Read this article in Hindi to learn about the water disputes of the world.

प्राकृतिक संसाधन होने तथा जीवन के लिए अनिवार्य होने के कारण विभिन्न प्रकार की भौगोलिक परिस्थितियों में असमान वितरण के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जल-विवाद उत्पन्न हो गए ।

कुछ प्रमुख जल विवादों को नीचे स्पष्ट किया जा रहा है:

(1) सिन्धु जल-समझौता (Indus Water Treaty):

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बाँधों एवं बाँधों के निर्माण सिंधु नदी के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है । सन् 1932 में बने सक्कर बाँध, सन् 1958 में बने गुलाम मुहम्मद बाँध तथा सिन्धु की सहायक नदी झेलम पर तरबेला एवं चश्मा बाँध के कारण सिन्धु नदी बहुत संकुचित हो चुकी है ।

सन् 1960 में भारत एवं पाकिस्तान के बीच सिन्धु जल समझौता हुआ था, जिसमें सिन्धु, झेलम एवं चेनाब नदियाँ पाकिस्तान के हिस्से में आने की बात कही गई तथा सतलुज, व्यास एवं रावी नदियों पर भारत का अधिकार होगा । नदी-तटीय देश होने के कारण भारत को अधिकार है कि इन नदियों के भारत में स्थित किसी भी भाग पर वह बाँध निर्मित कर सके ।

परन्तु यह भी फैसला है कि उन तीन नदियों पर जो पाकिस्तान के हिस्से में हैं, भारत केवल ऐसा निर्माण कर सकता है जिसमें पानी का खर्च न हो और न ही इसके बहाव अथवा न ही इसकी गुणवत्ता में कोई बदलाव आए ।

अब दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार होने पर यह आशा की जाती है कि दोनों देश इन नदियों की तकनीकी एवं आर्थिक महत्ता को समझने का प्रयास करेंगे तथा इन नदियों के चिर-स्थाई विकास में एक दूसरे का सहयोग करेंगे ।

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(2) यमुना जल-विवाद (Water Dispute of Yamuna):

यह विवाद हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली तथा हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच यमुना नदी के जल के बँटवारे से सम्बन्धित है ।

(3) कावेरी जल-विवाद (Water Dispute of Kaveri):

यह जल-विवाद दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु ओर कर्नाटक के बीच कावेरी नदी के जल के बँटवारे से सम्बन्धित है । यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है ।

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(4) सोन नदी का विवाद (Water Dispute of Son River):

इस विवाद का संबंध उत्तर प्रदेश, बिहार ओर मध्य प्रदेश के बीच सोन नदी के जल के बँटवारे से है ।

(5) रावी-व्यास जल-विवाद (Water Dispute of Ravi-Vyas):

यह विवाद पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्यों के बीच रावी तथा व्यास नदियों के जल के बँटवारे से सम्बन्धित है ।

(6) मध्य-पूर्व में जल विवाद (Water Dispute in the Middle East):

मध्य-पूर्व में तीन नदियाँ जार्डन, टाइग्रिस-यूफ्रेट्स तथा नील, यहाँ के देशों के सम्मिलित जल स्रोत हैं । नील नदी के जल का 80% भाग ईथोपिया के पास है तथा वह इसे और भी बढ़ाना चाहता है । सूडान भी इसके पानी को और अधिक लेना चाहता है । इन सबका मिस्र पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इस देश में नील नदी के तटीय एवं डेल्टा की सिंचित फसल-पट्टी के अलावा अधिकतर भाग मरुस्थल हैं ।

मिस्र की बढ़ती आबादी दर के आधार पर यह माना जा रहा है कि आगामी बीस वर्ष बाद मिस्र की आबादी में दोगुने की वृद्धि हो जायेगी तब जल संकट और भी गहरा हो सकता है । इसी प्रकार जार्डन नदी के पानी को लेकर जार्डन, सीरिया, एवं इजराइल के बीच गम्भीर जल-विवाद है ।

तुर्की के पास पर्याप्त जल है और इस देश की योजना है कि टाइग्रिस-यूफ्रेट्‌स नदी पर 22 बाँध बनाकर जल-विद्युत की उत्पत्ति की जाए । परन्तु इससे निचले देशों सीरिया एवं इराक की ओर पानी का बहाव बहुत कम हो जाएगा । तुर्की का यह सपना है कि वह इस हिस्से की जलीय महाशक्ति बन जाए ।

परन्तु इस पर सीरियाई देशों तथा ईराक को आपत्ति है । यह देश सऊदी अरब, कुवैत, सीरिया, इजराइल एवं जार्डन को पानी बेचना चाहता है । ऐसा लगता है कि मध्य-पूर्व में अगली जंग तेल के लिए नहीं अपितु पानी के लिए होगी ।

निष्कर्ष:

उपर्युक्त वर्णित समस्त तथ्यों का अवलोकन करने से यह ज्ञात होता है कि जल मानव की मौलिक आवश्यकता है । जल की उपयोगिता मनुष्य के ही नहीं बल्कि सभी जीवधारियों के लिये अत्यंत आवश्यक है ।

मनुष्य के विभिन्न कार्यों जैसे- स्नान करने, कपड़ा धोने, खाना बनाने, मनोरंजक कार्यों के लिए, आग बुझाने, कृषि हेतु परिवहन के क्षेत्र में, उद्योग धंधों के लिए तथा पशु आदि के लिए अतिआवश्यक है ।

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