वैज्ञानिक प्रबंधन पर निबंध | Essay on Scientific Management in Hindi.

Essay Contents:

  1. वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Scientific Management)
  2. वैज्ञानिक प्रबंध का ऐतिहासिक विकास (Historical Development of Scientific Management)
  3. वैज्ञानिक प्रबंध संबंधी टेलर के विचारों के विकास के स्रोत (Sources of Development of Taylor’s Ideas on Scientific Management)
  4. प्रबंध क्षेत्र में टेलर का योगदान (Taylor’s Contribution to the Management Sector)
  5. वैज्ञानिक प्रबंध की आलोचना (Criticism of Scientific Management)

Essay # 1. वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Scientific Management):

वैज्ञानिक प्रबंध दो शब्दों के संयोग से बना है ”वैज्ञानिक” तथा ”प्रबंध” । वैज्ञानिक से तात्पर्य है विज्ञान संबंधी और विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट जानकारी अथवा ज्ञान की अभिवृद्धि । प्रबंध से अभिप्राय: कार्य को सुव्यवस्थित का से चलाने से है । इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबंध का अर्थ है कि विशिष्ट ज्ञान से किसी कार्य को सुव्यवस्थित ढंग से करना ।

वैज्ञानिक प्रबंध एक विचारधारा एवं दर्शन है जो कि परंपरागत कार्य कराने एवं करने के “वैज्ञानिक” का विरोधी है । इसके अंतर्गत किसी भी औद्योगिक संस्थान में कार्य करने तथा श्रमिकों से कार्य लेने के वैज्ञानिक ढंग को शामिल किया जाता है जिससे संबंधित संस्थान में प्रबंध की समस्त समस्याएं दूर हो जाएं ।

ADVERTISEMENTS:

फ्रेडरिक विन्सलो टेलर (1856-1915) ने 20वीं सदी के आरंभिक वर्षों में सबसे पहले संगठन का व्यवस्थित सिद्धांत प्रस्तुत किया । पेशे से इंजीनियर टेलर प्रबंध जगत में वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रतिपादित करने वाले प्रथम प्रबंध विशेषज्ञ माने जाते हैं । इसीलिए उन्हें वैज्ञानिक प्रबंध का जन्मदाता माना जाता है ।

1878 में एक श्रमिक के रूप में उन्होंने मिडवेल स्टील कम्पनी में (Midvale Steel Company) में कार्य शुरू किया और 28 वर्ष की आयु में ही वे इसी कंपनी के मुख्य अभियंता (Engineer) बनाये गये । 1893 से 1901 के मध्य उन्होंने अनेक औद्योगिक कारखानों में परामर्श अभियंता (Consultant Engineer) के रूप में काम किया और अपने वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांतों का विकास किया । 1915 तक वैज्ञानिक प्रबंध के प्रणेता के रूप में उनका नाम लिया जाने लगा ।

सबसे पहले टेलर ने ही औद्योगिक क्षमता और मितव्ययता बढ़ाने के लिए औद्योगिक कार्य के क्षेत्र में वैज्ञानिक पद्धति अपनाने का समर्थन किया क्योंकि टेलर के सामने कई उद्देश्य थे । वह औद्योगिक क्रांति की चुनौतियों के उत्तर की खोज कर रहा था जिसमें मानव तथा भौतिक संसाधनों की अधिकतम उपयोग करने की जरूरत थी क्योंकि इस क्रांति (औद्योगिक क्रांति) के फलस्वरूप व्यवसाय और उद्योग के त्वरित विस्तार के कारण औद्योगिक योजना और प्रबंध की नयी समस्याएं उभरने लगी थीं ।

कार्यपद्धति, उपकरण तथा प्रक्रियाएं न तो मानक स्तर की थीं और न क्षमता की दृष्टि से योजना के अनुसार थीं । कार्य पद्धति चुनने का भार कामगारों पर छोड़ा जाता था जिससे तदर्भ योजना तो बनती ही थी साथ ही क्षमता भी नष्ट होती थी । जिससे प्रबंध समस्याओं का सामना करना पड़ा, और इन समस्याओं के समाधान के लिए टेलर ने अपना ‘वैज्ञानिक प्रबंध’ सिद्धांत प्रस्तुत किया । हालांकि इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग लुईस डी. ब्राण्डीस ने किया था ।

ADVERTISEMENTS:

टेलर का मुख्य निष्कर्ष यह है कि प्रबंध स्पष्ट रूप में निर्मित ऐसे नियमों और सिद्धांतों पर आश्रित होता है जिसका सभी संगठनों में सार्वजनिक रूप से प्रयोग हो सके और यही बात इसे शुद्ध विज्ञान की कोटि में रख देती है । टेलर के प्रबंध सिद्धांत को इस कारण भी वैज्ञानिक माना जाता है कि ये औद्योगिक उद्यमों की प्रक्रियाओं में परिस्थितियों का पहला परीक्षण तथा पर्यवेक्षण था । टेलर का मत था कि ”सर्वोत्तम प्रबंध सच्चा विज्ञान है ।”


Essay # 2. वैज्ञानिक प्रबंध का ऐतिहासिक विकास (Historical Development of Scientific Management):

20वीं शताब्दी में स्वचालन एवं कम्प्यूटर तकनीकी के विकास तथा विज्ञान जगत में अनेक अविष्कारों के परिणामस्वरूप उत्पादन के पैमाने तथा विधियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं । 19वीं सदी में प्रबंध के क्षेत्र में परंपरागत विचारधारा पाई जाती थी इसके अंतर्गत प्रबंध का दायित्व साधनों की सहायता से उत्पादन करके स्वामी के लाभ को अधिकतम करना था परंतु उत्पादन की विधियां, तकनीक सभी पुरानी थीं 18वीं सदी में प्रबंध की परंपरागत पद्धति ‘Rule of Thumb Method’ (अंगूठे का नियम) 20वीं सदी की औद्योगिक प्रणाली की समस्याओं को हल करने में असमर्थ थी ।

वर्तमान औद्योगिक प्रणाली की दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई जटिलता व विविधता ने 20वीं सदी के प्रथम अर्द्ध भाग में “वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन” को जन्म दिया । फैक्टरी प्रणाली के अंतर्गत उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाने लगा, जिससे उत्पादन के विभिन्न घटकों में समन्वय स्थापित करने तथा प्रबंध संबंधी अनेक समस्याओं का समुचित हल निकालने के लिए प्रबंध में विज्ञान का विकास हुआ ।

20वीं सदी में यह माना जाने लगा कि उद्यम का कुशल एवं उचित प्रबंध करने के लिए परंपरागत प्रबंध विधियों के स्थान पर वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित प्रबंध को अपनाना आवश्यक है ।

विभिन्न विशेषज्ञों एवं विद्वानों ने वैज्ञानिक प्रबंध की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं जो निम्न हैं:

ADVERTISEMENTS:

1. टेलर ने स्वयं लिखा है कि- ”प्रबंध सही रूप में जानने की कला है कि क्या कार्य किया जाना है और उसके करने का सर्वोत्तम तरीका कौन-सा है ।” उन्होंने लिखा है कि ”प्रबंध का मुख्य उद्देश्य मालिकों हेतु अधिकतम संपन्नता के साथ श्रमिकों हेतु सम्पन्नता प्राप्त करना है” ।

टेलर आगे ”प्रबंध के विषय में लिखता है कि वैज्ञानिक प्रबंध यह पक्के रूप में मानकर चलता है कि दोनों (श्रमिकों व मालिकों) के वास्तविक हित एक एवं समान हैं क्योंकि मालिकों की संपन्नता लंबे समय तक बिना श्रमिकों की संपन्नता के नहीं चल सकती । इसीलिए यह संभव है कि श्रमिकों को जो वह चाहता है ऊँची मजदूरी दी जानी चाहिए एवं मालिकों को जो वह चाहता है निम्नश्रम लागत दी जानी चाहिए ।”

2. पी.एफ. ड्रकर के अनुसार- ”वैज्ञानिक प्रबंध के कार्य का संगठित अध्ययन, कार्य का सरलतम भागों में विश्लेषण, और प्रत्येक भाग का श्रमिकों द्वारा निष्पादन कराने हेतु व्यवस्थित सुधार करना है ।”

3. जोन्स- “वैज्ञानिक प्रबंध उत्पादन के नियंत्रण एवं विधियों में एक नवीन अनुशासन प्राप्त करने के लिए नियमों का एक समूह है ।”

4. लायंड डाड एवं लिच- ”विस्तृत अर्थ में वैज्ञानिक प्रबंध की कार्य प्रणाली श्रमिकों, कच्चे मालों, मशीनों, तथा पूंजी के प्रयोग से अधिकतम लाभ प्राप्त करना है ।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कह सकते हैं कि वैज्ञानिक प्रबंध समस्याओं के निवारण का मानवीय दृष्टिकोण है जो कि वैज्ञानिक अनुसंधान, विश्लेषण, नियम, सिद्धांतों एवं परिणामों पर आधारित है । इसका प्रमुख उद्‌देश्य न्यूनतम व्यय पर अधिकतम लाभों को प्राप्त करना होता है ।


Essay # 3. वैज्ञानिक प्रबंध संबंधी टेलर के विचारों के विकास के स्रोत (Sources of Development of Taylor’s Ideas on Scientific Management): 

औद्योगिक प्रबंध के क्षेत्र में टेलर ने मानव श्रम को कार्यकुशलता एवं शक्ति की चरम सोना तक पहुंचाकर युगांतर उपस्थित कर दिया । यह उनके द्वारा किए गए जीवन भर के प्रयोगों का फल था । उनके प्रबंध संबंधी विचार उसके अपने क्रियात्मक, प्रयोगों (Experiments) एवं अनुभव के परिणाम थे ।

19वीं सदी में व्यवसाय क्षेत्र में नया मोड़ आया और उसने प्रबंध की आवश्यकता पर बल दिया । इसी समय हेनरी आर. टाउन और हेनरी मैटकाफ ने प्रबंध की एकीकृत व्यवस्था विकसित करने का प्रबंध किया । टाउन ने 1886 में “The Engineers as an Economist” शीर्षक वाला एक शोध प्रबंध (Ancient Society of Mechanical Engineers (ASME) में प्रस्तुत किया ।

टेलर उससे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपना सारा ध्यान कंपनी के सभी पहलुओं को समझने और वैज्ञानिक प्रबंध विकसित करने में लगाया । सर्वप्रथम कारखाने के प्रबंध अर्थात् उसी व्यवस्था के संबंध में टेलर का योगदान उनका ”कारखाना प्रबंध” पर किया गया शोध था । उसका दूसरा प्रायोगिक योगदान लिखा गया निबंध था । इस निबंध में टेलर ने ”औद्योगिक प्रबंध के नवीन विज्ञान” की नींव डाली ।

मिडवेल स्टील कम्पनी में काम करते समय टेलर ने अपने पर्यवेक्षकों में निम्न कमियां पाईं:

1. प्रबंधकों को अपनी और मजदूरों की जिम्मेदारी की स्पष्ट जानकारी नहीं,

2. काम के प्रभावी मानकों का अभाव,

3. प्रबंध के अधिकांश निर्णय अवैज्ञानिक थे क्योंकि वहाँ ‘Rule of Thumb Method’ के आधार पर काम किया जाता था,

4. विभागों में कार्य के विभाजन के सही अध्ययन का अभाव,

5. श्रमिकों की नियुक्ति करते समय दक्षता, क्षमता और हितों को नजरंदाज किया जाना ।

अत: इन प्रमुख कमियों के चलते टेलर ने अपने प्रयोगों में इनके सुधारों को प्रस्तुत किया ।टेलर ने Differential Pay Rate System (भेदमूलक मजदूरी प्रणाली) को शुरू करने को कहा जिसमें कार्य की योग्यता के हिसाब से वेतन दिया जाएगा ।

उसके बाद सबसे अच्छे श्रमिकों के समय का ध्यान करके उसने ”समय अध्ययन” प्रयोग किया और बताया कि कौन-सा काम कितने समय में होना चाहिए इसी प्रकार उनके विचारों के विकास के योगदान में ”थकान अध्ययन” प्रयोग का भी काफी महत्व है ।

उसके (टेलर) इन प्रयोगों ने एक क्रांतिकारी परिवर्तन प्रस्तुत किया । उत्पादन और कुशलता में काफी वृद्धि हुई और प्रबंधकों और श्रमिकों का आत्मसम्मान बढ़ा । इस प्रकार टेलर ने ‘प्रबंध विज्ञान’ को 30 वर्षों की लंबी अवधि में विकसित किया और 1915 तक उसने वैज्ञानिक प्रबंध आन्दोलन को पूर्णता तक पहुँचा दिया ।

टेलर द्वारा 1911 में प्रकाशित पुस्तक ‘Principle and Method of Scientific Management’ का वैज्ञानिक प्रबंध में महत्वपूर्ण योगदान है । आगे चलकर यही पुस्तक 1949 में वैज्ञानिक प्रबंध) ‘Scientific Management’ के नाम से प्रकाशित हुई । इसको वैज्ञानिक प्रबंध का हृदय कहा जाता है । ‘कारखाना प्रबंध’ (1903) दूसरी रचना थी ।

निबंध:

(1) A Piece Rate System, 1885.

(2) Shop Management, 1903.

(3) On the Art of Cutting Metals, 1906.

(4) Notes on Belting, 1894. उल्लेखनीय हैं ।


Essay # 4. प्रबंध क्षेत्र में टेलर का योगदान (Taylor’s Contribution to the Management Sector):

टेलर को वैज्ञानिक प्रबंध का जनक कहा जाता है तथा उन्हें कार्यकुशलता का सृजनकर्ता भी कहा जाता है ।

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध में निम्नांकित महत्वपूर्ण योगदान दिया है:

1. प्रबंध को विज्ञान बनाना:

टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि प्रबंध एक विज्ञान है और इस रूप को बनाए रखने हेतु हमें घटनाओं, तथ्यों आदि का अवलोकन करना चाहिए । अवलोकनों पर प्रयोग किए जाने चाहिए । प्रयोगों की सहायता से ही टेलर ने कार्य, समय एवं थकान अध्ययन किए और कर्मचारियों के वैज्ञानिक चयन के आधार को प्रस्तुत किया है । इससे प्रबंध एक विज्ञान के रूप में कार्य करता है ।

2. प्रबंध-संगठन का निर्माण:

टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी संस्थान में एक उचित प्रबंध संगठन का विकास किया जाना चाहिए । यह एक प्रकार से एक यंत्र का कार्य करता है जिसके माध्यम से प्रबंध कार्यों का संपादन आसानी से किया जाता है । यह प्रबंध यंत्र कई तत्वों के समावेश से तैयार किया जाता है, जैसे समय अध्ययन, क्रियात्मक फोरमैनशिप, प्रमापीकरण, नियोजन विभाग, कार्यनुमान विभेदात्मक मजदूरी, योजना आदि ।

3. प्रबंध के सिद्धांत:

टेलर ने दोनों पक्षों (मालिक व मजदूर) को न्याय दिलाने के उद्देश्य से प्रबंध के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है ।

ये सिद्धांत सभी हितों व सामूहिक विकास हेतु प्रतिपादित किए गए हैं:

(i) कार्य-पद्धति का मानकीकरण अथवा प्रमापीकरण:

इसका तात्पर्य है कि किसी कार्य को करने का श्रेष्ठतम तरीका कौन-सा है । टेलर का पहला सिद्धांत प्रत्येक कार्य के लिए ऐसी वैज्ञानिक पद्धति के विकास से संबंधित है जिसको कार्य प्रक्रिया के तदर्भ चयन के बदले में प्रयुक्त किया जा सके ।

उत्तम प्रबंध का लक्ष्य या तो अधिकाधिक उत्पादन अथवा प्रति एकक कम खर्च होना चाहिए ? इसकी प्राप्ति के लिए प्रबंध को अच्छी मजदूरी देने के लिए बाध्य होना पड़ेगा । यदि श्रमिकों को अधिक मजदूरी प्राप्त होने की आशा होती है, तो वे अधिक लगन, उत्साह, रुचि एवं प्रेरणा से कार्य करते हैं ।

अत: कार्य कुशलता के अनुसार श्रमिकों को मजदूरी दी जानी चाहिए । इसके लिए टेलर ने विभेदात्मक मजदूरी दरों के महत्व पर जोर देते हुए लिखा है कि इसके परिणामस्वरूप कार्य की मात्रा में वृद्धि होती है और इसके साथ ही उच्च किस्म प्राप्त की जाती है । केवल पद्धतियों के मानकीकरण, श्रेष्ठ उपकरण तथा कार्य सुविधाओं एवं सहयोग का समावेश करके ही तेजी से कार्य करना संभव हो सकता है । मानकों तथा सहयोग का समावेश करना प्रबंध का काम है ।

(ii) वैज्ञानिक चयन तथा कामगारों का प्रशिक्षण:

टेलर का दूसरा सिद्धांत कामगारों का चयन, उनको काम पर लगाना तथा प्रशिक्षण के वैज्ञानिक तरीकों से सबंधित है । काम करने की परिस्थितियों के मानकीकरण का तभी सटीक उपयोग हो सकेगा जब कामगारों का चयन करके उन्हें उसी काम पर लगाया जाए जिसके लिए वे शारीरिक और औद्योगिक दोनों दृष्टियों से पूर्णतया सक्षम हैं । इसके अलावा, कामगारों को उनके काम में प्रशिक्षित करना तथा उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए सारी सुविधाएं प्रदान करना यह भी प्रबंध का कर्त्तव्य है ।

(iii) प्रबंध और कामगारों के बीच कार्य का समान विभाजन:

टेलर का तीसरा सिद्धांत स्पष्टत: इस बात का समर्थन करता है कि प्रबंध तथा कामगारों के बीच कार्य और उत्तरदायित्व का समान विभाजन होना चाहिए । टेलर ने अपने निरीक्षण में देखा कि प्रबंध में ऐसी गलत प्रवृत्ति होती है कि कामगारों पर तो ज्यादा से ज्यादा बोझ लाद दिया जाए और खुद अपने लिए कम-से-कम जिम्मेदारी रखी जाए । इसी संदर्भ में टेलर ने सुझाव दिया कि कामगारों का बुनियादी कार्य पद्धति के निर्धारण का काम जिसके लिए वे अधिक उपयुक्त है अपने ही जिम्मे रखना चाहिए ।

(iv) कामगारों और प्रबंध का आपसी सहयोग:

टेलर का अंतिम सिद्धांत यह है कि प्रबंध और कामगारों के बीच सक्रिय सहयोग तथा सदभावपूर्ण संबंध होना चाहिए । दोनों को एक-दूसरे पर आस्था और विश्वास होना चाहिए । संगठन में स्वस्थ और सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदा करके दक्षता और उत्पादन बहुत अच्छी तरह बढ़ाया जा सकता है और ऐसा वातावरण बनाने में कामगारों और प्रबंधक दोनों की सम्मिलित जिम्मेदारी है ।

इन चारों सिद्धांतों का समन्वय वैज्ञानिक प्रबंध की आधारभूमि (Land Mark) बना । यदि इसे उसी युग की दृष्टि से देखें तो वैज्ञानिक प्रबंध क्रांतिकारी धारणा लगता है । इसके कारण औद्योगिक प्रबंध के प्रति दृष्टिकोण में भारी परिवर्तन आया ।

इसकी बदौलत मानव संसाधन और भौतिक संसाधनों की बरबादी कम से कम होने लगी और श्रमिकों तथा वस्तुओं का श्रेष्ठ और दक्षतापूर्ण उपयोग होने लगा । इससे कारखानों में कार्य-पद्धति का मानकीकरण करने और कार्य-सुविधा (काम के हालात) को बढ़ाने में सहायता मिली ।

श्रमिकों को पहले से अधिक मजदूरी मिलने लगी । उन्हें बढ़िया काम मिला तथा प्रशिक्षण प्राप्त हुआ । उनके काम के घंटे कम हो गए, तथा सामान्य कार्य सुविधाएं बढ़ गईं । प्रबंधकों को भी इस वैज्ञानिक प्रबंध से प्रभावी संगठन का विकास करने के लिए प्रभावी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ ।

टेलर ही ऐसे पहले प्रबंध चितंक हुए जिन्होंने अनुसंधान, मापदंड योजना, नियंत्रण श्रमिक और प्रबंध के बीच के आपसी सहयोग, प्रबंध के पांच आधार स्तंभ प्रदान किए और उन्हें उपयोग में लाने पर बल दिया ।

4. प्रबंधकों के दायित्व:

टेलर ने प्रबंधकों के दायित्व के अंतर्गत निम्न चार नए दायित्वों का प्रतिपादन किया है:

i. कर्मचारियों के कार्य के प्रत्येक तत्व के लिए विज्ञान का विकास करें जिससे कि परंपरागत अंगूठा नियम को बदला जा सके ।

ii. कर्मचारियों के अधिकतम विकास हेतु उनका वैज्ञानिक चयन एवं प्रशिक्षण दिया जाए ।

iii. कर्मचारियों के साथ वे पूर्ण हार्दिक सहयोग करें जिससे कि विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया जा सके ।

iv. प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के मध्य कार्य एवं उत्तरदायित्व का समान विभाजन होना चाहिए ।

उपर्युक्त प्रबंधकीय दायित्वों से श्रमिकों और प्रबंधकों में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास उत्पन्न होगा तथा संस्थान में शांति से कार्य होता रहेगा ।

5. वैज्ञानिक प्रबंध का वर्णन (गतिशील एवं निरंतर प्रक्रिया):

टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध प्रत्येक कार्य के चिन्तन में, निष्पादन के तरीके में, उसकी योजना का निर्माण व उसके क्रियान्वयन में नियंत्रण आदि का अध्ययन करता है और इनमें हमेशा सुधार करते रहना चाहिए । इसी दर्शन से ही वैज्ञानिक प्रबंध को एक गतिशील एवं निरंतर प्रक्रिया संबंधी विज्ञान माना गया है ।

इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबंध के दर्शन में टेलर के अनुसार अग्रिम तत्वों को शामिल किया गया है:

(i) परंपरागत पद्धतियों के स्थान पर वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग ।

(ii) भिन्नता के स्थान पर एकता ।

(iii) व्यक्तिवाद के स्थान पर सहकारिता ।

(iv) सीमित उत्पादन के स्थान पर अधिकतम उत्पादन ।

(v) प्रत्येक व्यक्ति का उसकी अधिकतम कार्यकुशलता तक एवं समृद्धि विकास । इस प्रकार वैज्ञानिक प्रबंध का दर्शन आपसी सहयोग एवं विश्वास पर आधारित है ।

6. प्रबंध के उद्देश्य:

टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंध का उद्देश्य न केवल समृद्धि में वृद्धि करना ही है बल्कि श्रमिकों एवं समूचे समाज में निर्धनता को समाप्त करना है, इससे श्रमिकों को ऊँची मजदूरी, कार्य की अच्छी दशाएं तथा निम्न लागत पर वस्तुएं प्राप्त हो सकेंगी ।

इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्रबंध जगत में निम्न परिस्थितियां उत्पन्न करनी चाहिए:

(1) श्रमिक को योग्यतानुसार कार्य दिया जाए,

(2) संतोषप्रद कार्य की दशाएं प्रदान की जाए,

(3) प्रेरणात्मक (विभेदात्मक) मजदूरी पद्धति अपनाकर अधिक कार्यकुशल कर्मचारी को कम कार्यकुशल श्रमिकों से अधिक मजदूरी दी जाए,

(4) समय, गति एवं थकान अध्ययन द्वारा उच्च मजदूरी एवं निम्न श्रम लागत के उद्देश्यों को प्राप्त करना ।

7. क्रियात्मक संगठन पद्धति:

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध में इस पद्धति का प्रतिपादन करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया है । फोरमैन के कार्य करने के भार को समाप्त करके इसके स्थान पर विशेषज्ञों की नियुक्तियां की हैं । इससे फोरमैन का कार्यभार कम हो जाएगा तथा वह अन्य कार्यों में अपना समय अधिक लगा सकेगा ।

इसके अंतर्गत कारखाना-स्तर पर टोलीनायक, गतिनायक, मरम्मत नायक एवं निरीक्षक नियुक्त किए गए हैं तथा कार्यालय स्तर पर कार्यक्रम लिपिक, निर्देशन पत्रलिपिक, समय और लागत लिपिक तथा अनुशासक की नियुक्ति की गई हैं । श्रमिकों को इन विशेषज्ञों के अधीन कार्य करना चाहिए ।

8. मानसिक क्रांति:

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध की सफलता हेतु कर्मचारियों एवं प्रबंधकों में मानसिक क्रांति उत्पन्न करने पर जोर दिया है । श्रमिकों व मालिकों को अपने हितों की एक दूसरे का विरोधी नहीं समझना चाहिए तथा एक-दूसरे को सहयोग देने एवं विश्वास करके कार्य करना चाहिए ।

श्रमिकों को कार्य की अच्छी दशाएं, प्रेरणात्मक मजदूरी तथा योग्यतानुसार कार्य का आवंटन किया जाना चाहिए । श्रमिकों को भी अपनी मांगों को मनवाने हेतु हड़ताल, धीरे कार्य करने की प्रवृति, घेराव आदि आदतों को छोड़ना होगा । टेलर के अनुसार प्रबंधकों के निम्न उत्तरदायित्व हैं- श्रमिक द्वारा किए जाने वाले कार्य का निर्धारण, कार्य हेतु उचित श्रमिकों का चयन एवं कार्य के उच्च स्तरीय निष्पादन हेतु श्रमिकों को अभिप्रेरित करना ।

मूल्यांकन:

विश्व के विकसित देशों में टेलर के सिद्धांतों एवं तरीकों को बड़े पैमाने पर लागू किया गया । 20वीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में वैज्ञानिक प्रबंध सिद्धांत ने संयुक्त राज्य अमरीका में प्रशासनिक विचारों और पद्धतियों को ही नहीं, बल्कि सरकारी संगठनों को भी प्रभावित किया ।

1910 में इसी वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन के कारण राष्ट्रपति टेफ्ट के अधीन ‘अर्थव्यवस्था और दक्षता आयोग’ गठित किया गया । इस आयोग की सिफारिशों ने वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन को और लोकप्रिय बनाया । बाद में राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने सरकार के प्रशासनिक सिद्धांतों से प्रशासनिक दक्षता का ताल-मेल बैठाने की कोशिश की ।

टेलर का यह नियम उत्पादन या प्रबंध में से ही एक श्रेष्ठ मार्ग है । औद्योगिक तथा सहकारी दोनों के व्यवसाय और प्रबंध में समान रूप से लागू किया गया । इस प्रकार, टेलरवाद की वैज्ञानिक तकनीक अमरीकी लोक प्रशासन के दोनों रूपों को समान रूप से प्रभावित करती गई ।

इस वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन की लोकप्रियता तथा प्रभाव को इस बात से भी का जा सकता है कि सोवियत संघ के औद्योगिक प्रबंध में भी इसने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया । लेनिन ने 1920 में ही रूस के औद्योगिक प्रबंधकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक प्रबंध अपनाने पर जोर दिया ।

20वीं सदी के तीसरे और चौथे दशक के दौरान सोवियत उद्योगों में उत्पादनशीलता और दक्षता बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक प्रबंध के द्वारा जबरदस्त प्रयास किये जाते रहे हैं । इसके अतिरिक्त टेलर की शिक्षाओं से प्रबंध के अन्य विभागों जैसे- वित्त, व्यक्ति, क्रियात्मक संगठन आदि का विस्तार हुआ है तथा वर्तमान समय, गति, थकान, प्रेरणाओं आदि का आधार बनी है । आधुनिक उद्योग में विशेषज्ञ और प्रशिक्षित प्रबंधकों का वर्ग रखने की वर्तमान प्रथा की उत्पति टेलरवाद से ही हुई है ।

टेलरवाद वैज्ञानिक प्रबंध को लोक प्रशासन के निकट लाने में भी सफल सिद्ध हुआ है । इसमें संगठन के विशुद्ध सिद्धांत को विकसित करने की प्रेरणा मिली । उसके ‘समय और गति’ संबंधी अध्ययन वैज्ञानिक प्रबंध की मूल आधारशिला बन गए ।

टेलर के साथियों हेनरी एल. गैण्ट तथा फ्रैंक बी. गिलब्रैथ ने उसके कार्यों को आगे बढ़ाया । टेलर ने मूलत: औद्योगिक क्षेत्र में काम किया था, किंतु शीघ्र ही उसके विचारों का प्रभाव अन्य क्षेत्रों, सरकारी तथा सैनिक संगठनों तक पहुंचने लगा । वैज्ञानिक प्रबंध की आलोचना वैज्ञानिक प्रबंध की आलोचना बहुत हुई है और इसे संदेह की दृष्टि से देखा गया है ।

आलोचकों के अनुसार कुछ प्रश्नों के उत्तर टेलर ने अपने सिद्धांत में नहीं दिए हैं:

1. प्रबंधक कौन है?

2. प्रबंधक के कार्य क्या हैं?

इन दोनों प्रश्नों के उत्तर हेनरी फेयोल ने पांच वर्ष पश्चात् कार्यात्मक प्रबंध के अपने सिद्धांत में दिए ।


Essay # 5. वैज्ञानिक प्रबंध की आलोचना (Criticism of Scientific Management):

मार्क्सवादियों द्वारा टेलर की आलोचना (Taylor Criticized by Marxists):

हैरी ब्रेबरमैन के अनुसार- ”मजदूरों को पूंजीपतियों की कूटनीति के अधीन कर दिया ।”

टेलर तथा वैज्ञानिक प्रबंध की सबसे कटु आलोचना मार्क्सवादियों ने की है । वे ”श्रम के वैज्ञानिक प्रबंध” के सिद्धांत अथवा ”श्रम के विवेकपूर्ण संगठन” का उपहास उडाते हैं । उनका कहना है कि वैज्ञानिक प्रबंध की तकनीकें मानवीय क्रियाविधि का औद्योगिक यंत्रवाद के प्रति अपने आपको प्रमुख तौर पर मनोवैज्ञानिक ढंग से ढालना है ।

उनका विचार है कि यह तकनीक अधिक कुशल औजार है ताकि पूंजीवादियों द्वारा श्रमिकों का और अधिक शोषण किया जा सके । मार्क्सवादियों के अनुसार टेलर के नियम को लागू करने का परिणाम यह हुआ कि श्रम-प्रक्रिया श्रमिकों के कौशल से अलग हो गई । मजदूर अपनी योग्यता पर आश्रित न रहकर एक प्रबंधकों के व्यवहार पर आश्रित हो गये ।

इस व्यवस्था में कार्य वास्तव में पूंजीपतियों का मजदूर जन-समूह पर मानसिक और शारीरिक हिस्सा बन गया । मार्क्सवादी यह सोचते हैं कि वैज्ञानिक प्रबंध के अधीन मजदूर की स्थिति घटकर औद्योगिक रोबोट जैसी बन जाती है । मजदूरों को घटाकर उत्पादन के तत्वों का भाग कर्मिक या फिर एक संसाधन बना दिया जाता है ।

व्यवहारवादियों द्वारा आलोचना (Criticism by Behaviorists):

1. पूंजीपतियों व श्रमिकों के हित असमान:

व्यवहारवादियों ने टेलर के इस विचार की आलोचना की है कि पूंजीपतियों व मजदूरों के हित समान है यह तर्क गलत है क्योंकि सभी मजदूर अनेकों औपचारिक गुटों और संघों के सदस्य होते हैं और अलग-अलग मूल्य व्यवस्थाओं को अपनाते हैं ।

2. सामूहिक सौदेबाजी को अनदेखा:

टेलर ने ‘सामूहिक सौदेबाजी’ के विषय में कुछ नहीं लिखा और बहुत साधारण रूप से इस समस्या को इतना सरल माना है कि निम्न वाक्य लिखकर इसका समाधान ढूँढ लिया है कि ”मजदूर के एक दिन की मजदूरी का प्रश्न सौदेबाजी या पूंजीपतियों से मतभेद उत्पन्न करने का नहीं है बल्कि यह प्रश्न केवल वैज्ञानिक खोज के द्वारा ही पूरा हो सकता है ।”

3. अपूर्ण सिद्धांत:

वैज्ञानिक प्रबंध संगठन या प्रशासन का एक पूर्णतया विकसित सिद्धांत पेश नहीं करता । वैज्ञानिक प्रबंधकों ने अपने कार्य को कार्यशाला की गतिविधियों तक ही सीमित रखा । उन्होंने संगठनों के समूचे प्रशासनिक ढांचों की ओर ध्यान नहीं दिया ।

4. संगठनात्मक दक्षताओं को मशीनी तरीके से बढ़ाना अनुचित:

यह आरोप भी लगाया गया है कि वैज्ञानिक प्रबंध आंदोलन मुख्यत: संगठनात्मक दक्षताओं को मशीनी तरीके से बढ़ाने में लगा रहता है । श्रमिकों ने टेलरवाद का ऐसा विरोध किया कि सयुक्त राज्य अमेरिका के ‘औद्योगिक संबंध आयोग’ की ओर से प्रो. राबर्ट होक्सी को जांच करने को कहा ।

होक्सी ने इसकी जो आलोचना की उसमें मुख्यत: यह है कि वैज्ञानिक प्रबंध के प्रधान आदर्श और श्रमिक संघवाद एक- दूसरे से मेल नहीं खा सकते । वैज्ञानिक प्रबंध का मुख्य लक्ष्य उत्पादन, दक्षता और प्रबंध समस्याएं हैं- यह कामगारों के मनोवैज्ञानिक तथा भावनात्मक समस्याओं के पास तक नहीं भटका । इसमें एक ही तरह का नीरस काम, अनिश्चिता, बेकारी आदि बातों पर ध्यान नहीं दिया जाता ।

5. केवल मजदूरी से दक्षता में वृद्धि नहीं होती:

प्रबंध चिंतक सैम लेविसोम तथा ओलिवर शैल्डन दोनों ने भी टेलर के सिद्धांत के कई पहलुओं की आलोचना की है । शैल्डन प्रबंध समस्याओं और मानवीय पक्षों पर बल देना चाहते हैं । लेविसोम संगठन में अच्छे मानवीय संबंध को कायम रखने पर जोर देते हैं ।

लेविसोम के शब्दों में ”कामगार अन्य बातों से अधिक न्याय, पदवी और अवसर का भूखा होता है और केवल मजदूरी बढ़ा देने से दक्षता में अपने आप वृद्धि नहीं होती है ।” श्रमिकों को प्रसन्न रखने और उन्हें संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में उन्मुख बनाने के लिए इन बातों को ध्यान में रखना जरूरी है । टेलर की समकालीन प्रसिद्ध प्रशासन चितंक एम. पी. फोलेट ने भी टेलर के मशीनी दृष्टिकोण तथा संगठन में मानवीय संबंध पर जोर देने वाले दृष्टिकोण के बीच खाई पाटने पर जोर दिया है ।

6. मानवीय तत्वों की अवेहलना:

टेलर पर इस आरोप के कारण कि उसने प्रबंध के मानवीय तत्वों की अवेहलना की है, अनेक मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक अध्ययन किए हैं । उद्योग में समूह की गति तथा मानव-संबंध पर हीथोर्न परीक्षण (1927-32) और दूसरे विश्व युद्ध के बाद हुए अनुसंधानों से यह बात सिद्ध करने में बहुत सहायता मिली कि कामगारों के व्यवहार की व्याख्या करने में तथा संगठन के उत्पादन और दक्षता का निर्धारण करने में मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक तत्वों का बहुत अधिक हाथ होता है ।

निष्कर्ष:

उपरोक्त आलोचनाओं की वजह से वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत का महत्व कम नहीं हो जाता । वैज्ञानिक पद्धतियों को लागू करके प्रबंध विज्ञान का विकास किया गया है, यह इसकी असली खूबी है । यह भी जानना आवश्यक है कि टेलर के सिद्धांत में संगठन के मानव संबंध पक्ष पर कम जोर दिया गया है परंतु उसकी संपूर्ण उपेक्षा नहीं की गई है ।

इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक प्रबंध ने कार्य कुशलता को प्रबंध तथा प्रशासन के प्राथमिक लक्ष्य स्वीकार किये जाने की दिशा में बहुत अधिक योगदान दिया ।

टेलर ने कामगारों और प्रबंधकों के आपसी सहयोग को औद्योगिक क्षमता बढ़ाने के लिए अनिवार्य सिद्धांत मानकर इसका महत्व स्वीकार किया है । इसके अतिरिक्त, श्रमिकों, की कार्य सुविधाएं बढ़ाना उनका खास मुद्दा रहा है । टेलरवाद से एक मुख्य लाभ यह हुआ है कि कामगारों को अब पहले से अच्छी मजदूरी और अच्छा प्रशिक्षण मिलने लगा तथा वे पहले के मुकाबले अब बेहतर हालात में काम करने लगे ।

टेलर के सिद्धांत का निचोड़ यह है कि गति, लागत, सामान और सेवाओं की कोटि परस्पर आश्रित और अस्थिर वस्तुएं हैं तथा इनको अधिकतम करने के लिए स्वतंत्र अस्थिर वस्तुओं जैसे- श्रम विभाजन, पर्यवेक्षण प्रणाली, वित्तीय प्रोत्साहन, सामान की अनवरत आपूर्ति तथा शारीरिक पद्धतियों और हालात का सामंजस्य किया जा सकता है । यह आज भी बहुत हद तक वास्तविक सत्य है ।

डी. वाल्डो ”टेलर का दर्शन पूंजीपतियों के पक्ष में होते हुए भी 20वीं शताब्दी का वो सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो अमरीका से उत्पन्न होने वाले समस्त प्रबंध विज्ञान को प्रभावित करता है ।”

एक और विचारक के अनुसार- ”टेलर ने प्रबंध के एक सिद्धांत को विकसित नहीं किया था । इसके विपरीत प्रबंध के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया था । उसने वे विधियां बताई थी जो कंपनी के उत्पादन क्षेत्र में प्रयोग की जा सकती थीं । वास्तव में टेलर औद्योगिक इंजीनियरिंग का पिता था न कि वैज्ञानिक प्रबंध का ।”

नीग्रो और नीग्रो- ”आधुनिक प्रबंधकीय विचारधारा और व्यवहार का जो अमर योगदान वैज्ञानिक प्रबंध ने दिया है, वह यह विचार है कि कार्यकुशलता और लक्ष्य की प्राप्ति व्यवस्थित खोज और मूल्यांकन के द्वारा ही प्राप्त होती है ।”