Read this essay in Hindi to learn about the factors determining perception of an individual.

Essay # 1. आकार, दूरी या गहराई प्रत्यक्षीकरण के कारक या संकेत (Factors of Perception):

शरीर-विज्ञानियों (Physiologist) तथा मनोविज्ञानियों (Psychologists) ने अग्र दो प्रकार के संकेतों (Cues) या कारकों का उल्लेख किया है:

(i) एकनेत्रीय संकेत (Monocular Cues):

वस्तु के आकार, दूरी या गहराई के प्रत्यक्षीकरण में कुछ ऐसे कारक या संकेत होते हैं, जिनकी उपस्थिति एक आँख के उत्तेजित होने पर निर्भर करती है । इस प्रकार के संकेतों को व्यक्ति भिन्न-भिन्न वस्तुओं के सम्पर्क में आने से सीखता है, अर्थात् व्यक्ति ऐसे संकेतों को अपने वातावरण से सीखता है । इन संकेतों को द्वितीयक संकेत (Secondary Cues) अथवा दृष्टि संकेत (Visual Cues) भी कहते है ।

ADVERTISEMENTS:

(a) आकार (Size):

वस्तु के आकार के आधार पर उसकी दूरी का ज्ञान होता है । जब वस्तु नजदीक होती है, तो अक्षिपटल पर उसकी बड़ी प्रतिमा बनती है और दूर होने पर छोटी बनती है । जैसे हवाई जहाज जब नजदीक होता है, तो उसका आकार बड़ा दिखाई पड़ता है, परन्तु जैसे-जैसे वह दूर जाता रहता है उसका आकार छोटा दिखलाई पड़ता है ।

(b) हस्तक्षेप (Interposition or Covering):

ADVERTISEMENTS:

जब एक पंक्ति में दो वस्तुएँ होती हैं, तो एक वस्तु दूसरी वस्तु को पूर्ण रूप से या आशिक रूप से ढँक लेती है । जो वस्तु ढँक लेती है, वह नजदीक होती है और जो ढँक जाती है वह दूर होती है ।

(c) रेखीय परिदृश्य (Linear Perspective):

जब समानान्तर वस्तुएँ (Parallel Objects) समानान्तर दिखाई पड़ती हैं, तो उनकी दूरी कम होती है और जब वे असमानान्तर अर्थात् आपस में मिलती हुई दिखाई पड़ती हैं, तो उनकी दूरी अधिक होती है । उदाहरणार्थ जब हम रेल की पटरियों को नजदीक से देखते हैं, तो वे समानान्तर दिखाई पड़ती हैं और जब दूर से देखते है तो दोनों पटरियाँ आपस में मिलती हुई दिखाई पड़ती हैं ।

(d) स्पष्टता परिदृश्य (Aerial Perspective):

ADVERTISEMENTS:

वस्तु की स्पष्टता या अस्पष्टता के आधार पर भी उसकी दूरी का ज्ञान होता है । नजदीक की वस्तु स्पष्ट दिखाई पड़ती है और दूर की वस्तु स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ती है ।

(e) गतिलम्बन (Motion Parallax):

वस्तु की गति के आधार पर भी दूरी या मोटाई का प्रत्यक्षीकरण होता है । वस्तु की गति के दो संकेत होते हैं, जिन्हें गति की तीव्रता (Speed of Motion) तथा गति की दिशा (Direction of Movement) कहते हैं ।

जब दो वस्तुएँ समान तीव्रता से गतिशील हों और एक वस्तु अधिक तेजी से गतिशील नजर आये और दूसरी मन्द गति से गतिशील दिखाई पड़े तो इसका यह अर्थ है, कि पहली वस्तु से दूसरी वस्तु की दूरी अधिक है ।

ठीक इसी तरह वस्तु की गति की दिशा के आधार पर भी वस्तु की दूरी का प्रत्यक्षीकरण होता है । दो वस्तुएँ यदि समान तीव्रता से गतिशील हों और एक वस्तु विपरीत दिशा में और दूसरी वस्तु समान दिशा में चलती हुई नजर आये तो इसका अर्थ है कि पहली वस्तु से दूसरी वस्तु की दूरी अधिक है ।

जैसे जब हम रेलगाड़ी में सफर करते हैं, तो नजदीक के पेड़-पौधे विपरीत दिशा में और दूर के पेड़-पौधे उसी दिशा में (रेलगाडी की गति की दिशा में) चलते हुए दिखलाई पड़ते हैं ।

(f) छाया (Shadow):

प्रकाश की दिशा या स्रोत (Source) की जानकारी के आधार पर वस्तु की छाया से उसकी दूरी का प्रत्यक्षीकरण होता है । यदि प्रकाश निरीक्षक (Observer) की ओर से जा रहा हो और एक वस्तु की छाया दूसरी पर पड़ रही हो तो पहली वस्तु की अपेक्षा दूसरी वस्तु की दूरी अधिक होगी ।

(ii) द्विनेत्रीय संकेत (Binocular Cues):

कुछ ऐसे संकेत होते हैं, जो दोनों आँखों के उत्तेजित (Stimulated) होने पर निर्भर करते हैं । इन संकेतों का आधार आँखों की शारीरिक प्रक्रिया (Physiological Process) है । इसी कारण इन्हें शारीरिक संकेत भी कहते है ।

जब व्यक्ति किसी वस्तु का प्रत्यक्षीकरण करता है, तो उसकी दोनों आँखों में तथा प्रतिमाओं में कुछ शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिनके आधार पर वस्तु की दूरी या मोटाई का ज्ञान होता है । इन सकेतों को अदृष्टि संकेत (Non-Visual Cues) भी कहते हैं, क्योंकि इनका कोई सम्बन्ध अक्षिपटल की प्रतिमा से नहीं होता है ।

इनका विवरण निम्न प्रकार है:

(a) समायोजन प्रक्रिया (Accommodation Process):

समायोजन की प्रक्रिया में सीलियरी पेशिया (Ciliary Muscles) मदद करती हैं । ये पेशियाँ आवश्यकतानुसार फैलती-सिकुड़ती रहती हैं । इनके फैलने-सिकुड़ने के कारण ही नेत्र लेन्स की वक्रता त्रिज्या बढ़ती-घटती है । जब वस्तु नजदीक होती है, तो ये पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं और जब वस्तु दूर होती है तो ये पेशियाँ फैल जाती हैं । इस प्रकार इनके सिकुड़ने और फैलने से वस्तु की दूरी या मोटाई का ज्ञान हो जाता है ।

(b) समवाय प्रक्रिया (Convergence Process):

जब वस्तु नजदीक होती है, तो दोनों ऑखें अन्दर की ओर (Inward) मुड़ती हैं, और जब वस्तु दूर होती है, तो आँखें बाहर की ओर (Outward) मुड़ती हैं । आँखों की इसी प्रक्रिया को समवाय प्रक्रिया कहते हैं । अत: आँखों के अन्दर की ओर मुडने से कम दूरी का प्रत्यक्षीकरण होता है और बाहर की ओर मुड़ने से अधिक दूरी का ।

(c) प्रतिमा भिन्नता (Retinal Disparity):

जब व्यक्ति किसी वस्तु को देखता है, तो उसकी दोनों आँखों में दो अलग-अलग प्रतिमाएँ बनती हैं । इन दोनों प्रतिमाओं में कुछ भेद या भिन्नता होती है । इसे ही प्रतिमाओं की भिन्नता कहते है । इसका कारण यह है, कि दोनों आँखें एक-दूसरे से लगभग 7.5 सेमी. की दूरी पर अवस्थित हैं ।

बायीं आँख वस्तु के बायें पक्ष और दायीं आँख वस्तु के दायें पक्ष के सम्बन्ध में अधिक सूचनाएँ ग्रहण करती है । इसी भिन्नता की मात्रा के आधार पर वस्तु की दूरी मोटाई या गहराई और ऊँचाई का प्रत्यक्षीकरण होता है ।

Essay # 2. विस्तार का प्रत्यक्ष (Perception of Space):

विस्तार के प्रत्यक्ष के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों ने तीन तत्वों को संज्ञा दी है । ये तीन तत्व हैं- व्याप्ति, स्थानीय चिह्न एवं गति । विस्तार के प्रत्यक्ष की व्याख्या के लिए इनको समझना अति आवश्यक है ।

(i) व्याप्ति (Extensity):

व्याप्ति संवेदनाओं का एक गुण है, इससे संवेदनाएँ फैली हुई प्रतीत होती हैं । विस्तार में एक तत्व सामग्री है । यह सहवर्ती एवं प्रतिरोधशील बिन्दुओं (Co-Existing and Resisting Points) से बनती है । व्याप्ति (Extensity) से इसी का आभास मिलता है, अर्थात् कुछ होने का आभास होता है ।

उदाहरण के लिए, विद्युत का प्रकाश एवं मोमबत्ती की लौ में व्याप्ति का अन्तर है । त्वचा पर एक सुई का स्पर्श पैसे के स्पर्श से कम व्याप्ति रखता है । पानी में एक अंगुली डालने एवं पूरा हाथ या पूरा शरीर डालने से संवेदना में व्याप्ति का अन्तर मालूम पड सकता है ।

व्याप्ति ऐन्द्रिक अनुभव पर निर्भर है । एक वृक्ष की ओर जाने में जैसे-जैसे हम उसके समीप पहुंचते हैं, वैसे-वैसे उसकी सवेदना की व्याप्ति में वृद्धि होती जाती है । देशज प्रत्यक्ष (Spatial Perception) में व्याप्ति की प्रत्यक्ष में मूल संवेदना का आभास होता है ।

(ii) स्थानीय चिन्ह (Local Signs):

इस प्रकार के स्थानीय चिह्नों के द्वारा विस्तार टुकड़ों में बँट जाता है, क्योंकि देश का प्रत्येक भाग शरीर में अलग भाग में संवेदना उत्पन्न करता है और शरीर के प्रत्येक भाग का अपना स्थानीय चिह्न होता है अर्थात् एक संवेदनशील स्थान पर एक चिन्ह होता है और दूसरी पर दूसरा इसका कारण यह है कि शरीर के संवेदनशील भागों में किन्हीं भी दो की रचना एक जैसी नहीं होती ।

उदाहरण हेतु उँगली को गाल में गडाइये और फिर उतने ही दबाव से हाथ में शरीर के प्रत्येक अंग के भिन्न-भिन्न भाग में संवेदना भी भिन्न-भिन्न होती है । उदाहरण के लिए नाक के सिरे को स्पर्श करने से संवेदना नाक के बीच की संवेदना से अलग होगी । इसी प्रकार के अन्तर शरीर के विभिन्न अंगों के अनुसार भिन्न-भिन्न संवेदना का आभास कराते हैं ।

(iii) गति (Motion):

विभाजन से देश का प्रत्यक्ष सम्भव नही हो सकता क्योंकि देश टुकड़ों का योग नहीं है । देश के प्रत्यक्ष के लिए इन टुकडों का किसी-न-किसी प्रकार परस्पर सम्बन्धित होना आवश्यक है । यह प्रक्रिया गति (Movement) से सम्बद्ध होती है । शरीर के विभिन्न भाग अगुलियाँ नेत्र हाथ आदि गतिशील अंग हैं ।

जब इनमें से किसी को विस्तार से घुमाया जाता है, तो विभिन्न टुकड़ों में एक निश्चित व्यवस्था बन जाती है । इस प्रकार स्पष्ट है, कि स्थितियों एवं पैशिक गतियों की इन दोनों मृखलाओं के सहयोग से देश का प्रत्यक्ष होता है । देश का प्रत्यक्ष स्पर्श से शुरू होता है, परन्तु उनमें दृष्टि का पूर्ण महत्च होता है, अत: देश का प्रत्यक्ष स्पर्श एवं दृष्टि दोनों के ही सहयोग से होता है ।

Essay # 3. प्रत्यक्षीकरण के वैयक्तिक तत्व (Personal Factors of Perception):

व्यक्ति का प्रत्यक्षीकरण सिर्फ उत्तेजना क्षेत्र (Stimulus Fields) की विशेषताओं या शारीरिक प्रक्रियाओं पर ही निर्भर नही होता, अपितु प्रत्यक्षीकरण करने वाले प्राणी की व्यक्तिगत विशेषताओं तथा उसके सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश का भी प्रभाव प्रत्यक्षीकरण पर पड़ता है ।

व्यक्ति की व्यक्तिगत विशेषताओं में:

(a) आवश्यकता (Need),

(b) प्रेरणा (Motivation),

(c) संवेग (Emotions),

(d) मनोवृत्ति (Attitude),

(e) मूल्य (Value),

(f) अर्थ (Meaning) आदि को सम्मिलित किया जाता है ।

इसके अलावा सामाजिक आदर्श (Social Norms), लोकरीतियाँ (Customs), सामाजिक मनोवृत्ति (Social Attitude) एवं सांस्कृतिक भिन्नताएँ (Cultural Difference) मुख्य निर्धारक या कारक तत्व है ।

इनको नीचे वर्णित किया जा रहा है:

(A) आवश्यकता (Need):

सामान्य जीवन में प्राणी पर आवश्यकताओं का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है । व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार ही किसी वस्तु को देखता है । उदाहरणार्थ – जब दो भाई एक साथ घर पहुँचते हैं, जिसमें एक भूखा है और दूसरा प्यासा तो दोनों ही भाइयों का ध्यान घर में रखी खाद्य – सामग्री पर एकसमान नहीं जाएगा । भूखा व्यक्ति भोजन को प्राथमिकता देगा जबकि प्यासा व्यक्ति पानी को प्राथमिकता देगा ।

मैक्लीलैंड (Mcclelland) एवं एटकिन्सन (Atticinson) ने भी प्रक्षेपण प्रणाली द्वारा अस्पष्ट चित्रों के प्रत्यक्षीकरण पर भूख के प्रभाव का अध्ययन किया है । यह अध्ययन छात्रों पर किया गया और पाया गया कि भूखे रहने की अवधि जैसे-जैसे बढ़ती गई, प्रयोज्यों की भोजन-सम्बन्धी अनुक्रियाएँ भी बढ़ती गईं ।

शैफर एवं मर्फी (Schafer and Murphy) के एक प्रयोग ने यह साबित किया है, कि व्यक्ति ऐसी वस्तुओं एवं घटनाओं का प्रत्यक्षीकरण करने से बचाव का प्रयास करता है, जिनसे भय होने या दण्ड मिलने की सम्भावना अधिक होती है ।

(B) मूल्य (Value):

प्रत्यक्षीकरण के नि धारक तत्वो में वस्तु मूल्य (Value of the Object) भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है । हर एक वस्तु का एक मूल्य होता है । वस्तुओं का मूल्य या तो वैयक्तिक होता है या सामान्य यह आवश्यक नहीं है कि जो वस्तु किसी एक व्यक्ति के लिए मूल्यवान या महत्वपूर्ण है, वह दूसरे के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण या मूल्यवान हो ।

उदाहरणार्थ – एक पुस्तक लो वह एक अन्य व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण नहीं होगी । जबकि वह पुस्तक एक छात्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।

वस्तु मूल्य प्रत्यक्षीकरण के तीनों पक्षों – चयन, स्थायीकरण और तीक्ष्णीकरण को प्रभावित करता है । व्यक्ति वातावरण में शामिल सभी उत्तेजनाओं का प्रत्यक्षीकरण नही करता, अपितु वह ‘चयन’ करता है । चयन की प्रक्रिया उत्तेजना विशेष की विशेषता के अलावा प्राणी की पसन्द या उसके ‘वैयक्तिक मूल्य तन्त्र, (Personal Value System) से प्रभावित होती है ।

जो वस्तु व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है, उन्हें वह अपने अवधान केन्द्र में शामिल कर लेता है, फिर चुने हुए वस्तु के प्रत्यक्ष अनुभव को व्यक्ति स्थिर कर लेता है, तथा उत्तेजना के कुछ पक्षों पर तुलनात्मक ज्यादा जो देता है, जिसे तीक्ष्णीकरण कहते हैं । अत: वस्तु मूल्य प्रत्यक्षीकरण के तीनों पहलुओं को प्रभावित करता है ।

(C) वस्तु के प्रतीकात्मक अर्थ का प्रभाव (Effects of Symbolic Meaning of the Object):

हर वस्तु का एक स्पष्ट (Explicit) अभिप्राय होता है । यह अभिप्राय सार्वजनीन, अर्थात् सभी के लिए एक समान होता है । किन्तु वस्तुओं के अस्पष्ट (Implicit) अभिप्राय भी होते हैं, जो कि प्रतीकात्मक एवं वैयक्तिक स्वरूप के होते हैं । वस्तुओं के ये चिह्नात्मक अभिप्राय (Symbolic Meaning) कुछ अन्य बातों की ओर संकेत करते हैं ।

वस्तुओं के चिह्नात्मक अभिप्रायों को संकेत मूल्य की संज्ञा दी जाती है । वस्तुओं के अस्पष्ट व्यक्तिगत अभिप्राय भी विशेष प्राणी हेतु धनात्मक अथवा निषेध्गत्मक होते हैं तथा प्राणी उस उत्तेजना का प्रत्यक्षीकरण इन धनात्मक या निषेधात्मक रूप के वैयक्तिक अभिप्रायों के विषय में करता है ।

(D) प्रत्यक्षात्मक सुरक्षा (Perceptual Defence):

प्रत्यक्षीकरण के व्यक्तिगत निर्धारकों में व्यक्ति विशेष की चयनात्मक संवेदनशीलता भी महत्चपूर्ण स्थान रखती है । प्रत्यक्षात्मक सुरक्षा का व्याख्यान अन्य प्रकार से भी किया जा सकता है, प्राणी के सम्मुख जब स्थिति पैदा होती है, जिससे उससे खतरा या डर का अनुभव होता ।

इस अवस्था में मनुष्य में उस तरह की उत्तेजनाओं का अनुभव न करने या गलत अनुभव करने की प्रवृति होती है; प्राय: मनुष्य उन्हीं उत्तेजनाओं का प्रत्यक्षी करण करना चाहता है, जिनसे उसे आनन्द सन्तुष्टि, आत्म सम्मान का अनुभव होता है ।

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