलेट’ यह फ्रांस की नई कार्यकारिणी थी । इस ‘कॉन्स्यूलेट’ को फ्रांस के लिए एक संविधान बनाने का आदेश दिया गया । नये संविधान द्वारा सारे देश का शासन एक व्यक्ति अर्थात् प्रथम कॉन्सल को सौंप दिया गया ।

नेपोलियन ने अपने विरोधियों को कुचल दिया और अपना स्वेच्छाचारी शासन कायम कर लिया । 1802 ई. में नेपोलियन ने प्रगति के मार्ग में एक दूसरा कदम उठाया ।

एक जनमत संग्रह द्वारा नेपोलियन का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया कि वह फ्रांस के कॉन्सल के पद पर आजीवन बना रहे । नेपोलियन को अपने उत्तराधिकारी को नियुक्त करने का भी अधिकार मिला । लेकिन, नेपोलियन की महत्वाकांक्षा फ्रांस का सम्राट बनने की थी ।

1804 ई. में उसने परिस्थिति को इस तरह मोड़ा कि सीनेट को उसे ‘फ्रांसीसियों का सम्राट’ घोषित करना पड़ा । इस प्रकार, 1792 ई. में स्थापित फ्रांस के प्रथम गणराज्य का अन्त हो गया और फ्रांस में सम्राट नेपोलियन का निरंकुश एकतंत्र कायम हुआ ।

सभी विरोधी दबा दिये गये । सभी प्रकार की स्वतंत्रताओं पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया गया । क्रांति ने जिस निरंकुश एकतंत्र का अन्त किया था, वह पुन: फ्रांस में कायम हो गया । इस प्रकार फ्रांसीसी क्रांति की अन्त्येष्टि हो गयी ।

जनता द्वारा समर्थन के कारण:

क्रास में नेपोलियन की तानाशाही की स्थापना एक असाधारण घटना थी । आखिर फ्रांस के लोगों ने इस व्यवस्था को क्यों स्वीकार किया ? क्या कारण थे कि राजनीतिक स्वतंत्रता के लाभों का रसास्वादन कर चुकने के बाद फ्रांस की जनता पुन: एक निरंकुश सम्राट द्वारा शासित होने तथा ऐसे शासन के सभी सम्भावित नतीजों को भुगतने के लिए तैयार हो गयी ?

इस परिस्थिति का विश्लेषण हम कई दृष्टियों से कर सकते हैं । सर्वप्रथम, क्रांति की राजनीतिक उथल-पुथल से फ्रांसीसी ऊब चुके थे । उन्होंने इतनी अधिक परेशानियाँ झेली थीं और इतने अधिक उबाऊ प्रयोगों से वे गुजर चुके थे कि अब वे एक स्थायी सरकार चाहते थे और नेपोलियन ही एक ऐसी सरकार दे पाने में समर्थ दीख पड़ा ।

राजनीतिक आंदोलनों, न अन्त होने वाले चुनावों, राष्ट्रीय-आर्थिक जीवन का गला घोंट देने वाली अव्यवस्थाओं ने फ्रांसीसियों को थका डाला था और अब वे एक ही व्यक्ति के हाथों में राष्ट्र का उत्तरदायित्व सौंप देने को तैयार थे ।

फ्रांसीसियों ने राजनीतिक दलबन्दियों से परे एक शक्तिशाली शासक की कामना की और शासक के रूप में नेपोलियन को स्वीकार करके अपनी इच्छा पूरी की । फ्रांस की जनता ने नेपोलियन की तानाशाही को खुशी से स्वीकार किया, क्योंकि वे डॉयरेक्टरी के भ्रष्ट शासन से तथा उसके उन षड्यन्त्रों और अयोग्यताओं से जो न तो देश का आर्थिक विकास होने दे रहे थे और न विदेशी पराजयों से मुक्त होने दे रहे थे, ऊब चुके थे ।

वे एक ‘काम करने वाली सरकार’ चाहते थे और नेपोलियन ऐसी सरकार देने की स्थिति में था । फ्रांसीसी राष्ट्र ने क्यों इतनी तत्परता से नेपोलियन द्वारा शक्ति हड़प लेने तथा क्रांति को नष्ट कर देने की क्रिया को अपनी मान्यता प्रदान की, इसका दूसरा कारण था वह गम्भीर खतरा जिससे देश अब भी आतंकित था ।

फ्रांस के विरुद्ध यूरोपीय राज्यों का द्वितीय गुट तैयार हो चुका था और चारों ओर से फ्रांस पर हमला करने की कार्रवाई प्रारंभ हो गयी थी । फ्रांसीसी जनता के लिए ऐसे नाजुक क्षणों में नेपोलियन एक मुक्तिदाता के रूप में अवतरित हुआ ।

केवल वही फ्रांसीसी राष्ट्र को सम्भावित खतरे से बचा सकता था । तृतीय, एक शक्तिशाली शासक के रूप में नेपोलियन क्रांति के अधिक महत्वपूर्ण परिणामों को सुरक्षित रखने में समर्थ था ।

उसकी शक्ति इस बात की गारण्टी देती थी कि पुरातन-व्यवस्था के कुलीन अब कभी पहले की अपनी जमीन अथवा विशेषाधिकारों को पुन: प्राप्त नहीं कर सकेंगे । वे व्यक्ति जिन्होंने क्रांति के माध्यम से सम्पत्ति और यश अर्जित किया था, नेपोलियन को अपना पूरा समर्थन देने को तैयार थे ।

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