इटली का एकीकरण | Unification of Italy in Hindi!

राष्ट्रवादी आन्दोलन का प्रभाव:

नेपोलियन के विजय-अभियानों से इटली में जो राष्ट्रीयता की चेतना जागृत हुई थी, उसकी कई रोचक विशेषताएँ थीं । इटली पर नेपोलियन का शासन लगभग दो दशकों (1796-1814) तक बना रहा । अन्य देशों की तुलना में यह अवधि लम्बी थी ।

पर, इटली में नेपोलियन के शासन के प्रति उतनी कुत्सा की भावना नहीं थी, फलत: वहाँ फ्रांसविरोधी जनता भी ज्यादा उग्र नहीं थी । इटली का नव-सम्पन्न वर्ग फ्रांसीसी शासन की कार्यक्षमता तथा प्रबुद्ध प्रकृति कायल था । फ्रांसीसी क्रांति की चर्चविरोधी भावना भी उन्हें अच्छी लगती थी ।

फ्रांस के एकछत्र शासन का एक भला परिणाम यह हुआ था कि इटालवी जनता के रजवाड़ों, पोप के प्रशासन, गुटतन्त्रीय गणतंत्रों तथा कई अन्य विदेशी राजवंशों के प्रति निष्ठा समाप्त हो गयी थी । नेपोलियन ने इटली का एकीकरण नहीं किया था ।

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उसने राज्यों की संख्या घटा दी थी और पूरे प्रायद्वीप को तीन खंडों में रहने दिया था । लेकिन, समूचे देश पर एक शासन-व्यवस्था होने से इटली के राजनैतिक एकीकरण की कल्पना का साकार होना अब असम्भव नहीं दीखता था ।

1815 ई. में नेपोलियन की पराजय के बाद इटली के राजा मुरत (जो नेपोलियन का बहनोई था) ने अपने अन्तर्गत समग्र इटली को एक करने की कल्पना की थी । 1815 ई. में यूनियन ऑफ इटली (इटालवी संघ) की घोषणा भी उसने कर दी ।

तबतक नेपोलियन का सितारा अस्त हो चुका था । मुरत भी पराजित हुआ तथा उसका वध कर दिया गया । किंतु इटली का यह क्षणभंगुर एकीकरण इटालवी बुद्धिजीवियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गया ।

इटली में अनेक ऐसे भी लोग थे, जो आरम्भ से ही फ्रांसीसी शासन के विरोधी थे । उनका राष्ट्रवाद क्रांतिकारी रंग से रंजित था । वे जानते थे कि फ्रांसीसी शासन को जबतक उखाड़ नहीं फेंका जाता, तबतक उनका लक्ष्य हासिल नहीं होनेवाला था ।

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सत्ता से जुड़े लोग इनका विरोध करते थे और शासनतन्त्र उनका दमन करता था । उग्र राष्ट्रवादियों ने गुप्त क्रांतिकारी दलों की स्थापना की जिनमें सर्वप्रमुख था कारबोनरी । नेपोलियन के काल में और उसके कई वर्षों बाद तक यह संगठन इटली में काफी सक्रिय रहा ।

जोसेफ मेजिनी:

जोसेफ मेजिनी इटालवी राष्ट्रवाद का मसीहा था । यह महान व्यक्ति दार्शनिक चिन्तक था, दूरदर्शी राजनेता था तथा कर्मठ कार्यकर्ता भी था । मेजिनी ने राष्ट्रवाद में कभी संकीर्णता नहीं आने दी । उसके लिए अपने राष्ट्र को प्रति निष्ठा और मानवता के प्रति निष्ठा में कोई विरोध नहीं था ।

वह कहा करता था- ”अपने देश के लिए वास्तविक सिद्धांतों के अनुसार काम कर हम मानवता के लिए परिश्रम करते हैं । हमारा देश उस लीवर का क्रियाबिन्दु है, जिसे हम जनसामान्य की भलाई के लिए उपयोग करते हैं ।”

एकीकृत गणतन्त्र के रूप में इटली के उदय का सपना देखनेवाले इटालवी छात्रों तथा बुद्धिजीवियों के लिए वह एक अक्षय प्रेरणास्रोत था । मेजिनी का जन्म सार्डेनिया स्थित जिनोवा के नगर में हुआ था ।

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तरुणावस्था में वह गुप्त क्रांतिकारी दलों के कार्यकलापों में सक्रिय भाग लिया करता था । 1821 ई. में उसे नेपुल्स के विद्रोह का दमन किये जाने पर असंख्य विस्थापितों को उत्तर की ओर जाते देखकर इटली की दुरावस्था की वास्तविक जानकारी हुई ।

देश की इस दुर्दशा के प्रतीक के रूप में मेजिनी ने काले कपड़े पहनना शुरू किया, जीवन-भर वह काले वस्त्र धारण करता रहा । 1830-31 के विद्रोह में उसने सक्रिय भाग लिया तथा छह महीने कारावास में भी बिताये । रिहा करते समय उस पर यह शर्त लगा दी गयी कि वह जिनोवा में कभी प्रवेश नहीं करेगा ।

मेजिनी ने इसके बदले स्वदेश छोड़ने का संकल्प किया । तदुपरान्त अपने जीवन के शेष चालीस वर्ष उसने स्विट्‌जरलैंड, ब्रिटेन और फ्रांस में बिताये । विदेशों में रहते हुए भी मेजिनी बराबर अपने प्रेरणा-भरे लेखों, पुस्तिकाओं तथा इश्तिहारों से इटली के नौजवानो में स्वतन्त्रता का बिगुल फूँकता रहा ।

वहीं उसने ‘युवा इटली’ की स्थापना की, जो इटालवी स्वतन्त्रताकर्मियों की पार्टी थी । इस पार्टी में चालीस वर्ष या उससे कम के नौजवान भर्ती किये जाते थे । इटालवी प्रायद्वीप से विदेशी आधिपत्य समाप्त करना तथा संयुक्त गणतन्त्र स्थापित करना इनका लक्ष्य था ।

प्रचारक के रूप में मेजिनी बेमिसाल था, किन्तु अपने देश में विद्रोह कराने में वह सफल नहीं हो सका । मेजिनी को जन-संप्रभुता के सिद्धांत में गहरी आस्था थी । उसका ख्याल था कि फ्रांसीसी क्रांति के दरम्यान मानव के अधिकारों पर तो अत्यधिक जोर दिया गया था, किन्तु मानव के कर्त्तव्यों पर बहुत कम ।

उसका दृढ़ विश्वास था कि आदमी तभी सुखी रह सकता है जब वह सामूहिक उद्योग में लगा रहे । ‘ड्यूटीज ऑफ मैन’ नामक पुस्तक में उसने लिखा था कि आदमी के सामने सबसे महान उद्यम, जिसके लिए वह अपना जीवन उत्सर्ग कर सकता है, राष्ट्र की सेवा है । मेजिनी का गद्य भी काव्यात्मक होता था ।

अपने देशवासियों का उद्‌बोधन करते हुए उसने लिखा- ”मेरे बिरादराने वतन, प्यार करो अपने मुल्क को ! हमारा मुल्क जो हमारा घर है, भगवान का दिया हुआ घर । इस विराट घर में अनगिनत लोग रहते हैं, अनगिनत लोगों का परिवार है यह । इनके मन की धड़कनें हमारे मन की धड़कनों से मिलती हैं, इनके एहसास हमारे एहसास से मिलते हैं । इनका, हमारा सोचना एक है, समझना एक है ! हमारा वतन-एक सूत्र में बँधा हुआ परिवार एवं मिट्टी का बना, एक आसमान के नीचे रहनेवाला-एक नियति है इसकी, एक लक्ष्य, एक मकसद ।”

मेजिनी की दृष्टि राष्ट्र के दायरे तक ही सीमित नहीं थी, राष्ट्र के आगे भी जाती थी । उसके अनुसार राष्ट्र के प्रति निष्ठा मानवता के प्रति उच्चतर कर्त्तव्यों का एक अंश थी । मेजिनी के शब्दों में- ”पहले तुम आदमी हो, उसके बाद किसी देश के नागरिक या अन्य कुछ ।”

उसकी दृष्टि में राष्ट्र मानवता के प्रति व्यक्ति का अपना कर्त्तव्य पूरा करने का एक साधन था । मेजिनी ने 1834 ई. में ‘यंग यूरोप’ की स्थापना की थी । यह अन्य राष्ट्रों के प्रति उसके अनुराग का एक परिणाम था । जर्मनी, पोलैंड तथा स्विट्‌जरलैंड में राष्ट्रवादी आंदोलन का संचालन करने हेतु राष्ट्रीय समिति का गठन करना इसका उद्देश्य था ।

मेजिनी की धारणा थी कि खंडित राष्ट्रों के एकीकरण अथवा अन्य राष्ट्रों के आधिपत्य में पड़े हुए लोगों की मुक्ति के लिए काम करना उस मंगल प्रभाव को समीप लाना था जब अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाएँ हासिल करने के बाद प्रत्येक राष्ट्र एकजुट होकर समग्र मानवता के लिए काम करेगा ।

इन्हीं कारणों से मेजिनी को उन आदर्शों का मसीहा माना जाता है, जिन्हें प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने वर्साय सन्धि में जोड़ने की पहल की थी । ये आदर्श थे- राष्ट्रीय आत्मनिर्णय तथा हर राष्ट्र को एक मंच पर लाना ।

नव गुएल्फ आन्दोलन:

मेजिनी को सारे संसार की जनता से सहानुभूति थी । इटालवी मातृभूमि की उन्मुक्ति के लिए उसका हृदय हमेशा तड़पता रहता था । उसका विश्वास था कि दमन और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष में इटली को मानवता का नेतृत्व करना होगा ।

उदारवादी होने के कारण इंगलैण्ड में उसका बड़ा सम्मान होता था । किन्तु, गणतन्त्र का हिमायती होने के कारण इटली के उदारवादी उससे अलग ही रहना चाहते थे और उसे खतरनाक अतिवादी मानते थे ।

मेजिनी के जनतन्त्रात्मक गणतन्त्र की अवधारणा में उन्हें सामाजिक क्रांति तथा सम्पत्ति के लिए खतरे की गंध लगती थी । मेजिनी-विरोधी विचारधाराओंवाले कुछ लोग नव गुएल्फ आन्दोलन में शरीक हो गये ।

इस आन्दोलन का नामकरण पोप तथा सम्राटों के बीच मध्य-कालीन संघर्ष में भाग लेनेवाले पोप के गुट के नाम पर हुआ था । विन्सेन्जो गियोबर्टी (1801-52) की ‘द सिविल एण्ड मॉरल प्राइवेसी ऑफ द इटालियन्स’ नामक एक पुस्तक 1843 ई. में प्रकाशित हुई ।

इस पुस्तक में पोप के नेतृत्व में इटालवी राज्यों के संघ की परिकल्पना प्रस्तुत की गयी थी । नव गुएल्फ आन्दोलनकर्ता इस पुस्तक से अनुप्रेरित हुये । पोप इटालवी एकीकरण के लिए संघर्ष का नेतृत्व करेगा, इसमें अनेक लोगों का विश्वास नहीं था ।

किन्तु, 1846 ई. में जो व्यक्ति निर्वाचित होकर पोप के आसन पर बैठा, उसके उदारवादी होने की ख्याति थी । पोप का आसन ग्रहण करते ही उसने अपने राज्य में उदारवादी नीति का अवलम्बन किया । राजनैतिक कैदी रिहा कर दिये गये और भाषण तथा लेखन की स्वतन्त्रता दी गयी । इन सबसे आशा बँधती थी कि वह सचमुच आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान कर सकेगा ।

नरमपंथी उदारवादी:

इटली के एकीकरण के लिए आन्दोलन करनेवाला एक तीसरा गुट भी था, जो अपने को नरमपंथी कहता था । इनका सबसे सक्रिय केन्द्र सार्डेनिया में था । लोम्बार्डी और वेनेशिया में भी इनके कुछ समर्थक थे ।

नरमपंथी गुट में मुख्यत: अभिजातवर्ग तथा नव-वैभवशाली लोग शरीक थे । एकीकरण का नेतृत्व करने के लिये वे सार्डेनिया की ओर देखते थे । वे देश में संवैधानिक राजतन्त्र कायम करना चाहते थे ।

इनकी दृष्टि में राजनैतिक एकीकरण के पहले आर्थिक एकीकरण आवश्यक था । इटली का सर्वप्रमुख व्यवसाय खेती था । अत: औद्योगीकरण पर जोर देते हुये भी ये लोग कृषि के सुधार तथा आधुनिकीकरण पर पहले ध्यान देना आवश्यक मानते थे ।

काउण्ट काबूर जैसे तरुण अभिजात (बाद में सार्डेनिया का प्रधानमंत्री) ने कृषि के नये तरीकों का प्रचार-प्रसार करने के लिए आदर्श फार्म तथा कृषि समितियों की स्थापना की । कतिपय इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि इटली के एकीकरण के लिए मेजिनी के समस्त प्रचार-कार्यों की अपेक्षा उत्तरी इटली के उदारवादियों और नरमपंथियों के प्रयत्न अधिक कारगर सिद्ध हुये ।

इटली के कई राज्यों में शिक्षित तथा प्रभावशाली प्रबुद्ध विचार-विनिमय किया करते थे तथा कुछ सीमित लक्ष्य हासिल करने के लिए एक-दूसरे से सहयोग करते थे । उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप सार्डेनिया-नरेश प्रिन्स अलबर्ट ने चुंगी दरों में कमी की, वित्तीय सुधार किये तथा कृषि के तरीकों में सुधार लाने में पहल की ।

वैसे 1848 ई. के पूर्व तक उसके सुधारों का राजनीति से कोई वास्ता नहीं था । इस प्रकार, 1848 ई. के पूर्व इटालवी प्रायद्वीप में तीन आन्दोलन चल रहे थे । इटली के एकीकरण के लिये तीनों अपने-अपने ढंग से काम कर रहे थे ।

नव गुएल्फ तथा नरमपंथी दलों के आन्दोलन केवल उत्तरी इटली में सक्रिय थे, मेजिनी के यंग इटली का प्रभाव बहुत थोड़े लोगों तक सीमित था । अभी तक अधिकांश इटलीवासी एकीकरण आन्दोलन से अलग-थलग थे ।

1848 ई. तक एकीकरण के प्रयास:

इटली अनेक सदियों से लगभग आधा दर्जन छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था । इनमें कई बहुत छोटे थे । नेपोलियन बोनापार्ट ने इन राज्यों का अस्तित्व समाप्त कर दिया था, किन्तु विएना कांग्रेस ने उनकी पुनर्स्थापना कर दी । इटली के उत्तर-पश्चिमी भाग में सार्डेनिया था ।

इसे सेवाय या पीडमौंट भी कहा जाता था । पीडमौंट-नरेश इटली के अनेक रजवाड़ों में एकमात्र विशुद्ध इटालवी वंशी था । इसके पूरब में लोम्बार्डी तथा उसके पूरब में वेनेशिया प्रदेश थे । 1814 ई. में ये दोनों आस्ट्रिया की मातहत कर दिये गये थे ।

लोम्बार्डी के दक्षिण में टस्कनी था । टस्कनी तथा उत्तरी राज्यों के बीच तीन छोटे-छोटे रजवाड़े- मोडेना, परमा, लूसिया थे । इनके शासकों को ड्‌यूक कहा जाता था । प्रायद्वीप के मध्यवर्ती क्षेत्र में पोप का राज्य था ।

इनसे भी दक्षिण में नेपुल्स का राज्य था । 1735 ई. से ही यहाँ एक बूर्बों-वंशी राजवंश का राज्य चला आ रहा था । सुदूर दक्षिण में सिसली के दो राज्य थे । 1815 से 1830 ई. तक का इटली का घटनाक्रम निराशाजनक था ।

आम इटलीवासियों के लिए फ्रांस के स्थान पर आस्ट्रिया का प्रभुत्व होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था, किन्तु उतरी इटली के नगरों में रहनेवाले कुछ शिक्षित मध्यमवर्गीय लोगों को फ्रांसीसी उदारवादी शासन के लागू किये जाने से कुछ फायदा हुआ था ।

ऐसे लोगों का आस्ट्रिया के इशारे पर नाचनेवाले छोटे-छोटे निरंकुश राजाओं की वापसी से निराश होना स्वाभाविक था । नेपोलियन के शासनकाल में कुछ लोगों को इटली के एक सूत्र में आबद्ध होने तथा एक राज्य में उदित होने की कुछ आशा बंधी थी ।

पर, 1815 ई. में जब मेटरनिक ने इटली को मात्र एक भौगोलिक अभिव्यक्ति कहा तो यह बड़ा ही क्रूर व्यंग्य लगा । 1830 ई. में इटली में छिटपुट विद्रोह हुए, पर सभी नाकाम रहे । लेकिन 1843-49 में तेजी से स्थिति बदली ।

इस काल में घटनाओं को तीन चरणों में रखकर देखा जा सकता है:

(i) आस्ट्रियाई शासन के क्षेत्रों में तथा विभिन्न राज्यों में होनेवाले विद्रोह,

(ii) सार्डेनिया के राजा अलबर्ट के नेतृत्व में आस्ट्रियाई प्रभुत्व से मुक्ति के लिए आजादी की लड़ाई, तथा

(iii) मेजिनी तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा रोमन गणतंत्र की स्थापना का अल्पकालिक प्रयत्न ।

यूरोप के अन्य देशों की तरह इटली में सभी विद्रोह कुचल दिये गये । किन्तु, विप्लवी वारदातों से क्रान्तिकारियों ने कुछ सीखा था, कुछ समझा था । अत: ये विद्रोह इटली के एकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम के समान थे ।

विद्रोहों का सिलसिला सिसली से शुरू हुआ था । स्थानीय नरेश फर्डिनेण्ड द्वितीय को बाध्य होकर अपने राज्य में संविधान लागू करना पड़ा । इसके अनन्तर टस्कनी के नरेश को भी संविधान लागू करना पड़ा ।

सार्डेनिया में अलबर्ट ने स्वयं एक संविधान लागू कर दिया । पोप ने अपने क्षेत्र में ऐसा ही किया । लोम्बार्डी तथा वेनेशिया में सबसे बाद में विद्रोह हुए । इस प्रकार, प्रत्येक महत्वपूर्ण इटालवी राज्य को संकट के दौर से गुजरना पड़ा ।

इन घटनाओं से प्रोत्साहित होकर सार्डेनिया के उदारवादियों ने आस्ट्रियाई आधिपत्य से मुक्ति के लिए स्वतन्त्रता की लड़ाई का एलान कर दिया । चार्ल्स अलबर्ट को संघर्ष का नेतृत्व अपने हाथों में लेना पड़ा । इस प्रकार, लोम्बार्डी पर आक्रमण कर दिया गया ।

अलबर्ट ने सभी इटालवी राज्यों से आस्ट्रियाई शासकों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने की अपील की । नेपुल्स-नरेश तथा पोप ने भी अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भेजीं, किन्तु पोप की सेना शीघ्र ही वापस हो गयी ।

सार्डेनिया के नेतृत्व में इटालवी सैनिकों ने काफी कठिन स्थिति में युद्ध किया, किन्तु अन्त में वे पराजित हुये । आस्ट्रियाई सरकार को अपने इलाकों में प्रतिक्रांति का दौर चलाने का अवसर मिला ।

1848 ई. की इटालवी क्रान्ति की सबसे महत्वपूर्ण घटना उस वर्ष फरवरी में रोमन गणतंत्र की स्थापना थी । रोम में रहनेवाले उग्रवादी लोग पोप पियुस नौवें के शासनतंत्र से बहुत विक्षुब्ध थे ।

गणतंत्र में आस्था रखनेवाले एक कट्टरपंथी ने प्रधानमन्त्री काउण्ट रौरुसी की नवम्बर में हत्या कर दी । आतंकित पोप रोम छोड़कर भाग गया । उसके जाते ही रोमवासियों ने पोप के शासन को खत्म कर देने की घोषणा कर दी तथा रोमन गणतंत्र की स्थापना का एलान किया ।

भविष्य में उदित होनेवाले इटालवी राज्य का यह मुख्य केन्द्र होता । गणतंत्र की सरकार का अध्यक्ष बनने के लिए मेजिनी को बुलाया गया । उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा होनेवाला था, मगर कुछ ही महीनों के लिए ।

इस समय तक फ्रांस का शासन-सूत्र लूई नेपोलियन के हाथों में आ चुका था । नेपोलियन को फ्रांस के रोमन कैथोलिकों के समर्थन की आवश्यकता थी । अत: उन्हें खुश करने के लिए उसने पोप का पक्ष लिया ।

उसने पोप को पुनर्स्थापित करने के लिए सैनिक कार्रवाई करके रोमन गणतंत्र को समाप्त कर दिया । पोप रोम वापस आया । फ़्रांसीसी सेना की एक टुकड़ी उसके रक्षार्थ वहाँ 1870 ई. तक बनी रही ।

विदेशी सहायता की प्राप्ति का लक्ष्य:

1848 ई. के मध्य तक इटालवी प्रायद्वीप में सर्वत्र विद्रोही कुचले जा चुके थे । पराजयों के बावजूद इटली के एकीकरण की आकांक्षा खत्म नहीं की जा सकी थी । एकीकरण के हिमायतियों ने 1848-49 की क्रान्तिकारी घटनाओं से कुछ सबक भी लिये थे ।

इनमें तीन प्रमुख थे:

(i) पोप के नेतृत्व में इटली के एकीकरण का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता, फलतः नव गुएल्फवादियों की प्रासंगिकता समाप्त हो गयी ।

(ii) सार्डेनिया के राजवंश के नेतृत्व में विश्वास सुदृढ़ हुआ । सार्डेनिया नरेश ने आस्ट्रिया के विरुद्ध बगावत का झंडा उठाया था । नये नरेश विक्टर इमैनुएल ने 1848 ई. के संविधान को लागू रहने दिया, हालाँकि आस्ट्रिया ने इसको रद्द करने की माँग की थी । इससे उदारवादियों में विक्टर इमैनुएल की साख बढ़ गयी ।

(iii) 1848-49 का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण सबक यह था कि इटली के लोग आस्ट्रियाई आधिपत्य से बिना किसी अन्य यूरोपीय शक्ति की सहायता के मुक्त होने की आशा नहीं कर सकते थे ।

1851 ई. में काउण्ट काबूर सार्डेनिया का प्रधानमन्त्री नियुक्त हुआ । वह उनलोगों में एक था, जिन्होंने 1848-49 के अनुभवों से यह सबक लिया था कि देश का एकीकरण बिना किसी विदेशी सहायता के सम्भव नहीं ।

काबूर यह भी समझ चुका था कि आस्ट्रिया-विरोधी युद्ध की मिट्टी से ही एकीकरण का उदय होगा । फलत: अपने प्रधानमन्त्रित्वकाल में उसने आस्ट्रिया के विरुद्ध विदेशी सहायता जुटाना अपनी विदेश नीति का सबसे मुख्य लक्ष्य बना लिया ।

फ्रांसीसी समर्थन की प्राप्ति:

काउण्ट काबूर के नेतृत्व में इटली के एकीकरण के लिये पूरी निष्ठा के साथ 1851-60 के दशक में तैयारियाँ शुरू हुयीं । काबूर सार्डेनिया को प्रगति, कार्यक्षमता, सुशासन का नमूना बनाने की कोशिश में लग पड़ा ।

उद्देश्य था- इटली के अन्य क्षेत्रों के लोग सार्डेनिया का नेतृत्व स्वीकार करें । काबूर बड़ा ही चतुर कूटनीतिज्ञ था । क्रीमिया-युद्ध में सार्डेनिया की सैनिक टुकड़ी भेजकर उसने भावी शान्तिवार्ताओं में अपने लिये स्थान सुरक्षित कर लिया ।

शान्तिवार्ताओं में यूरोप की महाशक्तियों के प्रतिनिधियों के समकक्ष बैठकर वह इटली के एकीकरण का सवाल उठा सकता था । काबूर यह साफ-साफ समझ रहा था कि यदि आस्ट्रिया को इटली से हटाना हे तो फ्रांस का पल्ला पकड़ना ही होगा ।

फ्रांस की सैनिक सहायता का वचन लेने के उपरान्त आस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध भड़काना उसका दूसरा लक्ष्य था । नेपोलियन तृतीय को सार्डेनिया- आस्ट्रिया के झगड़े में हस्तक्षेप करने को तैयार करना कठिन नहीं था ।

बोनापार्ट परिवार इटली को अपनी खानदानी जायदाद के समान समझता था । युवावस्था में नेपोलियन स्वयं कारबोनरी का सदस्य रह चुका था । नेपोलियन तृतीय को आस्ट्रिया के विरुद्ध सार्डेनिया को सैनिक सहायता देने में एक अन्य लक्ष्य भी था, फ्रांस के उदारवादियों की सहानुभूति प्राप्त करना ।

फलत: काबूर के साथ एक गुप्त समझौता किया । 1859 ई. में काबूर ने आस्ट्रिया को धोखा देकर युद्ध के मैदान में उतार दिया । फ्रांस की सेना भी इटली में प्रवेश कर गयी ।

फ्रांस तथा सार्डेनिया के सैनिकों को आस्ट्रियाई सेना के विरुद्ध विजय मिलने लगी थी । पर, इसी बीच प्रशा की सेना फ्रांस के पूरबी सीमान्त पर जमा होने लगी, क्योंकि इटली को फ्रांसीसी प्रभाव-क्षेत्र बनने देना प्रशा को गवारा नहीं था ।

इधर आस्ट्रियाई सेना के पराजित होते ही समग्र इटली में क्रांतिकारी आंदोलन भड़क उठे । क्रांतिकारी स्थानीय राज्य-रजवाड़ों को खत्म करके सार्डेनिया में मिला लेने की माँग कर रहे थे ।

उधर फ्रांस के कैथोलिक इटालवी क्रांति की आग में पोप की सत्ता खत्म हो जाने की सम्भावना से बहुत उत्तेजित थे । वे इस अनावश्यक युद्ध के लिए नेपोलियन की भर्त्सना कर रहे थे ।

फलत: जुलाई, 1859 में नेपोलियन ने आस्ट्रिया के साथ सन्धि करके काबूर तथा इटली के एकीकरण के सपनों का खत्म कर दिया । फ्रांस और आस्ट्रिया की सन्धि के अनुसार लोम्बार्डी सार्डेनिया को मिल गया, किन्तु वेनेशिया आस्ट्रिया के आधिपत्य में ही बना रहा ।

इटली के एकीकरण का एक अनोखा समाधान भी इसमें प्रस्तुत किया गया था- पोप के अन्तर्गत तत्कालीन इटालवी सरकारों का संघीय यूनियन बनाना । पर, काबूर या इटालवी देशभक्त इससे संतुष्ट नहीं हो सकते थे, फलत: क्रांति जारी रही ।

टस्कनी, परमा, मोडेना तथा रोमाग्ना के शासकों को निष्कासित कर दिया गया । जनमत संग्रह के उपरांत इन राज्यों को सार्डेनिया में मिला दिया गया । वेनेशिया को छोड़कर सारे उत्तरी इटली के प्रतिनिधि वृहत्तर राज्य की प्रथम संसद में भाग लेने को एकत्र हुये । नये सार्डेनिया राज्य को ब्रिटेन और फ्रांस की मान्यता मिल गयी । इसके बदले में फ्रांस को नीस और सेवाय प्राप्त हुये ।

गैरीबाल्डी के कार्य:

1860 ई. में इटली के नक्शे पर सार्डेनिया का नया राज्य, पोप का राज्य और दक्षिण में सिसली के दो राज्य रह गये थे । इस दक्षिणी राज्य में क्रान्ति की लपटें फैल रही थीं । गैरीबाल्डी नामक एक सार्डेनियाई गणतन्त्रवादी ने समस्या के अन्तिम समाधान के लिए कदम उठाये ।

उसने सशस्त्र नौजवानों की एक टुकड़ी संगठित की, जो ‘रेड शर्ट्स’ के नाम से प्रख्यात हुये । इस टुकड़ी का नेतृत्व करते हुये उसने दक्षिणी राज्य के विरुद्ध अभियान शुरू किया ।

काबूर की सहानुभूति अभियान के पक्ष में थी, किन्तु खुलेआम वह उस आक्रामक कार्रवाई का समर्थन करने में हिचक रहा था । फिर भी, उसने अभियान का विरोध नहीं किया । अपने नौजवानों सहित गैरीबाल्डी सिसली तट पर उतरा और भीतर की ओर बढ़ने लगा । स्थानीय क्रान्तिकारी उसका साथ दे रहे थे । दोनों सिसली की सरकारें कुछ ही काल में बिखर गयीं ।

गैरीबाल्डी नेपुल्स होते हुए रोम की ओर बढ़ना चाहता था । पर, वहाँ फ्रांस की सेना पोप की रक्षा में खड़ी थी । उससे टकराने के परिणाम भयंकर हो सकते थे । उस हालत में फ्रांस का हस्तक्षेप और अन्तर्राष्ट्रीय उलझनें बढ़ने की सम्भावना थी ।

अत: काबूर गैरीबाल्डी के विजय अभियान से फायदा उठाते हुये उसे और आगे बढ़ने देना नहीं चाहता था । अत: उसने सार्डेनिया की सेना की एक टुकड़ी को पोप-प्रशासित इलाके से होते हुए नेपुल्स राज्य में प्रवेश करने का आदेश दिया ।

सेना को रोम के बाहर-ही-बाहर जाने का आदेश था । इस फौज ने नेपुल्स पर अधिकार कर लिया । गैरीबाल्डी का किसी ने कोई प्रतिरोध नहीं किया । तुरंत जनमत संग्रह हुआ और सिसली का सम्पूर्ण राज्य सार्डेनिया के साथ मिला लिया गया ।

रोम तथा कुछ लगे हुये क्षेत्रों को छोड़कर शेष पोप-शासित इलाकों ने भी जनमत संग्रह के परिणामस्वरूप सार्डेनिया में मिलने की इच्छा व्यक्त की । 1861 ई. में रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर सम्पूर्ण इटली के प्रतिनिधियों ने इटली के राज्य की घोषणा की ।

विक्टर इमैन्युएल को नये राज्य का नरेश घोषित किया गया । आस्ट्रिया के प्रशा के हाथों पराजित होने के बाद वेनेशिया भी नये राज्य के उदर में समा गया । 1870 ई. में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध हुआ ।

रोम से फ्रांसीसी सेना वापस बुला ली गयी । इस पर नये इटली राज्य के कर्णधारों ने रोम पर अधिकार करके इटली के एकीकरण का सपना शब्दश: साकार कर दिया । इस प्रकार, इटली निर्मित हुआ । यह निर्णय संभव हो सका था मोजिनी के आदर्शवादी मसीही कार्यकलापों से, गैरीबाल्डी की दुस्साहसिकता से, काबूर के सुनियोजित कूटनीतिक प्रयोगों से । युग-युग के सपने साकार हुए, अब इटली एक था ।

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