Read this article in Hindi to learn about the various developmental concerns observed during adulthood in an individual.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्रौढ़ावस्था कानून के अनुसार इक्कीस वर्ष की आयु से लेकर जीवन की अन्तिम अवस्था तक प्रौढ़ावस्था बतायी गयी है तथापि इस विकास की अवस्था में निश्चित समय-सीमा के अन्तर्गत व्यक्ति में कुछ सामाजिक एवं मानसिक परिवर्तन होते हैं ।

अत: इन परिवर्तनों के आधार पर ही प्रौढ़ावस्था को विभाजित किया गया है, जिसके अन्तर्गत प्रत्येक अवस्था के भिन्न-भिन्न शारीरिक एवं मानसिक लक्षण होते हैं ।

इसे निम्नवत् स्पष्ट किया गया है:

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पूर्व प्रौढ़ावस्था (Pre Adulthood):

परिपक्वता की कानूनी आयु से लगभग जीवन के चालीसवें वर्ष तक की अवस्था ।

मध्य प्रौढ़ावस्था (Middle Adulthood):

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जीवन के चालीसवें वर्ष से साठ वर्ष तक की अवस्था ।

वृद्धावस्था (Old Age):

जीवन के साठ वर्ष से लेकर व्यक्ति की अन्तिम अवस्था तक का काल ।

एडल्ट (Adult) शब्द की उत्पत्ति लैटिन क्रिया (Adultus) से हुई है, जिसका अर्थ सम्पूर्ण शक्ति एवं आकार में बड़ा होना है । इस प्रकार परिपक्व अर्थात् प्रौढ व्यक्ति वह है, जिसने अपनी वृद्धि पूर्ण कर ली है एवं समाज के अन्य प्रौढ़ों के समान वह उस स्तर को प्राप्त करने के लिए तैयार है ।

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प्रौढ़ावस्था की पहचान (Recognition) व्यक्ति में होने वाले शारीरिक एवं मानसिक लक्षणों के आधार पर की जाती है, जैसा कि तरुणावस्था लैंगिकता से अलैंगिकता की कही जाती है । परिणामस्वरूप प्रौढ़ावस्था जीवन की एक लम्बी अवधि होते हुए भी उसे जीवन की दूसरी अवस्थाओं से बहुत अच्छे तरीके से अलग करना कठिन है ।

विवाह परिवार एवं कार्य- भूमिका एवं सम्बन्ध (Marriage, Family and Work: Role and Relationship):

पूर्व प्रौढ़ावस्था एक ऐसी अवस्था है, जो कि जीवन के विभिन्न एवं नवीन प्रारूपों की कहानी है । इसमें विवाह परिवार एवं जीवन के उत्तरदायित्वों की पूर्ति व नवीन सामाजिक प्रत्याशाओं के साथ समायोजन करने वाली अवस्था है ।

समाज इस अवस्था से नयी भूमिका का निर्वहन करने की अपेक्षा रखता है, जैसे – विवाह, पति-पत्नी, अभिभावक, जीविकोपार्जन करने वाला परिवार का मुखिया आदि के रूप में समाज अपेक्षा करता है कि यह अवस्था नवीन रुचियो एवं मूल्यों के साथ अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करेगी ।

इस अवस्था तक व्यक्ति अपनी स्नातक स्तर का अध्ययन पूर्ण कर चुके होते हैं या कुछ विशेष कारणों से अध्ययनरत् होते हैं । इस अवस्था में नवीन भूमिका नवीन वातावरण के साथ सामजस्य बैठाना एक कठिन कार्य है ।

पूर्व किशोरावस्था एवं मध्य प्रौढ़ावस्था की कई विशेषताएँ उनके व्यवहार एवं प्रतिक्रिया के दौरान देखी जाती हैं, जिन्हें निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है:

(i) पूर्व प्रौढ़ावस्था प्रजनीय की अवस्था है (Early Adulthood is the Reproductive Age):

नव-प्रौढ़ावस्था के लिए अभिभावकगण एक महत्वपूर्ण भूमिका जीवन के परिप्रेक्ष्य में निभाते हैं । स्त्रियों के लिए यह भूमिका उनकी सम्पूर्णता का परिचायक होती है । वहीं पुरुषों के लिए यह भूमिका उत्तरदायित्व देखभाल संरक्षण जीविकोपार्जन आदि से जुड़ी होती है ।

जीवन के बीस से तीस वर्ष के मध्य नव प्रौढ़ यह उत्तरदायित्व का निर्वहन करना प्रारम्भ कर देते हैं तथा पूर्व प्रौढ़ावस्था की समाप्ति तक दादा-दादी या नाना-नानी बन जाते हैं । प्रजनन क्षमता का हास चालीस वर्ष से प्रारम्भ हो जाता है । इस प्रकार का परिवर्तन स्त्री एवं पुरुष दोनों में अलग-अलग आयु में देखने को मिलता है ।

(ii) पूर्व प्रौढ़ावस्था स्थायी रूप से बस जाने की आयु है (Early Adulthood is the Selling down Age):

जैसा कि विदित है कि बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था दोनों ही बढ़ने की आयु है, इसी प्रकार प्रौढ़ावस्था स्थायित्व प्राप्त करने की आयु है । नवीन प्रौढ़ नवीन भूमिका के अन्तर्गत विवाहोपरान्त माता-पिता बनने धनार्जन करने वाला गृहस्थाश्रम का अंग बन जाता है ।

इस महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हुए नवीन प्रौढ़ इनका दबाव एक विशेष प्रकार के व्यवहार की ओर प्रेरित करता है जो कि धीरे-धीरे उनके व्यवहार में आ जाता है और स्थायीपन सम्बन्धी व्यवहार दिखाई देना प्रारम्भ हो जाता है, जो कि जीवन की अन्तिम अवस्था तक विद्यमान रहता है ।

(iii) पूर्व प्रौढ़ावस्था समस्यात्मक अवस्था है (Early Adulthood is a Problematic Age):

इस अवधि में अनेक समस्याएँ उत्पन होने लगती हैं । इन समस्याओं का समाधान प्रौढ़ बिना किसी निर्देशन एव परामर्श के करना चाहते हैं तथा अनेक बार समस्याओं से सामंजस्प बैठाने का प्रयास भी करते हैं तथापि समस्याएँ यथावत् बनी रहती हैं ।

परिपक्वता की अवस्था में अभिभावक वर्ग यह मानने लगते हैं, कि प्रौढ़ वर्ग को अपनी समस्याएँ स्वयं ढूँढने का प्रयास करना चाहिए और इसके विपरीत प्रौढावस्था में व्यक्ति स्वयं के अहम् को भी पैदा कर लेते हैं, जो कि अभिभावकों की सहायता से बचता है, जिससे समस्याओं में उत्तरोत्तर वृद्धि हो जाती है ।

समायोजन से सम्बन्धित समस्या इस अवस्था में सबसे अधिक रहती है यह समायोजन कार्य क्षेत्र, नवीन पारिवारिक उत्तरदायित्व, वैवाहिक भूमिका से सम्बन्धित व्यवसाय में ऊँचा उठाने की आकांक्षा आदि । प्रत्येक नवीन समस्या से ये प्रौढ़ दुश्चिन्ता, निराशा, कुण्ठा, अवसाद आदि जैसे मनोविकारों से पीड़ित हो जाते हैं । आर्थिक रूप से स्वतन्त्र होने की अभिलाषा भी उन्हें पीड़ित करती रहती है ।

(iv) पूर्व प्रौढ़ावस्था सांवेगिक तनाव की अवस्था है (Early Adulthood is a Period of Emotional Tension):

पूर्व प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करते ही नवीन प्रौढ़ सांवेगिक तनाव समूह करने लगता है । तनाव का मुख्य कारण उसका कैरियर घर-परिवार के पालन की चिन्ता, स्थायी होने की चिन्ता विवाह आदि की चिन्ता, जीवन-साथी के चयन की चिन्ता एवं कल्पना के भविष्य को साकार करने की चिन्ता भी बनी रहती है ।

यह अवस्था सांवेगिक अवस्था इसलिए कही जाती है क्योंकि व्यक्ति के संवेग खुशी, गम, तकलीफ, हर्ष, क्रोध, प्रेम, दया, क्षमता आदि सभी इस अवस्था में विशेष भूमिका निभाते हैं । सांवेगिक तनाव की अभिव्यक्ति प्रौढ़ चिन्ताओं के द्वारा प्रकट होती है ।

जैसे धन की चिन्ता, स्वयं के चेहरे की चिन्ता, लैंगिक नैतिकता की चिन्ता, तत्पश्चात् स्वास्थ्य सुरक्षा, व्यापार, नौकरी, पारिवारिक सम्बन्ध की चिन्ता सर्वप्रथम बनी रहती है ।

प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्य (Developmental Functions of Adulthood):

प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति प्रारम्भिक अवस्था से अपनी आने वाली अवस्थाओं में अनेक कार्य करता है, जिनमें कुछ कार्य विकास के पहलू से जुड़े होते हैं, जिन्हें विकासात्मक कार्यों की श्रेणी में रखा जा सकता ।

ये कार्य निम्नवत हैं:

(i) जीवन साथी का चयन,

(ii) जीवन साथी के साथ सामंजस्य,

(iii) परिवार में प्रगति,

(iv) पुत्र-पुत्री व अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं का प्रबन्ध,

(v) बालकों के जीवनयापन हेतु भविष्य का इंतजाम,

(vi) सामाजिक नागरिक होने का उत्तरदायित्व निभाना,

(vii) स्वयं के अनुरूप सामाजिक समूह तलाशना,

(viii) प्रौढ़ावस्था सम्बन्धी नागरिक व सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन,

(ix) जीवनयापन हेतु आर्थिक प्रबन्धन की स्थापना करना,

(x) बच्चों को उत्तम नागारक बनाने का कार्य एवं उनमें स्थायित्व की भावना उत्पन्न करना,

(xi) अवकाश अवधि में अपनी अवस्था के अनुरूप कार्य करना,

(xii) जीवन साथी के प्रति आदर-सम्मान की भावना एवं उसकी आवश्यकताओं को समझना,

(xiii) मध्यावस्था में होने वाले शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तनों को स्वीकार करना एवं उनसे समायोजन करना,

(xiv) वद्ध माता-पिता का सम्मान एवं उनके साथ समायोजन करना ।

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