भविष्य का मार्ग कठिन है, पर हम विजय प्राप्त करेंगे । Speech of George Washington on “ The Way Ahead is Difficult, But We Will Conquer” in Hindi Language!

सीनेट और प्रतिनिधि सदन के साथी नागरिको ! आपके आदेश से भेजी गयी अधिसूचना मौजूदा माह की तारीख 14 को मिली । मैं उलट-फेर की किसी भी घटना से व्यथित नहीं हुआ, जितना कि इस अधिसूचन      से । एक ओर मेरे देश ने मुझे पुकारा है ।

मैं अपने देश की पुकार एकान्तवास में भी श्रद्धा और स्नेह से सुन सकता हूं । मैंने अपनी बढ़ती आयु और गिरते स्वास्थ्य के कारण एकान्तवास की शरण अपनी इच्छा से ली थी । दूसरी ओर जिस भरोसे के साथ मेरे देश ने मुझे आवाज दी वह उसके सबसे बुद्धिमान् और सबसे अनुभवी नागरिकों को अपनी योग्यता के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया था ।

देश की आवाज से उन लोगों को-जिन्हें प्रकृति ने कम प्रतिभा दीयीऔर जो नागरिक प्रशासन में अकुशल थे अपनी कमियों के प्रति चेतनयुक्त होना चाहिए था । मैं भावनाओं के इस टकराव में निश्चयपूर्वक कह सकता हूं कि उन हालातों का समुचित मूल्यांकन करते हुए अपनी जिम्मेदारी को निभाना मेरा कर्तव्य रहा है, जिनसे मेरा कर्तव्य-पालन प्रभावित हो सकता था ।

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मैं यह कहने की हिम्मत कर सकता हूँ कि यदि मैं अपने कर्तव्य-पालन में पहले के उदाहरणों से प्रभावित हुआ या अपने साथी नागरिकों के भरोसे से अभिभूत हुआ और अपनी असमर्थता तथा उत्तरदायित्वों पर ध्यान नहीं दिया तो इसमें मेरी बहुत ज्यादा गलती नहीं होगी; क्योंकि ऐसा गुमराह करने वाले प्रयोजनों के कारण होगा ।

इसके जो भी परिणाम होंगे उनके कारणों को ध्यान में रखते हुए मेरा देश उनका निर्णय करेगा । मैंने इस प्रकार के हालातों में जनादेश को स्वीकार करते हुए वर्तमान स्थिति को सुधारा है । इस पहले सरकारी उत्तदायित्व में उस परमपिता को भूलना नादानी होगा जो पूरे ब्रह्माण्ड पर शासन करता है, जो राष्ट्रों की परिषदों की अध्यक्षता करता है और जो मानव में प्रत्येक प्रकार का अवगुण उत्पन्न कर सकता है ।

उन आवश्यक उद्देश्यों के लिए परमपिता के आशीर्वाद से संयुक्त राज्य की जनता अपनी आजादी और सुख के लिए एक सरकार का गठन करे और उसके प्रशासन को संभालने वाली हर संस्था अपना उत्तरदायित्व निभाने में समर्थ हो ।

प्रत्येक सार्वजनिक और निजी अच्छाई के निर्माणकर्ता उस परमपिता को श्रद्धांजलि देते हुए मैं स्वयं को आश्वासन देता हूं कि इससे आपकी भावनाएं व्यक्त होती हैं, जो न तो मुझसे कम हैं और न मेरे साथी नागरिकों से ।  कोई भी व्यक्ति संयुक्त राज्य से कहीं ज्यादा मानवों के मामले को संचालित करने अदृश्य हाथ को मानने और उसकी पूजा करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता ।

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प्रत्येक कदम जिसके द्वारा संयुक्त राज्य की जनता एक आजाद राष्ट्र का चरित्र प्राप्त कर सकी है, दैवी शक्ति से प्रेरित दिखता है और उनकी संयुक्त सरकार की व्यवस्था में जो महत्त्वपूर्ण क्रान्ति आयी है, उसमें कई विशिष्ट समुदायों के विचारों और सहमति का योगदान रहा है ।

इसलिए इसकी तुलना उन साधनों से नहीं की जा सकती जिनके द्वारा अधिकतर सरकारें कृतज्ञता और दूरदर्शिता की कमी में स्थापित हुई हैं । वर्तमान संकट से पैदा हुए इन विचारों ने मेरे दिमाग पर इतना गहरा प्रभाव डाला है कि मैं उन्हें दबा नहीं सकता । आप मेरी इस सोच से सहमत होंगे कि ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसके प्रभाव में आकर नयी और आजाद सरकार अपने उत्तदायित्व से भटक जाये ।

कार्यपालिका विभाग की स्थापना करने वाली धारा के तहत राष्ट्रपति की यह जिम्मेदारी है कि वे उन उपायों को आपके समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत करेंगे जिन्हें वे जरूरी और लाभदायक समझेंगे । आज मैं जिन हालातों को देख रहा हूं उसे देखते हुए आप लोग मुझे उस विषय में और ज्यादा जाने से क्षमा करेंगे और महान् संवैधानिक चार्टर के अनुसार चलेंगे ।

यह चार्टर आपके अधिकारों को परिभाषित करते हुए उन उद्देश्यों को निर्दिष्ट करता है, जिन पर आपको ध्यान देना होगा ।  यह उन हालातों के ज्यादा अनुरूप और उन भावनाओं के ज्यादा अनुकूल होगा जो मुझे विशिष्ट उपायों की जगह पर प्रतिभाओं के सहयोग ईमानदारी और देशभक्ति को स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं ।

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हमें इस प्रकार का चरित्र विकसित करना चाहिए । यहां इन विशिष्ट गुणों के कारण जहां एक ओर स्थानीय पूर्वग्रह और मोह नहीं होगा पृथक-पृथक् विचार नहीं होंगे पार्टियों के मध्य दुश्मनी नहीं होगी वहीं दूसरी ओर हमारी राष्ट्रीय नीति की नींव निजी नैतिकता के विशुद्ध और परिवर्तित न होने वाले सिद्धान्तों पर डाली जायेगी और सद्‌गुणों के द्वारा आजाद सरकार के उत्कर्ष की मिसाल प्रस्तुत की जायेगी ।

तभी सरकार अपने नागरिकों का दिल जीत सकती है और विश्व का सम्मान प्राप्त कर सकती है । मैं अपने देश के प्रति स्नेह के कारण इसी परिदृश्य की कामना करता हूं क्योंकि किसी भी सचाई को इतने ठोस ढंग से स्थापित नहीं किया गया है,  जितना कि अर्थव्यवस्था और प्रकृति की धारा में सद्‌गुणों और सुख के मध्य कर्तव्य एवं फायदे के मध्य ईमानदार एवं उदार नीति वास्तविक सूक्तियों और सार्वजनिक सम्पन्नता एवं सुख-शान्ति के ठोस पुरस्कारों के मध्य की सचाई को स्थापित किया गया है ।

हमें यह स्वीकार करना होगा । जो राष्ट्र व्यवस्था और अधिकार के शाश्वत  नियमों-जिन्हें भगवान् ने स्वयं बनाया है: को नजरअन्दाज करता है, वह परमपिता की कृपा की आशा कभी नहीं कर सकता और चूंकि स्वतन्त्रता की पवित्र मशाल और सरकार की गणतान्त्रिक प्रणाली की हर हाल में रक्षा की जानी चाहिए इसलिए अमेरिकी जनता के ऊपर यह एक बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है ।

आपको जहां सामान्य लक्ष्यों को पूरा करना है, वहीं यह निर्णय भी करना है कि प्रतिकूल हालातों या अशान्ति में संविधान की पांचवीं धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति का किस सीमा तक इस्तेमाल करना है । इस विषय पर जिसमें मैं सम्भवत: सरकारी कर्तव्यों द्वारा मार्ग निर्देशित नहीं हो सकूगा विशेष कदम उठाने की अपेक्षा मैं एक बार फिर आपकी बुद्धि पर निर्भर करूंगा और मानव के हित के लिए कार्य करूँगा ।

मुझे पूरा विश्वास है कि जहा आप ऐसे प्रत्येक विकल्प से बचेंगे जिससे संयुक्त एवं प्रभावी सरकार के फायदे खतरे में पड़ सकते हैं या अनुभव के भावी सबक के लिए जिसकी आप प्रतीक्षा कर सकते है, वहीं आजाद जनता के विशिष्ट अधिकारों के प्रति आदर और सार्वजनिक सौहार्द के लिए सम्मान इस प्रश्न पर आपके विचारों को प्रभावित कर सकते हैं कि अधिकारों को किस सीमा तक वापस लिया जा सकता है या सौहार्द को किस सीमा तक प्रोत्साहित किया जा सकता है ।

मुझे प्रतिनिधि सदन से एक बात और कहनी है । चूंकि यह मुझसे सम्बन्धित है, इसलिए मैं प्रत्येक बात संक्षिप्त रूप में कहूंगा । जब मुझे देश की सेवा में प्रथम बार बुलाया गया तब उसके मुक्ति के संघर्ष से पहले मैंने जिस आलोक में अपने कर्तव्य पर विचार किया उसमें मुझे लगा कि अपनी जिम्मेदारी के बदले में मुझे अर्थ सम्बन्धी कोई लाभ नहीं लेना चाहिए ।

मैं अपने इस प्रण पर कायम हूं और आगे भी रहूंगा । कार्यपालिका विभाग में भले ही व्यक्तिगत पारिश्रमिक का स्थायी प्रावधान हो, लेकिन मैं उसे लेने से मना करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि मुझे जो पद सौंपा गया है, उस पर रहते हुए मेरा आर्थिक फायदा वहीं तक सीमित रहना चाहिए जितना की मानव कल्याण में हो । इस मौके पर अपनी भावनाओं से आप लोगों को अवगत कराते हुए अब मैं विदा लेता हूं ।

लेकिन मैं विदा लेने से पहले एक बार फिर परमपिता को नमस्कार करता हूं क्योंकि उसने अमेरिकियों को शान्ति से विचार-विमर्श करने और अपने संघ की सुरक्षा तथा अपनी सुख-शान्ति के लिए आम सलाह से सरकार की प्रणाली का चयन करने का मौका दिया । हमारे परिवर्द्धित विचारों सन्तुलित सुझावों और सरकार की कामयाबी के लिए आवश्यक विवेकपूर्ण उपायों से उसकी कृपा सदैव बनी रहे ।