Read this article in Hindi to learn about the harmful effects of bacteria on food.

जीवाणु प्रोकेरयोटिक जीवों का एक समूह है, जिसमें एक पेटिडोग्लाएकेन भित्ती (Peptidoglycan) से सम्बद्ध परन्तु नग्न DNA पाया जाता है जो मिजोसोम से जुड़ा है और ग्लाइकोजन तथा वसा से निर्मित संग्रहीत भोजन से चरितार्थ हो ।

इस समूह के अंतर्गत माइकोप्लाज्या, रिकेटसिए, क्लेमाइडिए, एक्टिनोमाइसिटीज आर-की बैक्टीरिया तथा यूबेक्टीरिया आते हैं । कुछ मृतोपजीवी जीवाणु (Saprophytic Bacteria) हमारे खाद्य पदार्थों पर आक्रमण कर अनेक प्रकार के विष (Toxins) उत्पन्न कर देते हैं ।

माइक्रोकोकस पायोजिनेज (Micrococcus Pyogenes) क्रीम, पनीर (Cheese), दुग्ध तथा माँस उत्पादों में विषाक्तता उत्पन्न करता है । सैल्मोनेला टाइफीम्यूरियम (Salmonella Typhimurium) तथा क्लॉस्ट्रिडियम बोटूलिनम (Clostridium Botulinum) आदि जीवाणुओं से भोजन विषैला (Poisonous) बन जाता है ।

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जीवित जीवों की भांति ही जीवाणु भी सामान्य जीवन जीते हैं । वे चलते या रेंगते नहीं हैं अत: वे तभी कहीं पर जाते हैं जब कोई उन्हें ले जाता है अन्यथा वे ठहरे रहते हैं तथा अपना समय खाने एवं स्वयं की संख्या बढ़ाने में व्यतीत करते हैं ।

दुर्भाग्य से वे हमारा भोजन खाते हैं विशेषत: वे भोजन जिसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है, जैसे- माँस, पोल्ट्री, मछली, अण्डे तथा कुछ उत्पाद । उनमें से कुछ कम प्रोटीन वाला भोजन ग्रहण करते हैं ।

जैसे फल एवं सब्जियाँ किन्तु ये अत्यंत धीमे होते हैं । अत: किचन के काउण्टर पर दो दिनों तक रखी प्याज या आलू खाने योग्य होती है जबकि माँस का टुकड़ा खाने योग्य नहीं रहता ।

खाद्य सूक्ष्मजैविकी (Food Microbiology) में केवल उन्हीं सूक्ष्मजीवों का अध्ययन नहीं किया जाता है जो प्रोटीन प्रचुरता के कारण हमें भोजन प्रदान करते हैं, बल्कि उन सूक्ष्मजीवों का भी अध्ययन किया जाता है जो हमारे खाद्य पदार्थों को विकृत कर देते हैं तथा इनमें उपस्थित पोषकों को सूक्ष्मजीव स्वयं अपने लिए उपयोग में ले लेते हैं ।

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विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव जैसे- म्यूकर, राजोपस, बोट्राइटिस, एस्परजिलस, पेनिसिलियम इत्यादि हमारे खाद्य पदार्थों को विकृत कर देते हैं । कुछ मोल्ड का उपयोग विशिष्ट खाद्य पदार्थों के निर्माण में, एंजाइमों के निर्माण में, सोफ्ट ड्रिंक्स के निर्माण में किया जाता है ।

कुछ मोल्ड जैसे- Aspergillus Flavus तथा Aspergillus Parasiticus विषाक्त माइकोटोक्सिन (Mycotoxin) का निर्माण करते हैं । जीवाणुओं का खाद्य उद्योग में बहुत महत्व है । कुछ वर्णक जीवाणु भोजन की सतह पर विशिष्ट रंग उत्पन्न कर देते हैं ।

ऐसिटोबेक्टर (Acetobacter) जीवाणु, एथिल एल्कोहल को एसीटिक अम्ल में परिवर्तित कर देते हैं । एरोमोनास (Aeromonas) मानव के लिए ही रोगजनक नहीं होता है बल्कि मछलियों, मेढ़कों व अन्य स्तनधारियों के लिए भी रोगजनक (Pathogenic) हो सकता है ।

विभिन्न प्रकार के जीवाणुओं द्वार होने वाले प्रमुख प्रभावों को  नीचे दिया गया है:

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1. Alcaligens – Produce Alkaline Reaction in Medium.

2. Bacillus Coagulans – Curdle the Milk.

3. Bacillus Purimillus – Used in Sterility Testing.

4. B. Stearothermophilus – Used in Steam Sterilization.

5. B. Subtilis – Used in Ethylene Oxide Sterilization testing.

6. Brocothrix – Spoil a Wide Variety of Meat.

7. Microbacterium lacticum – Used in Production of Vitamin.

8. Micrococus luteus – Help in Meat Curing Brines.

9. Lactobacillus Viridescens – Causes Greening of Sausage.

10. Pseudomonas – Spoilage of Food.

एन्जाइम (Enzyme):

एन्जाइम एक प्रकार के जैव-उत्प्रेरक हैं जो जैविक क्रियाओं को त्वरित करते हैं । प्राणियों के लाइपेज, ट्रिप्सिन तथा रेनेट एन्जाइमों का, पादपों के पेप्सीन, प्रोटिएज, एमाइलेज तथा सोयाबीन के लिपोक्सीजीनेज का उपयोग खाद्य उद्योग, माँस उद्योग, चर्म उद्योग तथा डिट्रजेन्ट उद्योगों में किया जा रहा है । सूक्ष्मजीवों द्वारा एन्जाइम उत्पादन के लाभ हैं ।

जैसे:

(i) इनसे विभिन्न प्रकार के एन्जाइमों का संश्लेषण किया जा सकता है ।

(ii) इनके द्वारा उत्पादन में कम समय लगता है ।

(iii) इन्हें आनुवंशिक रूप से परिवर्तित किया जा सकता है ।

(iv) इनका उत्पादन विभिन्न वातावरणीय अवस्थाओं में किया जा सकता है ।

भोजन पर जीवाणु का हानिकारक प्रभाव:

फूट पोइजनिंग की अधिकांश घटनाओं में (60-90%) बैक्टीरिया प्रकृति के होते हैं ।

इन्हें Food Intake के आधार पर विभाजित किया जाता है:

(i) Intoxication (Poisioning जैसे Clostridium Botulinum, Staphylococcus Aureus द्वारा).

(ii) Diseases Caused by Massive Pollution with Facultative Pathogenic Spores, e.g. Clostridium Perfringens, Bacillus Cereus.

(iii) Infections by Salmonella spp. or Shigella spp. Escherichia Coli.

(iv) Disease of Unclear Etiology, Such as those from Proteus spp.

डायजेस्टिव ट्रेक्ट में इन जीवाणुओं की हानिकारक क्रिया के लिए एण्टीरोटॉक्सिन्स उत्तरदायी होते हैं । जिन्हें दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है । एक्सोटोक्सिंस (सूक्ष्मजीवों द्वारा आसपास के वातावरण में उत्सर्जित टोक्सिंस) तथा एण्डोटोक्सिंस (सूक्ष्मजीव कोशिकाओं द्वारा रह जाते हैं किन्तु कोशिकाओं विखण्डित होने पर मुक्त हो जाते हैं ।)

एक्सोटोक्सिंस प्रमुखत: ग्राम पॉजिटिव बेक्टीरिया द्वारा उनकी वृद्धि के दौरान मुक्त होते हैं । ये अधिकांशत: प्रोटीनो के बने होते हैं जो एण्टीजनिक तथा अत्यंत विषाक्त होते हैं । ये लेटेण्ट पीरियड के बाद सक्रिय हो जाते हैं ।

इस समूह में Clostridium Botulinium (Botulin Toxin एक Globular Protein Nurotoxin है) क्लॉस्ट्रीडियम पराफ्रिजेंस तथा सूक्ष्मजीवों के बारे में हानिकारक प्रभावों सहित महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । स्टेफायलोकोकस ऑरियस द्वारा इनटोक्सिकेशन फूड पोइजनिंग का प्रमुख कारण है ।

विषाक्त भोजन के बैक्टीरिया:

विषाक्त भोजन के बैक्टीरिया खरीददारी, संग्रहण तथा पकाने के दौरान किसी भी स्टेज में भोजन के अंदर प्रवेश कर सकते हैं । बीमारी को टालने के लिए भोजन में रोगजनक जीवाणुओं के प्रवेश करने के खतरे को कम करना आवश्यक है । अधिकतर विषाक्त भोजन भारत में Campylobacter तथा Salmonella Bacteria द्वारा होता है जो कच्चे माँस एवं पोल्ट्री में पाये जाते हैं ।

उन्हें वृद्धि करने में असमर्थ बनाने के लिए जीवाणु को निम्न कारक की आवश्यकता होती है:

(i) उचित तापमान,

(ii) समय,

(iii) भोजन तथा नमी ।

यदि इनमें से एक या अधिक दशाएं नियंत्रित कर ली जाएं तो Food Poisoning जीवाणुओं के गुणन के अवसर कम हो जाते हैं ।

भोजन का सूक्ष्मजैविकीय परीक्षण (Microbiological Examination of Food):

बैक्टीरियल परीक्षण के लिए भोज्य पदार्थों की Sampling में सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि जीवाणु भोजन में Randomly वितरित नहीं होते हैं । Sample को उत्पाद के Microbiological Profile से लिया जाना चाहिए । Sample को Discrete Unite जैसे Bags, Drums or Cartons से प्राप्त करना आवश्यक होता है ।

Sample की अधिकतम संख्या लेनी चाहिए जिससे विश्लेषण के लिए कम्पोसिट किया जा सके । Blending के बाद कई Dilutions बनाऐ जाते हैं तथा Analytical Sample दिया जाता हैं ।

विश्लेषण (Analysis):

जैविकीय भोजन परीक्षण, कच्चे भोजन की गुणवत्ता, स्वच्छता की दशाओं जैसे भोजन कहां प्रोसेस किया गया था तथा परिरक्षण की विधियों की प्रभावशीलता के बारे में जानकारी प्रदान करता है । दूध, जल, माँस सब्जियों तथा फ्रोजन फूट के परीक्षण की प्रक्रियाओं में मूलतः समान विधि का प्रयोग किया जाता है ।

प्रयोगशाला में सामान्यतः उपयोग की जाने वाली 4 प्रकार की जाँचे होती है:

(i) प्रत्यक्ष माइक्रोस्कोपिक प्रेक्षण द्वार सूक्ष्मजीवों का परीक्षण ।

(ii) टोटल वाएबल माइक्रोबियल कॉलोनी काउण्ट का आंकलन ।

(iii) कोलीफॉर्म या फीकल स्ट्रेप्टोकोकाई का परीक्षण ।

(iv) विकृत भोजन का परीक्षण तथा Sample से विषाक्त भोजन के सूक्ष्मजीवों का परीक्षण ।

भोजन में जीवाणुओं की संख्या (Bacterial Number in Foods):

भोजन की पौष्टिकता का निर्धारण विशिष्ट जीव तथा उसकी संख्यात्मक उपस्थिति के द्वारा किया जाता है । रेडी-टू-ईट (Ready-to-Eat) भोज्य पदार्थों में Salmonella की संख्या शून्य होनी चाहिए । इसकी उपस्थिति किसी दिये गए विश्लेषात्मक यूनिट में डिटेक्ट नहीं की जा सकती ।

वही दूसरी ओर चीज या सॉसेज के 1 ग्राम में 103-105, Salmonella Aureus per Gram की उपस्थिति महत्वपूर्ण नहीं होती है । Salmonella प्रजातियाँ एक आंत्र रोगजनक है तथा इसे 17 जीवों में रोग उत्पन्न करते देखा गया है । S. Aureus भोजन में इण्ट्रोटॉक्सिन बनाते हैं ।