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मानव जीवन में आमूलाग्र परिवर्तन लाने वाली घटना को ‘क्रांति’ कहते हैं । अमेरिका का स्वतंत्रता युद्ध, फ्रांस की राज्य क्रांति और औद्‌योगिक क्रांति ऐसे ही परिवर्तन लाने वाली घटनाएँ थी । ये घटनाएँ अठारहवीं शताब्दी के कालखंड में घटित हुई । अत: अठारहवीं शताब्दी को क्रांति युग कहते हैं ।

अमेरिका का स्वतंत्रता युद्ध:

अमेरिका महाद्‌वीप की खोज के बाद यूरोप के अनेक लोग यहाँ आकर स्थायी रूप में बस गए । ई॰स॰ १६०७ से १७३३ के बीच अंग्रेजों ने उत्तरी अमेरिका में तेरह उपनिवेश स्थापित किए ।

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उपनिवेश और इंग्लैंड की नीति:

इंग्लैंड के शासन ने उत्तरी अमेरिका के इन उपनिवेशों पर प्रशासन चलाना प्रारंभ किया । इंग्लैंड के शासकों का मत था कि उपनिवेश के लोग अनाज, तमाखू, चीनी आदि माल इंग्लैंड को बेचे । इंग्लैंड ने इन उपनिवेशों में उस माल को बनाने पर प्रतिबंध लगाया जो माल इंग्लैंड के माल के साथ होड़ ले सकता था । इंग्लैंड ने उपनिवेशों के चाय, चीनी आदि माल पर कर लगाए ।

इंग्लैंड के प्रति उपनिवेशों में प्रखर असंतोष:

इन उपनिवेशों ने अनुभव किया कि इंग्लैंड द्‌वारा लगाए गए कठोर बंधनों से मुक्त होना आवश्यक है । ये उपनिवेश जार्ज वाशिंग्टन और थामस जेफरसन के नेतृत्व में इकट्‌ठे हुए और इंग्लैंड के विरुद्ध विद्रोह किया ।

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बोस्टन टी पार्टी:

उपनिवेशों के नागरिकों ने माँग की कि उपनिवेशों पर लगाए गए प्रतिबंधों को इंग्लैंड हटा दे तथा इन उपनिवेशों के नागरिकों को अपना प्रशासन चलाने दे । इंग्लैंड द्‌वारा इन माँगों को अस्वीकार किए जाने पर उपनिवेशों के नागरिकों ने इंग्लैंड के माल को बहिष्कृत किया ।

ई॰स॰ १७७३ को अमेरिका के बोस्टन बंदरगाह में इंग्लैंड के जहाज खड़े थे । इन जहाजों में लदे चाय के बक्से उपनिवेशों के कुछ नागरिकों ने समुद्र में फेंक दिए । इसी को ‘बोस्टन टी पार्टी’ कहते है ।

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प्रतिनिधि नहीं, कर नहीं:

इंग्लैंड की संसद में उपनिवेशों के प्रतिनिधि नहीं थे । अत: उनका मानना था कि यदि इंग्लैंड की संसद में उनके प्रतिनिधि नहीं है तो इंग्लैंड की संसद को उपनिवेशों के संबंध में कानून बनाने और उनपर कर लादने का अधिकार नहीं हे ।

उन्होंने ‘प्रतिनिधि नहीं, कर नहीं’ यह घोषणा की । इंग्लैंड के शासन ने इन माँगों को ठुकरा दिया । इसका परिणाम इंग्लैंड और उपनिवेशों के बीच युद्ध में हुआ । जार्ज वाशिंग्टन उपनिवेशों की सेना का नेतृत्व कर रहे थे ।

स्वतंत्रता का घोषणापत्र:

४ जुलाई १७७६ को उपनिवेशों ने स्वतंत्रता का घोषणापत्र जारी किया । इसे तैयार करने में थामस जेफरसन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । इस घोसणापत्र में कहा गया था, “सभी मनुष्य समान हैं । स्वतंत्रता, जीवन जीना और प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के मौलिक अधिकार है । इन अधिकारी की उपेक्षा करनेवाले शासन को बदलने या उलटने का जनता को अधिकार है ।”

इस स्वतंत्रता युद्ध में उपनिवेशों के लोगों ने विजय प्राप्त की । ई॰स॰ १७८३ में इंग्लैंड ने उनकी स्वतंत्रता को स्वीकार किया । जार्ज वाशिंग्टन अमेरिका के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष बने । ई॰स॰ १७८९ में इन तेरह उपनिवेशों ने मिलकर अमेरिका के संघ राज्य की स्थापना की ।

‘संयुक्त अमेरिका संघ राज्य’ (U॰S॰A॰) के नाम से इस देश की पहचान बनी । अमेरिका प्रथम स्वतंत्र एवं गणतंत्र संघ राज्य बना । विश्व में पहली बार लिखित संविधान को प्रयोग में लाया गया । अमेरिका के स्वतंत्रता युद्ध से फ्रांस की राज्य क्रांति को प्रेरणा प्राप्त हुई । इसी भांति इस स्वतंत्रता युद्ध ने उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दी में हुए उपनिवेश विरोधी संघर्ष को स्फूर्ति प्रदान की ।

फ्रांस की राज्य क्रांति:

फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था । वहाँ की जनता ने संगठित होकर निरंकुश राजतंत्र तथा सामंती व्यवस्था को पराजित किया । विश्व के इतिहास में इस प्रकार जनशक्ति का प्रस्फुटन पहली बार हुआ ।

आज संपूर्ण विश्व में हम कई देशों में जिस प्रचलित जनतांत्रिक शासन पद्धति को देख रहे है; उसका प्रसार इस राज्य क्रांति से हुआ है । अत: यह माना जाता है कि आधुनिक विश्व के इतिहास का प्रारंभ फ्रांस की राज्य क्रांति से हुआ है ।

फ्रांस के शासक विलासी बन चुके थे । विश्व में घटित घटनाओं की ओर से वे लापरवाह हो गए थे । जनता के हित एवं कल्याण हेतु वे कुछ नहीं करते थे । आर्थिक दीवाला पिट गया था । परिणामस्वरूप शासकों के प्रति जनता का विश्वास घटने लगा था ।

सामाजिक विषमता:

इस कालखंड में फ्रांस की सामाजिक विषमता चरम सीमा पर थी । फ्रांसीसी समाज में तीन वर्ग थे । प्रथम वर्ग वरिष्ठ धर्मगुरूओं का था । दूसरे वर्ग में धनिकों-सामंतों का समावेश था । इन दोनों वर्गो के लोगों की संख्या फ्रांस की जनसंख्या की तुलना में बहुत कम थी परंतु देश की लगभग अस्सी प्रतिशत भूमि पर इन्हीं दो वर्गो का स्वामित्व था ।

इसके अतिरिक्त इन दोनों वर्गो को अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त थी । ये लोग आराम और विलासिता का जीवन व्यतीत करते थे । तीसरे वर्ग में व्यापारी, वकील, डाक्टर, अध्यापक, किसान-श्रमिक, भूदास आदि का समावेश था । इन लोगों की आय कम थी फिर भी करों का संपूर्ण भार उन्ही को उठाना पड़ता था ।

वरिष्ठ वर्ग और सामान्य लोगों के बीच बहुंत बड़ी सामाजिक एवं आर्थिक विषमता उत्पन्न हो गई थी । इस विषमता को समाप्त करने का कार्य तीसरे वर्ग ने किया । फ्रांस में मांतेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो जैसे दर्शनिकों ने अपने विचार प्रकट किए । ‘शासन व्यवस्था के तीनों अंग विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे से स्वतंत्र होनी चाहिए’-सत्ता विभाजन का यह सिद्धांत मांतेस्क्यू ने प्रस्तुत किया ।

वाल्टेयर ने सामाजिक विषमता की कड़ी आलोचना की । रूसो ने अपने ‘सामाजिक अनुबंध’ ग्रंथ द्‌वारा जनता के सार्वभौमत्व सिद्धांत को स्थापित किया । उसके विचारों के अनुसार-मनुष्य जन्मत: स्वतंत्र है । समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए जनता स्वयं के लिए कुछ नियम बना लेती है ।

इन नियमों के कार्यान्वयन हेतु शासन व्यवस्था निर्मित करती है । यह शासन व्यवस्था ईश्वर प्रदत्त न होकर सामाजिक अनुबंध द्‌वारा निर्मित होती है । यदि शासन व्यवस्था इस अनुबंध का उल्लंघन करती है तो समाज को इस शासन व्यवस्था को बदलने का स्वाभाविक एवं नैतिक अधिकार प्राप्त है । इन विचारों के फलस्वरूप रूसो को फ्रांस की राज्य क्रांति का जनक माना जाता है ।

फ्रांस के दार्शनिकों ने मनुष्य की स्वतंत्रता को महत्व दिया और अंधश्रद्धा का विरोध किया । अब वे नए उद्‌योग-धंधों के विकास की आवश्यकता अनुभव करने लगे । फ्रांस में नए विचारों की लहर चलने लगी । परिणामस्वरूप फ्रांस की राज्य क्रांति को गति मिली ।

बास्तिल की पराजय:

फ्रांस की जनता का दुख बढ़ता ही गया । फलत: जनता में व्याप्त असंतोष चरम सीमा पर पहुँच गया और क्रांति का विस्फोट हुआ । १४ जुलाई १७८९ को क्रोधित भीड़ ने बास्तिल कारागार पर आक्रमण किया ।

यह कारागार निरंकुश राजतंत्र और अन्याय का प्रतीक बना हुआ था । बास्तिल पर किया गया आक्रमण अप्रत्यक्ष रूप से सामान्य जनता द्‌वारा निरंकुश सत्ताधीशों पर किया गया प्रहार था ।

मानवाधिकारों का धोषणापत्र:

क्रांतिकारियों ने मानवाधिकारों का घोषणापत्र जारी किया । इस घोषणापत्र में उल्लेख किया गया था कि स्वतंत्रता, संपत्ति स्व जीवन की सुरक्षा, अन्याय का प्रतिकार करना मनुष्य के मौलिक अधिकार हैं । क्रोधित जनता ने फ्रांस की सामंती व्यवस्था को उखाड़ फेंका ।

जनता ने फ्रांस नरेश सोलहवें लुई का सिर कटवाकर अपना शासन स्थापित किया । फ्रांस की राज्य क्रांति ने विश्व को तीन बहुमूल्य सिद्धांत-स्वतंत्रता, समता और बंधुता प्रदान किए और जनता के सार्वभौमत्व सिद्धांत को स्थापित किया ।

यह क्रांति विश्व के निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध और परतंत्रता में रहनेवाले राष्ट्रों के स्वतंत्रता युद्ध के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुई । अत: मानवीय इतिहास में फ्रांस की राज्य क्रांति को असाधारण महत्व प्राप्त है ।

औद्‌योगिक क्रांति:

अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से यूरोप के औद्‌योगिक क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होने लगे थे । वाष्प ऊर्जा पर चलनेवाले यंत्रों की सहायता से उत्पादन होने लगा । कालांतर में विद्युत ऊर्जा का प्रयोग आरंभ हुआ । घरेलू उद्योगों का स्थान कारखानों ने ले लिया ।

हाथकरघा के स्थान पर यंत्रकरघा उपयोग में लाया जाने लगा । रेलगाड़ी और जलपोत जैसे यातायात के नए साधन अस्तित्व में आए । यंत्र युग का अवतरण हुआ । यह क्रांति इंग्लैंड में प्रारंभ हुई और कालांतर में क्रमश: पश्चिमी विश्व में फैलती गई । इंग्लैंड में उद्‌योग इतने समृद्ध हुए कि इंग्लैंड का वर्णन ‘विश्व का कारखाना’ के रूप में किया जाने लगा ।

औद्‌योगिक क्रांति के परिणाम:

औद्‌योगिक क्रांति के फलस्वरूप ओप के आर्थिक विकास को गति प्राप्त हुई । विभिन्न प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि हुई । अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बढ़ा । यातायात और संचार साधनों में हुई उन्नति के फलस्वरूप व्यापार में उत्तम वृद्धि होने लगी ।

कारखानों के कारण वस्तुओं का उत्पादन बड़ी मात्रा में होने लगा । रोजगार में अत्यधिक वृद्धि हुई । फलस्वरूप सामान्य जनता की क्रयशक्ति बड़ी । विविध वस्तुएँ सस्ते दामों में मिलने लगीं । इस कारण सामान्य लोगों के जीवन स्तर में पर्याप्त सुधार हुआ ।

अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में नए बाजारों की आवश्यकता तीव्रता से अनुभव की जाने लगी । यूरोप के देशों ने विपुल पूंजी, आधुनिक यंत्र सामग्री और सुसज्जित सेना के बल पर एशिया और अफ्रीका महाद्‌वीपों में अपने साम्राज्य को फैलाना प्रारंभ किया । परिणामत: पिछड़े राष्ट्रों की स्वतंत्रता नष्ट हो गई ।

ये राष्ट्र साम्राज्यवादी देशों को कच्चे माल की आपूर्ति करनेवाले प्रमुख बाजार बने । भारत भी इस प्रक्रिया का शिकार बना । औद्‌योगिक क्रांति के फलस्वरूप महानगर बढ़ते गए । इन नगरों में शिक्षित समाज की वृद्धि हुई । उन्हें अपने अधिकारों का बोध होने लगा ।

इससे इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों में जनतंत्र का विकास होने में सहायता प्राप्त हुई । यूरोप में नए नगर अस्तित्व में आए । परंपरागत उद्‌योग-धंधे नष्ट हो गए । औद्‌योगिक नगरों में लोगों के रेलें आने लगे । परिणामस्वरूप गाँव-देहात उजड़ने लगे । असंख्य श्रमिक गंदी बस्तियों में रहने लगे ।

सार्वजनिक स्वच्छता के अभाव में रोग फैलने लगे । श्रमिक दुर्दशापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे । आर्थिक विषमता के कारण राजनीतिक और सामाजिक विषमता उत्पन्न हुई । इसके विरोध में औद्‌योगिक देशों में आंदोलन प्रारंभ हुए ।

पूंजीपतियों और श्रमिक संगठनों के बीच संघर्ष बढ़ने लगा । यूरोपीय देशों में समान अधिकारों के लिए श्रमिक आंदोलन, इसी भांति नारी आंदोलन भी प्रारंभ हुए । इन आंदोलनों के फलस्वरूप यूरोप में कल्याणकारी राज्य की संकल्पना दृढ़ हुई । सामान्य लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ ।

सामान्य लोगों के जीवन की प्रतिक्रिया सांस्कृतिक क्षेत्र में भी व्यक्त हुई । उपन्यास और लघुकथा जैसी साहित्य की नई विधाओं का जन्म हुआ । चित्रकला में सामान्य मनुष्य का जीवन चित्रित किया जाने लगा । कालांतर में बीसवीं शताब्दी में प्रौद्‌योगिकी में हुई उन्नति के फलस्वरूप चलचित्र का भी विकास हुआ ।

संयुक्त परिवार पद्धति समाप्त होने लगी । परंपरावाद और अंधश्रद्धा का प्रभाव कम होने लगा । इससे बौद्धिक प्रमाणवाद का प्रसार होने में सहायता प्राप्त हुई परंतु इसी के साथ धन मनुष्य की सफलता का मापदंड बना । जीवन को मात्र उपभोग की दृष्टि से देखा जाने लगा । मानवीय जीवन में यांत्रिकता आ गई ।

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