Read this essay in Hindi to learn about the position of female in the Indian society during eighth to twelfth century (Medieval Period).

पहले की ही तरह स्त्रियों को सामान्यत: मानसिक दृष्टि से हीन माना जाता था । पतियों की आज्ञा का अंध-पालन उनका कर्त्तव्य था । एक लेखक पति के प्रति पत्नी के कर्त्तव्य का वर्णन करते हुए कहता है कि वह उसके पाँव धोएगी और वे दूसरी सेवाएँ करेगी जो एक सेवक को शोभा देती हैं ।

लेकिन वह यह शर्त भी जोड़ता कि पति सद्‌कर्मों के मार्ग पर चले तथा अपनी पत्नी के प्रति घृणा या ईर्ष्या के भाव से मुक्त रहे । स्त्रियों को वेदों के अध्ययन के अधिकार से अभी भी वंचित रखा जा रहा था । इसके अलावा लड़कियों के लिए विवाह की आयु भी कम कर दी गई और इस तरह उनके लिए उच्च शिक्षा के अवसर नष्ट कर दिए गए । इस काल के किसी भी शब्दकोश में शिक्षिका शब्द का उल्लेख नहीं मिलता ।

इससे स्त्रियों में उच्च शिक्षा की हीन स्थिति का पता चलता है लेकिन इस काल के कुछ नाटकों में गणिकाएँ और रानियों की सेविकाएँ भी संस्कृत और प्राकृत में उत्तम काव्य रचना में समर्थ थीं । ललित कलाओं में और विशेषकर चित्रकला और संगीत में राजकुमारियों की कुशलता का अनेक कथाओं में संकेत मिलता है । उच्च अधिकारियों की पुत्रियों गणिकाओं और रखैलों से भी काव्य समेत विभिन्न कलाओं में पारगत होने की अपेक्षा की जाती थी ।

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विवाह के बारे में स्मृतियों के लेखक कहते हैं कि माता-पिता को चाहिए कि 6 से 8 वर्ष की आयु के बीच या 8 वर्ष के बाद और रजस्वला होने से पहलै कन्या का दान कर दे । कुछ दशाओं में पुनर्विवाह की अनुमति भी थी जैसे अगर पति कहीं चला जाए (अर्थात उसका कोई पता न चले) मर जाए, संन्यासी का जीवन अपना ले नपुंसक हो या फिर जाति से बाहर कर दिया गया हो ।

सामान्यत: स्त्रियों पर भरोसा नहीं किया जाता था । उन्हें घर में रखा जाता था और उनके जीवन पर पुरुष संबंधियों का, अर्थात पिता, भाई, पति या पुत्र का, नियंत्रण होता था । पर घर के अंदर उनका सम्मान किया जाता था । पति अगर लांछित पत्नी को भी त्याग दे तो भी उसे गुजारा दिया जाता था ।

भूमि में संपत्ति संबंधी अधिकारों के विकास के साथ स्त्रियों को भी संपत्ति के अधिक अधिकार मिले । परिवार की संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए स्त्रियों को अपने पुरुष संबंधियों की संपत्ति विरासत में पाने का अधिकार दिया गया था ।

कुछ अपवादों को छोड़ दें तो एक विधवा को अपने पति की पूरी संपत्ति पाने का अधिकार था, बशर्ते वह पुत्रहीन मरा हो । बेटियों को भी विधवा माता की संपत्ति पाने का अधिकार था । इस तरह सामंती समाज के विकास ने निजी संपत्ति की धारणा को और मजबूत बनाया ।

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सतीप्रथा को कुछ लेखकों ने अनिवार्य बतलाया है जबकि औरों ने इसकी निंदा की है । अरब लेखक सुलेमान के अनुसार राजाओं की पत्नियाँ कभी-कभी मृत पतियों की चिताओं पर स्वयं को जला देती थीं, लेकिन ऐसा करना या न करना उनकी इच्छा पर निर्भर शा । लगता है कि अग्रणी सरदारों द्वारा बड़ी संख्या में पत्नियाँ रखने की प्रथा बड़ी और फलस्वरूप संपत्ति को लेकर विवाद खड़े होने लगे तो सती था के प्रसार की प्रवृत्ति सामने आई ।

सवर्ण स्त्रियाँ अलग-थलग रहती थीं और सामान्यत: लोगों की दृष्टि से दूर रखी जाती थीं । लेकिन शरीर को पर्दे से ढँकने की कोई प्रथा नहीं थी । दसवीं सदी के अरब यात्री अबू जैद ने लिखा है कि अनेक भारतीय राजा दरबार लगाते थे तो सभी उपस्थित पुरुषों को उनकी स्त्रियों को बेपर्दा देखने की अनुमति रहती थी, विदेशी तक इससे वंचित नहीं रहते थे ।

उड़ीसा और कश्मीर में अनेक स्त्रियों ने महारानी-रूप में अपने बूते पर राज्य किया । इनमें वाकटक राजवंश की प्रभावती गुप्त का उल्लेख किया जा सकता है जिसने युवराज की माता के रूप में कम से कम 13 वर्षों तक राज्य किया तथा रानी दिद्‌दा का उल्लेख किया जा सकता है जिसने 50 वर्षों तक कश्मीर पर राज्य किया और अपने खिलाफ सभी षड्‌यंत्रों का सफलतापूर्वक सामना किया ।

साधारण स्त्रियों के जीवन के बारे में हमारे पास सूचनाएँ बहुत कम हैं । उनको घर सँभालने और बच्चे पालने के अलावा पुरुषों के साथ खेती, व्यवसायों आदि में कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी ।

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