Here is a list of four great mathematician and astrologers of India.

1. आर्यभट्‌ट प्रथम [Aryabhatt I]:

आर्यभट्‌ट का जन्म 476 में पटना के निकट हुआ था । वह भारत के महान नक्षत्र विशेषज्ञ एवं गणितज्ञ माने जाते हैं । इसी कारण भारत द्वारा छोड़े जाने वाले प्रथम उपग्रह का नाम आर्यभट्‌ट रखा गया । वह नालंदा विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करते थे ।

उन्होंने आर्यभस्टीय ग्रन्थ की रचना की, जिसमें भूगोल, गणित, ज्योतिष, नक्षत्रशास्त्र के बारे में महत्वपूर्ण जानकारिया दी गई । यह ग्रन्थ चार खंडों में विभाजित हैं- जिन्हें गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद तथा गोलपाद का नाम दिया गया ।

भूगोल से सम्बन्धित जो विचार उनके द्वारा दिए गए वह इस प्रकार हैं- सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण का कारण पृथ्वी व चन्द्रमा की छाया होती है । विभिन्न ग्रह सूर्य से कितनी दूर स्थित है तथा कब वे एक दूसरे से दृष्टिगत होते है ।

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आकाश में विभिन्न नक्षत्रों की स्थिति के बारे में बताया । ग्रहों की गति, उनके आकार पर भी विचार प्रकट किए । कौन सा ग्रह कब दिखाई देता है और कब नहीं ? इसकी गणना की । उनकी गणनायें आज भी शुद्ध व विश्वसनीय है । पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव की स्थिति बताई ।

गणितपाद में अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति एवं भूमिति (Geodesy) से सम्बन्धित अनेक महत्वपूर्ण सूत्रों का वर्णन किया है । उन्होंने अक्षरों के माध्यम से संख्या का बोध कराने वाले नियम का प्रतिपादन किया । वृत्त की परिधि के आधार पर व्यास की परिगणना का सूत्र बताया ।

काल क्रिया पाद में काल व कोण की इकाईयों का सम्बन्ध बताया । इसमें माह, वर्ष व युग का विवरण प्रस्तुत किया । उन्होंने चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि से नववर्ष का प्रारम्भ माना । आज इसे ही विक्रमी संवत का नवदिवस कहते हैं ।

सूर्य व चन्द्रमा की स्थिति विभिन्न युगों में किस प्रकार की होगी तथा उनसे किस प्रकार की घटनायें घटित होगी । इसके बारे में गणितीय आकलन प्रस्तुत किया । गोलपाद ग्रन्थ में श्लोकों के द्वारा विभिन्न ऋतुओं, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्रों व तारों के बारे में बताया गया है । वास्तव में उनका ग्रन्थ गणित, ज्योतिष, खगोल एवं भूगोल का ज्ञानकोष है ।

2. वराहमिहिर (Verahmihir):

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इनका जन्म 490 में हुआ था । यह आर्यभट्‌ट के समकालीन थे । वह गणित एवं ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे । उनको विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल माना जाता था । उन्होंने भूगोल, ब्रह्माण्ड के बारे में महत्वपूर्ण विचार प्रकट किए । उनकी प्रमुख रचनायें पंच सिद्धांतिका, वृहत संहिता, वृहत जातक और लघु जातक है ।

भूगोल को उनकी देन को इस प्रकार रखा जा सकता है:

बराहमिहिर ने भूगोल शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था । पृथ्वी के आकार, स्थिति, भ्रमण के बारे में विस्तार से बताया । पृथ्वी की आकृति अण्डाकार है । पृथ्वी का व्यास 1600 योजन है वह अंतरिक्ष में अपनी आकर्षण शक्ति से स्थित है ।

सूर्य जगत पिता है । उसके कारण ही जीवन का अस्तित्व है । उन्होंने सूर्य का व्यास पृथ्वी से चार गुना बड़ा बताया, जबकि वास्तव में उसका व्यास 100 गुना से भी अधिक है । उन्होंने सूर्य के उत्तरायण, दक्षिणायण के प्रभाव का

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वर्णन किया । सूर्य ताप के कारण वायु धारायें उत्पन्न होती हैं, ऋतु में बनती हैं वायु गति पर प्रभाव पड़ता है । चन्द्रमा की चमक सूर्य के कारण है । सूर्य के सामने अथवा पीछे होने पर उसका प्रकाशमान भाग घटता बढ़ता रहता है ।

सौर धब्बों व ज्वालाओं का सीधा प्रभाव मानव के मन व तन पर पड़ता है । इनके प्रभाव से प्राकृतिक विक्षोभ व विस्फोटक घटनायें घटित होने लगती हैं । यह प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न कर देते हैं तथा पृथ्वी पर अनेक परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी हैं ।

3. आर्यभटट् द्वितीय (Aryabhatt II):

इनका जन्म 950 में हुआ था । यह ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान थे । इन्होंने महासिद्धांत ग्रन्थ की रचना की थी । इसमें गणित के नियम व सिद्धांतों की विवेचना की गई । ग्रहों की गति, अंतरिक्ष का विस्तार, खगोल शास्त्र, ब्रह्माण्ड आदि के बारे में विस्तार से बताया गया ।

4. भास्कराचार्य (Bhaskar Acharya):

इस प्राचीन ज्योतिषाचार्य का जन्म 1114 में हुआ था । इन्होंने शिरोमणि, बीजगणित, करण कुतुहल की रचना की थी । सिद्धांत शिरोमणि ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । पृथ्वी की अंतरिक्ष में स्थिति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह आकर्षण शक्ति के कारण स्थिर है तथा चन्द्र बुध शुक्र रवि मंगल बृहस्पति शनि नक्षत्रों से घिरी हुई है ।

पृथ्वी के चारों ओर 12 योजन तक वायुमण्डल व्याप्त है । उन्होंने पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर सूर्योदय के समय की गणना दिन की अवधि के बारे में भी विचार प्रकट किए । उनकी यह सब संकल्पनायें आज तर्कसंगत व सही प्रतीत होती हैं ।

उपरोक्त विचारों से स्पष्ट होता है कि भारत में प्राचीन काल में भौगोलिक विचारों का काफी विकास हो गया था । इन विचारों को अरबों, चीनी यात्रियों तथा अन्य देशों के विद्वानों ने अपने-अपने अध्ययनों में विशेष महत्व दिया है ।

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