“महिला और मानवाधिकार” पर हिलेरी क्लिंटन का भाषण । Speech of Hillary Clinton on “Women and Human Rights” in Hindi Language!

अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिण्टन की पत्नी और सीनेट सदस्य हिलेरी क्लिण्टन महिलाओं व बच्चों के अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाने और सघंर्ष करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहीं । महिला अधिकारों के विषय में अपना यह प्रसिद्ध भाषण इन्होंने सन 1995 में 5 सितम्बर को दिया था ।

श्रीमती मोंजेला भारत संयुक्त राष्ट्र के अवर सचिव किरानी विशिष्ट प्रतिनिधियों व अतिथियो ! महिलाओं पर संयुक्त राष्ट्र के चौथे विश्व सम्मेलन का हिस्सा बनने के लिए मैं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को धन्यवाद देती हूं । यह वास्तव में एक उत्सव की भांति है: जीवन के हर पक्ष, घर, कामकाज, समुदाय, माता, पत्नी, बहिन, पुत्री, विद्यार्थी, मजदूर, नागरिक और नेता के रूप में उनके योगदान का उत्सव ।

यह एक सामूहिक मिलन भी है । जिस प्रकार महिलाएं हर देश में रोजाना आपस में मिलती है । हम खेतों, कारखानों, गांवों के हाट, सुपर बाजारों, ड्राइंग रूमों और बोर्ड रूमों में मिलती हैं । चाहे हम पार्क में बच्चों के साथ खेल रही हों, नदी पर कपड़े धो रही हों या आफिस के बाहर वाटर कूलर पर अल्प-अवकाश में इकट्‌ठी हों हम जहा भी मिलती हैं । अपनी आका आगे और चिन्ताओं के विषय में बात करती है ।

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बार-वार हमारी चर्चा घूम-फिरकर हमारे बच्चों और परिवार पर आ जाती है हम चाहे कितनी भी अलग क्यों न हों, हमें अलग करने की बजाय एकजुट करने वाले मुद्दे कहीं ज्यादा हैं । हमारा भविष्य साझा है । हम यहां एक साझी पृष्ठभूमि को ढूंढने के लिए इकट्ठी हुई हैं, ताकि समस्त संसार में महिलाओं को नयी गरिमा और इज्जत दिलाने में मददगार बन सकें ।

हम ऐसा करके परिवारों को भी नयी शक्ति एवं स्थिरता देंगी । बीजिंग में इकट्‌ठे होकर वे महिलाओं व उनके परिवारों से सम्बन्धित मुद्दों पर विश्व का ध्यान केन्द्रित कर रही हैं । ये मुद्दे हैं: शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, रोजगार और उधार की प्राप्ति, आधारभूत कानूनी और मानव अधिकार पाने के मौके तथा उनके देशों के राजनीतिक जीवन में पूरा योगदान ।

यह सम्मेलन क्यों हो रहा है, कुछ लोग इसके विषय में सवाल भी करते हैं । ऐसे लोगों को अपने घरों पास-पड़ोस और कार्यस्थलों पर महिलाओं की आवाजें सुननी चाहिए । कुछ ऐसे भी हैं, जो सोचते हैं कि विश्व में आर्थिक व राजनीतिक विकास में महिलाओं या लड़कियों की भी कुछ भूमिका हो सकती है ।

उनको चाहिए कि यहां इकट्‌ठी और अन्य जगह भी महिलाओं पर दृष्टि डाले-गृहिणियां नर्सें शिक्षक वकील नीति-निर्माता तथा अपना व्यवसाय करने वाली महिलाएं । इस तरह के सम्मेलन ही हर जगह जनता और सरकारों को विश्व की सर्वाधिक ज्वलन्त समस्याओं के बारे में सुनने ध्यान देने और उनका सामना करने के लिए मजबूर करती हैं ।

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क्या दस साल पहले नैरोबी में हुए महिला सम्मेलन के पश्चात् ही पहली बार घरेलू हिंसा की समस्या की ओर विश्व का ध्यान केन्द्रित नहीं हुआ था ? इससे पहले आज मैने विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक मंच की बैठक में हिस्सा लिया ।

इसमें सरकारी अधिकारी गैर-सरकारी संगठन और नागरिक मिलकर महिलाओं व लड़कियों की स्वास्थ्य समस्याओं पर कार्य कर रहे हैं । मैं कल महिलाओं के लिए संयुक्त राष्ट्र विकास कोष की एक बैठक में हिस्सा लूंगी ।  वहां उन अत्यन्त सफल स्थानीय कार्यक्रमों पर विचार-विमर्श होगा जो बहुत मेहनती महिलाओं को उधार उपलब्ध करायेगी ताकि वे अपने व अपने परिवार का पालन-पोषण सही ढंग से कर सकें ।

समस्त विश्व से हमें यह सीख मिल रही है कि यदि महिलाएं स्वस्थ और पढ़ी-लिखी हों तो उनके परिवार विकास की ओर अग्रसर हो सकते हैं । यदि महिलाओं को समाज में समानता के कार्य करने और पैसा कमाने का मौका मिले तो उनके परिवार विकास कर सकते हैं ।

यदि महिलाएं लड़ाई, झगड़ा न करती हों तो उनके परिवार विकास कर सकते हैं और जब परिवार विकास करते हैं, तो समुदाय और राष्ट्र का भी विकास होता है । यही कारण है कि यहाँ होने वाली बातचीत से विश्व की हर महिला पुरुष बच्चे और परिवार का लाभ जुड़ा हुआ है ।

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मैं पिछले पचीस सालों में महिलाओं बच्चों व परिवारों के लिए लगातार कार्य करती रही हूं । पिछले ढाई सालों में मुझे हमारे देश में तथा विश्व में महिलाओं की चुनौतियों के बारे में और ज्यादा जानने का मौका मिला है ।

मैंने इण्डोनेशिया और जकार्ता में बहुत-सी नवमाताओं से मुलाकात की जो पौष्टिकता परिवार-नियोजन और बच्चों की देखभाल पर बातचीत करने के लिए रोजाना गांवों में इकट्‌ठी होती हैं । मैं डनेमार्क में ऐसे माता-पिता से मिली जो यह बताने में सन्तोष महसूस करते हैं कि उनके बच्चों को विद्यालय बाद के केन्द्रों में देखभाल सुर क्षा और पालन-पोषण की सुविधा मिलती है ।

मैं दक्षिण अफ्रीका में उन महिलाओं से मिली जो नस्लभेद के खिलाफ संघर्ष का नेतृत्व करने में सहायक थीं और अब वहा नये जनतन्त्र का निर्माण करने में मदद कर रही है । मैं पश्चिमी गोलार्ध की उन अग्रणी महिलाओं से मिली जो अपने देश के बच्चों के लिए स्वास्थ्य की अच्छी देखभाल और पढ़ाई-लिखाई के लिए रोजाना कार्य कर रही हैं ।

मैं भारत और बंगलादेश में उन महिलाओं से मिली हूं, जो दूध देने वाली गायों, रिक्शा, धागा या अन्य वस्तुएं खरीदने के लिए छोटे उधार लेती हैं, ताकि अपना और अपने परिवारों का भरण-पोषण कर सकें । मैं यूक्रेन और बेलारूस में उन चिकित्सकों और नर्सों से मिली हूं जो चेर्नोबिल के कुपरिणाम से प्रभावित बच्चों को जीवित रखने की कोशिश में लगे हुए हैं ।

इस सम्मेलन के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन महिलाओं की आवाज बनना है, जिनके तजुर्बे बिना देखे रह जाते हैं, जिनके शब्द बिना सुने ही रह जाते हैं । महिलाएं विश्व की आधी जनसंख्या से ज्यादा हैं । वे विश्व के गरीबों का 70% और जो अनपढ़ हैं, उनका दो-तिहाई हैं ।

‘महिलाएं विश्व के अधिकांश बच्चों व बूढ़ों की प्राथमिक देखभाल करने वाली हैं । फिर भी हम जो कार्य करते हैं, उसे अर्थशास्त्री इतिहासकार लोकप्रिय सरकारें या सरकारी नेतृत्व कोई महत्त्व नहीं देता । इस वक्त जब हम यहां बैठे हैं, समस्त संसार में महिलाएं बच्चों को जन्म दे रही हैं, बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं, भोजन बना रही हैं, वस्त्र धो रही हैं, घरों की साफ-सफाई कर रही हैं, खेती के लिए बीज रोप रही हैं, संयोजन पंक्ति पर कार्य कर रही हैं, कम्पनियों का प्रबन्धन कर रही हैं देशों की सरकारें चला रही हैं ।

महिलाएं ऐसी बीमारियों से मर भी रही हैं, जिनका उपचार हो सकता है । वे आर्थिक विपन्नता और गरीबी के कारण अपने बच्चों को कुपोषण का शिकार होते देख रही  हैं । उनके अपने पिता और भाई उन्हें विद्यालय नहीं जाने देते । उनको जबरदस्ती वेश्यावृत्ति में धकेला जा रहा है । उनको बैंकों से उधार नहीं मिलता और मताधिकार से वंचित रखा जाता है ।

हममें से जिनको यहां आने को मौका मिला है, उनका कर्तव्य है कि उनके लिए बोलें जिन्हें यह मौका नहीं मिला । मैं एक अमेरिकन होने के नाते अपने देश की महिलाओं के बारे में बोलना चाहूंगी । वे महिलाएं, जो न्यूनतम वेतन पर अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं; वे महिलाएं जो स्वास्थ्य या बच्चों की देखभाल का खर्च उठाने में असक्षम हैं; वे महिलाएं जिनके जीवन को हिंसा का भय है, जिसमें उनके अपने घर की हिंसा भी शामिल है ।

मैं उन माताओं की ओर से बोलना चाहती हूं जो अच्छे विद्यालयों सुरक्षित पास-पड़ोस और स्वच्छ हवा के लिए प्रयत्न कर रही हैं । उन बूढ़ी महिलाओं की ओर से बोलना चाहती हूँ जिनमें कुछ विधवाएं भी हैं, जिन्होंने अपने परिवार का पालन-पोषण किया और अब उन्हें मालूम हुआ है कि उनकी कुशलता और अनुभव की उनकी कार्य की जगह में अब कोई पूछ नहीं है ।

मैं उन महिलाओं की ओर से बोलना चाहती हूं जो नर्स होटल क्लर्क या फास्ट फूड रसोइए के रूप में रात-भर कार्य करती हैं, ताकि दिन में अपने बच्चों के साथ रह सकें और उन सभी महिलाओं की ओर से जिनके पास वह सब करने का वक्त नहीं है, जो उन्हें रोजना करना चाहिए ।

मैं आज आप से बात करते हुए उनके बारे में बोल रही हूँ । ठीक उसी प्रकार जैसे हममें से प्रत्येक विश्व की उन महिलाओं के बारे में बोलता है, जिन्हें विद्यालय जाने चिकित्सक के पास जाने सम्पत्ति का अधिकार पाने अपने जीवन की दिशा तय करने का अधिकार रखने से वंचित होना पड़ा केवल इसलिए; क्योंकि वे महिलाएं हैं । सत्य तो यह है कि विश्व की अधिकांश महिलाएं घर में और घर से बाहर जरूरतवश काम करती है ।

यह बात समझनी जरूरी है कि महिलाओं को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए । इस विषय में कोई निश्चित नियम या सूत्र नहीं बनाया जा सकता । इसलिए कोई महिला अपने या अपने परिवार के लिए जो मार्ग चुनती है, हमें उसका आदर करना चाहिए ।

प्रत्येक महिला को ईश्वर द्वारा दी गयी क्षमता का उपयोग करने का मौका दिया जाना चाहिए । हमें यह भी समझना चाहिए कि जब तक उनके मानव अधिकारों को सुरक्षा और आदर नहीं मिलता महिलाओं को कभी सम्पूर्ण गरिमा नहीं मिलेगी ।

हमारे इस सम्मेलन का लक्ष्य अपने भाग्य का नियन्त्रण करने के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण करना है, ताकि परिवार और समाज शक्तिशाली बने । लेकिन यह लक्ष्य तब तक अधूरा रहेगा जब तक यहां की सरकार और समस्त संसार की सरकारें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य मानव अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेना स्वीकार नहीं करतीं ।

अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने बहुत पहले यह मान लिया था और हाल ही में विएना में इसकी पुष्टि की गयी कि स्त्री और पुरुष दोनों सुरक्षा और निजी आजादी की एक श्रेणी के अधिकारी हैं । इनमें निजी सुरक्षा को लेकर बच्चों की संख्या और उनमें अन्तर का स्वतन्त्र रूप से निर्धारण करना सम्मिलित है ।

राजनीतिक या धार्मिक अत्याचार गिरफ्तारी या बुरे व्यवहार का डर दिखाकर किसी को भी चुप रहने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए ।  दुर्भाग्यवश ज्यादातर महिलाओं के मानव अधिकारों का हनन होता है । 20वीं शताब्दी के आखिरी सालों में भी महिलाओं के साथ बलात्कार को सशस्त्र संघर्ष का उपकरण बनाया जा रहा है ।

विश्व के शरणार्थियों में महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे अधिक है । जब महिलाओं को राजनीतिक प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है, तो वे और भी ज्यादा असहाय होकर बुरे व्यवहार का शिकार बनती हैं । मेरा विश्वास है कि नयी सहस्राब्दी की पूर्व समा पर हमें अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए ।

यहां बीजिंग में अब हमारे लिए वक्त आ गया है कि हम बोलें और समस्त संसार सुने कि महिला अधिकारों की मानव अधिकारों से अलग चर्चा करना स्वीकार्य नहीं है । ये बुरा व्यवहार जारी रहे; क्योंकि लम्बी अवधि तक महिलाओं का इतिहास चुप्पी का इतिहास रहा है । आज भी ऐसे लोग हैं, जो हमारी आवाज को दबाना चाहते हैं । इस सम्मेलन की आवाज स्पष्ट रूप से सुनी जानी चाहिए ।

जब लड़कियों को भोजन नहीं दिया जाता उन्हें डुबो दिया जाता है, उनका दम घोंट दिया जाता है या रीढ़ तोड़ दी जाती है, केवल इसलिए कि वे बेटियों के रूप में पैदा हुई हैं, तो यह मानव अधिकारों को चोट पहुंचाना है ।  जब महिलाओं और लड़कियों को वेश्यावृत्ति की गुलामी करने के लिए बेच दिया जाता है, तब भी यह मानव अधिकारों को चोट पहुंचायी जाती है ।

जब महिलाओं को दहेज लाने के लिए तेल छिड़ककर अग्नि के हवाले कर दिया जाता है, तब भी मानव अधिकारों पर आघात किया जाता है । जब एक महिला का उसके समाज में ही बलात्कार होता है या फिर युद्ध में जीत के पुरस्कार के रूप में महिलाओं का सामूहिक बलात्कार होता है, तब भी मानव अधिकारों को चोट पहुंचायी जाती है ।

जब समस्त संसार में 14 से 44 साल तक की महिलाओं की मृत्यु का कारण घरेलू हिंसा हो तब भी मानव अधिकारों पर आघात किया जाता है । जब युवा लड़कियों के जननांगों को भग्न करने का अपमानजनक और कष्टदायक कुकर्म किया जाता है, तब भी मानव अधिकारों को चोट पहुंचायी जाती है ।

जब महिलाओं को स्वेच्छानुसार अपने परिवार का नियोजन कराने की आजादी नहीं दी जाती जब उन्हें स्वेच्छा के खिलाफ गर्भपात के लिए या बंध्याकरण के लिए मजबूर किया जाता है, तब भी मानव अधिकारों पर आघात किया जाता है ।

यदि इस सम्मेलन में गूंजने वाला कोई एक सन्देश है, तो वह है-मानव अधिकार महिला अधिकार हैं और महिला अधिकार मानव अधिकार हैं । हमें स्मरण रखना चाहिए कि इन अधिकारों में आजादी से अपने विचार व्यक्त करना और सुने जाने का अधिकार भी सम्मिलित है ।

यदि हम चाहते हैं कि आजादी और लोकतन्त्र का विकास हो तो महिलाओं को उनके देशों के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में पूर्ण योगदान का अधिकार मिलना चाहिए । गैर-सरकारी संगठनों की कई महिलाएं जो इस सम्मेलन में हिस्सा लेना चाहती थीं लेकिन हिस्सा नहीं ले पायी या उन्हें हिस्सा लेने की अनुमति नहीं दी गयी तो यह असमर्थनीय है ।

मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि आजादी का अर्थ जनमानस को इकट्‌ठा होने संगठित होने और खुले तौर पर तर्क-वितर्क या चर्चा करने का अधिकार देना है । इसका तात्पर्य है, उनके विचारों का आदर करना जो सरकार के विचारों से असहमत हैं ।

इसका अर्थ है अपने विचारों की शान्तिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए नागरिकों को उनके प्रियजनों से दूर न ले जाना उनको जेल में बन्द न करना उनके साथ बुरा व्यवहार या उनके गौरव या आजादी को चोट न पहुंचाना है । हाल ही में अमेरिका में हमने महिलाओं के मताधिकार की 75वीं जयन्ती मनायी थी ।

आजादी की उद्‌घोषणा पर हस्ताक्षर होने के 150 सालों के पश्चात् महिलाएं अपने लिए मताधिकार पा सकीं । अनेक बहादुर पुरुषों और महिलाओं के 72 वर्ष के संगठित संघर्ष के पश्चात् यह सम्भव हुआ । यह अमेरिका का सर्वाधिक विभाजक सैद्धान्तिक संघर्ष था । लेकिन यह एक रक्तहीन संघर्ष भी था । मताधिकार एक भी गोली चले बिना प्राप्त हुआ ।

पिछले दिनों ‘विजय दिवस’ पर हमें याद कराया गया कि जब महिलाएं और पुरुष इकट्‌ठे होकर दुराचारियों के खिलाफ संघर्ष करते हैं, तो एक बेहतर संसार का निर्माण होता है । आधी शताब्दी से संसार के अधिकांश हिस्सों में शान्ति का माहौल है । हमने एक और विश्वयुद्ध को टाला है । लेकिन हम पुरानी जड़ें जमा चुकीं समस्याओं का निपटारा नहीं कर पाये ।

ये समस्याएं विश्व की आधी जनसंख्या की क्षमता को रोजाना कमजोर कर रही हैं । अब वक्त आ गया है कि हम हर जगह महिलाओं के लिए कदम उठायें । यदि हम महिला कल्याण के लिए बहादुरीपूर्ण कदम उठायेंगे तो हम बालकों और परिवार के जीवन को उन्नत बनाने के लिए साहसपूर्ण कदम उठायेंगे ।

परिवार भावनात्मक सहारे और देखभाल के लिए माताओं और पत्नियों पर निर्भर होते हैं । परिवार घर में मेहनत के लिए महिलाओं पर निर्भर होते हैं । और अब तो ज्यादातर परिवार स्वस्थ बच्चों के पालन-पोषण और परिवार के हो की देखरेख के लिए जरूरी आय के लिए महिलाओं पर निर्भर हो रहे हैं ।

जब तक विश्व में हर जगह असमानता और भेदभाव बना रहेगा जब तक महिलाओं और लड़कियों का अवमूल्यन होगा उन्हें कम भोजन दिया जायेगा सबसे बाद में दिया जायेगा उनसे ज्यादा कार्य लिया जायेगा कम वेतन दिया जायेगा विद्यालय नहीं भेजा जायेगा उन्हें घर में और बाहर हिंसा का शिकार बनाया जायेगा तब तक मानव की परिवार को शान्तिपूर्ण सम्पन्न संसार बनाने की क्षमता सार्थक नहीं होगी ।

यह सम्मेलन हमारे और समस्त संसार के लिए कार्यान्वयन का आह्वान हो । हम इस आह्वान को सुनें ताकि हम एक ऐसे विश्व का निर्माण कर सकें, जिसमें हर महिला का आदर हो हर लड़के और लड़की की देखभाल एक से प्यार व समानता के साथ हो तथा हर परिवार में सशक्त और स्थिर भविष्य की आशा का संचार हो । धन्यवाद । आप पर, आपके काम पर और उससे लाभान्वित होने वाले सभी लोगों पर भगवान् की कृपा बनी रहे ।