भारत के लिए हिंद महासागर का महत्व | Importance of Indian Ocean to India in Hindi.

भारत, हिंद महासागर में केन्द्रीय स्थिति रखता है । यह एकमात्र देश है, जिसके नाम पर किसी महासागर का नाम पड़ा है । भारत के भू-राजनीतिक, सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक आदि अनेक हितों की पूर्ति हिंद महासागर से ही होती है । हिंद महासागर के तटीय देशों की कुल जनसंख्या का 50% से अधिक भाग भारत के तटीय भागों में निवास करता है ।

हिंद महासागर में सबसे अधिक तटीय भाग (तटरेखा 7501 किमी. लंबी) भारत में ही है, जो कुल क्षेत्र का 12.5% है । हिन्द महासागर एशिया, यूरोप और अफ्रीका तीनों महाद्वीपों को जोड़ता है तथा इसका तेल व्यापार की दृष्टिकोण से विशेष महत्व है । भारत का लगभग 78% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार हिंद महासागर से ही होता है । भारत के संसाधनों की भी एक बड़ी मात्रा इसी महासागर से प्राप्त होता है ।

भारत के प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम का दो-तिहाई भाग हिंद महासागर की विभिन्न शाखाओं, विशेषकर अरब सागर (बम्बई से खंभात की खाड़ी तक का क्षेत्र) से प्राप्त होता है । भारत के कुल मत्स्य उत्पादन का लगभग 60% भाग हिंद महासागर के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (E.E.Z.) से प्राप्त हो रहा है ।

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वर्तमान समय में हिंद महासागर में अनेक बहु-धात्विक पिंडों (पॉली मेटालिक नोड्‌यूल) के खनन की संभावनाएँ बन रही हैं । ‘International Sea Bed Authority’ ने भारत को 1.5 लाख किमी. क्षेत्र में इनके खनन का अधिकार दिया है ।

गहरे सागर में खनिज सम्पदा की खोज करने व इसकी निगरानी करने के लिए ‘भारतीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ (NIOT) ने रूस के सहयोग से पहले मानव रहित पनडुब्बी रिमोटली ऑपरेटेड व्हीकल (ROV) को हिन्द महासागर में उतारा है, जो 6 हजार मीटर की गहराई में पली मेटालिक नोडल का अध्ययन करेगा ।

यह समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में जैव-विविधता का भी अध्ययन करेगा । इन खनिजों में निकेल, लोहा, मैंगनीज, तांबा, टिन आदि हैं । भारत के 78% अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, हिंद महासागर व उनकी शाखाओं के द्वारा होता है । अंटार्कटिका प्रदेश के संसाधनों के भावी दोहन के उद्देश्य से भी भारत के लिए हिंद महासागर का महत्व है ।

भारत अब तक इस हेतु 17 से अधिक अभियान भेज चुका है तथा वहाँ पहले ‘दक्षिण गंगोत्री’ एवं अब ‘मैत्री’ व ‘भारती अनुसंधान केन्द्रों’ के द्वारा जलवायु व मौसम सम्बंधी शोध कार्य कर रहा है । भू-सामरिक व भू-राजनीतिक तौर पर भी भारत हिंद महासागर के केन्द्र पर है । हिंद महासागर के महत्व को देखते हुए भारत ने इसे निरंतर शांति का क्षेत्र बनाए रखने का प्रयास किया है तथा तटीय देशों से अंतराकर्षण बढ़ाते हुए सांस्कृतिक व आर्थिक सम्बंध विकसित किए हैं ।

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‘हिमतक्षेस’ (IORARC- Indian Ocean Rim Association for Regional Co-Operation) नामक तटीय क्षेत्रीय सहयोग संगठन के विकास की दिशा में भारत ने सम्मिलित प्रयास किया है ।

हिंद महासागर के अधिकतर तटवर्ती एवं द्वीपीय देश नव-स्वतंत्र राष्ट्र है; जो अपने प्रदेश की शांति एवं सामरिक परिस्थितियों एवं आर्थिक विकास के लिए काफी हद तक भारत की नीतियों पर निर्भर करते हैं । हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा देश होने के कारण क्षेत्रीय आर्थिक विकास व सामरिक शांति बनाए रखने में भारत का दायित्व इस कारण और भी बढ़ जाता है ।

हिंद महासागर के महत्व को देखते हुए तथा इसे शांति क्षेत्र बनाए रखने की पहल करते हुए कोको द्वीप में चीन के निगरानी तंत्र स्थापित करने एवं ‘डियागो-गार्सिया’ में अमेरिकी उपस्थिति एवं उसके द्वारा परमाण्विक हथियार (Nuclear War Head) अड्‌डा, नौ-सैनिक अड्‌डा स्थापित करने का विरोध किया है ।

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