Read this article in Hindi to learn about:- 1. जीन क्लोनिंग का अर्थ (Meaning and History of Gene Cloning) 2. विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत क्लोनिंग का अध्ययन (Study of Cloning Under Various Headings) 3. अभिव्यक्ति (Expression).

जीन क्लोनिंग का अर्थ (Meaning and History of Gene Cloning):

आनुवंशिक रूप से समान कोशिकाओं अथवा जीवों के समूह को क्लोन (Clone) कहते हैं । आजकल जीनों के स्थान पर सम्पूर्ण जीवों के क्लोन तैयार किये गये हैं । इस प्रकार अब कोशिका जीन एवं जीव क्लोन (Clone) तैयार किये जा रहे हैं । क्लोन (Clone) बनाने की विधि को क्लोनिंग कहते हैं ।

क्लोनिंग का इतिहास (History of Cloning):

रीकॉबिनेंट डीएनए तकनीक (Technique) में पहला ब्रेक थ्रू (या मौका) तब आया जब वर्नर, आर्बर तथा हेमिल्टन स्मिथ द्वारा 1960 के दशक के अंत में रेस्ट्रीक्शन एंडीन्यूक्लियेजेज (रेस्ट्रीक्शन एंजाइम) की खोज की गई ।

ADVERTISEMENTS:

रेस्ट्रीक्शन एन्जाइम की खोज सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) में हुई थी । ये एन्जाइम होस्ट-सेल को बैक्टीयोफोज (या जीवाणुभेजी) डीएनए से बचाते है । रेस्ट्रीक्शन एन्जाइम को पहले के सेक्शन (भाग/खंड) में समझाया जा चुका है ।

1969 में हबर्ट शेयर ने ई. कोलाई में से रेस्ट्रीक्शन एन्जाइम (Restriction Enzyme) EcoRI को अलग किया जो बेस-सीक्वेंस GAATTC के G तथा A के बीच से डीएनए को नीचे दर्शाये गये तरीके के अनुसार काटती है:

1970 में हावर्ड टेमिन तथा डेविन बाल्टीमोर ने स्वतंत्र रूप में रीट्रोवाइरस में से रीवर्स ट्रांस्क्रिप्टेज नाम एन्जाइम (Enzyme) की खोज की । बाद में इस एन्जाइम (Enzyme) का उपयोग किसी भी आरएनए से डीएनए बनाने हेतु किया गया, इस डीएनए का नाम था कॉम्पलिमेंटरी डीएनए या सी-डी एन ए ।

ADVERTISEMENTS:

1972 में डेविउ जैक्शन राबर्ट साइमन्स तथा पॉल बर्ग के आर-डीएनए के अणुओं को सफलतापूर्वक बनाया । उन्होंने डीएनए लाइगेज नाम की एन्जाइम (Enzyme) का उपयोग करके कॉम्प्लीमेंटरी डीएनए के स्लीकली-ऐंड्स को अनुमति दी ।

1973 में एस. कोहेने तथा एच.बोयर ने पहली बार रीकॉम्बीनेंट प्लाज्मिड (p SC101) को विकसित किया । जो वेक्टर के रूप में प्रयोग किये जाने के बाद बैक्टीरियल-होस्ट में अच्छी तरह से रेप्लिकेट (या प्रतिरूपित) हुआ ।

1975 में एड्विन एम.सदर्न ने डीएनए के विशिष्ट टुकड़ों का पता लगाने हेतु एक तरीका विकसित किया, जिससे डीएनए (D.N.A.) के जटिल मिश्रण से जीन को अलग किया जा सके । इस तरीके या विधि को सदर्न ब्लॉटिंग तकनीक (Technique) कहा जाता है ।

रीकॉम्बिनेंट डीएनए तकनीक के कुछ माइल्स्टोन (या उपलब्धियाँ) संक्षिप्त में नीचे दिए गए है:

ADVERTISEMENTS:

(1) 1976- जीन- स्पेसिफिक प्रोब का उपयोग करके पहला प्रीनेटल-डायग्नॉसिस किया गया ।

(2) 1977- रैपिड डीएनए सिक्वेसिंग, स्प्लिट जीन का खोज तथा आर.डीएनए द्वारा सौमैटोस्टेनिन की विधियों ।

(3) 1979- रीकॉबिनेंट डी.एनए का उपयोग करके इंसुलिन को बनाया गया, जो पहला हयूमन वाइरल एंटीजेन है ।

(4) 1981- फुट एंड माउथ रोग के वाइरल एंटीजन का क्लोन किया गया ।

(5) 1982- जेनेटिकली इंजीनियर्ड हयूमन इंसुलिन के ई.कोलाई का व्यवसायिक उत्पादन । हयूमन कैंसर जीन को अलग करना उसकी क्लोनिंग तथा केरेक्टराइजेशन ।

(6) 1983- इंजीनियर्ड टी.आइ- प्लाज्मिड का उपयोग पौधों के रूपांतरण के लिए किया गया ।

(7) 1985- क्लोन की गई जीन को सैल्मोनेला से तंबाकू के पौधे में डाला गया, जिससे वे हर्बिसाइड ग्लाइफास्फेट के प्रतिरोध न बन जाए । पी.सी.आर तकनीक का विकास ।

(8) 1986- जीन गन का विकास ।

(9) 1989- कैबेज-लुपर-कैटरलिर या (इल्ली) को मारने वाले जेनेटिकली इंजीनियर्ड वाइरस (बैक्यूलोवाइरस) का पहला फील्ड-परीक्षण ।

(10) 1990- पहले ट्रांस्फार्म्ड मक्के का उत्पादन ।

(11) 1991- पहले ट्रांस्जेनिक सुअर, बकरियों का उत्पादन, हयूमन हिमोग्लोबिन का उत्पादन, कैंसर के मरीजों (मानव-मरीजों) पर जीन-थैरेपी का पहला परीक्षण ।

(12) 1994- पहले फ्लेवर-सेवर टमाटर को प्रस्तावित किया गया, जो पहला जेनेटिकली इंजीनियर्ड पूर्ण अनाज था जिसको बेचने की अनुमति थी । जेनेटिकली इंजीनियर्ड चूहे में पूर्ण रूप से हयूमन मोनोक्लोनेल एंटीबॉडीज को बनाया गया ।

(13) 1997- विश्व का पहला मैमेलियन क्लोन जो एक व्यस्क जंतु की नॉन-रिप्रोडक्टिव कोशिका से न्यूक्लियर ट्रांस्प्लांट द्वारा क्लोनिंग की प्रक्रिया से विकसित किया गया ।

विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत क्लोनिंग का अध्ययन (Study of Cloning Under Various Headings):

क्लोनिंग का अध्ययन करना एक विस्तृत प्रक्रिया है ।

इसलिए इसे ठीक प्रकार से समझने के लिए हम इसे विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत पढ़ेंगे:

(1) कोशिका क्लोनिंग (Cell Cloning):

किसी एक जनक कोशिका (Cell) से आनुवंशिक रूप से समान कोशिका समूह प्राप्त करने की क्रिया को कोशिका क्लोनिंग कहते हैं ।

कोशिका (Cell) क्लोन निम्न तकनीक द्वार प्राप्त कर सकते हैं:

(i) एक योग्य संवर्धन माध्यम से पेट्री डिश में लेकर इसमें पृथक्कृत कोशिका (Cell) को डाल देते हैं । कोशिकाएं पेट्री डिश की तली में जाकर समान कोशिकाओं का समूह बना देती है । ये कोशिकाएँ वास्तविक क्लोन होती हैं ।

(ii) जन्तु ऊतक की कोशिकाओं (Cell) को प्रकीण्व (प्रोटीएज, ट्रिप्सिन अथवा कोलेजिनेज) और Ca बन्धनकारी पदार्थ की सहायता से अलग-अलग प्राप्त करते हैं । यान्त्रिक विधि से भी कोशिका (Cell) को अलग रूप में प्राप्त किया जा सकता है ।

(iii) प्रोटीएज प्रकीण्व कोशिकाओं (Cell) को बाँधने वाले पदार्थ को पचा (अपघटित) देता है, जबकि कैल्सियम बन्धनकारी पदार्थ कोशिकीय सतह से Ca को हटा देता है जो कि कोशिका (Cell) को बाँधने के लिए आवश्यक होता है । शिक क्लोनिंग का प्रयोग (Applications of Cell Cloning) इन कोशिकाओं (Cell) को जीन लाइब्रेरी में संगृहीत किया जाता है ।

(2) जिन क्लोनिंग (Gene Cloning):

विशिष्ट जीन के समान जीन प्राप्त करना क्लोनिंग (Cloning) कहलाता है । क्लोन प्राप्त करने वाले DNA खण्ड को पहले वाहक DNA में प्रवेश काया जाता है । उसके बाद यह वाहक DNA पोषक कोशिका में डाला जाता है, जहाँ पर इसके जीन क्लोन प्राप्त होते हैं ।

जीवाणुओं के माध्यम से जीन क्लोनिंग (Cloning) में निम्न चरण पाये जाते हैं:

(i) जीन का निर्माण (Preparation of the Gene):

जीवाणु द्वारा जीन क्लोनिंग (Cloning) के लिए DNA को प्रकिण्व एण्डोन्यूक्लिएज की सहायता से छोटे-छोटे टुकड़ों में बदल लेते हैं । प्रत्येक खण्ड एकहरा शीर्षयुक्त होता है ।

(ii) वाहक में प्रवेश कराना (Insertion into Vector):

वाहक एक ऐसा प्रतिनिधि (Agent) है, जिसका उपयोग DNA को पोषक जीवाणु कोशिका के प्लाज्मिड (Plasmid) तक पहुँचाने के लिए किया जाता है । वाहक (Vector) DNA को एण्डोन्यूक्लिएज की सहायता से खोलते हैं ।

DNA लाइगेज प्रकिण्व की सहायता से खण्ड वेक्टर के प्लाज्मिड (Plasmid) या गुणसूत्र (DNA) से जोड़ देते हैं । अब DNA खण्डयुक्त प्लाज्मिड (Plasmid) को पुनर्सयोजित प्लाज्मिड कहते हैं ।

(iii) पोषक कोशिका का पुनर्निर्माण (Transformation of Host Cell):

संयुक्त प्लाज्मिड (Plasmid) को पोषक जीवाणु कोशिका के अन्दर प्रवेश कराते हैं, जहाँ पर जीवाणु कोशिका द्वारा प्लाज्मिड (Plasmid) का निर्माण किया जाता है । इन जीवाणुओं को कैल्सियम क्लोराइड के तनु एवं ठण्डे विलयन में रखते हैं । यह विलयन जीवाणु कोशिका द्वारा विदेशी DNA को ग्रहण करने में मदद करता है ।

इस प्रकार से DNA के पुनर्निर्माण के लिए E. Coli नामक जीवाणु (Bacteria) का उपयोग किया जाता है । कैल्सियम क्लोराइड द्वारा उपचारित इस जीवाणु की कोशिका में DNA पुननिर्माण तीव्रता से होता है । यह जीवाणु (Bacteria) लगभग सभी प्रकार के DNA का अनुलिपिकरण कर सकता है । इस प्रकार प्राप्त DNA की अनुकृतियों को जीन बैंक (Gene Bank) या जीनोमिक लाइब्रेरी में रखा जाता है ।

जीन क्लोनिंग वह विधि है, जिसके द्वारा किसी जीन (Gene) से उसकी आनुवंशिकी रूप में पूर्णतः समरूपी (Genetically Identical) प्रतिलिपियों (Copies) को असीमित संख्या में निर्मित किया जा सकता है ।

उदाहरण के लिए E. Coli की ट्रान्सफॉर्म्ड कोशिकाएँ (जिनमें r-DNA होता है) यूकैरियोटिक DNA के खण्ड (Segment) की प्रतिलिपियों (Copies) असीमित संख्या में उत्पन्न कर सकती है । क्योंकि ये सभी प्रतिलिपियाँ (Copies) एक ही पैतृक DNA अनु (Parent DNA Molecule) से उत्पन्न होती हैं, अत: आनुवंशिक रूप से पूर्णतः समरूपी (Identical) होती हैं ।

जीन क्लोनिंग के लिए एक विशिष्ट प्रकार के क्लोनिंग जीव (Cloning Organism) की आवश्यकता होती है । रीकॉम्बिनेन्ट DNA सम्बन्धित प्रयोगों (Experiment) में E. Coli जीवाणु के क्लोनिंग जीव के रूप में बहुत उपयोगी पाया गया है ।

इस जीवाणु की अपेक्षा यीस्ट (Yeast) कोशिकाओं के प्रयोग को अधिक सुरक्षित माना गया है, क्योंकि ये मनुष्य में किसी प्रकार का रोग (Disease) उत्पन्न नहीं करती । एक आदर्श क्लोनिंग जीव हेतु यह आवश्यक है कि उसमें असंगत DNA को खण्डित करने वाले रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम्स न पाये जाते हों तथा रीकॉम्बिनेण्ट DNA के निर्माण सम्बन्धी कारक अनुपस्थित हों अन्यथा यह अवांछित r-DNA निर्मित करेगा ।

जीन क्लोनिंग (Gene-Cloning) के किसी जीन विशेष की रासायनिक संरचना, जीन में उत्परिवर्तन (Mutation) करना तथा उसके जैविक प्रभावों का अध्ययन करना सम्भव हो गया है । इस विधि (Method) के प्रयोग से ड्रोसोफिला (Drosophila) तथा चूहे (Mouse) के भ्रूणो (Embryos) में क्लोनित जीन (Cloned Gene) को स्थानान्तरित किया जा सकता है ।

ये क्लोनित जीन (Cloned Gene) भ्रूणीय कोशिकाओं के DNA से पूर्णतः संलग्न होकर जन्तुओं की नई प्रकार की प्रजातियों (Varieties) को उत्पन्न करने में बहुत उपयोगी है । इन प्रजातियों (Varieties) में अनेक नये लक्षण अभिव्यक्त होते हैं तथा इसकी वंशागति भी होती है ।

जीन क्लोनिंग (Gene-Cloning) द्वारा जीवाणुओं का उपयोग अनेक प्रकार के प्रोटीन्स जैसे कि मानव इन्सुलिन, वृद्धि हॉर्मोन आदि के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जो कि चिकित्सा (Medical) के क्षेत्र में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।

जीन क्लोनिंग (Gene-Cloning) के लिए सामान्यतया प्लाज्मिड्‌स तथा बैक्टीरियोफेज का उपयोग किया जाता है । साधारणतः उन प्लाज्मिड का वेक्टर के रूप में उपयोग किया जाता है जिनमें विश्रांति पुनरावृत्ति नियन्त्रण (Relaxed Replication Control) होता है, जिस करण ये प्रतिपोषी की एक ही कोशिका (Cell) में बहुत अधिक संख्या में एकत्र हो जाते हैं ।

इनकी अधिक उपज के कारण ही इनका उपयोग वैक्टर के रूप में किया जाता है । यह आवश्यक नहीं है कि सभी प्लाज्मिड (Plasmid) स्वाभाविक रूप से क्लोनिंग के लिए उपयुक्त (Suitable) हों । इसीलिए उन्हें फेरबदल द्वारा क्लोनिंग के लिए उपयुक्त भी बनाया जा सकता है ।

बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) का भी क्लोनिंग वैक्टरों के रूप में उपयोग किया जाता है । एक बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) में DNA अणु सामान्यतया रैखिक (Linear) रूप में पाया जाता है, जिसको एक स्थान पर तोड़ने से दो खण्ड (Segment) बन जाते हैं, इन दोनों खण्डों (Segment) के बीच बाहरी DNA के निवेशित (Insert) कर एक काइमेरिक DNA (Chimeric DNA) प्राप्त हो जाता है ।

(3) माइक्रोबियल क्लोनिंग (Microbial Cloning):

विभिन्न उपयोगों के लिए सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) के आनुवंशिक रूप में परिवर्तित व बेहतर स्ट्रेन को क्लोन किया जा सकता है ।

आनुवंशिक रूप से बेहतर सूक्ष्मजीवों (Micro-Organisms) के उपयोग नीचे दिये गए है:

उदाहरण:

ईश्चेरीशिया कोलाई (Esherichia Coli) की स्थानान्तरित कोशिकाएँ (Cells), जिनमें (r-DNA) पाया जाता है, के यूकेरियोटिक (Eukaryotic) डी.एन.ए (DNA) के भाग की प्रतिलिपियाँ (Copies) असीमित संख्या में उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि यह सब की सब प्रतिलिपियाँ (Copies) निश्चित एक ही पैतृक डी.एन.ए. (Parent DNA) अणु से प्राप्त होती हैं ।

ई. कोलाई (E. Coli) जीवाणु (Bacteria) को क्लोनिंग प्राणी के रूप में अधिक उपयोगी समझा जाता है । जीन क्लोनिंग (Gene Cloning) एक उपयोगी विधि (Method) होती है, जिसके द्वारा आनुवंशिक/जीन (Gene) की रासायनिक संरचना आनुवंशक में उतपरिवर्तन (Mutation in Gene) करना तथा उसके जैविक प्रभावों का अध्ययन करना सम्भव हो गया है ।

इस विधि (Method) के द्वारा ड्रोसोफिला (Drosophila) एवं चूहे (Rats) के भ्रूणो के क्लोनित आनुवंशक (Cloned Gene) को स्थानान्तरित किया जा सकता है तथा यह जन्तुओं की नई प्रकार की प्रजातियों (Species) में उत्पन्न करने में अधिक उपयोगी है ।

इस प्रकार की नवीन प्रजातियों (Species) में अनेक नये लक्षण प्रदर्शित और वंशागत होते हैं । इसके अतिरिक्त जीन क्लोण्ड (Gene Cloned) जीवाणु कोशिकाओं (Cells) का उपयोग मनुष्य के शरीर की अनेक प्रकार की प्रोटीन्स के उत्पादन के लिए किया जाता है । यह तकनीक चिकित्साशास्त्र के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तकनीक समझी जाती है

(4) पादप-क्लोनिंग (Plant Cloning):

पौधों की क्लोनिंग (Plant Cloning) आर्किड का उत्पादन करने वाले, कई रंगीन फूल क्लोन किये गए पौधे होते है । कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण कई अनाज की फासलों को वैज्ञानिकों ने जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से बेहतर बनाया है । सक्रिय रूप से विभाजित होने वाली मेरिस्टिमेटिक कोशिकाओं (Meristematic Cells) की सहायता से उत्पादन की गति को तीव्र बनाया जा सकता है ।

ऑरकिड्स (एक प्रकार के पौधे) का उत्पादन करने वाले खूबसूरत फूल असल में क्लोन किये गये पौधे होते है । कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण कई खाद्य-पौधों की वैज्ञानिकों (Scientists) ने जेनेटिक-इंजीनियरिंग की है ।

सक्रिय रूप से विभाजित होने वाली मेरिस्टीमेटिक कोशिकाओं (Meristematic Cells) का उपयोग करके उत्पादन की दर बढ़ाई जा सकती है । ये रूट या शूट-एपाइस पर उपस्थित रहते हैं, जो पौधे की वृद्धि के क्षेत्र है ।

जीन-मैनिपुलेशन की सहायता से बीमारियों, सूखा कीट तथा हर्बिसाइड (या शाक-विनाशी) के प्रति अवरोधक व सहनशील अनाज का उत्पादन किया जा सकता है । ये अनाज जेनेटिकली मॉडिफाइड (Genetically Modified) भोजन (जी.एम.एफ.) भी प्रदान करते है ।

उदाहरण:

विटामिन A से भरपूर तथा लाइसीन (Lysine) युक्त दाल:

(5) जंतु क्लोनिंग (Animal Cloning):

जीव क्लोनिंग (Animal Cloning) किसी जीव से आनुवंशिक रूप से उसी के समान जीव प्राप्त करना जीव क्लोनिंग कहलाता है । पादपों का क्लोन तैयार करना सरल है । इसके लिए ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा ऊतकों को संवर्धित किया जाता है ।

इसके बाद इस संवर्धन से अनेक पादप भ्रूण (Plant Embryo) तैयार कर लिए जाते हैं, जिनमें पूर्ण विकसित पौधा प्राप्त किया जाता है । जन्तुओं का क्लोन (Clone) तैयार करना एक कठिन कार्य है फिर भी वैज्ञानिकों ने अनेक जन्तुओं के क्लोन तैयार किये हैं तथा मानव क्लोन (Clone) के लिए भी प्रयासरत है ।

जन्तु क्लोनिंग के लिए अगुणित अण्डाणु के केन्द्रक को उसी जीव की द्विगुणित कोशिका के केन्द्रक से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है । अब इस द्विगुणित अण्डाणु को मादा के गर्भाशय में प्रतिस्थापित कर दिया जाता है ।

यह द्विगुणित अण्डाणु विकसित होकर आनुवंशिक रूप से जनक के समान जीव तैयार कर देता है । इस प्रकार प्राप्त क्लोन (Clone) जनक से पूर्णतः समानता व्यक्त करता है क्योंकि यह अलैंगिक रूप से पैदा होता है ।

एक सिंगल पेरेंट से ही प्राप्त किए गए तथा आनुवंशिक रूप से मानव जीवों के निर्माण की प्रक्रिया को आर्गानिज्मल या जीव क्लोनिंग (Cloning) कहा जाता है । पौधों में क्लोन का निर्माण वेजीटेटिव प्रोपागेशन (या वर्धी प्रजनन) द्वारा होता है ।

हाइड्रा में क्लोन (Clone) बडिंग की प्रक्रिया के द्वारा बनते है । मोनोजाइगोटिक या समान ट्‌विन्स (या जुड़वा बच्चे) भी एक दूसरे का क्लोन होते है । उनका विकास तब होता है जब जल्दी का ही एम्ब्रीयो (या भ्रूण) टूटता है ।

(i) भेड़ों की क्लोनिंग (Cloning of Sheep):

भेड़ों की क्लोनिंग (Cloning) रोशलिन इंस्टिट्‌यूट, एडिनबर्ग के डॉ. इयान विलमट (Dr. Ian Wilmut, 1995) ने भेड़ का क्लोन सफलतापूर्वक तैयार किया जो फरवरी 1996 में पैदा हुआ । भेड़ के इस बच्चे को “डॉली” नाम दिया गया जो पूर्णरूपेण अपनी माँ के समान थी ।

(ii) गायों में क्लोनिंग (Cloning in Cows):

गायों में क्लोनिंग (Cloning) एडवांस कोशिका टेक्नोलॉजी कार्पोरेशन, टेक्सास के डॉ. स्टीवेन स्टाइस और जेम्स ने क्लोनिंग (Cloning) की एक नई तकनीक का आविष्कार किया, जिसके द्वारा आनुवंशिकी अभियांत्रिकि के माध्यम से ऐसे गाय को पैदा किया गया जो औषधियुक्त दूध देती है ।

इस प्रकार के पहले क्लोन (Clone) जार्ज और चार्ली नामक बछियों का जन्म 1998 में हुआ । इस प्रकार प्राप्त क्लोन (Clone) गाय को जीवित दवा फैक्ट्री (Living Pharmaceutical Factories or LPF) कहते हैं ।

(iii) मेंढक में क्लोनिंग (Cloning in Frog):

मेंढक में क्लोनिंग (Cloning) सर्वप्रथम गर्डन (Gurdon, 1962) ने भेंक में (Xenopus Laevis) सफलतापूर्वक क्लोनिंग (Cloning) प्रयोग किया था । इन्होंने ही सर्वप्रथम उपकला ऊतकों के द्विगुणित नाभिक को नाभिक रहित अण्डों में स्थानान्तरित करने में सफलता प्राप्त की । ये अण्डे निषेचित अण्डों के समान कार्य करते हैं तथा सामान्य रूप से विकास करके एक टेडपोल (Tadpole) को जन्म देते हैं ।

जीव क्लोनिंग के उपयोग:

(a) विलुप्त हो रही जन्तु एवं पादप जातियों को संरक्षित किया जा सकता है ।

(b) इस तकनीक द्वारा किसी जीव के इच्छित जीनोटाइप के संरक्षित किया जा सकता है ।

(c) उपयोगी दूध एवं प्रोटीन वाले जन्तुओं को पैदा किया जा सकता है ।

(d) उच्च गुणों वाले जीवों को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है ।

(e) मानव अंग प्रत्यारोपण के लिए आनुवंशिक रूप से परिवर्तित पशुओं को पैदा किया जा सकता है ।

(6) मानव क्लोनिंग (Human Cloning):

मानव क्लोनिंग (Human Cloning) तैयार करने पर कई नैतिक तथा नीतिगत प्रश्न उठ खड़े होंगे । इस कारण कई देशों ने मानव क्लोन तैयार करने पर प्रतिबंध लगा रखा है । वैसे मानव (Human) क्लोन यदि तैयार किये जाते हैं, तो वे पूर्णतः जनक के समान नही होगे क्योंकि कई मानव (Human) गुण उपार्जित तथा सीखे हुए होते है ।

इसके अलावा मानव (Human) लक्षणों के प्रकटीकरण पर वातावरण का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है । मानव (Human) की क्लोनिंग होने से प्रजनन की प्रक्रिया में नर की लैगिंग हिस्सेदारी की आवश्यकता नहीं रहेगी ।

लेकिन जीवित रहने के लिए लैगिंग प्रजनन आवश्यक है जिसमें ऐठा का फर्टिलाइजेशन (या गर्भाधान) स्पर्म द्वारा होता है । इससे ऑफस्प्रिंग (या संतान) में आनुवंशिक परिवर्तन (Genetic Changes) आते हैं, जिससे वह अधिक अनुकूल तथा नेचुरल सेलेक्शन (या प्राकृतिक चुनाव) के लिए ज्यादा फिट रहता है ।

मानव वृद्धि हॉर्मोन (Human Growth Hormone HGH) जीन भी ई.कोलाई (E.Coli) से संश्लेषित एवं क्लोण्ड (Cloned) हो सकता है । जहाँ से Lac प्रोत्साहक (Promoter) के नियन्त्रण के अन्तर्गत अभिव्यक्त होता है ।

यह प्रथम उदाहरण है, जहाँ मानव पॉलिपेप्टाइड (Human Polypeptide) सीधे रूप में ई. कोलाई (E.Coli) में एक अ-पूर्ववर्ती / नॉन-पूर्ववर्ती (Non-Percursor) के रूप में अभिव्यक्त लेता है ।

मानव (Human) कोशिका में यह प्रोटीन विघटित जीन के प्रभाव में तीन इण्ट्रोन्स (Introns) के साथ पूर्ववर्ती रूप में संश्लेषित होता है । बाह्य नियन्त्रित क्रम एवं इण्ट्रोन्स (Introns) की उपस्थिति में उन्नति या सफलता को अवरुद्ध करता है, यदि संश्लेषित जीन उपलब्ध होता है ।

मानव (Human) इन्सुलिन एवं मानव वृद्धि हॉर्मोन उदाहरण है, जो आनुवंशक प्रौद्योगिकी (Gene Technology) या आनुवंशक तकनीकी अत्यधिक चिकित्सीय महत्व के पदार्थों के संश्लेषण के महत्व को प्रदर्शित करती है ।

मानव (Human) में पुन्जन को उपयोग हैपेटाइटिस B विषाणु-डी.एन.ए. (HBV-DNA) से प्राप्त किया जा सकता है । मानव (Human) में यूरोकाइनेज आनुवंशक का पुन्जन, हीमोफीलिया या थक्का जमने का VIII कारक का पुन्जन, मानव (Human) मलेरिया आनुवंशक का पुन्जन, मानव हॉर्मोन के आनुवंशक पुन्जन का निर्माण किया जा रहा है ।

इन पुन्जन के निर्माण के फलस्वरूप अनेक औषधि निर्माण करने वाले उद्योग विकसित हुए हैं । इस प्रकार आनुवंशक/जीन (Gene) का कृत्रिम संश्लेषण (Synthesised) कर उनको रोगग्रस्त व्यक्तियों की कोशिकाओं में पहुँचाकर उनकी आनुवंशिकता को सुधारा जा सकता है ।

पुनर्योजी मानव वृद्धि हॉर्मोन:

मानवों (Human) की पीयूष ग्रंथि वृद्धि हॉर्मोन्स उत्पन्न करती है, जो वृद्धि एवं परिवर्द्धन का नियमन करते है । वैसे बच्चों में उन हॉर्मोन्स की कमी के कारण वृद्धि रूक जाया करती है । व इसे पीयूष बौनापन कहा जाता है । ऐसे बच्चों का नियमित उपचार मृत व्यक्तियों की पीयूष ग्रंथियों (Pituitary Gland) से उपलब्ध होने वाले वृद्धि हॉर्मोन से किया जाता है । hGH के इन्जेक्शन्स बच्चों में प्रभावी पाये गये है ।

जीन क्लोनिंग चार चरणों में होता है:

1. जिस डी.एन.ए. को क्लोण्ड किया जाता है, लक्षित (Target) वाहक से मिलता है और एक पुनर्योजित रिकॉम्बिनेण्ट अणु को उत्पन्न करता है ।

2. रूपान्तरित कॉलोनी का चयन कर वृद्धि की जाती है ।

3. एक या अधिक रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम के द्वारा वाहक डी.एन.ए. को विघटित किया जाता है ।

4. पुनिर्योजीत/रिकॉम्बिनेण्ट डी.एन.ए. अणु को पोषक जीवाणु कोशिका में प्रवेश किया जाता है । इस प्रकार वाहक अणु के प्रवेश के द्वारा पोषक कोशिका रूपान्तरित हो जाती है ।

जीन क्लोनिंग (Gene Cloning) आनुवंशिकता की एक ऐसी व्यावहारिक विधि है, जिसके द्वारा आर्थिक महत्व के पौधों को चुना जाता है, जो लैंगिक प्रक्रिया के द्वारा उत्पन्न किए गए हैं । उनमें उसे जाति के लक्षणों का पूर्ण समावेश रहता है ।

अब इन पौधों (Plant) से आगे अलैंगिक विधि (Asexual Method) के द्वारा पौधे तैयार करते हैं । इस प्रकार इन पौधों (Plant) में अपनी पूर्वज जातियों के लक्षण पूर्ण रूप से विद्यमान रहते हैं और ये जातियाँ संकर (Hybrid) नहीं होती है ।

इस प्रकार जीन क्लोनिंग (Gene Cloning) द्वारा बिना संकरण के उच्च नस्ली पूर्व जातियों से अनेक पीढ़ियों तक स्वस्थ एवं शुद्ध नस्ली, उच्च लक्षण वाली जातियाँ प्रतिकूल वातावरण में भी तैयार की जा सकती हैं ।

वर्तमान में कोशिका विज्ञान में जीन क्लोनिंग (Gene Cloning) एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपयोगी विधि है, क्योंकि इसके द्वारा किसी विशिष्ट आनुवंकश की रासयनिक संचरना, जीन उत्परिवर्तन (Gene Mutation) एवं आनुवंशिक प्रभावों का अध्ययन (Study) करना सम्भव होता है ।

मानव (Human) क्लोनिंग की तकनीक:

मानव क्लोनिंग के लिए पेट्री डिश के अन्दर कृत्रिम निषेचन कराया जाता है । इस प्रकार से प्राप्त युग्मनजों के केन्द्रक को हटा दिया जाता है । अब इन युग्मनजों में इच्छित व्यक्ति की अस्थि मज्जा कोशिकाओं के केन्द्रक को प्रवेश करा दिया जाता है । इस प्रकार पुन: केन्द्रक युक्त हुए युग्मनज से नया मानव (Human) विकसित कराया जाता है जो अपने जनक से पूर्णतः समानता व्यक्त करता है ।

पादप क्लोनिंग- पादप (Plant) क्लोन को किसी भी पादप (Plant) कोशिका से ऊतक संवर्धन द्वारा तैयार किया जाता है ।

(7) चिकित्सा में जिन क्लोनिंग (Gene Cloning in Medicine):

चिकित्सा में जैव-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग व्यापक है । इनमें रोगों के बचाव, उनका परीक्षण व उनका उपचार सम्मिलित है । मानव (Human) आनुवंशिकी द्वारा इसका प्रयोग आनुवंशिक परामर्शण (काउंसलिंग), जन्मपूर्व, परीक्षण एवं जीन थेरपी में भी किया जाने लगा है ।

प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राणीयों व मानव (Human) स्वास्थ्य पर जैवतकनीक के अनुप्रयोग है । इसकी अप्रत्यक्ष महत्वपूर्ण भूमिकाओं में शामिल है सिंगल सेल प्रोटीन द्वारा पोषणयुक्त भोजन का निर्माण तथा मॉलिक्युलर प्रोब्स द्वारा भोजन की अशुद्धियों का पता लगाना आदि । दूसरी ओर इसके प्रत्यक्ष तथा अधिक महत्वपूर्ण उपयोगों में शामिल है ।

अनेक रोगों (Diseases) के कारण होने वाले स्वास्थ्य संकटों को रोकना जिन पर मैनिपुलेशन के तीन स्तरों पर चर्चा की जा सकती है:

(i) एक वेक्सीन के विकास द्वारा एक रोग के विरूद्ध प्रतिरोधकता प्रदान करना,

(ii) रोग (Diseases) के प्रारंभिक चरण में ही इसका पता लगाना,

(iii) एक रोग (Diseases) का उपचार करना ।

रीकॉम्बिनेंट डीएनए टेक्नॉलाजी में अधिक प्रभावी टीके बनाये जाने की संभावना होती है तथा सुरक्षित व प्रभावी टीके (Vaccine) विकसित करने का कदाचित यही एकमात्र साधन है । जीन क्लोनिंग उपयोगी है, जब टीका (Vaccine) उत्पादन के लिए जीव को उगा पाना कठिन हो ।

यहाँ तक कि यदि पेथोजेन उग सकता हो, तो जीन क्लोनिंग उपयोगी रहेगी, क्योंकि नॉन-पेथोजेनिक जीव में प्रतिजन-विशिष्ट जीन को अभियांत्रिक किया जाता है एवं इस प्रकार उत्पादन में जोखिम घट जाता है । विशिष्टतया बढ़ना या दुष्प्रभाव घटना, क्लोन्ड टीके (Cloned Vaccine) में अपेक्षित सुधार है ।

क्लोनित आनुवंशक/जीन्स की अभिव्यक्ति (Expression of Cloned Genes):

जीवाण्विक आनुवंशक जीन्स (Bacterial Genes) की अभिव्यक्ति, यूकेरियोट (Eukaryote) की अपेक्षा अधिक होती है । जीवाणु (Bacteria) के आनुवंशक (Genes) केवल एक प्रकार के RNA पॉलिमेरेज (Polymerase) के द्वारा अभिव्यक्त किए जाते हैं, जबकि यूकेरियोट्‌स के जीन्स तीन वर्गों I, II, III के होते हैं और क्रमशः समरूपी RNA पॉलिमेरेज I, II, III के द्वारा प्रतिलेखित होते हैं ।

प्रोकेरियोट्‌स (Prokaryotes) के प्रतिलेखन में उस प्रकार की विधियों (Method) की आवश्यकता नहीं होती है, जोकि विभिन्न यूकेरियोट (Eukaryote) में वर्गों के आनुवंशक/जीन्स के लिए आदेशात्मक/अनिवार्य होती हैं ।

प्रोकेरियोट्‌स में जीन अभिव्यक्ति का नियन्त्रण यूकेरियोट्स की अपेक्षा कम से कम यद्यपि सूक्ष्म विधियों से प्राप्त किया जाता है । जीन अभिव्यक्ति के मुख्य उपगमनों के द्वारा होती है । जीन की अभिव्यक्ति या तो अन्तर्जीव (Invivo) में या फिर अत:पात्र (Invitro) तन्त्रों में होती है ।

प्रोकेरियोटिक (Prokaryotic) एवं विषाणु (Viruses) जीन में ईश्चेरिशिया कोलाई (Escherichia Coli) कोशिका (Cell) या फिर कोशिका मुक्त सार (Cell Free Extracts) में अभिव्यक्ति सम्मिलित होती है ।

दोनों विधियों में अन्तरभूत लाभ (Intrinsic Advantage) होते हैं । अन्तर्जीव (Invivo) में अभिव्यक्ति प्राकृतिक विन्यास में उत्पाद के अध्ययन को स्वीकारती है । कोशिका मुक्त तंत्र हस्तसाध्य कारकों एवं संगठनों के लिए अच्छे होते हैं जिससे यह ज्ञात किया जाता है कि किस प्रकार विधि कार्य करती है ।

दोनों विधियों के तथ्यों को पूल किया जाता है, जिससे यह ज्ञात किया जाता है कि वास्तविक जीन की स्थिति में क्या होता है । यूकेरियोट की जीन अभिव्यक्ति का अध्ययन जीवाणु की कोशिकाओं (Cell) कोशिका मुक्त सार (Extracts) पृथक्कीय केन्द्रक में या यूकेरियोट की क्लोनिंग कोशिका (Cell) में किया जाता है ।

जीवाणुओं में उपयुक्त अभिव्यक्त वाहकों में रखे जाते हैं, जिनमें सिग्नल्स होते हैं । उनका उपयोग जीवाणु कोशिका (Cell) में होता है । कोशिका (Cell) मुक्त सार का उपयोग हस्त कौशल अभ्यासों में उपयोग हो सकता है जैसे कि प्रोकेरियोट्‌स में प्रतिलेखन (Transcription) एवं अनुवाद (Translation) जीवाणुओं में संलग्न (Coupled) होते हैं । लेकिन यूकेरयोट्स (Eukaryotes) में पृथक कक्षों में रोधन होता है ।

कुछ प्राणी कोशिकाएं (Cells) यूकेरियोटक बहिर्जनीय जीन्स (Exogenous Genes) की अभिव्यक्ति के अध्ययन में लाभदायक होती हैं । इसके अन्तर्गत आते हैं- अफ्रीकन टोड के अण्डे-जीनोपस लीविस (Xenopus Laevis) स्तनी प्राणियों के निषेचित (Fertilised) अण्डे, मुख्य रूप से रोडेण्ट्स (Rodents) ।

संवर्धित कोशिका रेखा (Cultured Cell Line) जीन अभिव्यक्ति के विशेष अध्ययन के लिए उपयुक्त होते हैं । (चायनीज हैम्स्टर अण्डाशय- Chinese Hamester Ovary = CHO) ।

यीस्ट जीन्स अच्छे प्रकार से यीस्ट कोशिका में अभिव्यक्त होते हैं, यद्यपि उपयुक्त जीवाणुयी जीन सिग्नल्स के द्वारा यह ठीक प्रकार से ईश्चेरिशिया कोलाइ (Escherichia Coli) में अभिव्यक्त होते हैं, क्योंकि यीस्ट (Yeast) व्यापारिक दृष्टि से अधिक मूल्यवान होता है ।

यह अधिक अच्छा होगा कि हम यीस्ट जीन अभिव्यक्ति के लिए यीस्ट (Yeast) क्लोनिंग तन्त्र (Yeast Cloning System) को विकसित करने के लिए अधिक ध्यान केन्द्रित करें ।

जीन क्लोनिंग (Gene Cloning) का मुख्य उद्देश्य अपनी अभिव्यक्ति के लिए उत्पाद को परीक्षण के लिए तथा शोध या अनुप्रयोग दोनों में उपयोग (Use) के लिए किया जाता है । कुछ अध्ययन का उद्देश्य इण्टरमीडियेट RNA प्रतिलेख को प्राप्त करना, जबकि दूसरे अध्ययन (Study) के द्वारा प्रोटीन अणुओं को प्राप्त करना होता है ।

किसी भी क्लोनिंग प्रयोग (Gene Cloning) के लिए एक डी.एन.ए. खण्ड (DNA Fragment) जोकि क्लोनिंग के लिए उपयुक्त हो सर्वप्रथम उपलब्ध विभिन्न विधियों में से किसी एक के द्वारा प्राप्त किया जाता है ।

(i) कुछ दशाओं में, डी.एन.ए (D.N.A.) खण्ड को सर्वप्रथम विशेष गुणयुक्त वाले को पहचाना जाता है । जिससे कि क्लोनिंग विधि सरल हो सके ।

(ii) कभी-कभी डी.एन.ए. (D.N.A.) में कार्य होता है जोकि जैविकी परीक्षण के द्वारा डी.एन.ए. (D.N.A.) अंश का चयन करता है ।

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