पृथ्वी का आंतरिक संरचना (आरेख के साथ) | Internal Structure of the Earth (With Diagram).

पृथ्वी की बाह्य स्थलाकृतियाँ उसकी आंतरिक संरचना से घनिष्ठ सम्बंध रखती हैं । यद्यपि पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन मुख्यतः भूगर्भशास्त्र का विषय है, परंतु स्थलीय स्थलाकृतियों के विश्लेषण के लिए भूगोल में भी इसका अध्ययन किया जाता है ।

चूँकि आंतरिक भाग मानव के लिए दृश्य नहीं है, अतः इसके सम्बंध में जानकारी प्रायः अप्रत्यक्ष साधनों से ही हो सकी है ।

इन साधनों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

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1. अप्राकृतिक साधन (Artificial Sources):

i. घनत्व (Density):

पृथ्वी का औसत घनत्व 5.5 है जबकि भू-पर्पटी (Crust) का घनत्व लगभग 3.0 है । इससे स्पष्ट है कि आंतरिक भागों में घनत्व की अधिकता होगी । घनत्व सम्बंधी विभिन्न प्रमाणों से यह पता चलता है कि पृथ्वी के क्रोड़ (Core) का घनत्व सर्वाधिक है ।

ii. दबाव (Pressure):

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क्रोड़ (Core) के अधिक घनत्व के सम्बंध में चट्‌टानों के भार व दबाव का संदर्भ लिया जा सकता है । यद्यपि दबाव बढ़ने से घनत्व बढ़ता है, किन्तु प्रत्येक चट्‌टान की अपनी एक सीमा है जिससे अधिक इसका घनत्व नहीं हो सकता है, चाहे दबाव कितना ही अधिक क्यों न कर दिया जाए । तात्पर्य यह है कि आंतरिक भाग के चट्‌टान अधिक घनत्व वाले भारी धातुओं से बने हैं ।

iii. तापक्रम (Temperature):

सामान्य रूप से प्रत्येक 32 मीटर की गहराई पर तापमान में 10C की वृद्धि होती है, परंतु बढ़ती गहराई के साथ तापमान की वृद्धि दर में भी गिरावट आती है । प्रथम 100 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 120C की वृद्धि होती है । उसके बाद के 300 किमी. की गहराई में प्रत्येक किमी. पर 20C एवं उसके पश्चात् प्रत्येक किमी. की गहराई पर 10C की वृद्धि होती है ।

विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में तापमान अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है । पृथ्वी के आंतरिक भाग से ऊष्मा का प्रवाह बाहर की ओर होता रहता है, जो तापीय संवहन तरंगों के रूप में होता है । प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के आगमन से यह और भी स्पष्ट हो गया है ।

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2. पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बंधित सिद्धांतों के साध्य (Provable Theories Concerning the Origin of the Earth):

ग्रहाणु परिकल्पना जहाँ पृथ्वी के अंतरतम (क्रोड़) को ठोस मानती है, वहीं ज्वारीय परिकल्पना एवं वायव्य निहारिका परिकल्पना में पृथ्वी के अन्तरतम को तरल माना गया है । इस प्रकार पृथ्वी के आंतरिक भाग के सम्बंध में दो ही संभावना बनती है, या तो यह ठोस हो सकती है या तरल ।

3. प्राकृतिक साधन (Natural Resources):

i. ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic Action):

ज्वालामुखी उद्‌गार से निकलने वाला तत्व व तरल मैग्मा के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि पृथ्वी की गहराई में कहीं न कहीं ऐसी परत अवश्य है जो तरल या अर्द्धतरल अवस्था में है । यद्यपि ज्वालामुखी के उद्‌गार से भी पृथ्वी की आंतरिक बनावट के सम्बंध में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिल पाती ।

b. भूकम्प विज्ञान के साक्ष्य (Evidence of Seismology):

इसमें भूकम्पीय लहरों का सिस्मोग्राफ यंत्र (Seismograph) द्वारा अंकन कर अध्ययन किया जाता है । यह ऐसा प्रत्यक्ष साधन है, जिससे पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध होती है ।

पृथ्वी का रासायनिक संगठन एवं विभिन्न परतें:

International Union of Geodesy and Geophysics (IUGG) के शोध के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन वृहद् मंडलों में विभक्त किया गया है ।

जो निम्न हैं:

i. भू-पर्पटी (Crust):

IUGG ने इसकी औसत मोटाई 30 किमी. मानी है यद्यपि अन्य स्रोतों के अनुसार क्रस्ट की मोटाई 100 किमी. बताई गई है । IUGG के अनुसार क्रस्ट के ऊपरी भाग में ‘P’ लहर की गति 6.1 किमी. प्रति सेकेंड तथा निचले भाग में 6.9 किमी. प्रति सेकेंड है ।

ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2.8 एवं निचले क्रस्ट का 3.0 है । घनत्व में यह अंतर दबाव के कारण माना जाता है । ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता ‘कोनराड असंबद्धता’ कहलाती है । क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः सिलिका और एल्युमिनियम से हुआ है । अतः इसे SIA1 परत भी कहा जाता है ।

ii. मैंटल (Mantle):

क्रस्ट के निचले आधार पर भूकंपीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि होती है तथा यह बढ़कर 7.9 से 8.1 किमी. प्रति सेकेंड तक हो जाती है । इससे निचले क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल के मध्य एक असंबद्धता का निर्माण होता है, जो चट्‌टानों के घनत्व में परिवर्तन को दर्शाता है ।

इस असंबद्धता की खोज 1909 ई. में रूसी वैज्ञानिक ए. मोहोरोविकिक (A. Mohorovicic) ने की । अतः इसे ‘मोहो-असंबद्धता’ भी कहा जाता है । मोहो-असंबद्धता से लगभग 2,900 किमी. की गहराई तक मेंटल का विस्तार है । इसका आयतन पृथ्वी के कुल आयतन (Volume) का लगभग 83% एवं द्रव्यमान (Mass) का लगभग 68% है ।

मेंटल का निर्माण मुख्यतः सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है, अतः इसे SiMa परत भी कहा जाता है । मेंटल को IUGG ने भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर पुनः तीन भागों में बाँटा है- (1) मोहो असंबद्धता से 200 किमी. (2) 200 किमी. से 700 किमी. (3) 700 किमी. से 2,900 किमी. ।

ऊपरी मेंटल में 100 से 200 किमी. की गहराई में भूकंपीय लहरों की गति मंद पड़ जाती है तथा यह 7.8 किमी. प्रति सेकेंड मिलती है । अतः इस भाग को ‘निम्न गति का मंडल’ (Zone of Low Velocity) भी कहा जाता है । ऊपरी मेंटल एवं निचले मेंटल के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता रेपेटी असंबद्धता कहलाती है ।

i. क्रोड़ (Core):

निचले मैंटल के आधार पर ‘P’ तरंगों की गति में अचानक परिवर्तन आता है तथा यह बढ़ कर 13.6 किमी. प्रति सेकेंड हो जाती है । यह चट्‌टानों के घनत्व में एकाएक परिवर्तन को दर्शाता है, जिससे एक प्रकार की असंबद्धता उत्पन्न होती है ।

इसे ‘गुटेनबर्ग-विशार्ट असंबद्धता’ भी कहते हैं । गुटेनबर्ग-असंबद्धता से लेकर 6,371 किमी. की गहराई तक के भाग को क्रोड़ कहा जाता है । इसे भी दो भागों में बाँटकर देखते हैं- 2,900 से 5,150 किमी. और 5,150-6,371 किमी. । इन्हें क्रमशः बाह्य अंतरतम एवं आंतरिक अंतरतम (क्रोड़) कहते हैं ।

इनके बीच पाई जाने वाली घनत्व सम्बंधी असंबद्धता ‘लैहमेन असंबद्धता’ कहलाती है । क्रोड़ में सबसे ऊपरी भाग में घनत्व 10 होता है, जो अंदर जाने पर 12 से 13 तथा सबसे आंतरिक भागों में 13.6 हो जाता है ।

इस प्रकार क्रोड़ का घनत्व मैंटल के घनत्व के दोगुने से भी अधिक होता है । बाह्य अंतरतम में ‘S’ तरंगें प्रवेश नहीं कर पाती है । आंतरिक अंतरतम में जहाँ घनत्व सर्वाधिक है, तुलनात्मक दृष्टि से अधिक तरल होने के कारण ‘P’ तरंगों की गति 11.23 किमी. प्रति सेकेंड रह जाती है ।

यद्यपि अत्यधिक तापमान के कारण क्रोड़ को पिघली हुई अवस्था में रहना चाहिए किन्तु अत्यधिक दबाव के कारण यह अर्द्धतरल या प्लास्टिक अवस्था में रहता है । क्रोड़ का आयतन पूरी पृथ्वी का मात्र 16% है, परंतु इसका द्रव्यमान पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का लगभग 32% है ।

क्रोड़ के आंतरिक भागों में यद्यपि सिलिकन की भी कुछ मात्रा रहती है, परंतु इसका निर्माण मुख्य रूप से निकेल और लोहा से हुआ है । अतः इसे NiFe परत भी कहते हैं ।

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