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ईस्ट इंडिया कंपनी ने जैसे-जैसे भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया भारतीयों का विरोध भी उसी क्रम में बढ़ता गया । भारतवासियों ने विभिन्न तरीकों से अपना विरोध प्रदर्शित किया । भारतीयों ने अपने विरोध में पहले उदारवादी तथा बाद में अनुदारवादी नीति अपनाई ।

क्रांतिकारी आन्दोलन – प्रथम चरण:

इस आंदोलन का उद्देश्य अन्याय पर टिकी व्यवस्था को बदलकर, व्यक्ति के शोषण को समाप्त करना था । स्वतंत्रता व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे लेने के लिए कष्ट सहने को भी तैयार रहना है ।

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क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारण:

क्रांतिकारी आंदोलन किसी एक कारण के परिणाम नहीं थे वरन् अनेक कारणों ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:

आर्थिक असंतोष:

उन्नीसवीं सदी के अंत में तथा बीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में भारत में अनेक बार अकाल और महामारी का प्रकोप हुआ । ऐसे अवसरों पर ब्रिटिश सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति से भारतीयों में असंतोष बढ़ा ।

लार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति:

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लार्ड कर्जन की प्रतिक्रियावादी नीति ने भारतीयों में असन्तोष को बढ़ा दिया । भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904 में सीनेट की व्यवस्था से शिक्षित भारतीयों में असंतोष उत्पन्न हो गया । सरकारी गोपनीयता अधिनियम और कलकत्ता के कारपोरेशन अधिनियम ने जन साधारण में असंतोष बढ़ा दिया ।

बंगाल विभाजन (1905 ई॰):

कर्जन का सबसे घृणित कार्य बंगाल को दो भागों में विभाजित करना था । इस घटना से सारा राष्ट्र उत्तेजित हो गया था इससे भारतीय युवकों में त्याग व बलिदान की भावना जाग्रत हुई ।

अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव:

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उन्नीसवीं सदी में विश्व के अनेक देशों में क्रांतियों हुईं और उनमें राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता प्राप्ति की होड़ लग गई । अमेरिका, फ्रांस, इटली, जर्मनी, आयरलैण्ड के स्वाधीनता संग्राम और उनके परिणाम भारतीय क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणादायक बने । 1905 ई॰ में जापान द्वारा रूस की पराजय ने भारतीयों के मन में नवीन चेतना जाग्रत की ।

क्रांतिकारी आंदोलन के कार्यक्रम:

प्रारंभ में क्रांतिकारी अपनी योजनाएं एवं कार्यक्रम निर्धारित नहीं कर पाये । धीरे-धीरे कार्यक्रम की रूपरेखा बनी ।

i. शिक्षित भारतीयों में दासता के विरूद्ध घृणा की भावना उत्पन्न करने के लिए समाचार पत्रों एवं पेम्पलेट का वितरण किया ।

ii. आम भारतीयों में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करना ।

iii. युवाओं को बहिष्कार एवं स्वदेशी प्रचार में लगाये रखना तथा जुलूसों का आयोजन करना ।

iv. छोटी-छोटी टुकड़ियों में युवाओं को संगठित कर शस्त्र प्रयोग का प्रशिक्षण देना ।

v. देश में बमों और शस्त्रों का निर्माण तथा विदेशों से हथियार खरीदना एवं एकत्रित करना ।

क्रांतिकारी आंदोलन का विस्तार एवं प्रमुख क्रांतिकारी:

क्रांतिकारी आंदोलन की लहर पूरे भारत में फैल चुकी थी, जिसके प्रमुख केंद्र महाराष्ट्र, बंगाल एवं पंजाब थे ।

महाराष्ट्र:

महाराष्ट्र क्रांतिकारियों का गढ था । यहाँ के प्रमुख क्रांतिकारी वासुदेव बलवन्त फड़के, विनायक रानाडे, चाफेकर बन्धु, श्यामजी वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर आदि थे । क्रांतिकारी वासुदेव फड़के क्रांतिकारी आंदोलन के अग्रदूत थे । उन्होंने कुछ लोगों को लेकर 1879 में धामरी, बच्चे, पलस्पे आदि ग्रामों पर कब्जा कर लिया । 1879 ई॰ में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, तथा कालेपानी की सजा सुनाई गई ।

1893 में गणपति उत्सव तथा 1895 ई॰ में शिवाजी उत्सव मनाया गया । इससे महाराष्ट्र के लोगों में स्वराज्य के प्रति प्रेम व अंग्रेजों के विरोधी तत्व जागे । 1897 ई॰ में पूना में दामोदर और बालकृष्ण चाफेकर बन्धुओं ने प्लेग समिति के प्रधान रैण्ड एवं लैफ्टिनेन्ट एयर्स्ट की हत्या कर दी ।

चाफेकर बन्धुओं को फाँसी की सजा दी गई । 1909 ई॰ में नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या कर दी गई । इस हत्याकांड में 27 व्यक्तियों को लम्बी कैद तथा तीन व्यक्तियों को प्राण दण्ड दिया गया ।

बंगाल:

बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी बारीन्द्र घोष, खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी, अरविन्द घोष, नरेन्द्र गोसाई, हेमचन्द्र दास आदि थे । बंगाल में क्रांतिकारी पी॰ मित्रा ने ‘अनुशीलन समिति’ का गठन किया । इस समिति का मुख्य उद्देश्य बंगाली युवकों के शारीरिक और बौद्धिक विकास को बढ़ाना था ।

यह समिति क्रांतिकारी संस्था भी थी । इस संस्था को अरविन्द घोष और डॉ॰ केशव बलिराम हेड़गेवार का भी समर्थन रहा । ‘युगान्तर’ और ‘संध्या’ नाम की समाचार पत्रिकाओं में अंग्रेज विरोधी विचार प्रकाशित किए जाने लगे । 1908 ई॰ में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने एक बग्घी पर यह समझकर बम फेंका कि मुजफ्फरपुर का बदनाम जज किग्सफोर्ड सवार है किंतु अन्दाजा गलत निकला ।

उसमें दो अंग्रेजी महिलाएं मारी गईं । इस घटना के पश्चात प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली और खुदीराम बोस को फाँसी की सजा दी गई । अवैध हथियारों की तलाश के संबंध में मानिकटोला उद्यान कलकत्ता में तलाशी ली गई, जिसमें अरविन्द घोष, भाई बारीन्द्र सहित 34 लोगों को गिरफ्तार किया गया । मुकदमें के दौरान सरकारी वकील एवं डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट की हत्या कर दी

गई ।

पंजाब:

पंजाब के प्रमुख क्रांतिकारी लाला लाजपत राय, अजीत सिंह, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, सूर्याअम्बा प्रसाद आदि थे । शिक्षित वर्ग उनके क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित हुआ । पंजाब में लाला लाजपत राय, अजीत सिंह, लाला हरदयाल के नेतृत्व में किसानों का पक्ष लेकर आंदोलन चलाया गया । सरकार ने लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को देश निकाले की सजा दी । अंग्रेजों के विरूद्ध यहाँ कूका आंदोलन चलाया गया ।

विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियाँ:

भारतीय क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रसार विदेशों में भी हुआ । सबसे पहले श्यामजी वर्मा ने 1905 ई॰ में लंदन में ‘इंडिया हाउस’ की स्थापना की । यह विदेशों में क्रांतिकारी गतिविधियों का केंद्र बन गया । श्यामजी वर्मा द्वारा ही सोशियोलाजिस्ट नामक एक पत्रिका एवं छात्रवृत्ति योजना आरंभ की गई ।

विनायक दामोदर सावरकर, वीरेन्द्रनाथ चट्‌टोपाध्याय, तिरूमल आचार्य, मेडम भीकाजी कामा, भाई परमानन्द, मदनलाल ढींगरा तथा लाला हरदयाल इसके सक्रिय सदस्य थे । 1909 में सोसायटी के एक सदस्य मदनलाल ढींगरा ने भारत मंत्री विलियम कर्जन वायली की हत्या कर दी । ढींगरा को प्राणदण्ड और विनायक दामोदर सावरकर को काले पानी की सजा दी गई ।

संयुक्त राज्य अमेरिका में 1913 में ‘गदर पार्टी’ की स्थापना की गई । लाला हरदयाल इस पार्टी के प्रमुख कार्यकर्ता थे । गदर नामक पत्रिका का भी प्रकाशन हुआ जिसमें अंग्रेजों के अत्याचार और शोषण का खुला विरोध किया जाता था । गदर पार्टी का उद्देश्य स्थानीय क्रांतिकारियों की सहायता कर अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह करना था ।

रासबिहारी बोस एवं विष्णु गणेश पिंगले, शचीन्द्रनाथ सन्याल, करतार सिंह ने 21 फरवरी 1915 को भारत में विद्रोह की योजना बनाई । योजना का सुराग पुलिस को लग गया । सभी नेताओं को बंदी बना लिया

गया । इस प्रकार गदर आंदोलन को दबा दिया गया ।

विश्व युद्ध के आरंभ होते ही लाला हरदयाल और उनके साथी जर्मनी चले गये । 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ड में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में सर्वप्रथम मेडम कामा ने भारत की स्वतंत्रता की कल्पना के साथ भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया ।

1915 ई॰ में वीरेन्द्रनाथ चटोपाध्याय, भूपेन्द्र दत्त एवं हरदयाल के नेतृत्व में जर्मनी फारेन ऑफिस के सहयोग से ”इंडिपेडेंस कमेटी” की स्थापना की गई इसे जियरमैन योजना के नाम से जाना जाता है । क्रांतिकारियों के साहसिक कार्यों तथा देशप्रेम की भावना ने नवयुवकों को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया ।

1908 ई॰ से 1918 ई॰ के बीच अधिकांश क्रांतिकारी शहीद हो गए या जेलों में कैद कर दिये गये । प्रथम विश्व युद्ध के अंत तक क्रांतिकारी गतिविधियाँ कुछ समय के लिये कम हो गईं । यद्यपि क्रांतिकारी अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुए, परंतु उनका देश प्रेम आत्म बलिदान जनता के लिये प्रेरणा स्रोत बना ।

क्रांतिकारी आन्दोलन – द्वितीय चरण:

लाहौर षड्‌यंत्र के पश्चात कुछ समय के लिए क्रांतिकारियाँ गतिविधियाँ रूक गईं । इसी समय भारतीय राजनीति में महात्मा गाँधी का उदय हो रहा था । असहयोग आंदोलन को एकाएक वापस लिये जाने एवं सरकार की दमन नीति के कारण क्रांतिकारी पुन: उभर कर आए । जलियावाला बाग हत्याकांड से पूरे देश को आघात पहुंचा और वे प्रतिशोध लेने का प्रयास करने लगे । वे समझ गए कि शांतिपूर्ण तरीके से स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती ।

प्रमुख क्रांतिकारी संगठन:

क्रांतिकारियों के द्वितीय चरण में युवाओं ने कई क्रांतिकारी संगठन बनाये जिसमें भगतसिंह यशपाल तथा छबीलदास ने नौजवान सभा की स्थापना की । 1928 ई॰ में चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल आदि ने मिलकर ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ का नाम बदल कर ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’ रखा । जिसका मुख्य उद्देश्य क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना था ।

क्रांतिकारी आंदोलन के कार्यक्रम:

द्वितीय चरण के क्रांतिकारियों ने छोटे-छोटे सरकारी अफसरों तथा पुलिस अधिकारियों को अपना निशाना नहीं बनाया अपितु क्रांति द्वारा आजादी प्राप्त करना इनका उद्देश्य था ।

उनके कार्यक्रम इस प्रकार थे:

(i) उद्देश्य प्राप्ति हेतु बैकों की लूट तथा सरकारी खजानों पर कब्जा करना ।

(ii) अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अन्य भागों में क्रांतिकारियों के साथ सामंजस्य स्थापित करना ।

द्वितीय चरण में क्रांतिकारी आंदोलन की दो धाराएं विकसित हुई, एक पंजाब, उत्तरप्रदेश व बिहार में और दूसरी बंगाल में ।

उत्तर क्षेत्र के प्रमुख क्रांतिकारी एवं गतिविधियाँ:

क्रांतिकारी गतिविधियाँ संचालित करने के लिये धन की आवश्यकता थी । 9 अगस्त 1925 ई॰ में सहारनपुर लखनऊ लाइन पर काकोरी रेलवे स्टेशन पर क्रांतिकारी सरकारी खजाने को लूटने में सफल हुए । इस घटना से भारी संख्या में युवकों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चला । अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिडी को फाँसी दे दी गई । 17 लोगों को लम्बी सजाएं सुनाई गईं ।

दिसम्बर 1928 ई॰ में लाहौर में अंग्रेजों के लाठीचार्ज से पंजाब के लोकप्रिय नेता लाला लाजपतराय की मृत्यु हो गई थी । इस महान नेता की हत्या का प्रतिशोध लेना क्रांतिकारियों ने अपना कर्तव्य समझा । 1928 ई॰ में पुलिस अधिकारी सैंडर्स की हत्या कर दी गई ।

1929 ई॰ में केन्द्रीय विधानसभा (कलकत्ता) में दो बम फेंके गए । सरकार के नये दमनकारी कानून का विरोध और मार्च 1929 ई॰ में की गई 31 मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी का प्रतिशोध प्रकट करने के लिये यह कार्य किया गया था । भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू और अन्य क्रांतिकारियों पर षड्‌यंत्र में शामिल होने के आरोप में मुकदमा चला ।

क्रांतिकारी अदालत में जो बयान देते वह अगले दिन अखबारों में छपते और पूरे देश में उनका प्रचार होता । देश भर के लोगों के विरोध के बावजूद भगतसिंह, राजगुरू और सुखदेव को 23 मार्च 1931 ई॰ को फाँसी दे दी गई ।

उस दिन पूरे देश में उदासी छा गई । जेल में क्रांतिकारियों से बुरा व्यवहार किया जाता था । इसके विरोध में भूख हड़ताल की गई । भूख हड़ताल के वे दिन क्रांतिकारी जतीनदास की मृत्यु हो गई । इससे सारे देश को आघात पहुँचा ।

चन्द्रशेखर आजाद मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाभरा गाँव के निवासी थे । वे 14 वर्ष की अवस्था में असहयोग आंदोलन से जुडे । गिरफ्तार होने पर अपना नाम आजाद बताया । काकोरी काण्ड, सांडर्स को मारने में, असेम्बली बम केस में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । अंत में इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में पुलिस द्वारा घेरे जाने के कारण अपनी अंतिम गोली से स्वयं शहीद हो गए ।

ठाकुर यशवंत सिंह, देवनारायण तिवारी, दलपत राव तीनों मध्यप्रदेश के दमोह जिले के थे । ये क्रांतिकारियों के संपर्क में आए एक अंग्रेजी अफसर हेक्सट की हत्या कर दी । 1931 ई॰ को यशवंत सिंह और देवनारायण तिवारी को जबलपुर में फाँसी दे दी गई । पंजाब में हरिकिशन ने गवर्नर की हत्या करने की कोशिश की । 1930 ई॰ में तीन जवानों विनय बोस, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता ने कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग में प्रवेश करके पुलिस अधीक्षक की हत्या कर दी ।

बंगाल:

क्रांतिकारियों के दूसरे चरण में गणेश घोष, अम्बिका प्रसाद चक्रवर्ती, निर्मल सेन तथा सूर्यसेन प्रमुख क्रांतिकारी थे । सूर्यसेन के नेतृत्व में 1930 में चटगाँव शस्त्रागार पर धावा बोला । सूर्यसेन को प्रान्तीय क्रांतिकारी सरकार का अध्यक्ष बनाया । अंग्रेजी फौजों से मुठभेड़ में 11 क्रांतिकारी शहीद हुए । सूर्यसेन को फाँसी की सजा दी गई ।

महिला क्रांतिकारी प्रीतिलता ने अंग्रेजों के क्लब पर गोलियाँ चलाईं । और अंत में जहर खाकर शहीद हो गई । 1931 में कोमिल्ला की दो स्कूली छात्राओं शांति घोष और सुनीता चौधरी ने जिलाधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी ।

सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज:

1942 ई॰ से 1945 ई॰ के मध्य देश के बाहर भारतीय स्वतंत्रता की गूँज सुनाई पड़ी । इस आंदोलन के नायक सुभाषचन्द्र बोस थे । वे प्रारंभ में कांग्रेस दल के सदस्य थे । 1939 ई॰ में गाँधीजी के विरोध के बावजूद भी कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए । बाद में कांग्रेस छोड्‌कर ‘फारवर्ड ब्लाक’ की स्थापना की और क्रांतिकारी भावना का प्रचार करने लगे ।

गुप्त रूप से भारत छोड्‌कर बर्लिन व वहाँ से जापान पहुँचे । इसी बीच रासबिहारी बोस की पहल पर कैप्टन मोहन सिंह ने ब्रिटिश सेना के उन भारतीय सैनिकों को जिन्हें जापानियों ने पकड़ लिया था, मिलाकर भारत की स्वतंत्रता के लिये आजाद हिन्द फौज की स्थापना की । सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द सेना में नई जान फूंकी एवं नेताजी के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

23 अक्टूबर को आजाद हिन्द फौज के सेनापति की हैसियत से भारत की अस्थाई सरकार सिंगापुर में बनाई तथा देश को स्वतंत्र करने के लिये रक्त की आखिरी बूँद बहा देने की शपथ ली । 1944 ई॰ में आजाद हिन्द फौज भारत की पूर्वी सीमा तक पहुँचने में सफल रही ।

1944 में कोहिमा में भारतीय झण्डा फहराया । इसके पश्चात इम्फाल को घेर लिया । लेकिन वर्षा की अधिकता और रसद की कमी के कारण उन्हें बाध्य होकर लौटना पड़ा । नेताजी ने नारा दिया- ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा ।’

1944 ई॰ में विश्व की राजनीति में जापान की स्थिति कमजोर हो गई, अत: आजाद हिन्द फौज भी बिखरने लगी । सुभाष चन्द्र बोस बैंकाक वापस आ रहे थे, 1945 ई॰ में हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई तथापि उनकी मृत्यु के संबंध में विवाद हैं ।

आजाद हिन्द फौज के सेनापति कर्नल शहनवाज खाँ, कैप्टन प्रेमकुमार सहगल, गुरूबख्श सिंह पर राजद्रोह का अभियोग चलाया गया परंतु जनमत के दबाव के कारण सजा नहीं दी जा सकी । भारतीय इतिहास में क्रांतिकारी आंदोलनों का स्थान महत्वपूर्ण है ।

जब जन संघर्ष शिथिल पड़ गया तब क्रांतिकारी गतिविधियों ने वातावरण निर्माण में मदद की । इसके फलस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता का मार्ग सरल हो गया तथा भारत में त्याग और बलिदान का अद्वितीय उदाहरण भारतीय नवयुवकों ने प्रस्तुत किया । वे सदैव वंदनीय रहेंगे ।

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