पृथ्वी का भूवैज्ञानिक इतिहास | Geological History of Earth.

उल्का पिंडों एवं चन्द्रमा के चट्‌टानों के नमूनों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि हमारी पृथ्वी की आयु 4.6 अरब वर्ष है । पृथ्वी पर सबसे प्राचीन पत्थर नमूनों के रेडियोधर्मी तत्वों के परीक्षण से उसके 3.9 बिलियन वर्ष पुराना होने का पता चला है ।

रेडियोसक्रिय पदार्थों के अध्ययन के द्वारा पृथ्वी के आयु की सबसे विश्वसनीय व्याख्या हो सकी है । पियरे क्यूरी एवं रदरफोर्ड ने इनके आधार पर पृथ्वी की आयु दो से तीन अरब वर्ष अनुमानित की है ।

पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास की व्याख्या का सर्वप्रथम प्रयास फ्रांसीसी वैज्ञानिक कास्ते-द-बफन ने किया । वर्तमान समय में पृथ्वी के इतिहास को कई कल्प (Era) में विभाजित किया गया है । ये कल्प पुनः क्रमिक रूप से युगों (Epoch) में व्यवस्थित किए गए हैं ।

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प्रत्येक युग पुनः छोटे उपविभागों में विभक्त किया गया है, जिन्हें ‘शक’ (Period) कहा जाता है । प्रत्येक शक की कालावधि निर्धारित की गई है तथा जीवों और वनस्पतियों के विकास पर भी प्रकाश डाला गया है ।

पृथ्वी के भूगर्भिक इतिहास से सम्बंधित प्रमुख तथ्य:

1. आद्य कल्प (Pre-Paleozoic Era):

इसे आर्कियन व प्री-कैम्ब्रियन दो भागों में बाँटा गया है:

i. आर्कियन काल (Archean Era):

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इस काल के शैलों में जीवाश्मों का पूर्णतः अभाव है । इसलिए इसे प्राग्जैविक (Azoic) काल भी कहते हैं । इन चट्‌टानों में ग्रेनाइट और नीस की प्रधानता है, जिनमें सोना और लोहा पाया जाता है । इसी काल में कनाडियन व फेनोस्केंडिया शील्ड निर्मित हुए हैं ।

ii. प्री-कैम्ब्रियन काल (Pre-Cambrian Period):

इस काल में रीढ़विहीन जीव का प्रादुर्भाव हो गया था । इस काल में गर्म सागरों में मुख्यतः नर्म त्वचा वाले रीढ़विहीन जीव थे । यद्यपि समुद्रों में रीढ़युक्त जीवों का भी प्रादुर्भाव हो गया, परंतु स्थलभाग जीवरहित था । भारत में प्री-कैम्ब्रियन काल में ही अरावली पर्वत व धारवाड़ क्रम की चट्‌टानों का निर्माण हुआ ।

2. पुराजीवी महाकल्प (Paleozoic Era):

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इसे प्राथमिक युग भी कहा जाता है ।

इसके निम्न उपभाग हैं:

i. कैम्ब्रियन काल (Cambrian Period):

इस काल में प्रथम बार स्थल भागों पर समुद्रों का अतिक्रमण हुआ । प्राचीनतम अवसादी शैलों (Sedimentary Rocks) का निर्माण कैम्ब्रियन काल में ही हुआ था । भारत में विंध्याचल पर्वतमाला का निर्माण इसी काल में हुआ था ।

पृथ्वी पर इसी काल में सर्वप्रथम वनस्पति एवं जीवों की उत्पत्ति हुई । ये जीव बिना रीढ़ की हड्‌डी वाले थे । इसी समय समुद्रों में घास की उत्पत्ति हुई ।

ii. आर्डोविसियन काल (Ordovician Period):

इस काल में समुद्र के विस्तार ने उत्तरी अमेरिका का आधा भाग डुबो दिया, जबकि पूर्वी अमेरिका टैकोनियन पर्वत निर्माणकारी गतिविधियों से प्रभावित हुआ । इस काल में वनस्पतियों का विस्तार हुआ तथा समुद्र में रेंगने वाले जीव भी उत्पन्न हुए । स्थल भाग अभी भी जीवविहीन था ।

iii. सिल्यूरियन काल (Silurian Period):

इस काल में सभी महाद्वीप पृथ्वी की कैलीडोनियन हलचल से प्रभावित हुए तथा इस काल में रीढ़ वाले जीवों का सर्वप्रथम आविर्भाव हुआ एवं समुद्रों में मछलियों की उत्पत्ति हुई । सिल्यूरियन काल में रीढ़ वाले जीवों का विस्तार मिलता है, इसलिए इसे ‘रीढ़ वाले जीवों का काल’ (Age of Vertebrates) कहते हैं ।

इस काल में प्रवाल जीवों का विस्तार मिलता है । स्थल पर पहली बार पौधों का उद्‌भव इसी समय हुआ । ये पौधे पत्ती विहीन थे तथा आस्ट्रेलिया में उत्पन्न हुए थे । यह काल व्यापक कैलिडोनियन पर्वतीय हलचलों का काल भी है । इसी समय स्कैंडिनेविया व स्कॉटलैंड के पर्वतों का निर्माण हुआ ।

iv. डिवोनियन काल (Devonian Period):

इस काल में कैलीडोनियन हलचल के परिणामस्वरूप सभी महाद्वीपों पर ऊँची पर्वत शृंखलाएँ विकसित हुई, जिसके प्रमाण स्कैंडिनेविया, दक्षिण-पश्चिम स्कॉटलैण्ड, उत्तरी आयरलैण्ड एवं पूर्वी अमेरिका में देखे जा सकते हैं । इस काल में पृथ्वी की जलवायु समुद्री जीवों विशेषकर मछलियों के सर्वाधिक अनुकूल थी । इसी समय शार्क मछली का भी आविर्भाव हुआ ।

अतः इसे ‘मत्स्य युग’ (Fish Age) के रूप में जाना जाता है । इसी समय उभयचर जीवों (Amphibians) की उत्पत्ति हुई तथा फर्न वनस्पतियों की भी उत्पत्ति हुई । पौधों की ऊँचाई 40 फीट तक पहुँच गई थी । इस समय कैलिडोनियन पर्वतीकरण भी बड़े पैमाने पर हुआ तथा ज्वालामुखी क्रियाएँ भी सक्रिय हुईं ।

v. कार्बोनीफेरस काल (Carboniferous Period):

इस काल में कैलीडोनियन हलचलों का स्थान आर्मेरिकन हलचलों ने ले लिया, जिससे ब्रिटेन एवं फ्रांस सर्वाधिक प्रभावित हुए तथा इस युग में उभयचरों का विकास व विस्तार बढ़ता गया । रेंगने वाले जीव (Raptiles) का भी स्थल पर आविर्भाव हुआ ।

इस काल में 100 फीट ऊँचे पेड़ भी उत्पन्न हुए । यह ‘बड़े वृक्षों (ग्लोसोप्टिरस वनस्पतियों) का काल’ कहलाता है । इस समय बने भ्रंशों में पेड़ों के दब जाने से गोंडवाना क्रम के चट्‌टानों का निर्माण हुआ, जिसमें कोयले के व्यापक निक्षेप मिलते हैं ।

vi. पर्मियन काल (Permian Age):

इस काल में वैरीसन हलचल हुई, जिसने मुख्य रूप से यूरोप को प्रभावित किया । जलवायु धीरे-धीरे शुष्क होने लगी तथा इस समय वैरीसन हलचल के फलस्वरूप भ्रंशों के निर्माण के कारण ब्लैक फॉरेस्ट व वास्जेज जैसे भ्रंशोत्थ पर्वतों का निर्माण हुआ ।

स्पेनिश मेसेटा, अल्ताई, तिएनशान, अप्लेशियन जैसे पर्वत भी इसी काल में निर्मित हुए । इस समय स्थल पर जीवों व वनस्पतियों की अनेक प्रजातियों का विकास देखा गया । भ्रंशन के कारण उत्पन्न आंतरिक झीलों के वाष्पीकरण से पृथ्वी पर पोटाश भंडारों का निर्माण हुआ ।

3. मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic Era):

इसे द्वितीयक युग भी कहा जाता है ।

इसे ट्रियासिक, जुरैसिक व क्रिटेशियस कालों में बाँटा गया है:

i. ट्रियासिक काल (Triassic Period):

इस काल में स्थल पर बड़े-बड़े रेंगने वाले जीव का विकास हुआ । इसीलिए इसे ‘रेंगने वाले जीवों का काल’ (Age of Reptiles) कहा जाता है । यह काल आर्कियोप्टेरिक्स की उत्पत्ति का काल था । ये स्थल एवं आकाश दोनों में चल सकते थे ।

इस समय तीव्र गति से तैरने वाले लॉबस्टर (केकड़ा समूह का प्राणी) का उद्‌भव भी हुआ । स्तनधारी भी उत्पन्न होने लगे थे । मांसाहारी मत्स्यतुल्य रेप्टाइल्स सागरों में उत्पन्न हुए । रेप्टाइल्स में भी स्तनधारियों की उत्पत्ति हो गई थी ।

ii. जुरैसिक काल (Jurassic Period):

इस काल में मगरमच्छ के समान मुख और मछली के समान धड़ वाले जीव, डायनासोर रेप्टाइल्स का विस्तार हुआ एवं लॉबस्टर प्राणी बढ़ते चले गए तथा इस काल में जलचर, स्थलचर व नभचर तीनों का आविर्भाव हो गया था । जूरा पर्वत का सम्बंध इसी काल से जोड़ा जाता है । पुष्पयुक्त वनस्पतियाँ इसी काल में आई थीं ।

iii. क्रिटेशियस काल (Cretaceous Period):

इस काल में एंजियोस्पर्म (आवृत्तबीजी) पौधों का विकास प्रारंभ हुआ । बड़े-बड़े कछुओं का उद्‌भव भी इस काल में देखा गया । मैग्नेलिया व पोपनार जैसे शीतोष्ण पतझड़ वन के वृक्ष विकसित हुए । उत्तरी-पश्चिमी अलास्का, कनाडा, मैक्सिको, ब्रिटेन के डोबर क्षेत्र व आस्ट्रेलिया आदि में खड़िया मिट्‌टी का जमाव हुआ ।

पर्वतीकरण अत्यधिक सक्रिय था । रॉकी व एंडीज की उत्पत्ति आरंभ हो गई । भारत के पठारी भाग में क्रिटेशियस काल में ही ज्वालामुखी लावा का दरारी उद्‌भेदन हुआ, जिससे ‘दक्कन ट्रैप’ व काली मिट्‌टी का निर्माण हुआ है ।

4. नवजीवी महाकल्प (Cenozoic Era):

इस कल्प को तृतीयक या ‘टर्शियरी युग’ भी कहा जाता है । इसे पैल्योसीन, इओसीन, ओलीगोसीन, मायोसीन व प्लायोसीन कालों में बाँटा गया है । इसी कल्प के विभिन्न कालों में अल्पाइन पर्वतीकरण हुए तथा विश्व के सभी नवीन मोड़दार पर्वतों आल्प्स, हिमालय, रॉकी, एंडीज आदि की उत्पत्ति हुई ।

i. पैल्योसीन काल (Paleocene Period):

इस युग के दौरान हुई लैरामाइड हलचल के फलस्वरूप उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वतमाला का निर्माण हुआ तथा स्थल पर स्तनपाइयों का विस्तार हुआ । इसी कल्प में सर्वप्रथम स्तनपाई (Mammalians) जीवों व पुच्छहीन बंदरों (Ape) का आविर्भाव हुआ ।

ii. इओसीन काल (Eocene Period):

इस युग में भूतल पर विभिन्न दरारों के माध्यम से ज्वालामुखी का उद्‌गार हुआ तथा स्थल पर रेंगने वाले जीव प्रायः विलुप्त हो गए । प्राचीन बंदर व गिब्बन म्यांमार में उत्पन्न हुए । हाथी, घोड़ा, रेनोसेरस (गैंडा), सूअर के पूर्वजों का आविर्भाव हुआ ।

iii. ओलीगोसीन काल (Oligocene Period):

इस काल में ‘अल्पाइन पर्वतीकरण’ प्रारंभ हुआ एवं इसी काल में बिल्ली, कुत्ता, भालू आदि की उत्पत्ति हुई । इसी काल में पुच्छहीन बंदर का आविर्भाव हुआ, जिसे मानव का पूर्वज कहा जा सकता है । ‘वृहत् हिमालय’ की उत्पत्ति का मुख्यकाल यही है ।

iv. मायोसीन काल (Miocene Period):

इस काल में अल्पाइन पर्वत निर्माणकारी गतिविधियों द्वारा सम्पूर्ण यूरोप एवं एशिया में वलनों का विकास हुआ, जिनके विस्तार की दिशा पूर्व-पश्चिम था ।

इस काल में बड़े आकार के (60 फीट) शार्क मछली, प्रोकानसल (पुच्छहीन बंदर), जल पक्षी (हंस, बत्तख) पेंग्विन आदि उत्पन्न हुए । हाथी का भी विकास इसी काल में हुआ । मध्य या लघु हिमालय की उत्पत्ति का मुख्य काल यही है ।

v. प्लायोसीन काल:

इस काल में समुद्रों के निरन्तर अवसादीकरण से यूरोप, मेसोपोटामिया, उत्तरी भारत, सिन्ध एवं उत्तरी अमेरिका में विस्तृत मैदानों का विकास हुआ तथा इस काल में बड़े स्तनपाई प्राणियों की संख्या में कमी आई । शार्क का विनाश हो गया, मानव के पूर्वज का विकास हुआ तथा आधुनिक स्तनपाइयों का आविर्भाव हुआ ।

शिवालिक की उत्पत्ति इसी काल में हुई । हिमालय पर्वतमाला एवं दक्षिण के प्रायद्वीपीय भाग के बीच स्थित जलपूर्ण द्रोणी टेथिस भू-सन्नति में अवसादों के जमाव से उत्तरी विशाल मैदान का आविर्भाव इसी काल में होने लगा था ।

5. नूतन महाकल्प (Neozoic Era):

इसे चतुर्थक युग भी कहा जाता है ।

प्लीस्टोसीन व होलोसीन इसके दो उपभाग हैं:

i. प्लीस्टोसीन काल (Pleistocene Period):

इस युग में तापमान का स्तर नीचे आ गया, जिसके कारण यूरोप ने क्रमशः चार हिमयुग देखा । जो इस प्रकार हैं- गुंज (Gunz), मिन्डेल (Mindel), रिस (Riss) एवं वुर्म (Wurm) । विभिन्न हिमकालों के बीच में अंतर्हिम काल (Inter Glacial Age) देखे गए जो तुलनात्मक रूप से उष्णकाल था । मिन्हेल व रिस के बीच का अंतर्हिम काल सर्वाधिक लम्बी अवधि का था ।

उत्तरी अमेरिका में इस समय नेब्रास्कन, कन्सान, इलीनोइन या आयोवा व विंस्कासिन हिमकाल देखे गए । नेब्रास्कन व कन्सान के बीच अफ्टोनियन, कन्सान व इलीनोइन के बीच यारमाउथ, इलीनोइन व विंस्कासिन के बीच संगमन अंतर्हिम काल था ।

इस युग के अंत में हिम चादर पिघलते चले गए एवं स्कैंडिनेवियन क्षेत्र की ऊँचाई में निरंतर वृद्धि हुई । पृथ्वी पर उड़ने वाले ‘पक्षियों का आविर्भाव’ प्लीस्टोसीन काल में ही माना जाता है । मानव तथा अन्य स्तनपाई जीव वर्तमान स्वरूप में इसी काल में विकसित हुए ।

ii. होलोसीन या अभिनव काल (Holocene or Innovative Period):

इस काल में तापमान वृद्धि के कारण प्लीस्टोसीन काल के हिम की समाप्ति हो गई तथा विश्व की वर्तमान दशा प्राप्त हुई जो अभी भी जारी है । इसी समय सागरीय जीव वर्तमान अवस्था को प्राप्त हुए । स्थल पर मनुष्य ने कृषि कार्य तथा पशुपालन प्रारंभ कर दिया ।

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