अशोक के प्रमुख अभिलेख| Read this article in Hindi to learn about the three major inscriptions of Ashoka. The inscriptions are:- 1. शिलालेख (Seal Inscription) 2. स्तम्भलेख (Pillar Edicts) 3. गुहा-लेख (Cave-Inscriptions).

अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है । उसके अभी तक 40 से भी अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं । जहाँ एक ओर ये अभिलेख उसकी साम्राज्य-सीमा के निर्धारण में हमारी मदद करते हैं, वहीं दूसरी ओर इनसे उसके धर्म एवं प्रशासन सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण बातों की सूचना मिलती है । इन अभिलेखों का इतना अधिक महत्व है कि डी. आर. भण्डारकर जैसे एक चोटी के विद्वान ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का प्रयास किया है ।

कहा जा सकता है कि यदि ये अभिलेख प्राप्त नहीं होते तो अशोक जैसे महान् सम्राट के विषय में हमारा गान सर्वथा अपूर्ण रहता । सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान ने अशोक के लेखों का उद्वाचन किया । किन्तु उन्होंने लेखों के ‘देवानांपिय’ की पहचान सिंहल के राजा तिस्स से कर डाली । कालान्तर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि सिंहली अनुश्रुतियों-दीपवंश तथा महावंश में यह उपाधि अशोक के लिये प्रयुक्त की गयी है । अन्ततः 1915 ई. में मास्की से प्राप्त लेख में ‘अशोक’ नाम भी पढ़ लिया गया ।

अशोक के अभिलेखों का विभाजन निम्नलिखित वर्गों में किया जा सकता है:

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(1) शिलालेख,

(2) स्तम्भलेख और

(3) गुहालेख ।

इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:

(1) शिलालेख (Seal Inscription):

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(A) बृहद् शिलालेख:

चतुर्दश बृहद् शिलालेख:

ये अशोक की चौदह विभिन्न राजाज्ञायें (शासनादेश) है जो भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त किये गये हैं ।

इनका विवरण इस प्रकार है:

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(i) शाहवाजगढ़ी:

आधुनिक पाकिस्तान के पेशावर जिले की युसुफजई तहसील में स्थित है । 1836 ई. में जरनल कोर्ट ने इसका पता लगाया था । इसमें बारहवें के अतिरिक्त अन्य सभी लेख हैं । इस समूह के बारहवें लेख का पता 1889 ई. में सर हेरल्ड डीन ने लगाया था जो मुख्य अभिलेख से कुछ दूरी पर एक पृथक् शिलाखण्ड पर खुदा हुआ है । शाहबाजगढ़ी संभवतः अशोक के साम्राज्य में विद्यमान यवन प्रान्त की राजधानी थी ।

(ii) मनसेहरा:

पाकिस्तान के हजारा जिले में स्थित है । यहां से प्राप्त तीन शिलाओं में पहली पर प्रथम आठ शिलालेख, दूसरी पर नवें से बारहवां तक तथा तीसरी पर, तेरहवां और चौदहवां लेख उत्कीर्ण हैं । पहली दो शिलाये जनरल कनिंघम द्वारा खोजी गयीं जबकि तीसरी का पता पंजाब पुरातत्व विभाग के एक भारतीय अधिकारी ने लगाया था ।

अन्य लेखों के विपरीत उपर्युक्त दोनों लेख खरोष्ठी लिपि में लिखे गये हैं जो ईरानी अरामेइक से उत्पन्न हुई थी । इन लेखों के अक्षर बड़े तथा खुदाई में अधिक सुस्पष्ट हैं ।

इन स्थानों में बारहवें लेख का अंकन संभवतः विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सामंजस्य बनाये रखने के उद्देश्य से ही किया गया होगा जो अशोक के शासनकाल का एक मान्य सिद्धान्त था ।

(iii) कालसी:

उत्तर प्रदेश के देहरादून जिले में स्थित है । 1860 में फोरेस्ट ने इसे खोज निकाला था । यह स्थान यमुना तथा टोंस नदियों के संगम पर स्थित है ।

(iv) गिरनार:

गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ में जूनागढ़ के समीप गिरनार की पहाड़ी है । यहीं से रुद्रदामन तथा समुद्रगुप्त के लेख भी मिले हैं । 1822 ई. में कर्नल टाड ने इन लेखों का पता लगाया था । अशोक का शिलालेख दो भागों में है जिनके बीच में ऊपर से नीचे तक एक रेखा खींची हुई है ।

पहले पाँच लेख बायी ओर तथा सात दायीं ओर उत्कीर्ण किये गये हैं । तीसरा लेख नीचे है जिसके दायी ओर चौदहवां लेख है । गिरनार लेख अपेक्षाकृत सबसे सुरक्षित अवस्था में है ।

(v) धौली तथा जौगढ़:

ये दोनों ही स्थान वर्तमान उड़ीसा प्रान्त के क्रमशः पुरी तथा गंजाम जिलों में स्थित हैं । धौली की तीन छोटी पहाड़ियों की एक श्रृंखला पर लेख खुदे हैं जिनका पता 1837 में किटो ने लगाया था ।

जौगढ़ के लेख भी तीन शिलाखण्डों पर खुदे हुए है जिनका पता 1850 में वाल्टर इलियट को चला था । दोनों प्रज्ञापनों में ग्यारहवें से तेरहवें तक लेख नहीं मिलते तथा उनके स्थान पर दो नये लेख खुदे हुए हैं जिनमें अन्तों (सीमान्तवासियों तथा जनपदवासियों) को दिये गये आदेश है ।

यही कारण है कि इन्हें दो पृथक कलिंग प्रज्ञापन कहा जाता है । इनमें अन्य बातों के अलावा कलिंग राज्य के प्रति अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है । वह कलिंग के ‘नगर व्यवहारिकों’ को न्याय के मामले में उदार तथा निष्पक्ष होने का आदेश देता है ।

(vi) एर्रगुडि:

आन्ध्र के कर्नूल जिले में स्थित है । यहां पत्थरों के छ: टीलों पर अशोक के शिलालेख एवं लघु शिलालेख उत्कीर्ण है । इनका पता 1929 ई. में भूतत्वविद् अनुघोष ने लगाया धा । एरेगुडि लेख में लिपि की दिशा दायें से बायें मिलती है जबकि अन्य सभी में यह बायें से दायें हैं ।

(vii) सोपारा:

महाराष्ट्र प्रान्त के थाना जिले में स्थित एक खण्डित शिला पर आठवें शिलालेख के कुछ भाग उत्कीर्ण है । अनुमान किया जाता है कि पहले यहां सभी चौदह लेख विद्यमान रहे होंगे ।

(B) लघु शिलालेख:

पहले इन लेखों की मात्र तीन प्रतियां ही प्राप्त हुई जिन्हें उत्तरी प्रतियां कहा जा सकता है । किन्तु वाद में दक्षिण के कई स्थानों से भी ये प्राप्त हो गयीं । कर्नाटक प्रान्त के ब्रह्मगिरि, सिद्धपुर तथा जटिंग रामेश्वर से जो लेख प्राप्त हुए हैं, उनमें एक संक्षिप्त पूरक प्रज्ञापन है जिसमें धम्म का सारांश दिया गया है ।

कुछ विद्वान इसे द्वितीय लघुशिला लेख कहते हैं । इस दृष्टि से अशोक के लघु शिलालेखों की संख्या दो हुई । उनका विभाजन उत्तरी और दक्षिणी प्रतियों में भी किया जा सकता है । ये शिलालेख चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मिलित नहीं है और इस कारण इन्हें ‘लघु शिलालेख’ कहा गया है ।

ये निम्नलिखित स्थानों से प्राप्त हुए हैं:

(a) रूपनाथ (मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में स्थित) ।

(b) गुजर्रा (मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित) ।

(c) सहसाराम (बिहार) ।

(d) भब्रू (वैराट) (राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित) ।

(e) मास्की (कर्नाटक के रायचूर जिले में स्थित) ।

(f) ब्रह्मगिरि (कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में स्थित) ।

(g) सिद्धपुर (ब्रह्मगिरि के एक मील पश्चिम में स्थित) ।

(h) जटिंगरामेश्वर (ब्रह्मगिरि के तीन मील उत्तर-पश्चिम में स्थित) ।

(i) एर्रगुडि (आन्ध्र के कर्नूल जिले में स्थित) ।

(j) गोविमठ (मैसूर के कोपबल नामक स्थान के समीप स्थित) ।

(k) पालकिगुण्डु (गोविमठ से चार मील की दूरी पर स्थित) ।

(l) राजुल मंडगिरि (आन्ध्र के कर्नूल जिले में स्थित) ।

(m) अहरौरा (उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित) ।

सारी मारो (शहडोल, म. प्र.) पनगुडरिया (सिहोर, म. प्र.) तथा नेत्तुर और उडेगोलम् (बेलाड़ी, कर्नाटक) नामक स्थानों से लघु शिलालेख की दो अन्य प्रतियाँ प्राप्त हुई हैं । एक अन्य लेख उडेगोलम् (बेलाड़ी, कर्नाटक) से मिला है । के. डी. बाजपेयी को पनगुडरिया (सिहोर, म. प्र.) से अशोक का एक लघु शिलालेख मिला है ।

अभी हाल में कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में स्थित सन्नाती नामक स्थान से अशोक-कालीन शिलालेख प्राप्त किया गया है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के कर्मचारियों ने जनवरी 89 में इसे खोज निकाला । मास्की, गुजर्रा, नेत्तुर तथा उडेगोलम् के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम भी मिलता है ।

(2) स्तम्भलेख (Pillar Edicts):

(A) सप्त स्तम्भ-लेख:

इन राजाज्ञाओं अथवा प्रज्ञापनों की संख्या सात है जो छ: भिन्न-भिन्न स्थानों में पाषाण-स्तम्भों पर उत्कीर्ण पाये गये हैं ।

ये इस प्रकार हैं:

(I) दिल्ली टोपरा- यह सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तम्भ लेख है । मध्यकालीन इतिहासकार शम्स-ए-सिराज के अनुसार मूलतः यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर (खिज्राबाद) जिले में टोपरा नामक स्थान पर गड़ा हुआ था । कालान्तर में फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.) द्वारा दिल्ली लाया गया था ।

उसने इसे फिरोजाबाद में कोटला के ऊपर स्थापित करवाया था । इसे फिरोजशाह की लाट, भीमसेन की लाट, दिल्ली शिवालिक लाट, सुनहरी लाट आदि नाम से भी जाना जाता है । इस पर अशोक के सातों लेख उत्कीर्ण है जबकि अन्य पर केवल छ: ही मिलते हैं । सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने इसका वाचन कर अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया था ।

(II) दिल्ली मेरठ- यह भी पहले मेरठ में था तथा बाद में फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली में लाया गया ।

(III) लौरिया अरराज- (विहार के चम्पारन जिले में स्थित) ।

(IV) लौरिया नन्दनगढ़- (यह भी चम्पारन जिले में ही है) ।

(V) रमपुरवा- (चम्पारन, बिहार) ।

(V) प्रयाग- यह पहले कौशाम्बी में था तथा बाद में अकबर द्वारा लाकर इलाहाबाद के किले में रखवाया गया ।

(B) लघु स्तम्भ-लेख:

अशोक की राजकीय घोषणायें जिन स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें साधारण तौर से ‘लघु स्तम्भ-लेख’ कहा जाता है ।

ये निम्नलिखित स्थानों से मिलते हैं:

(I) साँची (रायसेन जिला, मध्यप्रदेश) ।

(II) सारनाथ (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) ।

(III) कौशाम्बी (इलाहाबाद के समीप) ।

(IV) रुम्मिनदेई (नेपाल की तराई में स्थित) ।

(V) निग्लीवा (निगाली सागर)- यह भी नेपाल की तराई में स्थित हैं ।

साँची-सारनाथ के लघु स्तम्भ-लेख में अशोक अपने महामात्रों को संघ-भेद रोकने का आदेश देता है । कौशाम्बी तथा प्रयाग के स्तम्भों में अशोक की रानी करुवाकी द्वारा दान दिये जाने का उल्लेख है । इसे ‘रानी का अभिलेख’ भी कहा गया है ।

लघु स्तम्भ लेखों में रुम्मिनदेई प्रज्ञापन कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण है । इस लेख की खोज फ्यूरर ने की तथा जार्ज ब्यूलर ने इसे अनुवाद सहित इपिग्राफिया इण्डिका के पाँचवें खण्ड में प्रकाशित किया ।

इसके अनुसार अपने अभिषेक के बीस वर्ष पश्चात् देवताओं का प्रिय राजा प्रियदर्शी स्वयं यहां आया तथा उसने पूजा की । क्योंकि यहां शाक्यमुनि बुद्ध का जन्म हुआ था, अत: उसने वहां बहुत बड़ी पत्थर की दीवार बनवाई तथा एक स्तम्भ स्थापित किया ।

क्योंकि यहां बुद्ध का जम हुआ था, अत: लुम्बिनी गांव का धार्मिक कर (बलि) माफ कर दिया गया तथा कर मात्र आठवाँ भाग किया गया । प्रस्तुत लेख बुद्ध का जन्म स्थान का अभिलेखीय प्रमाण है । यह भी सूचित होता है कि अशोक ने अपनी यात्रा के उपलक्ष्य में यहां का धार्मिक कर माफ किया तथा राजस्व का भाग, जो मौर्य शासन में चतुर्थांश था, घटाकर अष्तांश कर देने की घोषणा की ।

लेख की तीसरी पंक्ति में उल्लिखित ‘सिला-विगडभी-चा’ के अर्थ पर विद्वानों में मतभेद है । सामान्यतः इसका अर्थ पत्थर की बड़ी दीवार बनवाना तथा शिला-स्तम्भ (बाढ़ या रेलिंग) खड़ा करना किया जाता है ।

डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव ‘भीचा’ का भित्या (दीवार सहित) अर्थ करते हुए इसी पंक्ति में उल्लिखित ‘उसपापिते’ को बृषभार्पित: (स्तम्भ को वृष से सुशोभित करना) बताते है । अपने अर्थ की पुष्टि में वे संस्कृत विद्वान प्रो. श्यामनारायण का संदर्भ देते हुए बताते हैं कि यह स्तम्भ रमपुरवा स्तम्भ के समान वृषभशीर्ष युक्त था । निग्लीवा के लेख में कनकमुनि के स्तूप के संवर्द्धन की चर्चा हुई है ।

लुम्बिनि लेख में बुद्ध को ‘शाक्यमुनि’ कहा गया है । पालि साहित्य तथा भरहुत लेखों में शाक्यमुनि के अतिरिक्त पांच पूर्व बुद्धों का उल्लेख मिलता है- विपसि (विपश्यिन), वेसभुणा (विश्व भू), ककुसध, (क्रकच्छन्द) तथता कोनागमन (कनकमुनि) । अशोक के पहले से ही इनके सम्मान में स्तूप निर्माण की परम्परा थी ।

(3) गुहा-लेख (Cave-Inscriptions):

दक्षिणी विहार के गया जिले में स्थित ‘बराबर’ नामक पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारों पर अशोक के लेख उत्कीर्ण मिले हैं । इनमें अशोक द्वारा आजीवक सम्प्रदाय के साधुओं के निवास के लिये गुहा-दान में दिये जाने का विवरण सुरक्षित है ।

ये सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में तथा ब्राह्मी लिपि में लिखे गये हैं । केवल दो अभिलेखों- शाहबाजगढ़ी तथा मानसेहरा की लिपि ब्राह्मी न होकर खरोष्ठी है । यह दाई से बाई ओर लिखी जाती थी ।

उपर्युक्त लेखों के अतिरिक्त तक्षशिला से अरामेईक लिपि में लिखा गया एक भग्न अभिलेख, कन्दहार के पास ‘शरे-कुना’ नामक स्थान में यूनानी तथा अरामेईक लिपियों में लिखा गया द्विभाषीय अभिलेख, काबुल नदी के बायें किनारे पर जलालाबाद के ऊपर स्थित “लघमान” नामक स्थान से अरामेईक लिपि में लिखा गया अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है ।

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